शिमला।। हिमाचल हाई कोर्ट ने राष्ट्रपति सम्मान को कुरियर से भेजने के मामले पर संज्ञान लेते हुए कहा कि बहादुरी और साहस के कार्यों को बढ़ावा देने के लिए दिए जाने वाले राष्ट्रीय पुरस्कार राष्ट्रपति द्वारा ही दिए जाते हैं। ऐसे में यह पुरस्कार सिर्फ गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस समारोह पर ही दिए जाएं।
इसके साथ ही हाई कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि याचिकाकर्ता को शौर्य पदक के अलावा अन्य पदक विजेताओं की तरह सुविधाएं और लाभ भी मिलने चाहिए। हाई कोर्ट ने यह लाभ-सुविधाएं तुरंत लागू करने के निर्देश दिए हैं।
विकास शर्मा द्वारा दायर याचिका की सुनवाई करते हुए न्यायाधीश सुरेश्वर ठाकुर ने पाया कि महाप्रबंधक भारत सरकार टकसाल कोलकाता के अलीपुर में कार्यरत प्रतिवादी के साथ काम करने वाले संबंधित अधिकारी और कर्मचारी इस चूक के लिए जिम्मेदार हैं। कोर्ट ने वीरता पुरस्कार प्रदान करने में हुई देरी के लिए भी खेद जताया। साथ ही केंद्र सरकार की कारण बताओ नोटिस जारी कर कार्रवाई करने का आदेश दिया।
याचिका में दिए तथ्यों के अनुसार प्रार्थी धर्मशाला में हेड वार्डन के पद पर कार्यरत हैं। उनका नाम राष्ट्रपति पुरस्कार के लिए मनोनीत हुआ था क्योंकि उन्होंने सितंबर 2005 में धर्मशाला जेल के जेलर को कैदी अमरीश राणा के चंगुल से बचाया था। अन्यथा वह उन्हें जान से मार देता। उन्हें यह अवार्ड 26 जनवरी, 2007 को मिलना था। आरटीआई के माध्यम से मांगी गयी जानकारी के आधार पर उन्हें इस बात का पता चला।
अप्रैल 2009 को गवर्नमेंट प्रेस कोलकाता ने यह अवार्ड कुरियर से उनके घर भेज दिया। जब उन्होंने यह मामला एडीजीपी जेल के समक्ष उठाया तो 15 अप्रैल 2010 को हिमाचल दिवस समारोह में रोहड़ू में तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल नेे उन्हें यह सम्मान दिया। प्रार्थी ने याचिका में यह आरोप लगाया था कि उन्हें यह सम्मान केवल राष्ट्रपति की ओर से दिया जाना चाहिए था।