हॉरर एनकाउंटर: क्या था हवा में दिखने वाली तस्वीरों और मंत्रों का रहस्य?

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DISCLAIMER: हम न तो भूत-प्रेत पर यकीन रखते हैं न जादू-टोने पर। ‘इन हिमाचल’ का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और कॉमेंट करके इन अनुभवों के पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर चर्चा कर सकें।

  • संकेत शर्मा

यह मेरी आपबीती है, जिसे आपमें से बहुत से लोग झूठ करार देंगे। वैसे अब मैं बिल्कुल ठीक हूं, मगर उस दौर की याद आती है तो डर लगने लगता है। वैसे तो जो कुछ मैंने अनुभव किया, उसे बहुत से लोग मानसिक समस्या भी करार देते हैं। और इसके चक्कर में मुझे कई बड़े मनोचिकित्सकों के चक्कर भी काटने पड़े। मुझे भी लगने लगा था कि मैं पागल हो गया हूं और मतिभ्रम (hallucination) का शिकार हो गया हूं। मगर मेरी समस्या का इलाज डॉक्टर भी नहीं कर पाए थे। खैर, आप लोग मुझे जज करने के लिए स्वतंत्र हैं, मगर मैं अपनी बात रखना चाहता हूं। मुझे लगता है कि आज भी ऐसी चीजें हैं, जिनका कोई एक्सप्लैनेशन नहीं है।

यह सिलसिला तब शुरू हुआ, जब हमारा परिवार शिमला ट्रांसफर हुआ। पापा का तबादला शिमला हो गया था और मम्मी का ट्रांसफर भी वहीं करवा लिया। हम सब भी सोलन से वहां चले आए। जहां हमने क्वॉर्टर लिया था, वह जगह जरा वीराने में है। जिस बिल्डिंग मे ंहम रहते थे, वह अंग्रेजों के जमाने की थी। उसके ठीक सामने भी कुछ मकान बने थे। अंग्रेजों के टाइम में वे सर्वेंट क्वॉर्टर हुआ करते थे, लेकिन आज किराए पर चढ़े हैं। कहने को सर्वेंट क्वॉर्टर हैं, मगर शानदार मकान हैं। शिमला मे ंरहने वाले लोग इस बात को समझ रहे होंगे। खैर, बीटेक करने के बाद मैं खाली बैठा हुआ था और डिसाइड कर रहा था कि आगे क्या करना है। पहले मैंने जॉब का मन बनाया था सो एमटेक में ऐडमिशन नहीं लिया। मगर फिर जॉब मनमाफिक मिल नहीं रही थी।

दिन को मम्मी-पापा ऑफिस चले जाते और मैं घर पर अकेला रह जाता। दिन भर टीवी देखता और कभी बालकनी में आकर जंगल के नजारे देखता। एक दिन मेरी नजर सामने वाले क्वॉर्टर्स पर गई। वहां मैंने देखा कि एक लड़की खड़ी होकर मेरी तरफ देख रही है। वो क्वार्टर हमारे क्वॉर्टर से मुश्किल से 20 मीटर दूर होगा। पहले मैंने सोचा कि किसी और की तरफ देख रही होगी। मगर मैंने दाएं-बाएं झांककर देखा कि इस तरफ और कोई नहीं है, मैं ही हूं। खैर, मैंने इग्नोर मारा और अंदर चला गया।

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दो-तीन दिन बाद जब मैं फिर बालकनी में गया तो फिर वही लड़की दिखी। वह इसी तरफ देख रही थी। उसके हाथ में स्टील का गिलास था और अजीब सी स्थिर सी खड़ी थी। न कोई हरकत, न कुछ। बस देखे जा रही थी। मैं हैरान सा उसकी तरफ देख रहा था कि उसने इशारा किया गिलास से। ठीक वैसे, जैसे आप पूछ रहे हों कि ये गिलास लोगे या मतलब जैसे चाय का गिलास लेकर दूसरों से पूछते हैं कि चाय पिओगे। मैं हैरान था कि कौन लड़की है, क्या कर रही है। अजीब है, लाइन मार रही है क्या। खैर, सच बताऊं तो मुझे इतने अट्रैक्टिव भी नहीं लगी थी वो कि मैं खुश हो जाऊं कि लड़की लाइन मार रही है। और उन दिनों वैसे भी जॉब को लेकर ज्यादा सोच रहा था। मैंने उसे इग्नोर किया और इधर-उधर देखने लगा। मैंने कुछ देर दूर के मकान के आंगन में खेल रहे बच्चों को देखा। और फिर कमरे में अंदर जाने से पहले एक बार फिर उस तरफ देखा, जहां वह लड़की खड़ी थी। इस बार वह वहां नजर नहीं आई। मगर जैसे ही मैं कमरे में जाने ही वाला था, बालकनी के ठीक नीचे वही लड़की ऊपर की तरफ देखती हुई नजर आई। गिलास के साथ और मुस्कुराते हुए।

बड़ी अजीब बात लगी। मैंने फिर इग्नोर किया और कमरे के अंदर चला आया। उसके बाद भी कई दिन तक वह लड़की मेरे सामने आती और बात करने की कोशिश करती, मगर मैं टाल देता। कभी नमस्ते कहती, कभी मिल जाने पर मुस्कुराती। मगर मेरे मन में उसके प्रति धीरे-धीरे आकर्षण पैदा हो रहा था शायद। एक दिन जब मैं अकेला था दिन में, किसी ने दरवाजा खटखटाया। मैंने खोला तो वही खड़ी थी। मैंने पूछा कि क्या हुआ, तो बोली कि पापा बुला रहे हैं तुमसे बात करनी है। मैंने कहा मुझे कोई बात नहीं करनी और दरवाजा बंद कर दिया। इसके बाद मैं जैसे ही आकर बिस्तर पर बैठा। कमरे में सफेद प्रकाश में उस लड़की की तस्वीरें बननी शुरू हो गईं। उसका बाप भी दिखा उस तस्वीर में और उसके पीछे कुछ लोग खड़े थे। मैं दो-तीन सेकंड के लिए हक्का-बक्का रह गया। दीवारों से आगे हवा में रोशनी में ऐसी तस्वीर बन रही थी, जैसे 3डी फिल्म चल रही हो। अजीब-अजीब सीन दिख रहे थे। कभी दिख रहा था कि उस लड़की को ऐंबुलेंस में ले जा रहे थे और वो मर रही हो। मैं घबरा गया और आंखें बंद कर लीं। जब खोलीं तो फिर वही सब सामने था। यह कोई भ्रम नहीं था। मैंने सिहराने के पास रखी थाली (ब्रेकफस्ट के बाद यहीं छोड़ दी थी) उठाई और जोर से दरवाजे पर दे मारी। जोर से आवाज आई बर्तन गिरने की और वे तस्वीरें गायब हो गईं।

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

इस घटना के बाद मैंने घर से बाहर जाना ही बंद कर दिया। मगर जब कभी बाहर जाता, बस वगैरह में भी वैसी ही तस्वीरें हवा में बनना शुरू हो जातीं। फिर मैंने घरवालों को इस बारे में नहीं बताया। मुझे लगा कि भ्रम हो गया है और दिमाग खराब हो गया है मेरा घर पर रहकर फ्रस्ट्रेशन में। मैंने उन्हें बोला कि टेस्ट के लिए प्रिप्रेशन करने चडीगढ़ जाना है। चंडीगढ़ आया मैं और एक मकान में रहने लगा। कुछ दिन तो ठीक रहा। रोज मैं नॉन-वेज खाता बाहर से मंगवाकर, मौज से रहता। ऐसी कोई घटना नहीं हुई। 15 दिन ही यह सिलसिला चला होगा कि 16वें दिन दादा जी की मृत्यु का समाचार मिला। यहां आया तो घरवालों को बताया कि ऐसे-ऐसे हुआ था मेरे साथ शिमला में, ऐसा-ऐसा दिखता था। डॉक्टर के पास ले गए वे मुझे और दवाई दी। डॉक्टर ने समझाया कि कैसे भ्रम का शिकार हुआ हूं मैं और सब इमैजिन कर रहा हूं।

इसके बाद मैं जब मैं वापस चंडीगढ़ आया। अजीब बातें होने लगीं। मुझे फिर वैसे ही दृश्य दिखने लगे। अजीब से गाने सुनाई देने लगे। मार्बल पर कुछ मंत्र लिखे मिलने लगे, जिन्हें मैंने डायरी ने नोट किया था। कुछ तस्वीरें दिखतीं कि उसका बाप कुछ लोगों के साथ खड़ा है औऱ उनके आगे लोमड़ी मरी हुई है। इतना डरावना अनुभव कभी नहीं रहा। न तो नींद आ रही थी और कुछ करने का मन करता था। आखिर में मैंने घरवालों को बताया कि मुझे ले जाओ। वे वापस मुझे  शिमला ले गए। डॉक्टर (मनोचिकित्सक) को दिखाया तो वह कहता कि इसे थॉट ब्रॉडनिंग कहते हैं, ऐसा है, वैसा है। मगर जब दवाओं से आराम नहीं हुआ तो उसने ही मेरे परिजनों को पालमपुर के किसी चेले का नंबर दिया।

सांकेतिक तस्वीर
सांकेतिक तस्वीर

मेरे घरवाले उस चेले से मिले। उसने पता नहीं क्या-क्या करवाया। मुझे तो उन दिनों डर के मारे कुछ समझ नहीं आता था। मगर श्मशानघाट मे ंले जाकर वह कुछ करता था। उसमें बकरे की कलेजी, मछली की आंख और न जाने क्या-क्या करता था। और उसके बाद से वे सारी चीजें ठीक हो गई हैं। न कुछ दिखाई देता है, न सुनाई देता है। अब मैं एमटेक कर चुका हूं और बिना किसी डर के रात को कहीं भी आ-जा सकता हूं। इस घटना के बारे में मेरे गांव वाले कहते हैं कि किसी ने मेरे ऊपर ओपरा कर दिया था तो कुछ लोग कहते हैं कि मैं भांग पीने लगा था और मेरी बुद्धि फिर गई थी। यह बात अलग है कि मैंने कभी सिगरेट तक नहीं पी। कुछ लोगों का कहना है जॉब न लगने से डिप्रेशन में चला गया था और यह सब इमैजिन कर रहा था। मैं डिप्रेशन मे ंगया जरूर था, मगर मेरे साथ जो-कुछ हो रहा था, उससे तंग आकर। कई बार तो खुदकुशी का भी मन किया था सब खत्म करने को, मगर ऐसा कर नहीं पाया। जितने लोग, उतनी बातें। मगर मैं जानता हूं कि सच क्या है। आप भी अपनी राय बनाने के लिए स्वतंत्र हैं।

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(लेखक ने हिंग्लिश में लिखकर यह आपबीती हमें भेजी थी, जिसे हम मूल घटनाओं से छेड़छाड़ किए बिना देवनागरी में पेश कर रहे हैं। लेखक का नाम बदल दिया गया है।)