इजरायल ने बनाया फिलिस्तीनी कैदियों को देश से निकालने का कानून

इन हिमाचल डेस्क।। इजयराल की संसद ने एक नया कानून पारित किया है। इसके तहत अब इजयराल अपने यहां उन फलस्तीनियों की नागरिकता छीन सकता है जिन्हें उसने आतंकवाद के आरोप में बंदी बनाया हुआ है या फिर जिनपर फलस्तीनी प्रशासन से आर्थिक मदद लेने का आरोप है। ऐसे लोगों को वो अपनी सीमाओं से बाहर भी कर सकता है। इजरायल के इस कदम की आलोचना भी हो रही है।

इजरायल की संसद में पहली बार ऐसा विधेयक लाया गया जिसमें पहली बार अरब आबादी या यूं कहें कि फलस्तीनियों को अपने यहां से डिपोर्ट करने का प्रावधान किया गया था। बुधवार को इस विधेयक के पक्ष में 94 वोट पड़े और विरोध में पड़े, सिर्फ दस।

ये कानून कहता है कि जिन इज़रायली नागरिकता वाले फिर पूर्वी यरूशलम में रहने वाले फलस्तीनियों पर अगर आतंकवादी गतिविधि और फलस्तीनी प्रशासन से किसी तरह की फंडिंग लेने का आरोप सिद्ध होता है तो उनकी नागरिकता के साथ-साथ उनसे यहां रहने का अधिकार भी छीन जा सकता है।

दरअसल अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त फलस्तीनी प्रशासन… इजरायल के कब्जे वाले वेस्ट बैंक में इज़रायल की जेलों में बंद या इजरायली सेना की कार्रवाइयों में मारे गए या जख्मी फलस्तीनियों के परिजनों की मदद करता है और उन्हें आर्थिक सहायता भी मुहैया करवाता है। लेकिन इज़रायल का कहना है कि ये हिंसा करने के बदले दिया जाने वाला इनाम है और इस तरह पैसे देना बाकियों को भी हिंसा के लिए उकसाता है।

अब इस कानून को कहा जा रहा है भेदभावपूर्ण, खतरनाक और साथ ही नस्लभेदी भी है क्योंकि ये अलग से फलस्तीनियों के लिए यानी अरब आबादी के लिए बनाया गया है। इजरायल में आतंकवाद या ऐक्ट ऑफ टेररिज़म का मतलब है- राजनीतिक, धार्मिक, राष्ट्रीयता या फिर विचारधारा के आधार पर संपत्ति, लोगों की सेहत और सुरक्षा को नुकसान पहुंचाना। यहां तक कि ऐसा कुछ करने की आशंका हो, तब भी उसे आतंकवाद माना जा सकता है।

अल जज़ीरा की रिपोर्ट के मुताबिक, अदाला लीगल सेंटर से संबंध रखने वाले इरशीद कहते हैं कि इस कानून के आधार पर फलस्तीनी कैदियों को देश से निकालना… अंतरराष्ट्रीय कानून को भी उल्लंघन है क्योंकि अगर उनसे नागरिकता छीन ली गई तो वे किसी देश के नागरिक नहीं रहेंगे। वे विस्थापित होकर भी कहां जाएंगे।

अभी तक ये भी स्पष्ट नहीं है कि कितने लोग इससे प्रभावित होंगे। अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार समूह मानते हैं कि इजयाल की जेलों मे बंद फल्तीनियों की संख्या 4500 से पांच हजार के बीच हो सकती है। बता दें कि जेल में बंद लोगों को फलस्तीनी हीरो मानते हैं। सवाल ये भी उभर रहे हैं कि  क्या ये कानून उन लोगों के लिए है जो भविष्य में ऐसे मामलों में दोषी पाए जाएंगे या फिर उनके लिए भी है जो जेल में बंद हैं या फिर इसी तरह के मामलों में सजा काट चुके हैं।

लेकिन इन चिंताओं का क्या होगा? आपको बता दें कि भारी उथल-पुथल के बाद इज़रायल में एक बार फिर बिन्यामिन नेतन्याहू प्रधानमंत्री बन गए हैं। उनकी सरकार का रवैया हमेशा से फार राइट या अति दक्षिणपंथी रहा है। इस बार भी उनकी सरकार इसी राह पर चल रही है। बल्कि इस बार तो उसे फार फार राइट माना जा रहा है। फार राइट का मतलब समझिए कि बेहद रूढ़िवादी, बेइंतहहा राष्ट्रवादी और दबंग (निरंकुश)। नेतन्याहू के सत्ता में रहते हमेशा से फलस्तीनी चिंता जताते रहे हैं कि जिस तरह की आक्रामकता से वह यहूदी बस्तियों का विस्तार कर रहे हैं, उससे भविष्य में आज़ाद फलस्तीन बनने की संभावनाओं को ग्रहण लगता जा रहा है। अब नए कानून ने फलस्तीनियों की चिंताएं और बढ़ा दी हैं।

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