क्यों और कैसी होनी चाहिए कर्मचारियों के लिए ट्रांसफर पाॅलिसी

राजेश वर्मा।। प्रदेश में जब जयराम सरकार बनी तो सरकार ने आते ही घोषणा कर कहा था कि जल्द ही प्रदेश के कर्मचारियों के लिए एक उपयुक्त स्थांतरण नीति बनाई जाएगी जिसके लिए उन्होंने आमजन व कर्मचारियों से भी इस दिशा में सुझाव आमंत्रित किए। प्रदेश में जब भी सत्ता परिवर्तन होता है कर्मचारी वर्ग के लिए एक बेहतर स्थांतरण नीति बनाई जाने की बातें सामने आती है। इस बार भी सरकार बने डेढ़ वर्ष हो चला है लेकिन आजदिन तक स्थानांतरण नीति पर बातें ही होती आई, धरातल पर कुछ नहीं हुआ।

पिछले कुछेक दिनों से एक बार फिर यह मुद्दा सुर्खियों में बना हुआ है कि “स्थानांतरण नीति बनेगी” लेकिन बनी क्यों नहीं? सच माना जाए तो इसके न बनने के पीछे वजह चाहे सरकारों में इच्छाशक्ति की कमी रही हो, कर्मचारियों का दबाव रहा हो या फिर कुछ और कारण, इन सब कारणों का बहाना भले ही सरकारों को नीति न बनाने दे लेकिन छोटे से प्रदेश में बदला-बदली की चर्चा सभी जगह होती है। प्रत्येक सरकार कहती है कि बदला-बदली नहीं करेंगे लेकिन बदला-बदली न हो यह असंभव है। कारण- कर्मचारी वर्गों का राजनीतिक धड़े में बंटा होना। सत्ता परिवर्तन के साथ ही कर्मचारी भी “तेरी-मेरी सरकार” की नीति पर सरकार को चलने के लिए मजबूर कर देते हैं।

खैर बात चली है स्थांतरण नीति की तो यह सत्य है घर और अपनों से दूर जाने का ख्याल सभी को कचोटता है। हमारे प्रदेश की भौगोलिक स्थितियां ऐसी है की जहां अन्य पड़ोसी राज्यों में 50 किलोमीटर का सफर करने के लिए मात्र 40-45 मिनट लगते हैं तो वहीं यहाँ बहुत से क्षेत्रों में 3 से 4 घंटे तक लग जाते हैं। प्रदेश में सबसे ज्यादा शिक्षक वर्ग को तबादलों की मार झेलनी पड़ती है। अन्य विभागों के ज्यादातर कार्यालय जिला स्तर, मंडल स्तर या फिर उप-मंडल स्तर पर स्थित होते हैं इसलिए उन्हें उतनी मार नहीं झेलनी पड़ती जितनी शिक्षकों को इस चीज से जूझना पड़ता है।

एक शिक्षक व अन्य कर्मचारी भले ही घर से दो सौ किलोमीटर दूर कार्यरत हो लेकिन शिक्षक का स्कूल फिर भी सड़क से 10 किलोमीटर की पैदल दूरी पर स्थित हो सकता है जबकि अन्य सार्वजनिक कार्यालय सड़क के साथ ही स्थित होगा। एक कर्मचारी के नजरिए से देखा जाए तो एक प्रभावशाली स्थानांतरण नीति बनाते समय कुछेक चीजें अवश्य होनी चाहिए।

भविष्य में होने वाले तबादलों के लिए “स्थानांतरण नीति” नहीं “स्थानांतरण एक्ट” बनना चाहिए नीति के स्थान पर नियम बनाए जाएं। प्रदेश के क्षेत्र ट्राईबल व हार्ड एरिया के आधार पर ही तय न हों। भविष्य में स्थानांतरण दूरी के हिसाब से हों न की क्षेत्र व जोन के आधार पर। अभी तक देखा है कि क्षेत्र विशेष के कर्मचारी अपना पूरा सेवाकाल एक ही क्षेत्र में पूरा कर लेते हैं उनके लिए दुर्गम क्षेत्र, सामान्य क्षेत्र उनका गृह क्षेत्र ही रहता है जबकि अन्य क्षेत्रों के कर्मचारियों को पूरे सेवाकाल के दौरान बहुत सी जगहों के लिए स्थानांतरित होना पड़ता है।

स्थानांतरण नियमों में दूरी को ही पैमाना बनाना चाहिए। यह नहीं की एक कर्मचारी या शिक्षक घर से 250 किलोमीटर दूर रहे है तो वहीं अन्य सदैव अपने घर के चंद मीलों की दूरी पर ही सेवाकाल पूरा कर दें। चाहे जोन के आधार पर तबादले हों या जिलों के आधार पर, हर जगह दूरी को ही मुख्य शर्त रखा जाए क्योंकि जोन और जिले तो एक किलोमीटर की कम दूरी पर भी बदल जाते हैं।

कई कर्मचारी, जिनकी सिफारिश करने वाला कोई नहीं, फुटबॉल की तरह ट्रांसफर झेलते हैं

सामान्य 3 वर्ष का कार्यकाल पूरा कर चुके कर्मचारी से आनलाइन आवेदन आमंत्रित किए जाएं जिसमें पिछले स्टेशनों की जानकारी भी मांगी जाए जैसे की क्या वह दुर्गम क्षेत्र में अपना कार्यकाल पूरा कर चुका है या नहीं? क्या वह शहर या नगरों में या अपने गृह क्षेत्र में भी सेवा कर चुका है या नहीं? वहीं किसी कर्मचारी ने अपना दुर्गम क्षेत्र का कार्यकाल पूरा नहीं किया तो दुर्गम क्षेत्र में अपना कार्यकाल पूरा कर चुके कार्यरत कर्मचारी से उसे स्थानांतरित कर दिया जाए। यह सुनिश्चित हो की प्रत्येक कर्मचारी को अपने पसंद के स्टेशन पर अपने सेवाकाल में कम से कम एक बार तैनाती मिली या नहीं?

तबादलों के इच्छुक कर्मचारियों से तीन स्टेशन की आप्शन मांगी जाए, प्रत्येक कर्मचारी को एक यूनिक कोड आवंटित किया जाए किसी भी कर्मचारी का स्थानांतरण उसके नाम से न हो बल्कि उसी यूनिक कोड के आधार पर हो जो उसे दिया गया है। यह इतने गोपनीय तरीके से हो की किसी भी संबंधित कर्मचारी या अधिकारी को इसकी जानकारी न मिल पाए की फंला कर्मचारी का स्थांतरण साफ्टवेयर द्वारा उस यूनीक नंबर के आधार पर किया गया है। वह साफ्टवेयर ही संबंधित विभाग व कर्मचारी को मेल या अन्य किसी साधन द्वारा सूचित करे। स्थांतरण करने की प्रक्रिया वर्ष में केवल विशेष माह में ही शुरू व संपन्न हो जैसे शिक्षा विभाग में शैक्षणिक सत्र की शुरूआत होने से पहले संपन्न हो जाए।

यह नियम पूरी तरह खत्म किया जाए की प्रथम नियुक्ति दुर्गम व जनजातीय क्षेत्र में हो क्योंकि कहीं सिफारिश तो कहीं रिक्तियां न होने के कारण यह नियम आधा अधूरा ही लागू हो पाता है। यदि कोई कर्मचारी या उसका पारिवारिक सदस्य पति-पत्नी, बच्चे व बूढ़े माता-पिता आदि में से कोई गंभीर बीमारी से लंबे समय से ग्रसित है तो ऐसी परिस्थितियों में स्थांतरण करते समय इन सामजिक पहलुओं को भी ध्यान में रखा जाए। उन्हें किसी तरह से परेशान नहीं किया जाना चाहिए। उन्हें इच्छानुसार स्टेशन मिलना चाहिए। बुजुर्ग माता-पिता की देखभाल के लिए पुरुष व महिला कर्मचारी में से किसी एक को उनके घर के नजदीक तैनाती दी जाए। बशर्ते वह उनकी देखभाल करते हों।

विवाहित महिला कर्मचारियों के मामले में यदि पति कर्मचारी हो तो दोनों को एक ही मंडल या उपमंडल पर तैनात किया जाए। अविवाहित महिला कर्मचारियों को कोशिश की जाए की उनको उनके गृह क्षेत्र में ही तैनाती मिले, गृह क्षेत्र की परिधि की सीमा तय कर ली जाए वह 15 से 20 किलोमीटर के दायरे में हो, यदि किसी विद्यालय या कार्यालय से संबंधित स्थानीय लोग या स्कूल प्रबंधन समिति के ज्यादातर सदस्य किसी शिक्षक/कर्मचारी को उसके कार्य की वजह से उसी विद्यालय/कार्यालय में लंबे समय तक रखना चाहते हैं तो जनहित को देखते हुए उस शिक्षक/कर्मचारी की तैनाती ज्यादा से ज्यादा एक वर्ष तक बढ़ा दी जाए। सेवानिवृत्त को 5 वर्ष रहने पर कर्मचारियों को गृह क्षेत्र या पसंद के किन्हीं दो स्टेशनों पर समायोजित किया जाना चाहिए जो गृह क्षेत्र से 15-20 किलोमीटर की परिधि में हो।

जिस तरह केन्द्रीय कर्मचारियों के लिए आवास, चिकित्सा व बच्चों की शिक्षा के लिए उचित प्रबंध होता है इसी तर्ज पर प्रदेश के उन कर्मचारियों के लिए भी प्रावधान हो जो कर्मचारी घर से बाहर सेवारत हों। सरकार भले ही कोई हो, तबादला सभी का होना चाहिए लेकिन बदले की भावना से न हो इस बात पर जरूर गौर करना चाहिए क्योंकि स्वच्छ राजनीति और समाज के लिए यह जरूरी है। मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के नेतृत्व में बनी इस सरकार से कर्मचारियों को स्थांतरण नीति को लेकर बहुत उम्मीदें हैं। अब समय आ गया है या तो सरकार कारगर स्थानांतरण नियम बनाए या फिर इस विषय को उठाना ही बंद कर दे क्योंकि मात्र खबरों में ही स्थानांतरण नीति पर बात करने से सरकार की इच्छा शक्ति पर ही प्रश्नचिह्न लगता है।

(स्वतंत्र लेखक राजेश वर्मा लम्बे समय से हिमाचल से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। उनसे vermarajeshhctu @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

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