हिमाचल में कांग्रेस का सूपड़ा साफ, जानें क्या रही वजह

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शिमला।।
हिमाचल प्रदेश के नतीजे एकदम चौंकाने वाले रहे हैं। सारे के सारे कयास धरे के धरे रह गए और मोदी लहर ने अपना रंग दिखा दिया। पहले यह माना जा रहा था कि बीजेपी का स्कोर 3-1 रह सकता है। कुछ लोग तो यह भी कह रहे थे कि 3-1 का स्कोर कांग्रेस का भी रह सकता है। मगर काउंटिंग शुरू होने के डेढ़ घंटे के भीतर ही तस्वीर साफ हो गई। बीजेपी ने प्रदेश की चारों सीटों पर कब्जा कर लिया। सबसे ज्यादा चौंकाने वाला रिजल्ट रहा मंडी लोकसभा सीट का, जहां पर सबकी उम्मीदों के उलट बीजेपी के राम स्वरूप शर्मा ने कांग्रेस कैडिडेट प्रतिभा सिंह को बुरी तरह से हराया। आम आदमी पार्टी हिमाचल में बुरी तरह फ्लॉप रही। जानिए, क्या रही इन नतीजों की वजह:In Himachal को फेसबुक पर फॉलो करें

मंडी: वीरभद्र का ओवर कॉन्फिडेंस ले डूबा प्रतिभा को
हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को लगता था कि उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह आराम से इस सीट को जीत लेंगी। उन्हें लगता था कि जिस तरह से पिछले उप-चुनावों में प्रतिभा ने जय राम ठाकुर को रेकॉर्ड वोटों से हराया है, वैसा ही इस बार भी होगा। लेकिन वह भूल गए थे कि इस बार हालात अलग हैं। मोदी लहर के फैक्टर ने जहां कम जाना-पहचाना चेहरा होने के बावजूद राम स्वरूप शर्मा को वोट दिलाए, वहीं वीरभद्र के ओवर कॉन्फिडेंस की वजह से प्रतिभा सिंह के वोट शिफ्ट हो गए। चुनाव प्रचार के दौरान वीरभद्र सिंह का मंडी न आना गलत फैसला रहा। गौरतलब है कि इस सीट को ब्राह्मण बहुल माना जाता है। ऐसे में पंडित सुखराम के बाद राम स्वरूप शर्मा को ब्राह्मण वोट मिले होंगे, इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता। वोटों के इस शिफ्ट को रोका जा सकता था, लेकिन वीरभद्र ने लोगों से संपर्क करने की जहमत तक नहीं उठाई। धूमल परिवार से व्यक्तिगत लड़ाई पर फोकस करते हुए उन्होंने पूरा फोकस हमीरपुर सीट से अनुराग ठाकुर को हराने पर लगा दिया था। थोड़ा सा ध्यान वह मंडी पर भी दे देते, तो शायदा प्रतिभा सिंह को हार का सामना नहीं करना पड़ता।

अनुराग जीते, प्रतिभा हारीं और शांता जीते। शिमला से कश्यप भी  जीते

हमीरपुर: मोदी लहर में उड़े राजेंद्र राणा
अनुराग ठाकुर से जनता कई वजहों से नाराज थी। कुछ लोग कहते थे कि उनमें ऐटिट्यूड आ गया है, कुछ कहते थे कि उन्हें इलाके में रुचि नहीं, कुछ कहते थे कि वह बाहर ही रहते हैं, कुछ का मानना था कि वह क्रिकेट पर ही ध्यान दे लें तो बेहतर है। कई सारे फैक्टर्स के अलावा कई अफवाहों ने अनुराग के खिलाफ माहौल बनाया था। ऐसा लग रहा था मानो राजेंद्र राणा उन्हें धूल चटा देंगे। लेकिन नरेंद्र मोदी फैक्टर इन बातों पर हावी हो गया। माना जा रहा है कि लोग भले ही अनुराग से नाराज रहे हों, लेकिन उन्होंने यह सोचकर वोट दे दिया कि बीजेपी की सरकार बनी तो अनुराग को मंत्रिपद मिलेगा। आखिरी लम्हे में वोटरों के मूड शिफ्ट ने अनुराग को बड़े अंतराल से जिताया। अगर किसी वजह से उनकी हार हो जाती या जीत का अंतर कम रहता, तो यह बात उनके राजनीतिक करियर के लिए नेगेटिव हो सकती थी।

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कांगड़ा: शांता की बेदाग छवि का जादू चला
पत्नी को पार्टी से विधानसभा का टिकट नहीं मिला था, तो उस वक्त बीजेपी के सांसद राजन सुशांत बागी हो गए थे। उन्होंने बीजेपी और शांता कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। आखिरकार तय हुआ कि उनकी जगह शांता कुमार खुद चुनाव लड़ेंगे। टिकट कटना तय था, ऐसे में राजन सुशांत ने आप की टोपी पहनकर चुनाव लड़ा। आलम यह रहा कि सिटिंग एमपी होने के बावजूद उनका प्रदर्शन बेहद खराब रहा। वह तीसरे नंबर पर रहे औऱ वह भी बेहद कम वोटों के साथ। लड़ाई चंद्र कुमार और शांता कुमार के बीच रही, लेकिन वह भी एकतरफा। जातिगत समीकरण फेल हो गए और जनता ने शांता कुमार की बेदाग और विजनरी छवि के आधार पर वोट किया। मोदी वेव ने आग में भी का काम किया और शांता कुमार तगड़े मार्जन से जीते।

शिमला: मोदी लहर और कांग्रेस में भितरघात
राजनीति के पंडित मान रहे थे कि राजा को पसंद करने वाले कथित ‘ऊपरी हिमाचल’ के लोग कांग्रेस को वोट करेंगे। मगर ऐसा हुआ नहीं। बरागटा के बजाय लोगों ने वीरेंद्र कश्यप को चुना। अगर वीरभद्र सिंह हमीरपुर के बजाय यहां पर ध्यान लगाते तो इतनी दुर्गति नहीं होती। साथ ही वीरभद्र के विरोधी खेमे द्वारा किया गया भितरघात भी बरागटा के लिए नुकसानदेह रहा। वीरेंद्र कश्यप के खिलाफ शिमला से वीरेंद्र कुमार कश्यप नाम से एक इंडिपेंडेंट कैंडिडेट भी खड़े थे। मगर वह भी कश्यप के वोट नहीं काट पाए। नतीजा यह रहा कि हिमाचल प्रदेश का स्कोर 4-0 रहा।

नतीजों का प्रभाव क्या रहेगा?
कांग्रेस की हार की पूरी जिम्मेदारी वीरभद्र सिंह को उठानी होगी, क्योंकि उन्होंने अपनी मर्जी से टिकट डलवाए थे। भले ही पूरे देश में कांग्रेस का प्रदर्शऩ खराब रहा है, लेकिन वीरभद्र इससे बच नहीं सकते। आलाकमान वैसे भी प्रदेश में नेतृत्व परिवर्तन के लिए बहाना खोज रहा है। वीरभद्र की कई शिकायतें नजरअंदाज करने के बाद शायद ही इस बार उनपर कोई कार्रवाई न हो।