शिमला।। शिमला के बहुचर्चित गुड़िया रेप ऐंड मर्डर केस की जांच में पुलिस द्वारा इन्वेस्टिगेशन में लापरवाही बरतने की बात सामने आ रही है। हिंदी अखबार पंजाब केसरी की रिपोर्ट का कहना है कि पुलिस ने गुड़िया के शव का पोस्टमॉर्टम कराने के बाद सैंपल्स को अस्पताल से फरेंसिक लैब तक पहुंचाने में 4 दिन लगा दिए। वह भी तब, जब आईजीएमसी शिमला से जुन्गा फरेंसिक लैब तक गाड़ी से जाने में सिर्फ 1 घंटे का टाइम लगता है।
इतना बड़ा मामला होने के बावजूद अधिकारी शायद 2 दिन की छुट्टियां बीतने का इंतजार करते रहे। दो दिन छुट्टियों के बाद भी दूसरे वर्किंग डे पर ये सैंपल लैब में पहुंचे। जानकारों का कहना है कि इस तरह की देरी की वजह से सैंपल्स के नेचर में बदलाव आ सकता है यानी जांच में दिक्कत आ सकती है और इस केस में भी ऐसा ही हुआ।
अखबार ने लिखा है कि विशेष परिस्थितियों में प्रयोगशाला में अवकाश वाले दिन भी जांच होती है। फरेंसिक एक्सपर्ट्स का कहना है कि इतने वक्त में नमूने अपने नेचर को बदल भी सकते हैं। इससे सही रिजल्ट नहीं आ सकता है। इसी से फोरेंसिक विशेषज्ञों को काफी मुश्किल आई।
लैब से एक्सपर्ट को नहीं बुलाया गया था
अखबार का कहना है कि जांच मे एक लापरवाही यह भी सामने आई है जकि जब आईजीएमसी के स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की टीम ने पोस्टमॉर्टम किया, उश दौरान पुलिस के जांच अधिकारी मौके पर थे। मगर जहां पर आगे की जांच होनी थी, उस लैब से एक्सपर्ट को नहीं बुलाया गया था। जो एक्सपर्ट 6 जुलाई को दांदी के जंगल में था, वह भी पोस्टमॉर्टम के दौरान वहां नहीं था। अखबार का कहना है कि फरेंसिक निदेशालय के विशेषज्ञ का कहना है कि विसरा और अन्य जरूरी हिस्सों को लैब में भेजा जाता तो जांच में आसानी होती।