प्रस्तावना: इन हिमाचल की बेहद लोकप्रिय ‘हॉरर एनकाउंटर’ सीरीज़ के चौथे सीज़न की ये दूसरी कहानी है। इन कहानियों को छापने का मकसद यह दावा करना नहीं है कि भूत-प्रेत वाकई होते हैं। हम अंधविश्वास फैलाने में यकीन नहीं रखते। हमें खुशी होती है जब हॉरर कहानियों के पीछे की संभावित वैज्ञानिक वजहों पर आप पाठक चर्चा करते हैं। वैसे हॉरर कहानियां साहित्य में अलग स्थान रखती हैं। इसलिए इन्हें मनोरंजन के लिए तौर पर ही पढ़ें। आज की कहानी हमें भेजी है मिस्टर एडी ने जो अपनी पहचान गुप्त रखना चाहते हैं। वह चाहते हैं कि आप इन कहानियों को काल्पनिक मानकर ही पढ़ें ताकि बिना वजह डर या अंधविश्वास का प्रसार न हो।
भूतों के किस्से सुनना-सुनाना किसे अच्छा नहीं लगता। मजा तो मुझे भी आता है मगर मैं रात को न तो हॉरर फिल्म देख सकता हूं न भूत प्रेत की कहानी सुन सकता हूं। एक बार दोस्तों की टोली जमी हुई थी। चार-पांच दोस्त थे। न जाने किस बात को लेकर भूतों का जिक्र छिड़ गया तो हर कोई सुने-सुनाए किस्सों को वहां सुनाने लग गया। शाम का वक्त था और हम अपने मोहल्ले के पास के ही एक पार्क में बैठे हुए थे। ज्यादा दिन पहले की बात नहीं है, बमुश्किल एक साल हुआ होगा।
तो सबने किस्से सुनाए और उनमें से एक दोस्त कहता कि ये सब मनगढ़ंत कहानियां हैं औऱ उसे भूत प्रेत पर यकीन नहीं है। सबके विचार बंटे हुए थे। कुछ न कहा कि वो मानते हैं भूत हैं तो कुछ ने वही लॉजिक दिया कि अगर ईश्वर है तो बुरी आत्माएं भी हो सकती हैं। फिर सबने मेरी तरफ देखा कि मेरी क्या राय है।
मैंने कहा कि मेरे साथ हुआ है नहीं है कुछ ऐसा तो मैं कुछ भी दावे के साथ नहीं कह सकता। न मैं हां कह सकता हूं कि भूत होते हैं और न ही सिरे से खारिज कर सकता हूं। खैर, बातें हुईं और फिर हम अपने-अपने घर की ओर चल दिए। मैं अपने फ्लैटमेट राहुल के साथ रहता था। मैं नादौन से हूं और राहुल मूलत: चंडीगढ़ के पास मनी माजरा का रहने वाला था। हम दिल्ली में काम करते थे तो पीजी में मुलाकात हुई थी औऱ वहीं से निकलकर फिर फ्लैट रेंट पर लेकर साथ रहने लगे थे।
राहुल एडवर्टाइजमेंट एजेंसी में काम करता था तो उसे आने में अक्सर देर हो जाती थी। मैं ऑफिस से आकर घंटा भर आराम करके टहलने के लिए पार्क की तरफ निकल जाया करता था, जहां पर पुराने पीजी में रहने वाले दोस्त भी पहुंच जाया करते थे। मेड को चाबी दी हुई थी तो वो अक्सर अपने हिसाब से आकर इसी दौरान खाना बनाकर चली जाती थी।
तो उस दिन मैं पार्क से लौटा तो देखा कि दरवाजा लॉक्ड नहीं है। मैंने सोचा कि मेड देर से आई होगी या राहुल आ गया होगा। मैंने देखा कि दरवाजा हल्का खुला हुआ था। धक्का दिया तो खुल गया। मैंने अंदर जाकर दरवाजे की सिटकनी लगाई और बोला- अरे कुंडी तो लगा लेते अंदर से। ये कहते हुए मैं बाथरूम की ओर चल दिया कि राहुल या तो अपने कमरे में होगा या तो मेड किचन में होगी। मेरा कमरा अलग था।
तो बाथरूम से जैसे ही बाहर निकला, बेड पर लेट गया। काफी देर बाद डोर बेल बजी। मैंने सोचा कि कोई खोल ही देगा। आलसी तो मैं नंबर वन हूं। मगर काफी देर तक बेल बजती रही तो मैंने दरवाजा खोला। सामने राहुल था। वो अंदर आया और मैं किचन की ओर चल दिया देखने के लिए कि मेड अगर आई है तो बर्तनों की आवाज या खाने की खुशबू क्यों नहीं आ रही।
किचन की ओर गया तो किचन में कोई नहीं था। मुझे गुस्सा आया कि मेड ताला खोलकर कहां चली गई। मैंने राहुल से बात की तो उसने कहा कि यार वो चार दिन नहीं आएगी, सुबह बोलकर गई है और चाबी भी देकर गई थी, वो देखो सामने टंगी है। मैंने कहा तो दरवाजा किसने खोला मेरे पार्क जाने के पीछे। उसने कहा क्या पता, तुम पार्क जाते वक्त लॉक करना भूल गए होओगे।
इस बात को लेकर हमारी हल्की बहस हो गई। खैर, मैं भी सोचने लगा कि हो सकता है जल्दबाजी में लॉक करना भूल गया होऊंगा। खैर, डिनर बाहर से ऑर्डर किया और बेड पर लेट गया। दोस्तो, रात को अचानक मेरी नींद खुली तो देखा कि बिस्तर के ठीक सामने की खिड़की के आगे कोई खड़ा हुआ है। यानी खिड़की के बाहर लाइट थी, खिड़की पर पर्दा और पर्दे के आगे कोई लड़की खड़ी थी क्योंकि साये में बाल नजर आ रहे थे।
अचानक दिल की धड़कनें बढ़ीं और मैं आंखें फाड़कर लेटे-लेटे ही देखने लगा कि यह है क्या। इतने में मैंने देखा कि व साया अपनी जगह से हिला और हवा में तैरता हुआ सा मेरे तकिए वाली तरफ के दरवाजे से बाहर निकल गया। मैंने लाइट जलाई डरते-डरते और अपने दरवाजे से बाहर हॉल की ओर देखा, जिस ओर वो साया गया था।
हॉल की लाइटें बुझी हुई थीं और मेरे कमरे से आ रही रोशनी ही उस हॉल में जा रही थी। मैंने अपने बिस्तर पर खड़े-खड़े ही हॉल की ओर झांक रहा था। अचानक नजर मुख्य दरवाजे की ओर गई जो बंद था। वहां मुझे वही साया खड़ा नजर आया। अचानक वो काले धुएं की तरह गुब्बार बनाता हुआ कमरे के चक्कर काटने लगा। इतने में मैंने झट से अपना दरवाजा बंद कर दिया और राहुल को फोन लगाया।
राहुल ने फोन उठाया और बोला कि क्या हुआ। मैंने उसे पूरा किस्सा सुनाया कि मैंने क्या देखा। वो वहीं से बोला कि साले तूने बुरा सपना देख लिया। मैंने कहा यार मैं जगा हुआ था, सब कुछ होश में देखा है। उसने कहा रुक, मैं आता हूं। कुछ देर बाद दरवाजा नॉक हुआ। मैंने पूछा कि भाई तू ही है न, तो रूममेट की आवाज आई कि और कौन होगा, दरवाजा खोल।
मैंने दरवाजा खोला तो राहुल था। उसने हॉल की लाइट जला दी थी। बोला- कुछ भी तो नहीं है यहां। चल मेरे रूम में आकर सो जा। मैंने कहा ठीक है। मैं निकला और राहुल के कमरे की ओर जाने लगा। राहुल बोला कि तू चल मैं वॉशरूम होकर आता हूं। यह कहके वह कॉमन बाथरूम की ओर चला गया।
मैं राहुल के कमरे में गया और उसके बेड पर बैठकर उसके आने का इंतजार करने लगा। इतने में अचानक उसके कमरे साथ अटैच बाथरूम का दरवाजा खुला और सामने मैंने जो देखा, उसे देखकर मैं बेहोश हो गया। उस बाथरूम से भी राहुल निकला था।
जब मुझे होश आया, मैंने पाया कि मैं राहुल और मकान मालिक के परिवार के सदस्यों से घिरा हुआ हूं। मैं डर से कांप रहा था। राहुल उन लोगों को बता चुका था कि मैंने फोन करके क्या दिखने की बात कही थी। राहुल ने मुझसे पूछा कि क्या हुआ, तू मुझे देखकर क्यों डर गया था।
मैंने कहा, “डर गया था मतलब? जब तू बाहर वाले बाथरूम में था तो कमरे वाले बाथरूम से कैसे निकला?”
अब वह गंभीर हो गया। उसने कहा कि वह तो अपने रूम से निकला ही नहीं था। उसने कहा कि जब तेरा फोन आया तो मैंने कहा कि रुक आता हूं। फिर मुझे तेज सूसू आया था तो बाथरूम चला गया कि पहले हल्का हो लूं, फिर तेरे पास आऊं।
यह सुनकर मैं और डर गया। अगर राहुल अपने कमरे से बाहर निकला ही नहीं था तो किसने मेरा दरवाजा खटखटाया था, उसके रूप में कौन था जिसने कहा कि हॉल में कुछ नहीं है और कौन हॉल वाले कॉमन बाथरूम में गया था। मैंने उसी दिन तय कर लिया कि यहां नहीं रुकना है। मैंने सामान पैक किया, दोपहर तक अपने घर नादौन के लिए बस पकड़ने के इरादे से आईएसबीटी चला गया।
इतने में मैंने राहुल को कहा कि भाई मेरा सामान थोड़ा-थोड़ा करके पीजी पहुंचा दो। मैं 15 दिन घर पर रहा, डर को भगाने की कोशिश की। इतने में राहुल ने सामान वापस पीजी में रख दिया था। फिर मैं कभी अपने फ्लैट नहीं गया और तभी से पीजी में ही रहा हूं। इससे पहले न भूत का कोई अनुभव रहा, न इसके बाद।
मुझे नहीं पता आप इसे भूत-प्रेत या साया करेंगे या भ्रम, मगर मैंने जो महसूस किया, उसे मैं ही जानता हूं। जिस शाम मैंने कहा था कि मुझे नहीं पता कि भूत होते हैं या नहीं, उसी रात को मेरी राय हमेशा के लिए बदल गई।
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DISCLAIMER: इन हिमाचल’ पिछले तीन सालों से ‘हॉरर एनकाउंटर’ सीरीज़ के माध्यम से हिमाचल प्रदेश से जुड़े भूत-प्रेत के रोमांचक किस्सों को जीवंत रखने की कोशिश कर रहा है। ऐसे ही किस्से हमारे बड़े-बुजुर्ग सुनाया करते थे। हम आमंत्रित करते हैं अपने पाठकों को कि वे अपने अनुभव भेजें। इसके लिए आप अपनी कहानियां inhimachal.in @ gmail.com पर भेज सकते हैं। हम आपकी भेजी कहानियों को जज नहीं करेंगे कि वे सच्ची हैं या झूठी। हमारा मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम बस मनोरंजन की दृष्टि से उन्हें पढ़ना-पढ़ाना चाहेंगे और जहां तक संभव होगा, चर्चा भी करेंगे कि अगर ऐसी घटना हुई होगी तो उसके पीछे की वैज्ञानिक वजह क्या हो सकती है। मगर कहानी में मज़ा होना चाहिए और रोमांच होना चाहिए।यह एक बार फिर स्पष्ट कर दें कि ‘In Himachal’ न भूत-प्रेत आदि पर यकीन रखता है और न ही इन्हें बढ़ावा देता है।