क्या हम युवाओं ने बूढ़े नेताओं और उनके बच्चों का ठेका लेकर रखा है?

राजेश वर्मा।। हमारे देश में सरकारी व निजी क्षेत्र में नौकरी के लिए न्यूनतम व अधिकतम शैक्षणिक योग्यता के साथ-साथ आयु सीमा भी निर्धारित की गयी है वहीं उसी सरकारी कर्मचारी को सरकार 58 या 60 वर्ष की आयु पूरी करने के बाद रिटायर्ड कर देती है। किसी विशेष कक्षा में नियमित रूप से पढ़ाई करने के लिए आयु का पैमाना है। बच्चे को स्कूल प्रवेश के लिए भी आयु सीमा निर्धारित की गयी है। मतलब हर जगह आयु का पैमाना है, भले ही वह किसी संस्थान में प्रवेश का हो या सेवानिवृति का हो। सभी जगह यह नियम हैं परंतु एक क्षेत्र ऐसा है जहां यह नियम बेमानी साबित हो जाते हैं और वह क्षेत्र है राजनीति।

हर किसी की जुबान पर यह बात आती है की आखिर यह राजनीतिज्ञ कब संन्यास लेंगे इनके लिए न कोई 58 वर्ष की आयु सेवानिवृति की अधिकतम सीमा है न ही 60 या 65। राजनीतिज्ञों को आखिर ऐसा क्या लगाव है राजनीति से की वह न तो कभी थकते हैं न ही इनके लिए कोई सेवानिवृति की उम्र है। वैसे तो उम्रदराज नेताओं को खुद ही पीछे हट जाना चाहिए लेकिन यदि ऐसा नहीं भी होता है तो युवाओं को खुद आगे आना चाहिए।

युवाओं का देश व प्रदेश की राजनीति में आगे आना क्यों जरूरी है इसके पीछे भी कई कारण हैं। एक तरफ हम दुनिया में अपनी युवा आबादी का डंका पीट रहे हैं तो दूसरी तरफ उन्हें देश निमार्ण में भागीदार नहीं बना रहे। संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया का सबसे युवा देश है। यहां 35.6 करोड़ आबादी युवा है जबकि पड़ोसी देश चीन की यही आबादी 26.9 करोड़ है। कोई भी देश अपनी कामकाजी आबादी से बेहतर परिणाम तभी हासिल कर सकता है जब उस पर निर्भर रहने वाली आबादी अपेक्षाकृत कम हो।

आज राजनीति में बाहुबल व शक्ति प्रदर्शन दिनोंदिन बढ़ रहा है। पढ़ी-लिखी युवा पीढ़ी को इसमें बदलाव की पहल करनी चाहिए। मायने यह नहीं रखता की वह किस जाति-धर्म से संबंध रखते हैं। आज देश की राजनैतिक तस्वीर बदलने की जरूरत है। इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता की राजनैतिक पार्टियों ने कई युवाओं को मौके भी दिए हैं लेकिन इसमें भी परिवारवाद व सगे संबंधियों का राजनीति दलों से संबंध ज्यादा देखने को मिलता है। इसके सैकड़ों उदाहरण विभिन्न प्रांतों व देश में देखने को मिल जाएंगे जबकि दूसरे युवाओं को उतना मौका नहीं मिल सका जितना मिलना चाहिए।

हम पिछले कई चुनावों से देखते आ रहे हैं, कि राजनैतिक दल चिरपरिचित नेताओं को ही बार-बार मौका देते हैं। बौद्धिक क्षमता रखने वाले व पढ़े- लिखे युवाओं का राजनीति में आना बेहद जरूरी है। जब अच्छे लोग सियासत में होंगे तो उनका नजरिया भी विकास पर आधारित होगा। युवा पीढ़ी में व्यापारी, वकील, शिक्षक, पत्रकार, किसान कवि-साहित्यकार और अन्य क्षेत्र के लोगों को भी आगे आकर सक्रिय राजनीति में हिस्सा लेना चाहिए क्योंकि किसी भी पार्टी से बढ़कर उनकी अपनी व्यक्तिगत छवि होती है। आज के दौर में सभी राजनैतिक दल युवाओं का चुनाव प्रचार में जमकर सहयोग ले रहे हैं जबकि सक्रिय राजनीति में इन्हीं युवाओं को मौका नहीं दिया जा रहा। यह नेता खुद तो राजनीति में जमकर मौज उड़ा रहे हैं साथ ही अपने बच्चों रिश्तेदारों के लिए भी अपनी विरासत सौंप जाते हैं इस तरह आज का युवा वर्ग पहले इनकी जी हजूरी में जीवन व्यतीत कर देता है फिर इनके परिवार के लिए अपने जीवन को समर्पित कर देता है।

बात करें राजनीति में शुचिता की तो राजनीति में भी स्वच्छता उतनी ही जरूरी है जितनी की वह हमारे जीवन में जरूरी है। एक तरफ स्कूल, कॉलेज-यूनिवर्सिटी तथा अन्य संस्थान शिक्षकों और संसाधनों की कमी से जूझ रहे हैं तो दूसरी तरफ देश-प्रदेश में सभी युवाओं के लिए सरकारी नौकरियों या रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं। युवा भी आए दिन हो रहे नित-नए बदलाव से कहीं ना कहीं प्रभावित रहा है। किसी वर्ग विशेष अथवा धर्म के व्यक्ति को टिकट देने की परम्परा को अब बदला जाना चाहिए। जो जनप्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद देश या अपने राज्यों की समस्याओं व नीतियों की आवाज ना उठा पाते हों ऐसे नेताओं के चुनने की परम्परा बदली जानी चाहिए। यह सब नौजवान ही कर सकते हैं और कोई नहीं।

युवाओं की समस्याएं भी देश में लगातार बढ़ रही हैं। इसमें सबसे अहम है रोजगार। नियमित डिग्री लेने के बावजूद युवाओं को मनमाफिक रोजगार नहीं मिलता। अच्छे और तेज-तर्रार युवाओं को राजनीति में जरूर आना चाहिए। यदि ऐसे युवा राजनीति में आएंगे तो वह देश का विकास तो करेंगे ही साथ ही अन्य बेरोजगार युवाओं के लिए भी कुछ न कुछ जरूर करेंगे।

जब युवा इसकी पहल करेंगे तो नीति-निर्माता व सियासी नेताओं की सोच में भी बदलाव आएगा। देश के बाहर दुनिया भर में नजर दौडाएं तो कनाडा, फ्रांस और अन्य देशों में युवा राष्ट्राध्यक्ष तक बन गए हैं। वे अपने अनुभव से सरकार और वैश्विक राजनीति चला रहे हैं। हमारी युवा शक्ति भी इस भूमिका को निभाने में सक्षम है। बस जरूरत है आगाज़ करने की और इसके लिए युवाओं को नेताओं व राजनीतिक दलों की तरफ नहीं देखना होगा उन्हें खुद फ्रंटलाइन पर आना होगा भले ही वह किसी राजनीतिक दल के माध्यम से हो किसी संस्था के माध्यम से हो या फिर निर्दलीय के रूप में ही क्यों न हो। नौजवानों के राजनीति में आने से ही राष्ट्र का विकास संभव होगा। आज की राजनीति के नेताओं का अपना व्यक्तित्व ही अच्छा नहीं रहा तो वह देश का नाम कैसे उपर कर पाएंगे?

एक और बात, देश का युवा वर्ग ऊंचाईयों को तो छूना चाहता है परंतु यह भूलता जा रहा है कि उन ऊंचाईयों को छूने के लिए वह स्वयं अपनी जड़ें राजनीतिक दलों की चमचागिरी करके खुद काट रहा है। देश की राजनीति में देश प्रेम की भावना की जगह परिवारवाद, जातिवाद और संप्रदाय ने ले ली है। आए दिन जिस तरह से नेताओं के भ्रष्टाचार के किस्से बाहर आ रहे है उससे देश के युवा वर्ग में राजनीति के प्रति उदासीनता व दूरी बढ़ती जा रही है। वह देश में रहने की बजाए विदेशों में स्थापित होने की होड़ में शामिल हैं। देश की राजेश वर्मा।। राजनीति में सुभाषचन्द्र बोस, शहीद भगतसिंह, चंद्रशेखर आजाद, लोकमान्य तिलक जैसे वह युवा नेता आज कहीं नजर नहीं आते, जो अपने होश और जोश से युवा वर्ग के मन में एक नई क्रांति का संचार कर सके। उम्रदराज बूढ़े नेता कहां से युवाओं को देशभक्ति या क्रांति की बातें सिखाएंगे?

अब समय आ गया है देश के शिक्षित युवाओं को नौकरी के लिए देश विदेश में भटकने की बजाए देश की सक्रिय राजनीति में आगे आने का। इस युवा पीढ़ी को किसी को मार्गदर्शक बनाने की बजाए खुद अपना पथ प्रदर्शक बनना होगा वर्ना भविष्य में केवल वही युवा चेहरे राजनीति में देखने को मिलेंगे जो परिवारवाद के रहमो करम पर आए होंगे भले ही उनमें योग्यता न के बराबर हो।

यह नहीं भूलना चाहिए की यदि हमारा देश आज युवा देश है तो आने वाले समय में कुछ वर्षों बाद इस देश में यह युवा आबादी सबसे ज्यादा बूढ़ों में तब्दील होगी। इसलिए इस सुनहरे काल को खोने नहीं देना चाहिए।

(स्वतंत्र लेखक राजेश वर्मा लम्बे समय से हिमाचल से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। उनसे vermarajeshhctu @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

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