हिमाचलवासियों के लिए अनंत कष्टों के पहाड़ का अंत है एम्स का खुलना

राजेश वर्मा।। आज विजयादशमी के सुअवसर पर देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान बिलासपुर(एम्स) का लोकार्पण कर इसे प्रदेशवासियों को समर्पित किया। लगभग 5 साल 2 महीनों में बनकर तैयार हुआ यह संस्थान प्रदेशवासियों के लिए किसी सपने के साकार होने से कम नहीं। 2015-16 के आम बजट में हिमाचल में एम्स खोलने की घोषणा हुई थी। ऐसी घोषणा जिससे लगा प्रदेशवासियों के जख्मों को मरहम लग गया।

प्रदेश में एम्स जैसे संस्थान की जरूरत आज से नहीं बल्कि पिछले कई दशकों से महसूस की जा रही थी। प्रधानमंत्री मोदी ने 3 अक्तूबर 2017 को इसकी आधारशिला रखी थी । 250 एकड़ भूमि में फैले एम्स कैंपस लगभग 1,500 करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुआ है, जिसमें 750 बिस्तरों वाला अस्पताल होगा। शुरू में भले ही 150 बेड की ही सुविधा मिलेगी, लेकिन बाद में इसे बढ़ाया जाएगा। एम्स में आधुनिक सुविधाओं से परिपूर्ण 15-20 सुपर स्पेशिलिटी विभाग होंगे। 25 ओपीडी एम्स अस्पताल में पहले से ही शुरू हो चुकी हैं और अब एम्स में आईपीडी सुविधा शुरू होना प्रदेशवासियों  के लिए गौरव की बात है।

अभी तक केंद्रीय स्वास्थ्य संस्थानों में केवल आयुष्मान योजना के तहत ही लाभान्वित को निःशुल्क इलाज की सुविधा उपलब्ध थी लेकिन अब हिमकेयर योजना के तहत पंजीकृत 25 लाख से ज्यादा आबादी को 5 लाख रुपये तक के सालाना निःशुल्क उपचार की सुविधा भी एम्स में मिलेगी। अत्याधुनिक उपकरणों व तकनीक से सुसज्जित इस संस्थान में सभी प्रकार के टैस्ट व स्कैन जैसे एमआरआई थ्री टेस्ला आदि स्थापित किए गए हैं। ये वे टैस्ट व स्कैन हैं जिन्हें करवाने के लिए चंडीगढ़ या दिल्ली तक जाना पड़ता था। अब अपने क्षेत्र में होंगे इस राहत को वही समझ सकता है जो इस पीड़ा से गुजरा हो।

प्रदेश वासी टकटकी लगाए देख रहे थे कि यह संस्थान अब खुलता कब खुलता। प्रदेश के लिए यह सौभाग्य की बात है कि वर्तमान में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा जब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री थे तब उनकी प्रदेश के प्रति संवेदनशीलता की वजह से ही आज राष्ट्रीय स्तर के स्वस्थ्य संस्थान का सपना प्रदेशवासियों के लिए साकार हुआ। बहुत कम राजनेता ऐसे हैं जो इस बात को समझते हैं कि प्रदेश में मौजूदा स्वास्थ्य संस्थानों की क्या हालत है यहाँ के कई जोनल अस्पताल ऐसे हैं जिनकी हालत पीएचसी से भी बदत्तर है, हर छोटी से छोटी बीमारी के लिए भी यहां से लोगों को या तो पीजीआई चंडीगढ़, आईजीएमसी शिमला या फिर टांडा के लिए रैफर कर दिया जाता है।

एम्स बिलासपुर

किसी गंभीर बीमारी से पीड़ित या दुर्घटना में घायल व्यक्ति को किसी नजदीकी अस्पताल में लाया जाता है तो उसे वहां प्राथमिक उपचार देने के बाद सीधे ही जोनल अस्पताल में रैफर कर दिया जाता है। आगे जब उसी व्यक्ति को जोनल अस्पताल में लाया जाता है तो वहां से भी उसे आगे रैफर कर दिया जाता है। उदाहरण के तौर पर बात करें हमीरपुर जोनल अस्पताल की तो वहां से टांडा के लिए रैफर किया जाता है भले ही व्यक्ति की हालत वहां तक पहुंचने के लायक हो या न हो आगे टांडा पहुंचने के बाद भी गांरटी नहीं की व्यक्ति को वहां उचित उपचार मिल पाएगा वहां से भी उसे शिमला या चंडीगढ़ के लिए रैफर कर दिया जाता है और इस रैफर के चक्कर में आप खुद ही समझ सकते हैं कि उस व्यक्ति के बचने के कितने प्रतिशत चांस होंगे।

जिस व्यक्ति को हमीरपुर या मंडी से टांडा होते हुए फिर वापस उसी रास्ते शिमला से पीजीआई चंडीगढ़ लाया गया हो उसके व उसके परिवार के लिए प्रदेश में इससे दुर्भाग्यशाली और क्या होगा की एक बेहतर स्वास्थ्य संस्थान न होने के कारण उनके किसी सदस्य को जान से हाथ धोना पड़ा तथा असहनीय मानसिक तनाव से गुजरना पड़ा। शायद यह जगत प्रकाश नड्डा ही थे जिन्होंने इस दर्द को अपना दर्द समझ कर एम्स जैसा संस्थान यहाँ खोलने की तरफ़ पहल ही नहीं की बल्कि उसे अंजाम तक पहुंचाया।

प्रदेशवासी शुक्रगुज़ार हैं उनके इस जनहित कार्य के लिए। आज भी प्रदेश के बहुत से क्षेत्र ऐसे हैं जहां 10 किलोमीटर की दूरी तय करने में घंटो लग जाते हैं। जहां लोगों को जिला अस्पतालों तक पहुंचना मुश्किल हो जाता है वहीं शिमला चंडीगढ़ या टांडा पहुंचने के बारे में तो वह सोच भी नहीं सकते।

प्रदेशवासी स्वास्थ्य सेवाओं से  ही लाभान्वित नहीं होंगे बल्कि इसके साथ ही हमारे बच्चों की उच्च शिक्षा के लिए भी यह संस्थान नए अवसर व खुशियां लेकर आया है। प्रदेश के वे युवा जो राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर के संस्थानों से चिकित्सक या पैरामेडिकल की पढ़ाई करके अपने सपनों को पूरा करने की इच्छा पाले हुए हैं उनके लिए प्रदेश में खुले एम्स संस्थान में यह अवसर उपलब्ध होंगे तथा प्रदेश के युवाओं के सपनों को नए पंख लगेंगे।

एम्स जैसे संस्थान को खुलने को लेकर भी शुरू में जमकर राजनीति हुई कोई कहता था मंडी खुले तो कोई कहता हमीरपुर लेकिन एक आम नागरिक के लिए एम्स का खुलना सर्वोपरि है न कि यह मायने रखता है कि एम्स कहां खुला? एक छोटे से पहाड़ी प्रदेश में इस तरह की राजनीति कतई सहन नहीं की जा सकती थी। यदि जगत प्रकाश नड्डा की एम्स के प्रति संवदेनशीलता नहीं होती तो यह भी आज राजनीति की भेंट चढ़ चुका होता। ठीक है जनप्रतिनिधियों के लिए तो देश में कहीं भी बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं उपलब्ध हो सकती हैं लेकिन गरीब और मध्यमवर्गीय लोगों के लिए प्रदेश में ऐसे संस्थान खुलना किसी सपने से कम नहीं बशर्ते राजनीतिज्ञ ऐसे सपनों को पूरा होने दें।

बीमारी या दुर्घटना किसी को पूछ कर नहीं आती न ही यह अमीर गरीब देखती है। न ही बीमारी यह देखती है कि आप सत्ताधारी दल से हैं या विपक्ष से। आज सभी को उच्च स्तरीय स्वास्थ्य संस्थान की जरूरत है चाहे वे कोई मजदूर हो या कोई बड़ा अधिकारी या राजनेता, आप ताउम्र चंडीगढ़ या दिल्ली में ही स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ नहीं उठा सकते पता नहीं कब आपको या आपके परिवार को भी प्रदेश में किस वजह से बेहतर स्वास्थ्य संस्थान की जरूरत आन पड़े।

भविष्य में भी प्रदेश के सभी राजनीतिक दलों व जनप्रतिनिधियों को प्रदेशवासियों के हित के लिए मिलकर कुछ करना चाहिए यदि ये लोग सोचते हैं की कुछ बनने से दूसरे नेता या दल को लाभ मिलेगा तो यह इनकी भूल है। एम्स प्रदेशवासियों के लिए ही नहीं बल्कि पड़ोसी राज्यों के लोगों के लिए भी मददगार साबित होगा। हम अब फख्र से कह सकते हैं कि स्वास्थ्य की दृष्टि से प्रदेश आत्म निर्भर बनने की ओर अग्रसर हो चुका है।

इतने कम समय में यहां की विपरीत भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद एम्स का प्रदेश के लोगों की सेवा में शुरू होना सचमें ही अभूतपूर्व व अकल्पनीय सपना साकार होने के बराबर है। कुल मिलाकर हम यह कह सकते हैं कि पहाड़ी प्रदेश में एम्स का खुलना प्रदेशवासियों के लिए पहाड़ जैसे दुखों का अंत होगा।

(स्वतंत्र लेखक राजेश वर्मा लम्बे समय से हिमाचल से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। उनसे vermarajeshhctu@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

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