लेख: बिना प्लानिंग किसके पैसे से, किसके लिए और क्यों कॉलेज बांट रहे हैं वीरभद्र?

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आई.एस. ठाकुर।। पिछले दिनों खबर आई कि जब मुख्यमंत्री वीरभद्र सिरमौर के दौरे पर थे, जिला परिषद अध्यक्ष दलीप सिंह चौहान ने वीरभद्र के सामने कहा- कॉलेज देकर पगड़ी की लाज रख लो। यह सुनकर मुख्यमंत्री भावुक हो गए और उन्होंने तुरंत रोनहाट में कॉलेज खोलने का ऐलान कर दिया और जनता ने तालियां और सीटियां बजाकर घोषणा का स्वादत किया। सुनने में कितना अच्छा लगता है कि हमारे मुख्यमंत्री कितने दयालु हैं। मगर सवाल उठता है कि अगर लोगों को वाकई कॉलेज की जरूरत थी, तो पहले ढंग से क्यों नहीं ऐलान किया गया और अगर जरूरत नहीं थी, तो किसी के मांगने पर बिना फिजिबिलिटी रिपोर्ट या बजट के कैसे ऐसा ऐलान कर दिया? वीरभद्र प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और उन्हें यह पद लोकतांत्रिक ढंग से मिला है। उनकी सरकार जो एक-एक पैसा खर्च करती है, वह जनता का पैसा होता है न कि उनका अपना। वह कोई राजा नहीं (भले वह खुद को समझते हों) कि अपने निजी राजकोष से जहां मन आए, तोहफे बांटते रहें।

 

चार सालों में खोल दिए 40 से ज्यादा कॉलेज, बिल्डिंगें कहां हैं?
यह जानकर आपको हैरानी होगी कि पिछसे चार सालों में वीरभद्र सरकार ने करीब 45 कॉलेज खोल दिए हैं, जिनमें से 42 के नए ऐलान हुए हैं। धड़ाधड़ कॉलेज खोल रही यह सरकार ढंग के भवन नहीं बना पा रही और छात्रों को बुनियादी सुविधाें नहीं दे पा रही। कहीं पर शिलान्यास कर दिया गया है मगर अब तक निर्माण का नाम नहीं है। कहीं पर कॉलेज किराए की बिल्डिंगों पर चल रहे हैं तो कहीं पर स्कूलों की पुरानी इमारतों पर चल रहे हैं। कहीं तो पढ़ाने के लिए टीचर ही नहीं हैं। यही वजह है कि आए दिन छात्रों को प्रदर्शन करने पड़ रहे हैं। बावजूद इसके वीरभद्र जी ने पिछले दिनों एक हफ्ते के अंदर तीन नए कॉलेज खोलने का ऐलान कर दिया। इनमें से एक कॉलेज तो शिमला रूरल में खुलेगा (जो उनका अपना चुनाव क्षेत्र है) और दो कॉलेज सिरमौर में खोल दिए गए हैं।

 

नियम बनाओ, नियम उड़ाओ, वोट भुनाओ
कॉलेज खोलने के मामले में यह सरकार दोहरे मापदंड अपनाती रही है। साल 2014 में कॉलेज खोलने के लिए नियम बनाया गया था, जिसके तहत पहले फिजिबिलिटी रिपोर्ट तैयार होनी चाहिए, विभाग से प्रपोज़ल आना चाहिए और बजट के लिए वित्त विभाग से मंजूरी होनी चाहिए। इन नियमों के तहत जरूरी है कि कॉलेज खोलने के लिए समुचित जमीन होनी चाहिए, जिसमें कि भवन, हॉस्टल, स्टाफ क्वॉर्टर, रेजिडेंस, खेल मैदान और पार्किंग की व्यवस्था हो सके। कम से कम 35 बीघा जमीन की जरूरत होती है। सब्जेक्टों को लेकर भी नियम बने थे। रूसा के तहत कॉलेज खोलने के लिए 25 बीघा जमीन चाहिए होती है। ये नियम 2014 में बने थे, मगर सरकार अपने बनाए नियम खुद ही तोड़ देती है।

नियम तो साफतौर पर यह कहते हैं कि पहले डिमांड कहीं होगी तो शिक्षा विभाग सबसे पहले देखेगा कि यहां कॉलेज खोलना फिजिबल है या नहीं। यानी कितने लोगों को फायदा होगा, किचने बच्चे पढ़ने आएंगे, जमीन की व्यवस्था है या नहीं, कनेक्टिविटी है या नहीं आदि आदि। फिर ऊपर बताए गए नियमों को परखा जाता है। तब जाकर रिपोर्ट को सरकार को भेजा जाता है, जहां कैबिनेट मंजूरी देती हैक कि कॉलेज खोल दिया जाए। मगर चुनाव जो हैं, सारे नियम जाएं चूल्हे में, ऐलान पहले होगा, बाकी बातें बाद में देखी जाएंगी।

 

कॉलेज तो खोल दिए, मगर टीचर कौन लाएगा?
हिमाचल प्रदेश में 129 कॉलेज थे और तीन नए कॉलेजों का ऐलान मिला दिया जाए तो संख्या 132 हो जाती है। मगर आपको हैरानी होगी कि इस सरकार ने अपने कार्यकाल में जितने भी कॉलेज कोले हैं, उनमें 600 से ज्यादा स्टाफ के प खाली हैं। यानी हिमाचल प्रदेश में तहसीलों और उप-तहसीलों की संख्या से भी ज्यादा कॉलेज हो गए हैं। कहीं पर पूरे सब्जेक्ट नहीं हैं तो कहीं पर सब राम भरोसे चल रहा है। यह ठीक है कि जरूरत के हिसाब से कॉलेजों का ऐलान करने में गलत नहीं है। मगर प्लानिंग भी तो कोई चीज़ होती है।

 

फिर ऐसे ऐलान करने का क्या फायदा?
वीरभद्र हो चुके हैं बुजुर्ग। वह बदलते वक्त की जरूरतों को समझ नहीं पा रहे। समर्थकों को भले वह मसीहा नजर आते हों मगर हकीकत यह है कि उन्हें पता नहीं चल रहा कि आज क्वॉन्टिटी की नहीं, क्वॉलिटी की जरूरत है। वैसे ही मांगने वाले उनके पिछलग्गू नेता और वैसे ही देने वाले वह ‘दानी।’ अपने घर से तो कुछ जाना नहीं है, इसलिए बिना प्लानिंग ऐलान करते जाओ, भले ही कॉलेजों में 50 बच्चे पढ़ने न आएं। अपने करीबी कॉलेज में चले जाएं आप तो पता चल जाएगा कि वहां पर शिक्षा का क्या स्तर है, बच्चों को कितने सुविधाएं मिल रही हैं।

 

मुख्यमंत्री को मालूम नहीं है कि आज करियर बनाने वाली शिक्षा की जरूरत है। आज कोई साक्षर होने के लिए या डिग्रियां गले में टांगकर घूमने के लिए पढ़ाई नहीं करता। वह पढ़ाई करता है अच्छे करियर के लिए, अच्छी जॉब लेने के लिए, कुछ सीखने और समझने के लिए। इसीलिए  ज्यादातर बच्चे सरकारी स्कूलों के बजाय प्राइवेट यूनिवर्सिटियों या कॉलेजों का रुख कर रहे हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि आप सरकारी कॉलेजों में ढंग से कुछ नहीं दे रहे। बस ऐलान कर दे रहे हैं, भवन बना रहे हैं (कहीं तो वह भी किराए का है), उसका नाम राजीव गांधी, इंदिरा गांधी या पंडित नेहरू पर रख देते हैं और हो गया काम। अगली बार भाषण देते हुए नाम भी गिना दिया कि ‘मैंने ये कॉलेज दिया है।’ फिर जब आप सामान्य पढ़ाई करके बेरोजगारों की कतारें पैदा कर देते हैं, तब बड़ी मासूमियत से कहते हैं- हिमाचल में पढ़े-लिखे ज्यादा हैं, इसलिए बेरोज़गारी की समस्या है। अजी रोज़गार देने वाली पढ़ाई करवाओगे, तब रोज़गार मिलेगा? हर कोई आपके बेटे की तरह सौभाग्यशाली तो है नहीं कि बिना कुछ किए कौशल विकास निगम का निदेशक बन जाए?

 

वह वक्त गया जब कनेक्टिविटी की कमी थी। याद करें जब पढ़ाई के लिए बच्चे होस्टलों में रहा करते थे। आज भी रहते हैं। क्यों न 5 जगह आधे-अधूरे, सुविधाओं के अभाव वाले और नाम भर के कॉलेज खोलने के बजाय एक ही जगह पर सर्व सुविधा संपन्न कॉलेज खोला जाए जहां पर सभी विषय हों, सारी सुविधाएं हों, स्टाफ पूरा हो और साथ ही हॉस्टल की भी सुविधा हो। अगर क्वॉलिटी वाले कॉलेज होंगे तो जो माता-पिता बच्चों की पढ़ाई के लिए प्रति सेमेसेट्र लाखों प्राइवेट कॉलेज-यूनिवर्टियों में खर्च कर रहे हैं, वे नाम भर की रकम आपके कॉलेजों की फीस देकर अपने बच्चों को आपके यहां भेजेंगे।

 

मगर फुरसत किसे है यह सोचने की? बच्चों के भविष्य की चिंता कौन करे? नजर तो सिर्फ शिमला ग्रामीण सीट पर है जहां से अपने बच्चे को उतारने की तैयारी है। एक कॉलेज वहां भी खोलने का ऐलान हो गया है। मानो शिमला ग्रामीण वालों के लिए एचपीयू और शिमला के तमाम कॉलेज हज़ारों किलोमीटर दूर हों। सलाम हो ऐसी घोषणाएं करने वाले नेतृत्व को और इस पर खुश होने वाले पिछलग्गुओं को और ऐसे आधार पर वोट देने वाले महानुभावों को।

(लेखक हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले से संबंध रखते हैं और इन दिनों आयरलैंड में एक कंपनी में कार्यरत हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

(DISCLAIMER: ये लेखक के अपने विचार हैं, इनके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं)