हिमाचल के तकनीकी शिक्षा मंत्री के नाम एक IITian का खुला पत्र

‘इन हिमाचल’ को अपने फेसबुक पेज पर एक पाठक और IIT दिल्ली में रिसर्च स्कॉलर आशीष नड्डा की तरफ से एक मेसेज मिला है। इस मेसेज में उन्होंने हिमाचल प्रदेश सरकार के उस फैसले से अहमति जताई है, जिसके तहत इंजिनियरिंग करने की इच्छा रखने वाले छात्रों को पॉलिटेक्निक या इंजिनियरिंग के लिए होने वाले नैशनल लेवल टेस्ट्स देना अनिवार्य कर दिया गया है। उन्होंने प्रदेश के तकनीकी शिक्षा मंत्री जी.एस.बाली को एक पत्र लिखा है, जिसे हम यथावत प्रकाशित कर रहे हैं।- संपादक

श्री जी.एस.बाली,
तकनीकी शिक्षा एवं परिवहन मंत्री,
हिमाचल प्रदेश सरकार।

आदरणीय बाली जी,
मैं आशीष नड्डा आपके राज्य का एक नागरिक हूं और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान दिल्ली(IIT Delhi )  से पीएचडी कर रहा हूं। सबसे पहले तो मैं आपको इस बात के लिए बधाई देना चाहता हूं कि आप हिमाचल सरकार के इकलौते ऐसे मंत्री हैं, जो पारंपरिक ढर्रे से हटकर प्रदेश की तरक्की के लिए कुछ न कुछ दूरदर्शी फैसले लेते रहते हैं। मैंने यह देखा है कि आप नई और व्यावहारिक सोच लेकर चलते हैं।

श्रीमान जी! इस पत्र के माध्यम से मैं आपका ध्यान आपकी सरकार और मंत्रालय के ऐसे फैसले की तरफ लाना चाहता हूं, जिसमें मुझे नीतिगत स्तर पर अमल लाने में कुछ त्रुटियां नजर आ रही हैं। इस फैसला का नुकसान आम आदमी और हिमाचल प्रदेश के छात्रों को ही उठाना पड़ रहा है। लेकिन उस बात पर आने से पहले मैं यह साफ़ कर देना चाहता हूं कि मैं किसी राजनीतिक या शैक्षणिक संस्था से नहीं जुड़ा हूं। इस मामले का मैंने अपने विवेक और अनुभव से स्वतः संज्ञान लिया है।

मंत्री जी! कैबिनेट की मीटिंग के एक फैसले के तहत सरकार ने यह निर्णय लिया है कि जो छात्र पॉलिटेक्निक की परीक्षा या इंजिनियरिंग की राष्ट्रीय स्तर पर होने वाली परीक्षा में नहीं बैठेंगे, उन्हें बाद में प्रदेश के किसी भी संस्थान में दाखिला नहीं दिया जाएगा। या यूं कहा जाए कि इन परीक्षाओं में बैठना अनिवार्य कर दिया गया है, भले ही छात्र को बाद में शून्य अंक ही क्यों न आएं। नीतिगत रूप से आपका यह निर्णय सही हो सकता है, लेकिन प्रदेश की भौगोलिक और ग्रामीण परिस्थितियों को देखते हुए इस फैसले के दुष्परिणामों से आपको अवगत कराना चाहता हूं।

‘नंबर मायने न रखते हों, ऐसे टेस्ट का क्या फायदा?’

श्रीमान! प्रदेश में कई ऐसे परिवार हैं जो खुद उच्च शिक्षित नहीं हैं और न ही स्कूल लेवल के बाद सही से जानते हैं कि बच्चे को आगे क्या शिक्षा दी जाए। जो भी टेस्ट आपने अनिवार्य किए हैं, इनके फॉर्म अक्टूबर नवंबर में भर दिए जाते हैं। यानी अगर कोई दसवी या बारहवीं कक्षा में पढ़ रहा हो तो उसे स्कूल के बाद तकनीकी शिक्षा के लिए अगले सत्र में ऐडमिशन के लिए यह फॉर्म नवंबर-अक्टूबर में भरने होंगे। कई बार उन घरों के बच्चे, जिनके घर में शिक्षा से जुड़ा माहौल न हो, उस समय ये फॉर्म अनिभज्ञता या जागरूकता की कमी या सेशन में व्यस्त रहने के कारण नहीं भर पाते। परन्तु बाद में जब वे अपनी स्कूली शिक्षा पूरी कर लेते हैं, तब जाकर ही कहीं ऐडमिशन के लिए सोचते हैं। इधर-उधर पता करते हैं तो उन्हें पता चलता है की वे किसी निजी संस्थान में दाखिल ले सकते हैं। परन्तु आपके इस रूल के कारण ऐसे छात्र प्रदेश में अपने घरों के आसपास शिक्षा प्राप्त नहीं कर पाएंगे। इसके लिए उनके गरीब अभिवावकों को उन्हें बाहरी प्रदेशों में भेजना होगा। इसके लिए उन्हें वहां हॉस्टल की फीस या रहने के लिए अलग से खर्च वहन करना होगा। क्या यह उनके साथ ज्यादती नहीं है?

आपके रूल से या तो बच्चे का एक साल खराब होगा या कोई गरीब जो अपने घर के आसपास बच्चे को शिक्षा दे सकता है, उसे प्रदेश के बाहर भेज कर अनावश्यक खर्चे के बोझ तले दबना पड़ेगा। और उसे टेस्ट में सिर्फ बैठना अनिवार्य करना, भले ही अंक शून्य या नेगेटिव हों, कहां तक व्यावहारिक है?

श्रीमान जी! अब मैं आपका ध्यान तकनीकी शिक्षा के डिग्री कोर्स की तरफ लाता हूं। मैं आज आईआईटी दिल्ली से पीएचडी कर रहा हूं, लेकिन मैंने स्कूल पास करके इंजिनियरिंग में जाने के लिए एक साल कोचिंग भी ली थी। इसके बावजूद मैंने IIT-JEE का फॉर्म नहीं भरा था। मुझे लगता था कि मेरी तैयारी उस लेवल की नहीं है तो मैं क्यों अपने पैसे फालतू में बर्बाद करूं। श्रीमान! आज वही फॉर्म, जिसका टेस्ट आपने अनिवार्य किया है, एक हजार रुपये के आसपास का हो गया है। हो सकता है किसी गरीब का बच्चा उसे इसलिए नहीं भरता हो कि प्रतिस्पर्धा के हिसाब से मेरी तैयारी नहीं है तो मैं क्यों पैसे बर्बाद करूं। मान लीजिए बाद में उस बच्चे के घर वालों को लगता है कि हम कैसे न कैसे पैसे जोड़कर या बैंक से लोन लेकर अपने बच्चे को प्रदेश के किसी कॉलेज से इंजिनियरिंग करवा देंगे। ऐसे में आपका बनाया रूल उस बच्चे के भविष्य के आड़े आ जाएगा।

मंत्री जी, मेरे कहने का मतलब है कि आपके इस रूल से शिक्षा की गुणवत्ता में कोई वृद्धि नहीं हो रही। गरीब या जो लोग जागरूक नहीं हैं, उन परिवारों के बच्चों पर प्रदेश से बाहर जाकर शिक्षा ग्रहण करने का अतिरिक्त आर्थिक बोझ पड़ रहा है और कुछ तो शिक्षा से महरूम रह जा रहे हैं। हैरानी की बात यह है कि इसका कारण वे टेस्ट हैं, जिनमें बैठना आपने अनिवार्य कर रखा हैं। वह भी इस अजीब तर्क के साथ कि मार्क्स कितने भी आएं, कोई फर्क नहीं पड़ेगा, बस एग्जाम दीजिए।

मैं उम्मीद करता हूं कि आपका पूरा ध्यान प्रदेश में निजी कॉलेजों की गुणवत्ता सुधारने पर रहेगा। लेकिन आपके इस फैसले से सिर्फ बाहरी राज्यों की तरफ पलायन बढ़ रहा है और यह गारंटी नहीं है वहां अधिक पैसे खर्च करके भी इन बच्चों को क्वॉलिटी एजुकेशन मिले।

भवदीय,
Aashish Nadda (PhD Research Scholar)
Center for Energy Studies
Indian Institute of Technology Delhi
E-mail  aksharmanith@gmail.com

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नाहन में बस खाई में गिरी, 13 लोगों की मौत

नाहन।।
हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में एक सड़क हादसे में 13 टूरिस्ट्स की मौत हो गई है। इन टूरिस्ट्स को ले जा रही एक बस गहरी खाई में गिर गई, जिस वजह से यह हादसा पेश आया। इस हादसे में 13 की मौत हो गई है, जबकि 40 लोग जख्मी हैं।नाहन की एसडीएम ज्योति राणा ने बताया, ‘बस पर यूपी के सहारनपुर के 56 यात्री सवार थे। रेणुका से वापस यूपी लौटते वक्त बस मोडराघाट के पास 250 फीट गहरी खाई में गिर गई।‘ उन्होंने बताया कि 40 यात्रियों का नाहन में इलाज चल रहा है, जबकि गंभीर रूप से जख्मी 3 लोगों को चंडीगढ़ पीजीआई शिफ्ट कर दिया गया है।

स्थानीय लोगों ने हादसे के बाद घटनास्थल पर पहुंचकर बचाव कार्य में मदद की। उन्होंने जख्मी लोगों को कबाड़ बन चुकी बस से निकालने में मदद की। स्थानीय लोगों ने बताया कि उन्होंने प्रशासन और ऐंबुलेंस को बुलाया था, मगर वे टाइम पर नहीं पहुंचे। अगर वे वक्त पर पहुंचे होते तो कुछ और जानें बचाई जा सकती थीं।
गौरतलब है कि कुछ ही दिन पहले उत्तराखंड में भी एक बस के खाई में गिर जाने से दर्जन भर रूसी पर्यटकों की मौत हो गई थी। यह पहाड़ी राज्यों में हुई कोई नई घटना नहीं है। आए दिन पहाड़ी राज्यों में इस तरह के हादसों में कई लोग जान गंवा देते हैं।

इस बार लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान नरेंद्र मोदी ने वादा किया था वह पहाड़ी क्षेत्रों में रेल नेटवर्क का विस्तार करेंगे। हिमाचल के सुजानपुर में संबोधित की गई रैली में मोदी ने कहा था, ‘अक्सर सुनने को आता है कि बस या ट्रक के खाई में गिरने से लोगों की मौत हो गई। मित्रो! यह समस्या तभी हल होगी, जब रेल का जाल बिछेगा।’

चूंकि अब वह पीएम बन चुके हैं, ऐसे में उनसे उम्मीद की जा रही है कि वह इस दिशा में कदम भी उठाएंगे। राष्ट्रपति के अभिभाषण में भले ही इस मुद्दे का जिक्र हुआ हो, लेकिन अभी तक कोई प्रगति होती नहीं दिख रही है। हिमाचल की जनता इंतजार कर रही है कि न सिर्फ बड़े शहरों को मुख्य लाइन से जोड़ा जाएगा, बल्कि आंतरिक जाल भी बिछाया जाएगा।

सुजानपुर में मोदी ने कहा था कि हिमाचल में सड़क हादसों को टालने के लिए ट्रेन होना जरूरी है।

इसके अलावा हिमाचल प्रदेश में टूरिस्ट्स के साथ हो रहे हादसों पर लगाम लगाने के लिए कड़े कदम उठाए जाने की मांग भी उठ रही है। एक ऐसी पॉलिसी बनाने की मांग की जा रही है जिससे यह देखा जाए कि हिमाचल में आ रहे टूरिस्ट्स के पास पहाड़ी इलाकों में गाड़ी चलाने का अनुभव है या नहीं।

इस सब के साथ ही टूरिस्ट्स को खास बुकलेट्स और गाइड मुहैया कराने की मांग भी उठ रही है, जो हिमाचल के माहौल, मौसम और दूसरी चीज़ों के बारे में एजुकेट करे। ऐसा इसलिए किया जाना जरूरी है ताकि कोई भी टूरिस्ट कौतूहलवश नदी के बीच न जाए या अकेले अडवेंचर स्पोर्ट्स न करे।

विज्ञापनों पर न जाएं, सोच-समझकर लें ऐडमिशन

स्पेशल डेस्क, शिमला।।
परीक्षाओं  का दौर खत्म हो चुका है। स्कूल या ग्रैजुएशन के बाद हिमाचल प्रदेश के बच्चे सुनहरे भविष्य के सपने लिए हायर या प्रफेशनल एजुकेशन के लिए कई संस्थानों में ऐडमिशन लेने की सोच रहे होते हैं। देखा गया है कि इन दिनों हिमाचल के युवाओं का रुझान टेक्निकल एजुकेशन या एमबीए की तरफ ज्यादा है। इसी बात को भांपते हुए प्रदेश के अंदर और बाहर के कई प्राइवेट इंस्टिट्यूट यहां के हर छोटे-बड़े कस्बे में अपने ऑफिस खोलकर बैठ जाते हैं। दिन-रात लोकल केबल नेटवर्क और अखबारों पर अपने इस्टिट्यूट के ऐड चलाते हैं। 100% जॉब दिलाने का वादा करने वाले ये इंस्टिट्यूट दिखाते हैं कि इन्हें कई अवॉर्ड मिल चुके हैं। एक खास ऐंगल से खींची गई तस्वीरों के जरिए ये अपने कैंपस को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं। लैब्स, लाइब्रेरी और अन्य सुविधाओं को लेकर भी वे ऐसा ही करते हैं। कई बार पोस्टर्स और पैंफलेट्स में इंटरनेट से उठाकर तस्वीरें छाप दी जाती हैं।

छात्रों को दाखिला लेने के बाद पता चलता है कि यह संस्थान तो मूलभूत सुविधाएं तक नहीं दे पा रहा। ऐसे में ये जॉब के नाम पर क्या करेंगे, आप अंदाजा लगा सकते हैं। ये प्रॉस्पेक्टस में दिखाते हैं कि बड़ी बड़ी कंपनियां इनके यहां प्लेसमेंट करने आती हैं। मगर ऐसा हमेशा सच नहीं होता। वे जॉब प्लेसमेंट के झूठे आंकड़े दिखाते हैं और कई बार अपनी मेहनत से जॉब हासिल करने वाले बच्चों के फोटो भी प्रॉस्पेक्टस या ऐड्स वगैरह में दिखा देते हैं। ‘इन हिमाचल’ ने  ऐसे कई संस्थानों से पढ़े स्टूडेंट्स से बात की तो मालूम हुआ कि वहां तो बेसिक इन्फ्रास्ट्रक्चर तक नहीं। यहां तक कि यूजीसी के गाइडलाइन्स और पैमाने के आधार पर फैकल्टी तक इन कॉलेजों में नहीं होती।

देखादेखी में न जाएं। सोच-समझकर कॉलेज का चुनाव करें।

इन हिमाचल ने ऐसे कुछ कॉलेजों की वेबसाइट्स पर दिखाई गई फैकल्टी की लिस्ट से ईमेल या फोन नंबर्स के माध्यम से बात की, तो पता चला कि उनमें से ज्यादातर तो उस कॉलेज में कभी थे ही नहीं, तो कुछ को संस्थान छोड़े 2 साल से ऊपर का अर्सा बीत चुका है। मगर इनके नाम और एजुकेशनल क्वॉलिफिकेशन का हवाला देकर ये संस्थान बच्चों को अपने जाल में फंसाए जा रहे हैं। ‘इन हिमाचल’ को एक सरकारी स्कूल के अध्यापक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि सरकारी स्कूलों के कुछ अध्यापक भी इन संस्थानों के एजेंट की तरह काम कर रहे हैं। ये वे लोग हैं, जो स्कूल के बाद अपना ट्यूशन सेंटर भी चलाते हैं। वे अपने उन्हीं स्टूडेंट्स को गुमराह करके इन घटिया संस्थानों में ऐडमिशन दिलाते हैं और बदले में कमिशन के तौर पर मोटी रकम डकारते हैं। कुल मिलाकर बात यह है कि शिक्षा के नाम पर यह गोरखधंधा जमकर फल-फूल रहा है।

हिमाचल के भोले-भाले लोग कई बार इनकी  चिकनी चुपड़ी बातों में आकर अक्सर  गलत  जगह ऐडमिशन ले लेते हैं।  अपने बच्चों के लिए जीवन की सारी कमाई दांव पर लगा देने वाले पैरंट्स को सिवाय धोखे और झूठ के कुछ नहीं मिल पाता।  अधिकांश संस्थानों का माहौल ऐसा होता है की स्कूल में 80-90 पर्सेंट मार्क्स लाने वाले बच्चे भी वहां जाकर फेल होने लगते हैं। ऐसे संस्थानों को से डिग्री हासिल करना भी मुश्किल काम बन जाता है, प्लेसमेंट की बात तो अलग है। विद्यार्थियों पर अलग-अलग तरह के जुर्माने लगाकर ये संस्थान  मालामाल हो रहे हैं।  शिक्षा के नाम पर यह एक व्यवसाय हो गया है, जिसके शिकार बन रहे हैं हिमाचल के मासूम लोग।

प्लेसमेंट के दावले खोखले भी हो सकते हैं।

किसी संस्थान में किसी कोर्स के लिए ऐडमिशन लेना जिंदगी का एक महत्वपूर्ण फैसला होता है।  इसी बात को ध्यान में रखते हुए ‘इन हिमाचल’ ने शिक्षा क्षेत्र से जुड़े कुछ अनुभवी लोगों से बात करके  कुछ ऐसे पॉइंट्स हाइलाइट करने की कोशिश की है, जो हिमाचल के  बच्चों और उनके पैरंट्स के लिए मददगार साबित होंगे। अहम सवाल यह है कि आखिर किस आधार पर किसी इंस्टिट्यूट को ऐडमिशन के लिए चुना जाए।

ऐफिलिएशन
सबसे पहले तो यह देखें कि जिस यूनिवर्सिटी, इंस्टिट्यूट या कॉलेज में आप ऐडमिशन लेने जा रहे हैं, वह मान्य भी है या नहीं। यूजीसी की वेबसाइट पर जाकर आप मान्यता प्राप्त यूनिवर्सिटीज़ का नाम देख सकते हैं। इसके साथ ही कुछ कॉलेज और इंस्टिट्यूट कुछ यूनिवर्सिटीज़ से डिस्टेंस एजुकेशन की डिग्री देते हैं। यानी यह डिग्री ठीक उसी तरह की होगी, जैसी आप घर पर बैठकर उस यूनिवर्सिटी से हासिल कर सकते हैं। ऐसे में चुनाव कर लीजिए कि आपको ऐसे संस्थान से पढ़ाई करनी है या नहीं। रेग्युलर और डिस्टेंस एजुकेशन के कोर्स में फर्क होता है। यूं तो पढ़ाई में ज्यादा फर्क नहीं है और डिग्री भी मान्य है, लेकिन कई बार कुछ वेकंसीज़ में डिस्टेंस एजुकेशन की डिग्री को प्राथमिकता नहीं दी जाती।

इंफ्रास्ट्रक्चर
इंफ्रास्ट्रक्चर का मतलब अच्छी सी दिखने वाली या बड़ी सी बिल्डिंग नहीं है। इसका मतलब है कि ऐडमिशन लेने से पहले यह सुनिशित करें कि जिस संस्थान में आप ऐडमिशन लेने जा रहे हैं,  वह आपके कोर्स के हिसाब से लैब्स,  इंस्ट्रूमेंट्स  वर्कशॉप्स, लाइब्रेरी आदि जैसी सुविधाएं दे रहा है कि नहीं।

फैकल्टी
इंफ्रास्ट्रक्चर के बाद अगला पॉइंट है फैकल्टी। एक अच्छा अध्यापक एक संस्थान का हीरा होता है।  आप सुनिशित करें कि क्या अच्छी पढ़ी-लिखी और अनुभवी फैकल्टी संस्थान में मौजूद है या नहीं।  संस्थान की वेबसाइट पर जो फैकल्टी दिखाए गए हैं, क्या वाकई वे वहां पर हैं या नहीं? इसके लिए आप ईमेल या साथ में दिए नंबर्स का सहारा ले सकते हैं।

मूलभूत  सुवधिाएं
हायर या प्रफेशनल एजुकेशन में  सेल्फ स्टडी का बहुत बड़ा रोल है।  यह चीज भी ध्यान देने योग्य है कि क्या कॉलेज की लाइब्रेरी या इंटनेट लैब्स में सारी सुविधाएं मौजूद हैं? हॉस्टल में कितने विधयर्थी रखे गए हैं, कॉलेज से कितनी दूरी पर है हॉस्टल, खेलने के लिए मैदान है या नहीं, सेमिनार हॉल कैसे हैं, सफाई ववस्था कैसी है, खाना कैसा मिलता है। इसके लिए आप किसी पुराने स्टूडेंट्स से जानकारी ले सकते हैं।

अन्य ऐक्टिविटीज़
शिक्षा का मतलब सिर्फ एग्जाम पास करके डिग्री लेना नहीं होता है। कोई भी कम्पनी सिर्फ मार्क्स शीट देखकर नौकरी नहीं देती है।  बल्कि आपका पूरा व्यक्तित्व और कम्यूनिकेशन स्किल तक देखे जाते हैं। आखिरकार आपको  मार्किट में जाकर गला काट प्रतियोगिता  का सामना करना होता है।  इसलिए संस्थान की अन्य ऐक्टिविटीज़, जैसे कि ऐनुअल फंक्शन, स्पोर्ट्स मीट, NCC ,NSS , इंडस्ट्रियल ट्रेनिंग, फेस्टिवल्स आदि के बारे में भी पता करें, जो आपकी पर्सनैलिटी को निखारने में और पढ़ाई को बोझ न बनने देने में मदद करती हैं।

प्लेसमेंट
यह सब से महत्वपूर्ण पॉइंट है।  पढ़ाई के बाद नौकरी पाना आपका मुख्य लक्ष्य है। किसी भी संस्थान की प्लेसमेंट बहुत से फैक्टर्स पर  डिपेंड करती है।  इसमें इंफ्रास्ट्रक्चर , फैकल्टी, स्टूडेंट्स की परफॉर्मेंस वगैरह मैटर करती है। वर्तमान समय में आप किसी भी संस्थान का प्लेसमेंट रेकॉर्ड जानने के लिए सोशल मीडिया के द्वारा वहां के पुराने स्टूडेंट्स से पता कर सकते हैं।

लोकेशन
वैसे तो यह फैक्टर इतना महत्वपूर्ण नहीं है, फिर भी अगर आपका संस्थान किसी ऐसी जगह के आसपास होगा, जहां आप पढ़ाई के दौरान भी बहुत कुछ सीख सकते हैं, तो अच्छा रहेगा। आपकी ट्रेनिंग या प्लेसमेंट के लिए यह फैक्टर फायदेमंद भी हो सकता है।  कई  बार प्लेसमेंट के लिए कंपनीज़ ज्यादा दूर और  रेल हवाई यातायात से कनेक्ट नहीं होने वाले संस्थान में नहीं जाती हैं।  नाम न छापने की शर्त पर ‘इन हिमाचल’ को एक पूर्व छात्र ने बताया कि अच्छा इंफ्रास्ट्रक्चर और समस्त सुविधाएं होने के बावजूद  NIT  हमीरपुर जैसे प्रतिष्ठित संस्थानों तक में ऐसा होता देखा गया है।

अब मुद्दा यह है कि इन सब प्रश्नों के उत्तर जानने के लिए आपको क्या करना है। उसके लिए यहां पर कुछ टिप्स दिए गए हैं:
1.  आप  शहर में खुले ऑफिस में जाकर ही ऐडमिशन न लें, बल्कि खुद जाकर संस्थान में यह सब देखें।
2 . सोशल मीडिया का प्रयोग करते हुए संस्थान के पुराने या वर्तमान स्टूडेंट्स से सारी इन्फर्मेशन लें।
3. कोई शंका हो तो संस्थान की फैकल्टी को भी मेल लिख मारें या फोन पर बात करें।
4 . आप किसी अनुभवी शख्स और अच्छे कॉउंसलर की मदद भी ले सकते हैं।
5. भेड़चाल में बिल्कुल न चलें। दोस्तों की देखादेखी में अक्सर बच्चे गलत चुनाव कर सकते हैं।

हिमाचल में ट्रेन के विस्तार के विरोध में हिमाचली?

हिमाचल और अन्य पहाड़ी राज्यों में रेल के विस्तार की मोदी सरकार की योजना से प्रदेश कीजनता में उत्साह है। लेकिन क्या कोई इस कदम का विरोध भी कर सकता है? सुनने में भले ही अजीब लगे, लेकिन ‘इन हिमाचल’ को मिली एक ई-मेल में ऐसी ही बात कही गई है। हिमाचल फैण्टम नाम के किसी अनसुने से संगठन की तरफ से विक्रांत डोगरा नाम के शख्स ने हमें एक ई-मेल भेजी है। इसका कॉन्टेंट हम यथावत आपके सामने रख रहे हैं:

आदरणीय संपादक जी,
हमारा एक सोशल मीडिया संगठन है जिसने एक विषय पर प्रस्ताव पारित किया है। उम्मीद है कि आप इसे प्रकाशित करेंगे।


हम हिमाचल में रेलवे के विस्तार का हम विरोध करते हैं। ऐसा नहीं है कि हम हिमाचल का विकास नहीं चाहते। यह हमारा सपना है कि हम भी रेल के जरिए देश के अन्य हिस्सों से जुड़ें ताकि समय और पैसे की बचत हो सके। इससे हमारे प्रदेश में ढुलाई वगैरह भी आसान हो जाएगी। मगर एक सबसे बड़ी समस्या है जिसे नजरअंदाज किया जा रहा है।


1. रेल के आने से प्रवासी मजदूर सीधे हिमाचल में घुस आएंगे। वे औने-पौने दामों में काम करके यहां की जनता का रोजगार छीन सकते हैं। इससे हिमाचल की अर्थव्यवस्था भी प्रभावित होगी। साथ ही अपने पूरे परिवार को साथ लेकर चलने वाले ये मजदूर स्वास्थ्य सुरक्षा चक्र के लिए भी खतरा हैं। ये समय पर टीकाकरण नहीं करवाते, जिससे बच्चे कई संक्रामक बीमारियों के संवाहक बन जाते हैं। अपराध दर बढ़ने की आशंका भी है।


हमारी मांग है कि जब तक देश के अन्य हिस्सों और खासकर जिन प्रदेशों में पलायन की समस्या है
 वहां पर लोगों को रोजगार दिया जाए। उन प्रदेशों के लोग जब तक काम की तलाश में बाहर निकलना बंद नहीं करेंगे तब तक हिमाचल में रेल की पटरी न बनाई जाए। अभी सस्ता साधन होने की वजह से ये मजदूर वहां-वहां पहुंच जाते हैं जहां ट्रेन है। हिमाचल रेल न होने की वजह से बचा हुआ है। यहां अभी इन प्रदेशों से सिर्फ दक्ष लेबर पहुंच रही है, जिससे हिमाचल को लाभ हो रहा है।

हम समाज और मजदूर विरोधी नहीं हैं और न ही क्षेत्रवादी। मगर यह कदम ठीक उसी प्रकार जरूरी है, जैसा गोवा में उठाया गया था। गोवा में एक पलायनग्रस्त प्रदेश से सीधी ट्रेन शुरू करने का विरोध किया गया था।

2. दूसरी समस्या है कि हिमाचल प्रदेश में अभी ट्रांसपोर्ट का काम ट्रकों से होता है। सेब से लेकर सीमेंट तक की ढुलाई ट्रकों से होती है। बरमाणा में एशिया की ट्रकों सी सबसे बड़ी यूनियन है। 23000 से ज्यादा ट्रक वालों का रोजगार भी ट्रेन से छिन जाएगा।

हमारी मांग है कि पहले योजना बनाई जाए कि इतने सारे लोगों की रोजी-रोटी के लिए क्या वैकल्पिक व्यवस्था है। विकास जरूरी है, लेकिन विनाश की शर्त पर नहीं। सरकार पहले अपना खासा सामने रखे, वरना ट्रेन आना हिमाचल के लिए सुविधा के बजाय अभिशाप साबित सकता है।

साभार,
Vikrant Dogra
Himachal Phantom.

(Disclaimer: In Himachal इस ई-मेल की सामग्री का किसी भी तरह से समर्थन नहीं करता नहीं करता है। हमारे संपादकीय बोर्ड ने इस ई-मेल को छापने का फैसला इसलिए किया, ताकि यह देखा जा सके कि इस मुद्दे पर हिमाचल प्रदेश की जनता क्या राय रखती है।)

रेत माफिया के इशारे पर छोड़ा गया था डैम से पानी?

मंडी।।
ब्यास नदी में हुए दर्दनाक हादसे के कारणों को जानने के लिए ‘इन हिमाचल’ ने जब तफ्तीश शुरू की, तो कई चौंकाने वाली बातें सामने आईं। भले ही कुछ लोग मानवीय भूल या होनी कहकर इस मामले को हल्का कर रहे हैं, लेकिन असल बात कुछ और भी हो सकती है। स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है कि बांध से अचानक पानी छोड़ने के पीछे सैंड माफिया यानी रेत का गोरखधंधा करने वालों का हाथ भी हो सकता है।

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नाम न छापने की शर्त पर मंडी के एक पत्रकार ने आशंका जताई गई कि अचानक पानी छोड़े जाने का मकसद रेत माफिया को फायदा पहुंचाना भी हो सकता है। उन्होंने कहा कि गर्मियों के पूरे सीजन में रेत माफिया जमकर नदी किनारे जमा बालू जमा करके उसे बेचते हैं। जून आते-आते वे नदियों को कंगाल कर देते हैं। चूंकि जून में मॉनसून के दस्तक देने के बाद नदियां उफान पर होती हैं, ऐसे में रेत के कारोबारियों का धंधा बंद हो जाता है। इसलिए वे चाहते हैं कि बरसात के मौसम से पहले ही ज्यादा से ज्यादा रेत निकाल ली जाए।

एक अन्य शख्स ने बताया कि बांध पर तैनात कर्मचारियों या उनके सीनियर ऑफिसर्स के लिंक इन रेत माफियाओं से हो सकते हैं। अक्सर वे मिलीभगत करके डैम से पानी छोड़ देते हैं, जिससे उफनती हुई नदी अपने साथ पहाड़ी इलाकों से बालू बहाकर मैदानी हिस्से में जमा कर देती है। इससे रेत माफियाओं की चांदी हो जाती है। उनका मंद पड़ रहा धंधा एक बार फिर से चमकने लगता है।

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इस तरह की आशंकाएं कई लोग जाहिर कर चुके हैं। लोगों की मांग है कि इस ऐंगल से भी मामले की जांच करनी चाहिए। अगर ऐसा कोई लिंक पाया जाता है तो दोषी अधिकारियों के खिलाफ भी कार्रवाई की जानी चाहिए। गौरतलब है कि कई राष्ट्रीय स्तर के अखबार भी अपनी रिपोर्ट्स में रेत माफिया का लिंक होने की आशंका जाहिर कर चुके हैं।

ब्यास नदी में बह गए हैदराबाद के 24 छात्र

मंडी
हिमाचल प्रदेश से एक दर्दनाक खबर है। इन हिमाचल को खबर मिली है कि कुल्लू और मंडी जिले की सीमा के पास ओट में एक दर्दनाक हादसे में 24 टूरिस्ट मारे गए हैं। ये सभी स्टूडेंट थे और फोटो खिंचवाने के लिए ब्यास नदी के किनारे गए थे।

ब्यास में पानी का स्तर एकदम बढ़ जाने से ये छात्र एकदम बह गए। लापता छात्रों को ढूंढने की कोशिश की जा रही है, लेकिन अंधेरा होने की वजह से राहत कार्य में जुटी टीमों को समस्या हो रही है। 24 में से 18 लड़के हैं और 6 लड़कियां हैं।

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इन हिमाचल को मिली जानकारी के मुताबिक सभी लापता छात्र हैदराबाद के जीएमआर इंजिनियरिंग कॉलेज के हैं। मनाली से लौटते वक्त ये छात्र फोटो खिंचवाने के लिए बस रुकवाकर ब्यास नदी के किनारे चले गए थे। इसी बीच लारजी डैम से छोड़े गए पानी की चपेट में आ गए और देखते ही देखते बह गए।

टूरिस्ट कम पानी देखकर अक्सर इसी तरह से तस्वीरें खिंचवाने के लिए चले जाते हैं, जिससे कई हादसे हो चुके हैं।(Demo Pic)

पूरा प्रशासनिक अमला घटना स्थल पर पहुंचा हुआ है। पुलिस का कहना है कि लापता छात्रों को ढूंढने की कोशिश की जा रही है। अंधेरा हो जाने की वजह से बचाव कार्य में मुश्किलें आ रही हैं। इस वक्त घटना स्थल पर अफरा-तफरी फैली हुई है। गुस्साए लोग प्रदर्शन भी कर रहे हैं। हाइवे जाम होने जाने से गाड़ियों की लंबी कतारें भी लग गई हैं।

विस्तृत खबर का इंतजार है।

वंश आगे बढ़ाना चाहते हैं तो भांग से दूर ही रहें

शिमला।।
आपको अपनी फेसबुक फ्रेंडलिस्ट में भी कई लोग ऐसे मिल जाएंगे, जो भांग के पत्ते या धूम्रपान करते शिव की तस्वीरें शेयर करते हैं। इस बात से आपको अंदाजा हो जाएगा कि हिमाचल प्रदेश के युवाओं और खासकर स्कूल के बच्चों तक में भांग को लेकर दीवानगी किस कदर बढ़ चुकी है। मगर भांग के दीवानों को सावधान हो जाना चाहिए।

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एक स्टडी में यह साफ हुआ है कि भांग पीना आपके लिए ही नहीं, बल्कि आपकी आने वाली पीढ़ियों तक के लिए खतरनाक है। यह साफ हुआ है कि भांग का सेवन करने वाले पुरुसों की प्रजनन क्षमता पर असर पड़ सकता है। शोधकर्ताओं ने पाया है कि भांग के सेवन से शुक्राणुओं यानी sperms का साइज प्रभावित होता है।

शैफील्ड और मैनचेस्टर यूनिवर्सिटीज़ के रिसर्चर्स की टीम ने यह पता लगाने की कोशिश की कि लाइफस्टाइल से जुड़े कुछ फैक्टर किस तरह से स्पर्म्स के साइज को प्रभावित करते हैं। दरअसल स्पर्म्स का साइज अगर सामान्य से अलग हो जाए, तो वे कम असरदार हो जाते हैं।  देखा गया कि स्मोकिंग, ड्रिंकिंग और दूसरी नशीली चीज़ों के सेवन का शुक्राणुओं पर क्या असर पड़ता है।

शैफील्ड यूनिवर्सिटी में ऐंड्रॉलजी डिपार्टमेंट के सीनियर लेक्चरर डॉक्टर एलन पेसी ने कहा, ‘हमारे आंकड़े सुझाव देते हैं कि भांग का सेवन करने वाले अगर बाल-बच्चे पैदा करना चाहते हैं तो उन्हें इसे यूज करना बंद कर देना चाहिए।’ लैब में की गई स्टडी से पता चलता है कि असामान्य आकार की वजह से शुक्राणु कम असरदार हो जाते हैं।  इस स्टडी के रिजल्ट ह्यूमन रिप्रॉडक्शन जर्नल में पब्लिश हुए हैं।

रिजल्ट के बाद सोशल मीडिया पर कितना संवाद कर रहे हैं नेता?

नई दि्ल्ली।।
आज
के दौर में सोशल मीडिया को नजरअंदाज करना बेहद मुश्किल है। और तो और, अक्सर तकनीकी तामझामों से दूर रहने वाले नेताओं को भी मजबूरन फेसबुक और ट्विटर का रुख करना पड़ा है। इन्हें भविष्य का मीडिया देखा जा रहा है, जहां पर नेताओं या सेलिब्रिटीज़ वगैरह को अपनी बात जनता तक पहुंचाने के लिए अखबार या टीवी जैसे ट्रेडिशनल मीडिया पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। इसी बात को समझते हुए इस बार के लोकसभा चुनावों में लगभग हर छोटे-बड़े नेता को फेसबुक पर ऐक्टिव देखा गया। कुछ नेता खुद जनता से जुड़े रहे, तो कुछ लोगों ने अपनी टीम की मदद से अपनी प्रोफाइल्स या पेज वगैरह संभाले।
हिमाचल प्रदेश की बात करें, तो यहां पर भी नेता अब सोशल मीडिया का रुख करने लगे हैं। युवा वर्ग से जुड़ने के लिए सोशल मीडिया बेहतरीन जरिया  रहा। हर पार्टी और नेता ने इसका भरपूर उपयोग किया। चुनाव के समय धड़ाधड़  नए नए पेजों की बाढ़ सी आ गई। इन सैकड़ों पेजों में से कुछ ऑफिशली नेताओं ने बनाए थे, तो कुछ उनके समर्थकों ने। इन हिमाचल की सोशल मीडिया एक्सपर्ट टीम ने चुनाव प्रचार से लेकर चुनाव का रिजल्ट आने के बाद भी इन सभी पेजों और नेताओं की पर्सनल प्रोफाइलों पर नजर रखी।

क्या था इस स्टडी का मकसद
हम जानना चाहते थे कि नेता लोग सोशल मीडिया को सिर्फ चुनाव प्रचार का जरिया मानते हैं या वे इसे आगे भी जनता से जुड़े रहकर उनकी समस्याएं और सुझाव वगैरह लेने का प्लैटफॉर्म मानते हैं। यह जानने के लिए हमने इलेक्शन से पहले भी नेताओं को कुछ प्रासंगिक मेसेज भेजे थे और रिजल्ट आने के बाद भी उन्हें मेसेज भेजे(अलग-अलग प्रोफाइल्स से)।

चुनाव से पहले क्या थे हालात
हमने यह पाया कि इलेक्शन से पहले नेता या उनके पेज

/प्रोफाइल संभालने वाली टीमें बेहद ऐक्टिव थीं। रोजाना नए अपडेट किए जाते थे और सुबह से लेकर शाम तक जनता को लुभाने वाले वादे किए जाते थे। हर तरह के मेसेज का रिप्लाई नेता के अकाउंट से हर आम आदमी को  किया जा रहा था। लेकिन रिजल्ट आने के बाद हालात बदल गए। कुछ नेता जीत के खुमार में तो कुछ हार के गम में सोशल मीडिया को भूल गए। ये वही नेता थे, जो सोशल मीडिया को जनता से जुड़े रहकर उसकी समस्याओं को सुनने का बेहतरीन मीडिया बता रहे थे। इन हिमाचल की टीम ने नतीजों के बाद 10 दिन तक नेताओं को अलग-अलग प्रोफाइल से जन-समस्याओं से जुड़े मेसेज किए, लेकिन अधिकांश नेताओं की तरफ से कोई जवाब नहीं आया।रिजल्ट के बाद की स्थिति


आलम यह है कि चुनाव जीतने के बाद नेता अपने पेजों यो प्रोफाइल्स पर जिताने के लिए धन्यवाद कहकर गायब हो चुके हैं। कुछ की प्रोफाइल्स में किसी महापुरुष की जयंत पर शुभकामनाएं या पुण्य तिथि पर श्रद्धांजलि के मेसेज आ रहे हैं तो कुछ की प्रोफाइल्स पर जीतने के बाद हो रहे भव्य स्वागत की तस्वीरें। मगर जनता के भेजे संदेशों का जवाब नहीं दिया जा रहा। जो नेता चुनाव हार चुके हैं, उनके पेज वीराने पड़े हैं।
आइए जानते हैं, इन हिमाचल की टीम ने अपनी स्पेशल इन्वेस्टिगेशन में क्या पाया

:

मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह
सीएम अपने हर दौरे के फोटो के साथ फेसबुक पर ऐक्टिव हैं। मेसेज का रिप्लाई न तो वह चुनाव से पहले करते थे और न आज करते हैं। अखबारों की कटिंग्स शेयर करते रहते हैं कि उन्होंने क्या किया। दरअसल यह उनका पब्लिक रिलेशन या यूं समझिए कि प्रमोशन के लिए बनाया गया पेज है। हां, रोजाना कई-कई पोस्ट्स डालने वाले इस पेज में लोकसभा चुनाव का रिजल्ट आने के 3 दिन बात तक सूनापन देखा गया था।


अनुराग ठाकुर, हमीरपुर के सांसद

सोशल मीडिया एक्सपर्ट्स  की भारी भरकम टीम अपने साथ रखने वाले  बीजेपी  के युवा लीडर अनुराग ठाकुर के पेज की टाइमलाइन हमेशा की तरह उनकी उनकी  प्रसंसा करती  हुए पोस्ट्स और न्यूज़  कटिंग्स से भरी रहती है।  ट्विटर पर डाली जानकारी भी उस पेज पर शेयर की जाती है। लेकिन अभी तक उनका एक भी ऐसा फोटो नहीं दिखा है, जिसमें वह चुनाव जीतने के बाद दोबारा हमीरपुर की जनता के बीच दिखे हों। मेसेज का रिप्लाई न पहले करते थे और न ही अब करते हैं।

राजिंदर राणा, हमीरपुर सीट से कांग्रेस कैंडिडेट
हॉट सीट हमीरपुर से कांग्रेस के उमीदवार रहे राजिंदर राणा की फेसबुक  फ्रेंड लिस्ट में  5000 के करीब  फ्रेंड्स, मगर इनकी टाइमलाइन पर 15 मई के बाद कोई अपडेट नहीं है । आपदा प्रबंधन के वाइस प्रेजिडेंट बनने के बावजूद उन्होंने इस बात का जिक्र तक करना उचित नहीं समझा है। हार के बावजूद जो लाखों वोट उन्हें पड़े, उसके लिए उन्होंने अपने सोशल मीडिया पर बैठे समर्थकों को औपचारिक शुक्रिया तक नहीं कहा है।

शांताकुमार, कांगड़ा के सांसद
कांगड़ा लोकसभा सीट से सांसद और पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार के फेसबुक पेज पर 16 मई को दिए गए धन्यवाद मेसेज के बाद आज तक 5 ही पोस्ट्स आई हैं। उनमें भी उनकी भविष्य की योजनाओं का कोई जिक्र नहीं है। चुनाव के बाद से उनके पेज से किसी भी तरह के मेसेज का जवाब आना बंद हो चुका है। सुनने में आ रहा है कि उनके पास एक स्पेशल टीम थी, जो चुनाव से पहले लोगों को जोड़ने के लिए सक्रिय थी। शायद वही चुनाव से पहले संदेशों का जवाब दिया करती थी।


राजन सुशांत, कांगड़ा के पूर्व सांसद

कांगड़ा के पूर्व सांसद राजन सुशांत यूं तो इलेक्शन से पहले शांता कुमार पर रोज नए-नए आरोप लगाकर उनकी शिकायत करते हुए अपनी फेसबुक प्रोफाइल पर अपडेट डालते थे, लेकिन 3 मई के लास्ट अपडेट के साथ उनकी सोशल मीडिया जनता इंटरेक्शन अब बंद है।  अभी तक उन्होंने सोशल मीडिया पर 25 हजार वोटों के लिए अपने समर्थकों को धन्यवाद नहीं कहा है। उनकी एक टीम थी, जो कई तरह के पेज बनाकर प्रचार कर रही थी। वह ऑफिशली उनकी तरफ से प्रचार कर रही थी या नहीं, यह तो नहीं पता, मगर वह टीम भी सोशल मीडिया से गायब है। क्योंकि उनके बनाए पेज सूने पड़े हैं।

राम स्वरूप शर्मा, मंडी के सासंद
मंडी से बीजेपी सांसद राम स्वरुप शर्मा मेसेज का रिप्लाई न तो चुनाव से पहले करते थे और न ही अब। लेकिन वह हिमाचल के इकलौते ऐसे नेता हैं, जो चुनाव जीतने के बाद सबसे पहले जनता के बीच धन्यवाद करने पहुंचे । यह बात उनकी प्रोफाइल पर आए अपडेट्स से मालूम पड़ती है।

प्रतिभा सिंह, मंडी से पूर्व सांसद

मंडी की पूर्व सांसद और सीएम वीरभद्र सिंह की पत्नी प्रतिभा सिंह का पेज और उनके समर्थक नए अपडेट के लिए तरस गए हैं। 

एक नेता, जो इस मामले आदर्श है
इन सब नेताओं के बाद एक नंबर आता है एक ऐसे नेता का, जिसकी जीत की चर्चा लोकसभा चुनाव के बीच दब गई। लेकिन वह हिमाचल के तमाम नेताओं के लिए आदर्श हैं। वह चुनाव से पहले सोशल मीडिया पर अगर कम ऐक्टिव थे तो अब ज्यादा हैं।
नरिंदर ठाकुर, सुजानपुर के विधायक
सुजानपुर के नव निर्वाचित विधायक नरिंदर ठाकुर की लोकप्रियता फेसबुक पर सबसे तेजी से बढ़ी है। इनका पेज तो नहीं है, अपनी एक पर्सनल प्रोफाइल है। चुनाव से पहले 7 मई तक इनके मात्र 1300 फ्रेंड थे, लेकिन अब यह संख्या दोगुनी होकर करीब 2500 हो गई है। इन हिमाचल की टीम ने यह देखा है कि नरिंदर ठाकुर चुनाव से पहले और बाद में भी सोशल मीडिया ऐक्टिव हैं। वह देर सवेर हर मेसेज का रिप्लाई करने की पूरी कोशिश करते हैं।  सुजानपुर के इस नेता ने सोशल मीडिया को जनता से संवाद का जरिया बताया था और इसपर अमल भी किया। उन्होंने जनता को अपना फ़ोन नंबर भी दे दिया है और स्पष्ट रूप से अपने चाहने वालों को हिदायत भी दे दी है कि सोशल मीडिया पर हाइ, हेलो

, गुड मॉर्निंग , गुड ईवनिंग या जय-जय कार वाले मेसेज न भेजें। उन्होंने कहा कि वे सिर्फ अपनी समस्या या मुद्दे की बात मेसेज में कहें।इस सब के अलग

शिमला के सांसद वीरेंदर कश्यप और उनके प्रतिद्वंदी रहे मोहन लाल का कोई ऑफिशल पेज नहीं है। इन हिमाचल को उम्मीद है कि सभी नेता सोशल मीडिया को अपने प्रचार प्रसार के अलावा जनता की समस्याओं को सुनने और सुझावों को समझने के लिए एक प्लैटफॉर्म की तरह इस्तेमाल करेंगे।In Himachal को फेसबुक पर Like करने के लिए क्लिक करें

…तो इसलिए नहीं मिला अनुराग को मंत्री पद

हिमाचल प्रदेश और खासकर बीजेपी समर्थकों को उम्मीद थी कि हमीरपुर के सांसद और बीजेवाईएम प्रमुख अनुराग ठाकुर को नरेंद्र मोदी के मंत्रिमंडल में जगह मिलेगी। मगर ऐसा हो नहीं पाया। सूत्रों के मुताबिक हिमाचल प्रदेश क्रिकेट एसोसिएशन के चीफ के रूप में अनुराग ठाकुर पर लगे करप्शन  के आरोप ही उनके दुश्मन बन गए। जिस तरह से उन्हें विजिलेंस जांच का सामना करना पड़ रहा है, वह उनके खिलाफ चला गया। भले ही उनके ऊपर आरोप सिद्ध नहीं हुए हैं, लेकिन बीजेपी किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहती थी।

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पिछली यूपीए सरकार के मंत्रियों पर आरोप लगने भर पर ही बीजेपी इस्तीफा मांगा करती थी। यहां तक कि हिमाचल के सीएम वीरभद्र जब केंद्रीय मंत्री थे, तब उनपर लगे करप्शन के आरोपों पर बीजेपी ने खूब हंगामा किया था। नतीजा यह रहा था कि वीरभद्र को मंत्री पद छोड़ना पड़ा था। ऐसे में टीम मोदी यह नहीं चाहती कि सुशासन का नारा लेकर बनी सरकार किसी भी तरह से बैकफुट पर आए।

अगर भविष्य में अनुराग पर आरोप लगते हैं या करप्शन का मामला सिद्ध हो जाता है, उस स्थिति में बीजेपी सरकार के लिए फजीहत की स्थिति बन सकती है। मीडिया या विपक्ष को कोई गलत मसाला न मिले, इसीलिए कर्नाटक के सीएम येदियुरप्पा को भी मंत्री पद से दूर रखा गया, जबकि उनके बाद सीएम बने सदानंद गौड़ा मंत्री बना दिए गए।

वीरभद्र सिंह लाख कोशिश करने  पर भी अनुराग ठाकुर को लोकसभा में जाने से तो नहीं रोक पाए, लेकिन उनकी सरकार द्वारा एचपीसीए के खिलाफ खोला गया मोर्चा कारगर रहा। विजिलेंस जांच की आंच ने अनुराग ठाकुर के सपनों और पहाड़ की उम्मीदों पर पानी फेर दिया है। उम्मीद जताई जा रही है कि मंत्रिमंडल के विस्तार में उन्हें जगह मिलेगी। वह भी तब, जब वह एचपीचीए केस से बेदाग होकर निकलेंगे।

जगत प्रकाश नड्डा: जीवन परिचय

हिमाचल प्रदेश के लोकप्रिय नेताओं में से एक और बीजेपी के सीनियर लीडर जगत प्रकाश नड्डा पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने की दौड़ में सबसे आगे चल रहे हैं। भले ही प्रदेश में नेतृत्व विवाद को टालने के लिए उन्हें पार्टी ने केंद्र की तरफ भेजा था, लेकिन इस बात का अंदाजा किसी को नहीं था कि अपनी काबिलियत के दम पर वह संगठन में सबसे ऊंचे पद की जिम्मेदारी संभालने तक के दावेदार हो जाएंगे। आइए, एक नजर डालते हैं जेपी नड्डा के अब तक के राजनीतिक सफर पर:

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जिस वक्त बिहार में स्टूडेंट मूवमेंट चरम पर था, उस दौर में जेपी नड्डा की उम्र 15-16 साल थी। मगर इसी उम्र में नड्डा ने इस आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। इसके बाद वह छात्र राजनीति में सक्रिय हुए और एबीवीपी के साथ जुड़े। 1977 में छात्र संघ चुनाव में वह पटना यूनिवर्सिटी के सेक्रेटरी चुने गए। 13 सालों तक वह विद्यार्थी परिषद में ऐक्टिव रहे।

संगठन में उनकी काबिलियत को देखते हुए जेपी नड्डा को साल 1982 में उनके पैतृक राज्य हिमाचल प्रदेश में विद्यार्थी परिषद का प्रचारक बना कर भेजा गया। इसके साथ ही उन्होंने हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी से वकालत की पढ़ाई भी शुरू की। तेज़ तर्रार जेपी नड्डा हिमाचल के उस दौर के छात्रों में काफी लोकप्रिय हुए। नड्डा के नेतृत्व में हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी के इतिहास में पहली बार छात्र संघ चुनाव हुआ और उसमें विद्यार्थी परिषद को संपूर्ण जीत हासिल हुई। उस दौर में वह 1983-1984 में हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी में विद्यार्थी परिषद के पहले प्रेजिडेंट बने। 1986 से 1989 तक जगत प्रकाश नड्डा विद्यार्थी परिषद के राष्ट्रीय महासचिव रहे।

1989 में केंद्र सरकार के भ्रटाचार के खिलाफ नड्डा ने राष्ट्रीय संघर्ष मोर्चा का गठन किया इस आंदोलन को चलाने के लिए उन्हें 45 दिन तक जेल में भी रहना पड़ा। 1989 के लोकसभा चुनाव में जगत प्रकाश नड्डा को भारतीय जनता पार्टी ने युवा मोर्चा का चुनाव प्रभारी नियुक्त किया गया जो देश में युवा कार्यकर्तायों को चुन कर चुनाव लड़ने के लिए आगे लाने का काम करती थी। 1991 में 31 साल की आयु में नड्डा भारतीय जनता युवा मोर्चा के अध्य्क्ष बने। अपने कार्य काल में नड्डा ने जमीनी स्तर पर लोगों को जोड़ने और ट्रेनिंग देने पर बल दिया। जेपी नड्डा के कार्यकाल में बहुत से युवा पार्टी से जुड़े। उन्होंने कार्यशाला आदि लगाकर युवा वर्ग के भीतर पार्टी की विचारधारा का प्रचार किया । यह उस समय अपने आप में एक नई तरह का प्रयोग था।

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1993 में नड्डा ने चुनावी राजनीति की तरफ रुख किया और अपने पहले ही चुनाव में हिमाचल प्रदेश विधानसभा में बिलासपुर के विधायक के रूप में कदम रखा। इस चुनाव में पार्टी के प्रमुख नेताओं की हार के कारण नड्डा को विधानसभा में विपक्ष का नेता चुना गया। तेज तर्रार और ओजस्वी वक्ता के रूप में नड्डा ने कम विधायकों का साथ होने के बावजूद सरकार को 5 साल तक विभिन्न मुद्दों पर ऐसे घेरा की विपक्ष में होने के बावजूद उन्हें सर्वश्रेष्ठ विधायक चुना गया। 1998 में हिमाचल प्रदेश में बीजेपी की सरकार बनने पर नड्डा ने स्वास्थय मंत्रालय का कार्यभार संभाला। बाद में 2007 की बीजेपी सरकार में नड्डा वन पर्यावरण और संसदीय मामलों के मंत्री रहे। मंत्रायलय और सत्ता से ऊपर संगठन को तवज्जो देने वाले शख्स की छवि रखने वाले नड्डा ने मंत्रालय से इस्तीफा दिया और राष्ट्रीय टीम का रुख किया। वह नितिन गडकरी  की टीम में राष्ट्रीय महासचिव और प्रवक्ता रहे।

राजनाथ सिंह की टीम में उन्हें दोबारा राष्ट्रीय महासचिव चुना गया। अभी तक वह इसी पद पर अपनी सेवाएं दे रहे हैं। लोकसभा चुनाव प्रचार के दौरान संगठन की जिम्मेदारी संभालने से लेकर और भी कई काम उन्होंने बखूबी निभाए। टिकट आवंटन के समय भी उनकी योग्यता पार्टी के काम आई। खास बात यह रही कि वह किसी भी खेमे से नहीं जुड़े और बीजेपी का हर धड़ा उनकी संगठन शक्ति का लोहा मानता है।

नड्डा छत्तीसगढ़ के भी प्रभारी रहे थे, जहां पर बीजेपी ने तीसरी बार सरकार बनाई। लो-प्रोफाइल रहने वाले नड्डा को बीजेपी के लगभग सभी बड़े नेताओं का समर्थन हासिल है। नड्डा के रिश्ते प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से भी काफी अच्छे रहे हैं। एक अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक मोदी जब हिमाचल प्रदेश के प्रभारी थे, तब से दोनों के बीच समीकरण काफी अच्छा है। दोनों अशोक रोड स्थित बीजेपी मुख्यालय में बने आउट हाउस में रहते थे। वह बीजेपी के स्टार जनरल सेक्रेटरी अमित शाह के साथ पार्टी की यूथ विंग भारतीय जनता युवा मोर्चा में काम कर चुके हैं।

(विभिन्न स्रोतों से एकत्रित जानकारी के आधार पर)