विक्रमादित्य ने क्या कभी अपने पिता वीरभद्र सिंह से ये सवाल पूछे हैं?

आई. एस. ठाकुर।। राजनीति में दोहरे मापदंड होना नई बात नहीं है। लेकिन दोहरी बातें चुपके से बचते-बचाते करने के बजाय खुलेआम की जाएं तो इसे बेशर्मी ही कहा जा सकता है। पिछले दिनों हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह अस्वस्थ हुए तो उन्हें पीजीआई से शिमला लाने के लिए हिमाचल प्रदेश के सीएम जयराम ने अपना हेलिकॉप्टर भेज दिया।

इससे कुछ दिन पहले वीरभद्र सिंह के बेटे और शिमला ग्रामीण से कांग्रेस के विधायक विक्रमादित्य सिंह ने जयराम ठाकुर को ‘हेलिकॉप्टर’ वाला सीएम कहा था और सरकारी पैसे के दुरुपयोग का आरोप लगाया था। मगर जब सीएम ने विक्रमादित्य के पिता को लाने के लिए वही हेलिकॉप्टर भेजा तो जनाब ने विरोध करना तो दूर, मुस्कुराते हुए हेलिकॉप्टर से सेल्फ़ी खींची और फ़ेसबुक पर शेयर की।

जब अपनी बारी आती है और सरकारी पैसे से ख़ुद को लाभ मिलने लगते हैं तो विक्रमादित्य की सारी चिंताएँ दूर हो जाती हैं। इसीलिए जयराम को हेलिकॉप्टर वाला सीएम कहने वाले विक्रमादित्य भूल गए कि कैसे उनके पिता ने निजी कामों के लिए हेलिकॉप्टर इस्तेमाल किया था। वह भूल गए कि वह उनके पिता की ही सरकार ने उन्हें कौशल विकास निगम का डायरेक्टर बना दिया। यह सरकारी पैसे की बेक़द्री और अपने पद को इस्तेमाल करते हुए परिजन को फ़ायदा पहुँचाना नहीं था?

विक्रमादित्य का वह पोस्ट जिसमें सीएम को ‘नाटी किंग’ कहते हुए सवाल उठाए गए हैं।

ऐसा नहीं है कि विक्रमादित्य की स्मृति कमजोर है और इसलिए वह भूल जाते है कि अपने परिवार के सदस्य के राज्य के सत्ता के शीर्ष पर होने के दौरान उन्हें कितने सरकारी लाभ मिले। दरअसल उन्हें मुग़ालता है। मुग़ालता यह कि उनके पिता ने प्रदेश की कई सालों तक सेवा की है, प्रदेश पर उनके पिता के बड़े अहसान हैं, इसलिए जो कुछ सरकार उनके लिए या उनके परिवार के सदस्यों के लिए करती है, वह सरकारी पैसे की बेक़द्री नहीं बल्कि एक तरह का रिटर्न है।

शायद उन्हें लगता है कि क्या हुआ जो सरकार थोड़ा बहुत पैसा अब खर्च कर दे उनके ऊपर, विशेष सुविधाएँ दे दे। विक्रमादित्य मानते होंगे कि भले ही नियमों और क़ानूनों में प्रावधान नहीं है मगर उनका परिवार आज भी सरकारी सुविधाओं के लिए अघोषित रूप से एनटाइटल्ड है। और यह मुग़ालता इस आधार पर कि उनके पिता ने प्रदेश को बहुत कुछ दिया है।

लेकिन सवाल उठता है कि उनके पिता ने प्रदेश को वैसे दिया क्या है? इसमें कोई शक नहीं कि वीरभद्र सिंह इस प्रदेश के सम्मानित नेता रहे हैं और लंबे समय तक हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे हैं। मगर उन्होंने राजनीतिक उठापटक, टांग-खिंचाई से अतिरिक्त कुछ भी अभूतपूर्व काम नहीं किया। न तो उनकी योजनाओं में कोई विजन दिखा, न उन्होंने हिमाचल प्रदेश में कुछ ऐसा ला दिया कि प्रदेश उस क्षेत्र में सबसे आगे खड़ा हो गया।

आज विक्रमादित्य सवाल उठा रहे हैं कि प्रदेश 60 हज़ार करोड़ के क़र्ज़ में हैं। क्या उन्होंने अपने पिता से पूछा कि आप इतने समय तक सीएम रहे, क्यों नहीं प्रदेश के लिए रेवेन्यू के स्रोत जेनरेटर कर पाए कि राज्य को चलाने के लिए क़र्ज़ लेना पड़े? क्या उन्होंने अपने पिता से पूछा कि क्यों 45000 करोड़ से अधिक रुपये का क़र्ज़ छोड़कर 2017 में सत्ता से हटे?

वीरभद्र सिंह

वीरभद्र ने तो हिमाचल प्रदेश में शिक्षण संस्थानों को लाने में देरी की। हिमाचल प्रदेश के लोग मामूली कोर्सो के लिए कई सालों तक चंडीगढ़, दिल्ली और यहाँ तक कि श्रीनगर जाते रहे। फिर एक समय ऐसा आया जहां मन आया वहाँ स्कूल खोल दिए, भले अध्यापक हों न हों, इन्फ़्रास्ट्रक्चर हो न हो। नए-नए नियम लाकर बिना टेस्ट वग़ैरह के नए-नए ढंग से टीचर रख दिए। हालत यह हो गई कि प्राइमरी स्कूल वाले इन्फ्रास्ट्रक्टर में कॉलेज तक खोल दिए।

ख़ुद अस्वस्थ होने पर इलाज के लिए वीरभद्र चंडीगढ़ से लेकर चेन्नई के अस्पतालों में जाते रहे मगर यह सुध नहीं ली कि हिमाचल प्रदेश में ढंग का संस्थान खोल दिया जाए। आज बेरोज़गारी पर शोर कर रहे विक्रमादित्य ने क्या कभी वीरभद्र सिंह से पूछा कि आपकी सरकार कितने लोगों को रोज़गार दे गई? क्या विक्रमादित्य के पास देने को आँकड़ा है कि उनके पिता की सरकार के दौरान कितने लोगों को निजी क्षेत्र में नौकरियाँ सरकार की पहल से दी गईं? क्या वह बता सकते हैं कि 2012-17 तक उससे पिछली सरकार की तुलना में कितनी सरकारी नौकरियाँ दी गईं?

आज विक्रमादित्य आरोप लगाते हैं कि ‘शिखर की ओर सिराज।’ यानी सिराज का ही विकास हो रहा है। सिराज प्रदेश के सबसे पिछड़े इलाक़ों में है। वहाँ विकास हुआ न हो, मगर होना चाहिए और प्रदेश के बाक़ी हिस्सों की तरह बराबरी से होना चाहिए। अगर इस टिप्पणी से विक्रमादित्य का इरादा पक्षपात करके सिराज को अधिक सुविधाएँ देने के आरोप से है तो उन्हें पहले अपने पिता से पूछना चाहिए कि पिछली सरकार में क्यों शिमला रूरल इलाक़े में योजनाओं और घोषणाओं की झड़ी लगा दी थी? क्या यह सब इसलिए नहीं किया गया क्योंकि वीरभद्र अपने पुत्र यानी आपको वहाँ से चुनाव लड़वाना चाहते थे?

और पक्षपात की ही बात है, यह तथ्य है कि सचिवालयों के से लेकर शिमला के अहम पदों पर वीरभद्र के सत्ता में रहते किस क्षेत्र से संबंध रखने वाले लोगों और किन उपनाम वाले लोगों को अधिक नौकरियाँ दी गईं, किन्हें अहम पदों पर नियुक्तियाँ दी गईं। आज सरकारी पैसे से शिमला की रैली के लिए सरकारी बसों के दुरुपयोग का आरोप लगाने वाले विक्रमादित्य ने कभी अपने पिता से पूछा कि 2017 में मंडी में हुई राहुल गांधी की रैली के लिए एचआरटीसी की बसों का किराया उन्होंने अपने जेब से भरा है या नहीं?

और तो और, जब वीरभद्र सरकार के आख़िरी दिन थे तो एक नई पॉलिसी को मंज़ूरी दे दी गई थी।इसके तहत रियासत काल की धरोहरों, जिनमें भवन, किले, महल, लॉज और हवेलियां शामिल हैं, को संजोना जाना था और इन इमारतों के रखरखाव के लिए प्रदेश सरकार की ओर से भवन या महल के मालिक को 50 फीसदी रकम मिलनी थी। इसका सीधा लाभ वीरभद्र और अन्य राजघरानों को हुआ जिनके पूर्वज रियासतों के राजा था। यानी अपने महल, जिसकी फ़ोटो विक्रमादित्य शान से डालते हैं, उनकी मैनेटेनेंस का इंतज़ाम भी भी वीरभद्र सरकारी पैसे से करवा गए थे। (आगे दिए गए लिंक पर क्लिक करें)

जिस तरह ‘हेलिकॉप्टर वाला सीएम’ कहने के बाद विक्रमादित्य को ख़ुद बैकफ़ुट पर आना पड़ा था, उसी तरह उन्हें ‘नाटी किंग’ वाले बयान पर भी आना पड़ेगा, जब वह अपने पिता से हिसाब लेंगे कि उन्होंने सबसे लंबे समय पर हिमाचल का मुखिया रहकर प्रदेश के लिए नाटी डालने के अलावा क्या किया। क्योंकि नाटी तो वीरभद्र भी डालते थे और जयराम ठाकुर से बढ़िया डालते थे। हो सकता है आधुनिक होने के कारण विक्रमादित्य को संस्कृति और परंपराओं से लगाव न हो। मगर वीरभद्र सिंह इसे हिमाचल प्रदेश की शान मानते थे।

बहरहाल, विक्रमादित्य अपने पिता से हिमाचल के हितों को लेकर सवाल पूछें या न पूछें, ज़रूरी है कि वह मौजूदा सरकार से पूछते रहें और विपक्ष में होने के नाते उनका यह काम भी है। मगर हिमाचल की जनता तो जयराम से भी सवाल पूछेगी कि आप अभी क्या कर रहे हैं और प्रेम कुमार धूमल व वीरभद्र सिंह से पूछेगी कि आपने क्या किया। ऐसा वह करती भी रही है और आगे भी करेगी। क्योंकि नेता कोई भी हो, प्रदेश के लिए जो कुछ करता है अपनी जेब से नहीं, जनता के ही पैसे से करता है।

बहरहाल, चलते-चलते वीरभद्र सिंह का एक नाटी देखिए।

जब वीरभद्र सिंह ने डाली नाटी

उम्र 81 साल, फिर भी जोश और उत्साह में कमी नहीं। पिछले दिनों मुख्यमंत्री Virbhadra Singh कुछ इस तरह नाटी डालते नजर आए…

In Himachal ಅವರಿಂದ ಈ ದಿನದಂದು ಪೋಸ್ಟ್ ಮಾಡಲಾಗಿದೆ ಶುಕ್ರವಾರ, ಜೂನ್ 3, 2016

(लेखक लंबे समय से हिमाचल प्रदेश से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। उनसे kalamkasipahi @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

ये लेखक के निजी विचार हैं

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