लोकतंत्र में राजशाही की याद दिलाता है जनमंचों में नेताओं का रवैया

इन हिमाचल डेस्क।।  जनमंच में फिर अधिकारी का अपमान। एसडीओ ने बजट की कमी का हवाला देना चाहा तो विधानसभा उपाध्यक्ष हंसराज ने गली-मोहल्लों के दादा की तरह दी धमकी। वह पहले भी इस्तेमाल करते रहे हैं ऐसी भाषा। ताजा मामला पांवटा साहिब के अम्बोया का है। वीडियो देखें-

इस तरह डाँटने का मतलब क्या है?
खुद राजा की तरह मंच पर बैठो, जनता नीचे से हाथ जोड़कर अर्ज करती रहे और आप मंच से अधिकारियों को डाँटो, उनका पक्ष मत सुनो, शाही आदेश जारो करो और फिर कहो कि महान कार्य कर दिया, जनता की समस्याएं सुलझा दी।

मगर ओ नेताओ! इस बात जा जवाब दो कि जनमंचों में इतनी भीड़ जुट क्यों रही है? इसका मतलब है आप सिस्टम को ही नहीं सुधार पा रहे। आपका काम सिस्टम को सुधारना है ताकि जनता को जनमंच जैसे कार्यक्रमों में न आना पड़े।

वास्तव में जनमंच सरकार की विफलता का प्रमाण है कि देखो, हमारा शासन इतना अक्षम है कि खोदल पड़ी हुई है, अधिकारी सुनते नहीं, जनता परेशान होकर रोती रहती है।

जनमंच देर तक चलना अच्छा संकेत नहीं
शुरू में एक-दो साल जनमंच चलाना समझ आता है कि पिछली सरकार की कमियों को आप दूर कर रहे हैं। मगर इन दो सालो में आपने क्या सिस्टम इतना ठीक नहीं किया कि जनता को अपने कामों के लिए जनमंच जैसे आयोजनों में न आना पड़े?

वही सरकार सफल कही जा सकती है जहां लोगों को फरियाद लेकर जनमंच जैसे कार्यक्रमों में न आना पड़े। मगर ऐसा हो गया तो खुद को राजा टाइप फीलिंग कैसे आएगी? अधिकारियों को लताड़कर अपनी धाक दिखाने का अवसर कैसे मिलेगा?

जनमंचों में कुछ नेताओं का ऐसा रवैया लोकतंत्र में भी राजशाही की याद दिलाता है।

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