हिमाचल में विपक्ष को बदलनी होगी बात-बात पर वॉकआउट की रणनीति

इन हिमाचल डेस्क।। विधानसभा के शीतकालीन सत्र का आयोजन धर्मशाला में करने के लिए सामान्य से कई गुणा अधिक खर्च बैठता है। पूरा का पूरा सेटअप शिमला से धर्मशाला शिफ़्ट करना पड़ता है। अधिकारियों, कर्मचारियों और पत्रकारों आदि के ट्रांसपोर्ट से लेकर उन्हें ठहराने तक भारी-भरकम रक़म खर्च की जाती है। लेकिन किसलिए? वॉकआउट के लिए?

विपक्ष के पास काफ़ी समय रहता है कि वह सत्र शुरू होने से पहले ही गंभीर सवाल तैयार करे ताकि उनके आधार पर विधानसभा में सरकार को घेरा जाए। सत्र से ठीक पहले या सत्र के दौरान अचानक कोई विषय आ जाए तो उसे उठाया जा सकता है। मगर देखिए, विपक्ष ने पहले दिन यह कहकर हंगामा कर दिया कि पहले अविश्वास प्रस्ताव पर बात हो, फिर बाक़ी काम होंगे।

विपक्ष के काबिल नेताओं का तर्क था कि हाल ही में हुए उपचुनावों में सभी सीटों पर बीजेपी की हार हुई है, जनता का विश्वास सरकार पर से खो चुका है, इसलिए सरकार को नैतिक अधिकार नहीं है सत्ता पर बने रहने का। और जब एक तिहाई सदस्यों की संख्या न होने पर यह प्रस्ताव खारिज हो गया तब भी हंगामा। फिर आज दूसरे दिन वही हुआ, जिसके लिए विपक्ष हर बार बेसब्री से विधानसभा के सत्रों का इंतज़ार करता है- वॉकआउट।

उपचुनावों के नतीजों के आधार पर सत्ताधारी पार्टी को घेरने के लिए इधर उधर भाषण देना और प्रेस कॉन्फ़्रेंस करना तो समझ आता है, मगर प्रदेश के करोड़ों रुपये बर्बाद कर देना कहां तक सही है? सवालों के जवाब तैयार करने में लगे संसाधन, पूरे सिस्टम को शिमला से धर्मशाला शिफ़्ट करने व्यय पानी में। वह भी उन उन नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री के नेतृत्व में जिन्हें एक दिन पहले सरकारी पैसे की बेक़द्री और प्रदेश के क़र्ज़ में डूबने की बड़ी चिंता हो रही थी।

यह दिखाता है कि हिमाचल प्रदेश का विपक्ष या यूँ कहें कि हिमाचल प्रदेश के अधिकतर नेता वास्तव में नेता कहलाने लायक़ ही नहीं हैं। क्योंकि सत्ता में होते हुए उन्हें यह नहीं पता होता कि प्रदेश के लिए क्या अच्छा करना है और विपक्ष में जाने पर उन्हें यह नहीं पता होता कि सरकार को कैसे घेरा जा सकता है। और यह बात कांग्रेस और बीजेपी, दोनों के लिए लागू होती है। वॉकआउट का यही सिलसिला तब बीजेपी की ओर से जारी रहता था जब प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी।

शायद हिमाचल के विधायकों के मन में एक ही बात बैठी हुई है कि हंगामा करके बाहर आकर मीडिया के सामने नारे लगाने पर उनकी फ़ोटो छपेगी और अगले दिन के अख़बारों में बड़े अक्षरों में लिखा होगा- विपक्ष ने किया वॉकआउट।

शायद प्रासंगिक बने रहने के लिए उन्हें यही एक तरीक़ा नज़र आता है। लेकिन वे भूल गए कि जब राज्यपाल के अभिभाषण के दौरान हंगामा करने पर मुकेश अग्निहोत्री आदि को सदन से निष्कासित किया था, तब उन्हीं की पार्टी के सुखविंदर सिंह सुक्खू और अन्य ने सदन ने अंदर किस तरह ज़ोरदार ढंग से बातें रखी थीं और तर्कसंगत बातों से कैसे सरकार को असहज कर दिया था।

बेहतर होगा विपक्ष अगर सदन के अंदर जनता से जुड़े विषय उठाए, पूरी तैयारी करके सरकार को घेरे। सरकार हो बर्बाद और हाय थू जैसे वाहियात नारे लगाते हुए सदन से निकलकर मीडिया के सामने हंसते हुए बयान देना फूहड़ लगता है। आप चुने हुए प्रतिनिधि हैं, न कि बिना लक्ष्य के हंगामा करने वाले लोग।

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