डॉक्टर चिरंजीत परमार।। बात 1966 की है। मैं बागथन के फ्रूट रिसर्च स्टेशन पर पोस्टेड था। यह डॉक्टर वाई.एस. परमार का पैतृक स्थल था। उका एक घर था और पास ही एक फॉर्म जहां पर खुमानी का बाग लगाया गया था। रिसर्च स्टेशन को लोक ‘फार्म’ कहा करते थे।
मेरे अलावा वहां पर एक वेटरिनरी डॉक्टर भी हुआ करता था। साथ में उसका एक स्टॉक असिस्टेंट होता था। एक फुल सब-डिविजन भी होता था HPPWD का जहां सब डिविजनल ऑफिसर, तीन जेई, एक क्लर्क और एक चपरासी हुआ करता था। 6 लोगों का यह ग्रुप एख बड़े से हॉल में बैठता था जिसे फार्म के सीड स्टोर के लिए बनाया गया था। सब काम यही से चलते थे और ऑफिर का फर्निचर तक पूरा नहीं था।
यह वह दौर था जब हिमाचल में सड़कों का जाल पिछने की शुरुआत हुई थी। ज्यादातर सड़कें कच्ची थीं और तंग भी थीं। 20 किलोमीटर लंबी सड़क बागथन को नाहन शिमला रोड से जोड़ती थी। यह रोड ढंग से बनी तक नहीं थी। इसमें बागथन और नाहन के बीच एक बस सेवा भी शुरु हुई थी। ज्यादातर टाइम यहां पर विभिन्न सरकारी विभागों की जीपें दौड़ा करती थीं। मटीरियल ढोने के लिए PWD के ट्रक भी आया करते थे।
डॉक्टर परमार का घर बागथन में था और उनका यहां से बड़ा जुड़ाव था। वह महीने में 2-3 दिन यहीं गुजारा करते थे। उस वक्त (मैं 1974 के बाद बागथन नहीं गया हूं) उनका घर बहुत सिंपल था। दोमंजिला घर जिसमें 3 से 4 कमरे होंगे। फर्श लकड़ी का था। लोग यकीन नहीं करेंगे कि पूरे घर में एक ही बिस्तर था और उसमें श्रीमती परमार सोया करती थीं। डॉक्टर परमार और अन्य लोग फर्श पर ही सोते थे।
एक दिन डॉक्टर परमार शिमला से लौट रहे थे। आगे PWD का ट्रक चल रहा था और पीछे डॉक्टर परमार की गाड़ी थी। ट्रक 10-12 किलोमीटर प्रतिघंटे की रफ्तार से चल रहा होगा। ऐसी सड़क पर तेज चलना भी संभव नहीं था। गर्म दिन था और धूल उड़ती जा रही थी। डॉक्टर परमार के ड्राइवर ने पास मांगना शुरू किया ताकि ओवरटेक करके आगे बढ़ें। मगर ट्रक वाले ने पास नहीं दिया।
ट्रक चलता रहा और धूल उड़कर डॉक्टर परमार की गाड़ी में घुसती रही। एक घंटे बाद वे बनेठी पहुंचे जहां पर बस स्टॉप के लिए चौड़ी जगह बनाई थई। ट्रक वहां रुका। डॉक्टर परमार इरिटेट हो गए थे। उन्होंने ड्राइवर को बुलाया और पूछा कि साइड क्यों नहीं हुए।
ट्रक का ड्राइवर था पृथी सिंह। दिहाड़ी पर काम करता था शायद। उसने बताया कि ट्रक का सेल्फ स्टार्टर खराब है इसलिए धक्का लगाकर इसे चलाना पड़ता है। अगर इंजन एक बार रुक जाए तो स्टार्ट नहीं होगा और देरी हो जाएगी। यह सिर्फ बहाना था क्योंकि ऐसा तो भला ट्रक ड्राइवर बीच रास्ते में अभी क्यों रुका होता। डॉक्टर परमार को भी शायद इसका पता चल गया था मगर वह खामोश रहे।
यह मामला धीरे-धीरे चर्चा का विषय बना कि बंदे ने मुख्यमंत्री की गाड़ी को रास्ता नहीं दिया। हमारे दफ्तर में PWD लोगों के बीच भी बात होने लगी। हमने पृथी सिंग से पूछा कि भाई ऐशा किया क्यों। वह बोला- मैंने कई अफसरों से पंगे लिए हैं। मेरे मन में ख्याल आया कि क्यों इस बार मुख्यमंत्री से पंगा लिया जाए और देखा जाए कि क्या होता है। उसे हैरानी थी कि कुभ भी नहीं हुआ।
क्या ऐसा आज के दौर के मुख्यमंत्रियों के साथ हो सकता है?
https://inhimachal.in/special/educative/doctor-parmar-a-great-leader/
इस लेख को इंग्लिश में पढ़ने के लिए क्लिक करें: WHEN A DAILY WAGER PWD TRUCK DRIVER TOOK PANGAA (पंगा) WITH DR. Y.S. PARMAR
(लेखक हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले से हैं जाने-माने फ्रूट साइंटिस्ट हैं। पूरी दुनिया में विभिन्न प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय उनकी सेवाएं ले चुके हैं। यह लेख उनकी फेसबुक टाइमलाइन और ब्लॉग से साभार लिया गया है।)