भाजपा के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ अभियान को क्या कांग्रेस खुद पूरा करेगी?

मुकेश सिंह ठाकुर।। पांच राज्यों में हुए चुनावों के नतीजे आने के बाद कांग्रेस के नेता और कार्यकर्ता एक बार फिर असमंजस की स्थिति में हैं। उन्हें अभी भी समझ नहीं आ रहा कि दिक्कत आखिर है कहाँ। और जिन्हें समझ आ गया है, वो कुछ करने की स्थिति में नहीं हैं। अभी भी बहुत से कांग्रेसी कार्यकर्ता ये बोल रहे हैं कि राहुल गाँधी को पूरी कमान दी जाए और पुराने नेताओं को बाहर किया जाए। वहीं दूसरी तरफ बहुत से अन्य कार्यकर्ता और नेता ये बोल रहे हैं कि अनुभवी पुराने नेताओं को ही बड़ी जिम्मेदारियाँ दी जाएं और उन्हें इग्नोर ना किया जाए।

एक बात जो कांग्रेस के कार्यकर्ताओं को समझनी है, वो ये है कि कांग्रेस की आखिरी शक्तिशाली नेता इंदिरा गांधी ही थीं। उसके बाद गांधी परिवार के इर्द-गिर्द कुछ बड़े कांग्रेसियों ने एक घेरा बनाया और सोनिया गांधी की इच्छा न होते हुए भी उन्हें जबरदस्ती 1998 में पार्टी अध्यक्ष बनाया। फिर इन्हीं कुछ नेताओं ने सोनिया गाँधी के चारों तरफ एक घेरा बनाए रखा और अपना उल्लू सीधा करते रहे। इसके बाद राहुल गाँधी को भी जबरदस्ती राजनीति में लाया गया और 2004 में उन्होंने अपना पहला चुनाव लड़ा और जीता। अब इसका कारण सोनिया का पुत्र मोह भी हो सकता है या वंशवाद की राजनीति भी लेकिन जो भी हो, कांग्रेस हाईकमान धरातल से कटती गई और ये भूल गई की भाजपा तेजी से जमीनी स्तर पर राजनीतिक और वैचारिक पकड़ बना रही है।

साल 2011 के आते आते देश ने कई घोटाले देखे और उन्हें लेकर आंदोलन भी देखे। अन्ना हज़ारे के आंदोलन ने तो कांग्रेस की नींव हिला दी। भाजपा ने भी देखा की अपना टाइम आ गया। वो शोले फिल्म का डायलॉग है न “लोहा गर्म है, हथौड़ा मार दो।” तो अन्ना आंदोलन ने देश की जनता के दिल में कांग्रेस के लिए जो नफरत पैदा की थी, उसका बहुत ही बेहतरीन रणनीति के तहत भाजपा ने अपने पक्ष में मोड़ने का काम शुरू कर दिया।

बाबा रामदेव भी अन्ना आंदोलन के समक्षक आंदोलन चला रहे थे और राष्ट्रवाद की राजनीति का दौर शुरू होने वाला था, कांग्रेस हाईकमान और सोनिया गाँधी इसे भांप नहीं पाई क्योंकि ये अपने अंदरूनी मुद्दों में ही उलझे हुए थे। और आज दिन तक यही हाल हैं। दूसरी तरफ भाजपा नरेंद्र मोदी जैसी मजबूत शख्सियत को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बना के चुनाव लड़ती है जिसका तोड़ कांग्रेस के पास था नहीं। राहुल गांधी को मोदी के साथ दिखाने की कोशिश जरूर की गई लेकिन आप जानते ही हैं कि नतीजा क्या हुआ।

2014 के झटके के बाद कांग्रेस आज दिन तक संभल नहीं पाई है और इसका सबसे बड़ा कारण है कमजोर हाईकमान जिसका जोर अब पार्टी पर चलता नहीं। पार्टी के कद्दावर नेता या तो दूसरी पार्टियों में चले जाते हैं या G 23 जैसे गुट बनाकर अंदर से पार्टी को कमज़ोर करते हैं। इस सबके बीच कांग्रेस हाईकमान हाथ पर हाथ धरे बैठी रहती है। कांग्रेस के बहुत से नेताओं और कार्यकर्ताओं को अभी भी लगता है की कमान गाँधी परिवार के पास ही रहनी चाहिए और वो ही पार्टी का बेड़ा पार करवा सकते हैं। लेकिन कार्यकर्ता ये भूल जाते हैं कि बहुत से राज्यों में कांग्रेस गाँधी परिवार के कारण नहीं, बल्कि उस राज्य के मजबूत कांग्रेसी नेता के दम पर सरकार बनाती आई है। हमारे राज्य का उदाहरण ही ले लो। यहाँ काँग्रेस का नाम वीरभद्र सिंह था। पड़ोसी राज्य पंजाब को देख लो जहाँ कांग्रेस का नाम अमरिंदर सिंह था। हरियाणा को देख लो जहाँ कांग्रेस का नाम बंसी लाल और भजन लाल जैसे कद्दावर नेता थे। ये तो कुछ उदाहरण हैं ऐसे अनेकों नाम आपको मिल जाएंगे।

राहुल गांधी हर चुनाव के बाद गायब हो जाते हैं। विदेशों में एक एक महीना छुट्टियाँ मनाने चले जाते हैं। भाई ऐसे थोड़ी ना बनते हैं कमांडर। दूसरी तरफ प्रियंका गांधी,. जो एक वक्त लग रहा था की पार्टी में जान फूंक सकती हैं, वो भी ज्यादा कमाल कर नहीं पा रही। सोनिया गाँधी कहीं दिखती नहीं क्योंकि उनकी उम्र भी ज्यादा हो चुकी है और शायद बार बार हार का मुँह देखने से और पार्टी की कलह के कारण उनकी समझ को भी नुकसान हुआ होगा।

कांग्रेस आज एक ऐसे दौर में है जहाँ उसके लिए अब करो या मरो का संकट आ चुका है। 1885 में दादाभाई नौरोजी, सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी, रोमेश चंद्र दत्त जैसे 72 विद्वानों ने इस पार्टी की शुरुआत की थी, जिसमे अंग्रेजी अधिकारी ए.ओ ह्यूम का भी काफी अहम रोल था।  बाद में भी नेहरू के पार्टी की कमान संभालने से पहले बड़े बड़े क्रांतिकारी और विद्वान इस पार्टी को संभालते रहे। नेहरू और उसके बाद इंदिरा गांधी ने भी अपना काम बखूबी किया लेकिन फिर ये पार्टी Dynasty Politics यानी वंशवाद की राजनीति को ही सबकुछ मानने लगी और यहीं से इनके बुरे दिनों की नींव डलना शुरू हो गई।

आज पार्टी हाईकमान कैसे कैसे फैसले करती है, ये आप भी देख रहे हैं। पंजाब में अमरिंदर जैसे कद्दावर नेता को संभाल नहीं पाए और चुनावों से ठीक 4 महीना पहले कलह डाल दी। सिद्धू को कुछ ज्यादा ही भाव दे दिए गए और नतीजा आपके सामने है। ऐसे ही फैसले UP में लिए और पार्टी 403 में से सिर्फ 2 सीटें ही जीत पाई। आज की तारीख में पार्टी को अगर फिर से अपने पुराने दिनों के वैभव में आना है तो बड़े स्तर पर आंतरिक बदलाव करने होंगे। और इसकी शुरुआत खुद टॉप लेवल यानी गाँधी परिवार से करनी होगी। वरना ऐसा न हो कि भाजपा के ‘कांग्रेस मुक्त भारत’ अभियान या तंज को कांग्रेस खुद ही मूर्त रूप दे दे।

(लेखक पत्रकार हैं। उनसे polestartv77@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

ये लेखक के निजी विचार हैं

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