मुक्तकंठ कश्यप।। देश किसका है यह? उन किन्हीं भी दो लोगों का जो अपनी मर्जी से पूरे हाेश-हवास में जंगल में बैठे हैं, अपनी बात कर रहे हैं, या उनका भी जो बाइक पर सवार होकर आते हैं और लड़के को पीट कर लड़की से दुराचार करते हैं? देश दोनों का है लेकिन जिस तरह से ये घटनाएं बढ़ रही हैं, उससे लगता है कि यह देश केवल उनका है जो मॉरल पुलिसिंग करते हैं और दुराचार की हद तक जा सकते हैं।
हिमाचल कैसे अछूता हो इससे भाई? धीरे-धीरे जानवरों के राज्य में तबदील होता यह क्षेत्र अब ऐसा क्षेत्र है जहां कोई लड़की सुरक्षित नहीं है। वह अगर जंगल में बैठी है तो यह किसी भी शोहदे के लिए आमंत्रण है। लोगों की नजर से दूर एकांत में अगर लड़का-लड़की साथ बैठे हैं तो भी गुंडा तत्वों को उनके साथ बदसलूकी का अधिकार मिल जाता है। सवाल यह तो है ही कि हिमाचल में ऐसी घटनाएं हो रही हैं लेकिन इससे बड़े शर्मनाक सवाल ये हैं:
1. क्या जंगल में बैठना अपराध है?
2 क्या अपने मित्र के साथ सहमति के साथ घूमने जाना दोष है?
3. क्या कोई लड़की किसी लड़के के साथ पूरी जिम्मेदारी के साथ किसी जगह घूमने जाती है तो उस पर हर शोहदे की नजर इस तरह पड़नी चाहिए ?
समाज फिर से बर्बरता की तरफ लौट रहा है। सोच लो यार… ये बाबों के साम्राज्य ऐसे नहीं बने। ये संपदाएं, ये चहल पहल ऐसे नहीं बनी। इसके पीछे समाज के भयादोहन की मेनहत है। साल भर मेहनत कुकर्म और दुष्कर्म करो और अंत में पांव छू लो। पाप कट गए। अरे इससे बड़ा पाप क्या है कि आप दो लोगों को बैठने नहीं दे रहे हैं ? इससे बड़ी त्रासदी क्या है दो किशोरों का बात करने, अकेले बैठने का यह अर्थ लिया जाए कि सबके लिए रास्ते खुल गए।
ये हिमाचल प्रदेश के वे युवा हैं जिनका दम अब भर्ती अफसर के सामने फूलने लगता है। फेफड़ों पर बीड़ी और सिगरेट के तंबाकू की मार है। यहीं तक नहीं, रोज मिलने वाली भांग, चरस और भुक्की किसी के लिए तो जाती ही है। ये वे युवा हैं जिन्हें बाइक पर बैठ कर सांप बनना आता है, कार चलाएं तो कार से ज्यादा आवाज़ स्पीकर की आती है। पथभ्रष्ट और दिशाहीन पीढ़ी के जाहिल हैं ये लाेग।
देश आजाद है लेकिन समाज इतना कैद और बंधुआ है कि कहीं किसी लड़का-लड़की का साथ बैठना मंजूर नहीं है इसे!! समाज को सुधारने चले हैं रे पिस्ट! यह शर्मिंदा होने का नहीं, हाथ में फरसा पकड़ने का समय है! हां, लड़कों के, कुलदीपकों के, वंश को आगे ले जाकर स्वर्ग के दर्शन करवाने वाले अपने पुत्रों के अभिभावक यह ज़रूर सोचें कि जैसे बेटी के लिए चिंतित होते हैं, औरों की बेटियों के लिए भी चिंतित हों। सुनिश्चित करें रोज कि आपका सांड वापस आपके बाड़े में आ गया है या नहीं? उसकी हरकतों पर नजर रखें! सरकार, पुलिस को गरियाना छोड़ें! अपने छुट्टा सांड सम्भालें पहले!
मां बाप के लिए अपने होने की गारंटी आज भी बेटा है। होता रहे अगर है तो लेकिन उसे संस्कार भी तो दें। संस्कार देने का जिम्मा अध्यापकों पर डाल दिया। किसी बच्चे ने गलत फार्म भरा और खुद ही सरकारी स्कूल में दाखिला लेने चला गया अपना बाप आपने आप बन कर और अध्यापक ने कारगुजारी देखकर सलाह दे दी कि साइंस मत रखो तो अगले दिन मीडिया और समाज पिल पड़ेंगे उस स्कूल पर।
निजी स्कूल में दाखिला लेना होता है तो मुंहमांगी फीस भी देंगे और पिता या माता ही नहीं, दादा, दादी, नाना नानी भी जाएंगे लाल के साथ। यह संस्कार दे रहे हैं हम। आंगन में मरी हुई गाय पड़ी है तो यह पंचायत का काम है, वही जाने। रे प हो गया तो पुलिस जाने। सीएम जाने। समाज को सिर्फ गुठलियां गिननी हैं। धिक्कार है ऐसे समाज पर!!!!
(लेखक डिजिटल ऐक्टिविस्ट हैं. साहित्य और समाज के विभिन्न पहलुओं पर बेबाक टिप्पणियों के लिए जाने जाते हैं.)
इन हिमाचल पर 28 अप्रैल, 2018 को प्रकाशित इस लेख को फिर से पब्लिश किया गया है।