Horror Encounter: गुम्मा नमक लेकर सरकाघाट आते हुए ब्यास पर दिखी ‘चुड़ैल’

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प्रस्तावना: ‘इन हिमाचल’ पिछले दो सालों से ‘हॉरर एनकाउंटर’ सीरीज़ के माध्यम से भूत-प्रेत के रोमांचक किस्सों को जीवंत रखने की कोशिश कर रहा है। ऐसे ही किस्से हमारे बड़े-बुजुर्ग सुनाया करते थे। हम आमंत्रित करते हैं अपने पाठकों को कि वे अपने अनुभव भेजें। हम आपकी भेजी कहानियों को जज नहीं करेंगे कि वे सच्ची हैं या झूठी। हमारा मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम बस मनोरंजन की दृष्टि से उन्हें पढ़ना-पढ़ाना चाहेंगे और जहां तक संभव होगा, चर्चा भी करेंगे कि अगर ऐसी घटना हुई होगी तो उसके पीछे की वैज्ञानिक वजह क्या हो सकती है। मगर कहानी में मज़ा होना चाहिए। यह स्पष्ट कर दें कि ‘In Himachal’ न भूत-प्रेत आदि पर यकीन रखता है और न ही इन्हें बढ़ावा देता है। हॉरर एनकाउंटर के सीज़न-3 की पांचवीं कहानी कुलदीप परमार की तरफ से, जिन्होंने अपना अनुभव हमें भेजा है-

ये घटना मेरे साथ नहीं हुई। एक बार किसी बारात में गया था तो वहां पर अलाव के चारों तरफ बैठे लोगों के बीच भूतप्रेतों की चर्चा छिड़ गई। मैं तो 14-15 साल का था उस वक्त। वैसे तो बहुत से लोगों ने अपने किस्से सुनाए मगर एक बुजुर्ग ने जो कहानी सुनाई थी, वो मुझे आज भी याद है। उस बुजुर्ग का कहना था कि उसके दादा बताते थे कि उनका सामना एक बार चुड़ैल से हुआ था। मुझे जगहों का नाम याद नहीं है कि कहां पर क्या हुआ था। जैसे की सांडा पत्तन है या कांडा पत्तन। इसलिए कृपया ऐसी गलतियों के लिए माफ़ करें।

वैसे को चुड़ैल पूरे भारत की कथा-कहानियों और अफवाहों का हिस्सा रही है। कहा जाता है कि चुड़ैल दरअसल एक भटकती हुई आत्मा होती है, जो कोई इच्छा पूरी न होने की वजह से इस संसार के बंधन से मुक्त नहीं हो पाती। कहते यह भी हैं कि चुड़ैल कभी किसी को नुकसान नहीं पहुंचाती, मगर उसे लोगों को परेशान करने में मजा आता है। साथ ही उसका दिल किसी पर आ जाए तो वह उसके साथ ‘रिश्ता’ बनाना चाहती है। कहते हैं कि चुड़ैल को यदि वश में कर लिया जाए तो वह आदमी की कोई भी इच्छा पूरी कर दे और अगर कोई आदमी उसके वश में आ जाए तो वह आदमी समझ लो कि बर्बाद हो गया।

हिमाचल में सर्दियों में फंक्शन वगैरह में अलाव जलाया जाता है। मंडी में इसे ‘घैना’ कहते हैं।

खैर, मैं तो चुड़ैल-वुड़ैल नहीं मानता और न ही मानना चाहिए। क्योंकि चुड़ैलों या डायनों के नाम पर देश में बहुत सा अंधविश्वास फैला हुआ है और इस अंधविश्वास के चलते ही न जाने देश में कितनी महिलाओं को डायन बताकर भयंकर यातनाएं देकर मार डाला जाता है। इसीलिए मैं चाहता हूं कि आप लोग भी इस कहानी और ‘इन हिमाचल’ पर आने वाली सारी कहानियों को साहित्य की एक विधा के तौर पर लें, मनोरंजन लें, रोमांच लें, मगर इन्हें सच समझने की भूल न करें।

तो बुजुर्ग को उनके दादा ने कहानी सुनाई थी, जो इस तरह से थी। आगे ‘मैं’ का मतलब है कहानी सुनाने वाला बुजुर्ग के दादा जी।

ये अंग्रेजों के जमाने की बात है। सरकाघाट में उन दिनों इक्का-दुक्का मकान हुआ करते थे। आज की तरह घनी आबादी वाला कस्बा नहीं था। कुछ घर आसपास के गांवों में हुआ करते और वह भी दूर-दूर। उन दिनों सभी लोगों का जन-जीवन सादा था। सरकाघाट में एक दो मालदार लोग थे, जमींदार। जो लोगों को पैसे उधार देते थे जमीनें और चीजें गिरवी रखकर। उन दिनों चांदी के सिक्कों का व्यापार हुआ करता था। एक ही बड़ा लाला हुआ करता था, जिसके यहां से लोग चीजें खरीदा करते।

उन दिनों नमक लाने के लिए गुम्मा जाना पड़ता था। बहुत सारे लोग इकट्ठे होकर गुम्मा जाते, वहां मेहनत-मजदूरी करते और फिर पेमेंट के तौर पर नमक की चट्टानें मिला करती थी। (गुम्मा जोगिंदर नगर और मंडी के बीच एक जगह है जहां पर नमक की खानें है) यही गुम्मा नमक पशुओं के भी काम आता था और इंसानों के भी।

एक बार हमारे गांव के पांच-छह लोग गुम्मा गए। सरकाघाट से गुम्मा जाने के लिए उन दिनों पैदल जाना होता। शॉर्ट कट करते हुए ब्यास पार करते और फिर गुम्मा। रास्ता लंबा था। तो हमें पेमेंट के तौर पर नमक के पत्थर मिले, जिन्हें हमने बोरियों में डाला और कंधों पर लादकर आने लगे। हम दोपहर होने से ठीक पहले चल दे थे। गर्मियों के दिन थे और अंदाजा था कि रात भी चांदनी वाली होगी तो रात को चलने में भी कठिनाई नहीं होगी।

गुम्मा का रॉक सॉल्ट

हमने तेज कदमों से चलना शुरू किया। रास्ते में हमारा लक्ष्य था कि रात होने से पहले ही पत्तन (वह जगह जहां पर नदी का फैलाव ज्यादा हो जाता है और उसका बहाव कमजोर हो जाता है) तक पहुंच जाएंगे और वहां पर नाव चलाने वाले को बोलकर नदी पार करवा लेंगे फिर आगे तो अपना ही रास्ता है। चिंता की बात ये थी कि कहीं रात होने पर नाव चलाकर लोगों को नदी पार कराने वाला शख्स अपने घर  चला जाए।

हमारा अंदाजा गलत साबित हुआ क्योंकि हमने बोझा उठाया हुआ था नमक का। उसे उठाते हुए तेज रफ्तार से चलना बड़ा मुश्किल था। आलम ये था कि रात के 10-11 बज गए हमें ब्यास नदी तक पहुंचने में क्योंकि रास्ते में कई बार विश्राम करना पड़ा था। मगर इतना लंबा सफर हमने 12 घंटों में तय कर लिया था, ये भी बड़ी बात थी।

खैर, गर्मियों का मौसम था, तारों वाली रात थी। मस्त हवा चल रही थी नदी के किनारे। तो प्रोग्राम बना कि रात यहीं काटी जाए। सुबह जैसे ही बेड़ी वाला आएगा, उससे नदी पार करके चले जाएंगे। मगर हमारे बीच हमारा एक चाचा था जो बहुत डेयरडेविल था। वो कहने लगा कि मैंने अकेले ही तैरकर ब्यास नदी कई बार पार की है और तुम सब भी तो तैरना जानते हो। ऐसा करते हैं कि तैरकर ही चलते हैं।

एक दौर था जब हिमाचल में जानवरों की खालों को फुलाकर उनके सहारे नदियां पार की जाती थीं।

मैंने कहा कि बोरी में भारी नमक की पत्थर हैं, उन्हें साथ लेकर तैरना ठीक नहीं है और ऊपर से हमें इस जगह की गहराई और पानी के बहाव का बिल्कुल भी अंदाजा नहीं हैं।

चाचा ने कहा कि पानी का बहाव बिल्कुल भी नहीं हैं और गहराई की चिंता मत करो क्योंकि हम तैरकर पार कर रहे हैं, चलकर नहीं। रही बात नमक की चट्टानों की, बोरी को पानी में डुबोए रखना तो ये हल्की महसूस होंगी क्योंकि पानी में चीज़ें हल्की हो जाएंगी। और जल्दी से हम नदी पार कर लेंगे तो पत्थर का नमक है, जल्दी से पिघलेगा भी नहीं।

मैंने कहा कि यह गलत आइडिया है और ऐसा करना ठीक नहीं है। मगर अपनी टोली में मैं ही सबसे छोटा था। बाकी सारे लोग चाचा की उम्र के थे या उनसे थोड़ी बहुत कम उम्र के। वे इस अडवेंचर के लिए तैयार हो गए। मेरी अकेले की ना भी कोई फर्क नहीं डाल पाई।

तो हमने वही किया। कपड़े उतारे, उन्हें नमक वाली बोरियों के ऊपर बांधा ताकि नमक वाली बोरियां पानी में डूबें तब भी कपड़े की गठरी थोड़ी ऊपर रहे और नदी को पार करना शुरू कर दिया। नदी का पानी ठंडा। शुरू में तैरने में दिक्कत नहीं हुई मगर जह बीचोबीच पहुंच गए, तब पानी का तेज बहाव महसूस होने लगा। चूंकि गर्मियो के दिन थे और बरसात अभी दूर थी, इसलिए बाढ़ आने का भी खतरा नहीं था। बहाव कम जरूर था मगर फिर भी तेज था। अकेले तैरना होता तो आराम से तैर जाते, मगर एक हाथ से भारी बोरी पकड़ी हुई थी। उसे भी डूबने से बचाना था और तैरकर नदी भी पार करने थी।

हालत ऐसी हुई कि हम चारों-पांचों बीच धार में तेज बहाव से संघर्ष करते हुए फंस से गए। यानी पानी को काटने के लिए हम जितना जोर लगाते, पानी हमें वहीं पहुंचा देता। यानी कुल मिलाकर हम कहीं नहीं बढ़ रहे थे। इतने में हमारी टोली में से किसी की आवाज आई- ओ मेरेया परमात्मेआ, ए क्या पार बखा… (हे भगवान, उस तरफ ये क्या है) इतने में हम सब उस किनारे की तरफ देखने लगे, जहां हम जा रहे थे।

वहां पर एक महिला खड़ी थी जिसकी ऊंचाई सामान्य से कुछ ज्यादा ही थी। चांदनी रात में उसका सफेद चा चेहरा चमक रहा था और आंखों की जगह काले कोटर नजर आ रहे थे। और शायद निर्वस्त्र थी। ये देखते ही मेरे मुंह से चीख निकली और नमक की बोरी को छोड़कर मैं वापस उसी तरफ तेजी से तैरने लगा, जहां से हम आए थे।

तस्वीर प्रतीकात्मक है

मैं ही नहीं, बाकी लोग भी चिल्लाए और तेजी से वापस लौटने लगे। सभी वापस उसी किनारे पहुंच गए, जहां से चले थे। इस ओर आकर हमने देखा तो दूसरे किनारे पर कोई नहीं था। मगर हम इतने डरे हुए थे कि हमने शोर मचाना शुरू कर दिया। हालत ये थी कि हमने कपड़ों को नमक के बोरों के साथ बांधा हुआ था और डर के मारे वो बोरे बीच नदी में ही छूट गए थे। अब हम सभी नंग-धड़ंग ब्यास नदी के किनारे खड़े थे सिर्फ कच्छों में।

चाचा पजामे के साथ ही तैर रहे थे तो उनके पास पायजामा था। वो बहुत बहादुर बनते थे मगर उनकी भी हालत खराब थी। उन्होंने कहा कि यहां रहना ठीक नहीं है, चलो पास वाले घरों सी तरफ चलते हैं जो शायद नाव चलाने वालों के ही थे और मछली पकड़ने वालों के। वहां गए तो सही मगर नंगे किसी के घर जाते कैसे। चाचा को बोला कि आपके पास पजामा है, आप जाओ।

चाचा आगे गए और आवाज लगाने लगे मगर काफी देर तक किसी ने दरवाजा नहीं खोला। चाचा ने दरवाजा खटखटाया तो अंदर से ही लोगों ने पहले पूछताछ की कि कौन आया है और क्यों दरवाजा रात को खटखटाया जा रहा है। जब खिड़की खोलकर उन्होंने पूछताछ की और यकीन हो गया कि कोई जरूरमंद ही है तो उन्होंने दरवाजा खोला। फिर चाचा ने हमें बुलाया, वहां रहने वाले आदमी ने चादर और अपने कुछ कपड़े दिए तो हमने शरीर ढका।

प्रतीकात्मक तस्वीर

पूरी बात बताई तो उस घर के आदमी ने कहा कि ये अच्छा हुआ जो आप बच गए। बोलते हैं कि यहां चड़ेल (चुड़ैल) रहती है जो किसी-किसी को ही दिखती है। ये तो अच्छा किया आपने जो कपड़े नहीं पहने थे आपने। वह इसीलिए भागी। उस व्यक्ति का कहना था कि चुड़ैल आए तो उसे भगाने का तरीका यही है कि आप निर्वस्त्र हो जाएं, इससे वह भयभीत हो जाती है।

रात जैसे-तैसे उन लोगों के घर काटी, सुबह नाव से नदी पार की और अर्धनग्न हालत में खाली हाथ अपने गांव पहुंचे। वहां मजाक बना अलग और उम्र भर के लिए डर बैठ गया दिल में, सो अलग।

यह थी बुजुर्ग द्वारा सुनाई अपने दादा की आपबीती। बुजुर्ग ने ये कहानी सुनाई तो लोग चर्चा करने लगे थे। कुछ कहने लगे कि कोई पागल महिला रही होगी तो कुछ कहने लगे कि कहानी मनगढ़ंत है। तो कुछ यह भी कहने लगे कि ऐसा वाकई होता है और चुड़ैल के सामने कपड़े उतार दें तो वह आतंकित होकर भाग जाती है। इसका लॉजिक क्या था, ये तो वो लोग ही जानें। वहीं एक का कहना था कि चुड़ैल के बालों पर कंघा लगा होता है, अगर उसे निकाल लिया जाए तो वह बेबस हो जाती है। चुड़ैल की सारी शक्तियां कंघे में होती है और वह उसे वापस लेने के बदले कुछ भी डील करने को तैयार हो जाती है। आप उससे अथाह संपत्ति तक मांग सकते हैं।

खैर, इसके बाद और लोगों ने भी चुड़ैल और भूतों से जुड़े किस्से सुनाए, जिन्हें मैं इन हिमाचल को तभी भेजूंगा जब यह कहानी प्रकाशित हो जाएगी और पाठकों को पसंद आएगी।

सीजन 3 की चौथी कहानी- कौन थी बर्फीली रात में चौड़ा मैदान के पास मिली महिला?
सीजन 3 की तीसरी कहानी- धर्मशाला जाते समय आधी रात को सड़क पर हुआ ‘छल’
सीजन 3 की दूसरी कहानी- रोहड़ू के गांव में झाड़ी से निकलकर बीड़ी मांगने वाला रहस्यमय बूढ़ा
सीजन 3 की पहली कहानी- कौन था बरोट-जोगिंदर नगर के बीच की पहाड़ी पर फंसे दोस्तों को बचाने वाला बुजुर्ग?

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DISCLAIMER: इन हिमाचल का मकसद अंधविश्वास को बढ़ावा देना नहीं है। हम लोगों की आपबीती को प्रकाशित कर रहे हैं, ताकि अन्य लोग उसे कम से कम मनोरंजन के तौर पर ही ले सकें और उनके पीछे की वैज्ञानिक वजहों पर चर्चा कर सकें। आप इस कहानी पर कॉमेंट करके राय दे सकते हैं। अपनी कहानियां आप inhimachal.in@gmail.com पर भेज सकते हैं।