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मंडी के सांसद रामस्वरूप शर्मा बन सकते हैं बीजेपी के अगले प्रदेशाध्यक्ष: सूत्र |
रामस्वरूप शर्मा हो सकते हैं हिमाचल बीजेपी के अगले प्रदेशाध्यक्ष
बीजेपी-यूथ कांग्रेस कार्यकर्ता भिड़े, 12 से ज्यादा जख्मी
हिमाचल प्रदेश में गुरुवार को वह हुआ, जो आज तक नहीं हुआ था। शिमला में बीजेपी के कार्यालय पर प्रदर्शन करने आए यूथ कांग्रेस के कार्यकर्ताओं औऱ बीजेपी कार्यकर्ताओं के बीच झड़प हो गई, जिसमें 12 से ज्यादा लोग घायल हो गए। इनमें से 4 की हालत गंभीर बताई जा रही है।
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चक्कर में बीजेपी कार्यालय दीप कमल पर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह के बेटे और यूथ कांग्रेस के स्टेट प्रेजिडेंट विक्रमादित्य सिंह के नेतृत्व में करीब 250 लोगों की टोली आ पहुंची। ये लोग केंद्र द्वारा हाल ही में लाए गए भूमि अधिग्रहण अध्यादेश का विरोध करते हुए नारेबाजी कर रहे थे।
बीजेपी नेताओं का आरोप है कि यूथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने उनके ऑफिस पर हमला किया। कहा जा रहा है कि नारेबाजी करने आए लोगों ने पथराव किया, जिससे एक दर्जन लोग घायल हो गए। दूसरी तरफ यूथ कांग्रेस का कहना है कि वे शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे थे लेकिन बीजेपी कार्यकर्ताओं ने उनके ऊपर हमला कर दिया।
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दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के खिलाफ क्रॉस एफआईआर करवाई है। शिमला के एशपी डी.डब्ल्यू. नेगी ने कहा कि बालूगंज थाने में एफआईर दर्ज की गई है। उन्होंने कहा कि मामले की जांच की जा रही है और अभी तक कोई गिरफ्तारी नहीं हुई है।
बीजेपी प्रवक्ता गणेश दत्त ने यूथ कांग्रेस कार्यकर्ताओं पर हमले का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि चार को गंभीर चोटें आने की वजह से आईजीएमसी ले जाना पड़ा। उन्होंने कहा कि हिमाचल प्रदेश के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी ने विरोधी पार्टी के ऑफिस पर हमला किया है। उन्होंने यूथ कांग्रेस पर गलत परंपरा सेट करने का आरोप लगाया।
इस बीच विक्रमादित्य सिंह ने कहा है कि वे तो सिर्फ प्रदर्शन करने गए थे, लेकिन बीजेपी कार्यकर्ताओं ने पथराव शुरू कर दिया। उन्होंने बताया कि कांग्रेस के कई कार्यकर्ता घायल हुए हैं। विक्रमादित्य ने कहा कि हिंसा से वह डरने वाले नहीं हैं और आगे भी जनता के हितों के लिए लड़ते रहेंगे।
इस घटना की तमाम बड़े बीजेपी नेताओं ने आलोचना की है। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और कांगड़ा से सांसद शांता कुमार ने कहा है कि यह घटना निंदनीय है। उन्होंने कहा कि राजनीति विरोध अपनी जगह है लेकिन हिंसा का कोई स्थान नहीं होना चाहिए।
हिमाचल लोकहित पार्टी ने भी कांग्रेस की आलोचना की है। पार्टी की तरफ से जारी बयान में कहा गया है कि यह शर्मनाक घटना है और इस तरह की हिंसा में शामिल रहे लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जानी चाहिए।
‘लुल’ हुई हिमाचल सरकार, 2 साल से बस धूमल राग गा रहे हैं वीरभद्र
छोटा राज्य होने के कारण हिमाचल प्रदेश के अख़बारों की हेडलाइन अक्सर मुख्यमंत्री के दौरे और उनके भाषण पर ही होती है। किसी भी प्रदेश के मुख्यमंत्री का भाषण लोगों के मन में एक आशा और उम्मीद का संचार करता है। मैंने यहां ख़ासकर सिर्फ मुख्यमंत्री इसलिए कहा क्योंकि राजनीति में रोज हर पार्टी के नेता नए-नए प्लान अपने भाषणों में गढ़ते हैं परन्तु जनता की विश्वश्नीयता सिर्फ मुख्यमंत्री पर अधिक होती है। वो किसी पार्टी विशेष का नहीं, सरकार का मुखिया होता है।
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हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह बहुत अनुभवी, धीर-गंभीर, जुबान के पक्के और प्रदेश हितैषी राजनेता माने जाते हैं। वीरभद्र सिंह का यही व्यक्तित्व लोगों को प्रभावित करता रहा है परन्तु इस बार व्यक्तिगत रूप से मुझे लगा राजनीति में पच्चास साल पूरे कर चुका प्रदेश का सबसे अनुभवी नेता अपने व्यक्तित्व से न्याय नहीं कर पा रहा है।
व्यक्तिगत रूप से वीरभद्र सिंह मेरे लिए आदरणीय हैं। प्रदेश का आम नागरिक होने के नाते मैं या मेरी जगह कोई भी नागरिक अपने मुखयमंत्री से क्या सुनना चाहेगा? प्रदेश हित में कोई योजना , कोई पॉलिसी रिफॉर्म , बेरोजगारों के लिए वह क्या कर रहे हैं या क्या करेंगे, गांव की सड़कों, पेयजल योजनाओं पर उनका क्या प्लान है, प्रदेश की सड़कों की खस्ता हालत पर सरकार का क्या अजेंडा है, बागवानों और किसानों की बंदरों द्वारा तबाह होती फसलों पर प्रदेश सरकार का क्या संज्ञान है, रोज-रोज हो रही वारदातों ,एटीएम चोरी की घटनाओं पर सरकार का क्या ऐक्शन है, कर्मचारियों की कमी से जूझते बिजली बोर्ड और अन्य सरकारी उपक्रमों की मांगों को सरकार कैसे पूरा करेगी, शिक्षा क्षेत्र में सुधार के लिए सरकार की क्या नीति है, कुकरमुत्तों की तरह खोले जा रहे सरकारी इंजिनियरिंग संस्थानों के स्थाई भवन कब तक बनेंगे, वहां रेग्युलर फैकल्टी कब तक नियुक्त होगी, बड़े-बड़े हाइड्रो प्रॉजेक्ट्स से विस्थापित हुए लोगों और उनकी चीखों समस्याओं का क्या बना, क्या नीति अमल में लाई जा रही है…. वगैरह-वगैरह।
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मगर पिछले दो वर्षों के अखबार पढ़ने पर मैंने मुख्यम्नत्री के मुंह से जो सुना, मुझे हैरानी हुए कि प्रदेश के इस अनुभवी नेता को आखिर किस बात की बौखलाहट है। वह ऐसे क्यों व्यहार कर रहें हैं। रोज हर जगह मुख्यमंत्री एक ही तरह के भाषण से अब जी उकताने लगा है। एक निराशा सी मन में आने लगी है। कभी-कभी लगता है क्या प्रदेश के बाकी मुद्दे गौण हो गए हैं? क्या एक मुख्यमंत्री उसे सुनने आये हजारों लोगों के जनसमूह को रोज यह खबरे सुनाने आता है?
वीरभद्र सिंह ने बाकी मुद्दों के बारे में बाते करना बंद कर दिया है। वह जहां भी जाते हैं उनके भाषण की शुरुआत और अंत सिर्फ पूर्व मुखयमंत्री धूमल और उनके परिवार के खिलाफ गुब्बार निकालने से शुरू होता है और उसी पर खत्म हो जाता है। फोन टैपिंग मामले का सुबह शाम हौवा बनाया गया। उस समय की अखबारों को अगर कोई आज निकल कर देखे तो वीरभद्र सिंह ने बिना कोई नागा डाले रोज इस मामले में कांग्रेस प्रवक्ता की तरह कुछ न कुछ कहा। आज उस मुद्दे का क्या बना कोई नहीं जानता। क्या कार्रवाई हुई, कौन गुनहगार निकले, किसी को कुछ पता नहीं। क्या एक मुख्यमंत्री को यह शोभा देता है? क्या ऐसा करना एक मुख्यमंत्री पद की गरिमा के अनुसार है कि पुलिस की जांच और कार्रवाई जिन मामलों में चल रही हो, आप रोज प्रवक्ता बन कर उस पर टिप्पणी करें?
उसके बाद के समय में वीरभद्र सिंह ने क्रिकेट असोसिएशन का राग पकड़ा। इस मामले के सामने आने के बाद की अखबारें आप देखंगे तो पाएंगे फिर मुख्यमंत्री रोज सिर्फ वही बात करते थे। धूमल परिवार को कोसते थे झल्लाते थे। शांता कुमार से सीख लेने की सलाह उन्हें देते थेय़ पर क्या उन्हें नहीं लगता कि वह भी अपने समकालीन नेता शांता से कुछ सीख सकते हैं कि मुख्यमंत्री का काम जांच के आदेश देना है, उसके बाद जांच एजेंसियां अपना काम करेंगी। मुख्यमंत्री काम यह नहीं है कि रोज प्रवक्ता बन कर उसी मुद्दे पर बात करता रहे औऱ बाकी किसी नीति या योजना पर मुंह तक न खोले।
ठीक है, सरकार किसी के खिलाफ जांच करवाने का हक रखती है। कोई दोषी है तो जांच से सब निकल कर आएगा। पर रोज एक ही बात हर जनसभा में दोहराना समझदारी नहीं है। क्या प्रदेश में कोई और मुद्दा नहीं रह गया है? अभी कितने शर्म की बात है की प्रदेश के नाम विदाई सन्देश में राज्यपाल यह कह कर गई हैं कि हमारी सड़कों की हालत कितनी खस्ता है। इस पर सरकार ने कुछ नहीं कहा।
बीजेपी चाहती थी सेंट्रल यूनिवर्सिटी देहरा में बने। मुख्यमंत्री चाहते हैं यह धर्मशाला में बने। दोनों पार्टियों की इस कलह में कई साल तक सेंट्रल यूनिवर्सिटी के लिए फैसला नहीं हो पाया। वह अस्थायी भवन में चलती रही। सिर्फ राजनेता व्यग्र हैं यूनिवर्सिटी कहां बने, मेरे जैसी आम जनता चाहती है बस कहीं भी बनाओ, उसे बना दो। बस राजनीति खत्म करो। खैर जमीन देखने का विशेष अधिकार सरकार के पास है। सरकार ने धर्मशाला में जमीन फाइनल कर दी। मगर वीरभद्र सिंह फिर मुख्यमंत्री से प्रवक्ता बन गए। उन्होंने अनुराग-राग छेड़ दिया, ‘वो यह चाहता है, ऐसा करता है, धर्मशाला में बनेगी, ऐसा-वैसा….’ फिर रोज हर जगह यही भाषण।
ठीक है जनाब, आपने जगह फाइनल कर दी तो बात खतम। अब आप रोज यही अलापते रहते हो, यह क्या बात हुई। अब आप सत्ता में है, न कि विपक्ष में। ऐक्शन लीजिये और आगे की बात कीजिये। जिसे जो कहना है, कहता रहेगा। आपको तो और भी मुद्दे देखने हैं प्रदेश के। पर नहीं, आपको तो रोज इस पर टिप्पणी करनी है। कितना निराशाजनक है यह।
ज्यादा पीछे नहीं जाऊंगा। आजकल मुख्यमंत्री हिमाचल प्रदेश के निचले क्षेत्रों के दौरे पर हैं। इस बीच विजिलेंस ने पूर्व मुख्यमंत्री धूमल के खिलाफ सीबीआई जांच की सिफारिश की है। लोगो को भी मीडिया के द्वारा इस खबर का पता लग चुका है पर हैरानी है कि हर जनसभा में वीरभद्र सिंह का भाषण धूमल राग पर सीमित हो जाता है। जनता उनसे कुछ नयापन सुनने आती है। मगर मुख्यमंत्री बताने लगते हैं कि धूमल के खिलाफ सीबीआई जांच होगी। ठीक है जनाब जांच होगी, लग गया है पता सबको। आप मीडिया वाले नहीं, प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं। गरिमापूर्ण पोस्ट पर हैं आप। अभी पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह से सीबीआई ने पूछताछ की तो क्या नरेंद्र मोदी ने बताया जनता को कि ऐसा हुआ है? यह मीडिया का काम है।
क्या। शिक्षा सड़क बेरोजगारी, हिमाचल प्रदेश की खस्ताहाल सड़कों , दिन ब दिन गिरती हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी की साख, बेरोजगारों की बढ़ती फौज, टांडा मेडिकल कॉलेज की खस्ताहाली पर करने के लिए आपके पास यही सब है? इन मुद्दों पर कौन बात करेगा? कौन योजना लाएगा? ऐसा लगता है मुख्यमंत्री इस कार्यकाल में कांग्रेस के चुनावी घोषणापत्र को पूरा करने के लिए नहीं बल्कि बीजेपी के खिलाफ बनाई गई चार्जशीट के क्रियान्वन के लिए ज्यादा उत्साहित हैं।
कुछ समय पहले अख़बारों में मैंने देखा था कि हिमाचल में निवेश लाने के लिए मुख्यमंत्री ने मुंबई और दिल्ली जैसे महानगरों में उद्योगपतियों के साथ बैठकें कीं। कई दिन तक यह दौर चला। यह एक अच्छा प्रयास था। पर उसके बाद क्या हुआ, कौन आया या आना चाहता है, कुछ मालूम नहीं हुआ।
धूमल परिवार या किसी के भी खिलाफ इस प्रदेश में जांच होगी या सिफारिश होगी यह खबर हम मीडिया से सुन लेंगे। आपका यह काम नहीं है। हम आम नागरिक आपके मुंह से यह सुनने में ज्यादा दिलचस्पी रखते हैं कि कौन सी नई योजना लाई जा रही है, क्या नया कदम उठाया जा रहा है। प्रदेश के सबसे अनुभवी नेता से प्रार्थना है कि आप किसी के खिलाफ कोई भी जांच करवाएं हम नागरिकों को कोई आपत्ति नहीं है। पर कृपया इंस्पेक्टर ही न बन जाएं। आप हमारे मुख्यमंत्री हैं और हमें आपसे और भी आशाएं हैं ।
‘लेखक:
Aashish Nadda (PhD Research Scholar)
Center for Energy Studies
Indian Institute of Technology Delhi
E-mail aksharmanith@gmail.com
(यह लेख हमारे पाठक द्वारा भेजा गया है। इसके विचार लेखक के अपने हैं, In Himachal इसकी जिम्मेदारी नहीं लेता। आप भी अपने लेख या रचनाएं प्रकाशन के लिए हमें inhimachal.in@gmail.com पर भेज सकते हैं। तस्वीर भी साथ भेजें।)
राजनीति भूलकर धौलाधार के आंचल में भावुक हुए हिमाचल की राजनीति के ‘राजा’
शनिवार को बैजनाथ पहुंचे मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह कुछ अलग अंदाज़ में दिखे। आमतौर पर उनका भाषण राजनीति और सरकार के कार्यों पर ही फोकस्ड रहता है लेकिन बैजनाथ की गुनगुनी धूप में उन्होंने अपने विरोधियों पर भी कोई प्रहार नहीं किया। राजनीतिक भाषण संक्षिप्त में निबटाकर ज्यों ही धोलाधार की तरफ उनकी नजर उठी, कुछ क्षण रुककर धौलाधार को निहारते रहे। इसके बाद उनके शब्द किसी और तरफ ही रुख कर गए।
मुख्यमंत्री बोले समस्त राजनीतिक जीवन में पूरा प्रदेश घूमा, हर जगह गया मगर बड़ा भंगाल कभी नहीं जा पाया। इस बार गर्मियों में जरूर जाऊंगा। इसके बाद वह हिमाचल प्रदेश की संस्कृति पर बोलने लगे। कुछ क्षण विराम लेने के बाद उन्होंने कहा दया और धर्म हिमाचल प्रदेश संस्कृति हैं, लेकिन हम अपनी संस्कृति को भूल रहे हैं। मुख्यमंत्री ने कहा, ‘सड़कों पर घूमती दर-दर की ठोकरें खाती गऊ माता की दशा से दिल दुखी होता है। सरकार इनके लिए गोशाला का निर्माण करने जा रही है परन्तु लोगों सहयोग के बिना यह कार्य पूर्ण नहीं हो पायेगा।’
भावुक होते हुए वीरभद्र ने कहा, ‘आखिर ऐसी नौबत ही क्यों आई कि गाय सड़कों पर छोड़ दी गई। आखिर हमारे दीन धर्म को क्या हो गया? कल को ऐसा न हो बच्चे बूढ़े मां-बाप बोझ समझने लगें।’ युवा लोगों ओर मुखातिब होते हुए मुख्यमंत्री ने आह्वाहन किया, ‘आज का बच्चा कल का युवा और परसों का बुज़ुर्ग होगा। कोई कितना पढ़-लिख ले मगर संस्कृति न भूले। हिमाचल प्रदेश की पहचान बनी रहे यही हमारी उपलब्धि होगी।’
इसी साथ मुखयमंत्री का सम्बोधन खत्म हुआ और काफी देर तक तालियों की आवाज गूंजती रही। महिलाओं और ख़ासकर उम्र का दौर गुजार चुके लोगों की आंखें इस दौरान भर आई थीं।
बीजेपी का सदस्यता अभियान हिमाचल में बना मजाक का विषय
- सेल्समैन की तरह लोगों के पीछे पड़ रहे हैं बीजेपी के कार्यकर्ता
- बीजेपी कार्यकर्ताओं को देखकर अब कतराने लगी है जनता
हमीरपुर।।
दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी बनने की कोशिश में जुटी बीजेपी का सदस्यता अभियान सवालों के घेरे में आने के साथ-साथ मजाक का पात्र भी बन गया है। बीजेपी से जुड़ा हर कोई पदाधिकारी इन दिनों इस कोशिश में जुटा है कि ज्यादा से ज्यादा लोगों से फॉर्म भरवाकर वह पार्टी की नजरों में सूरमा बन जाए। कॉर्पोरेट सेक्टर की कार्यशैली की तर्ज पर सदस्यता अभियान में ऊपर से नीचे तक हर लेवल के नेता व्यस्त हैं। बड़े नेता नीचे वालों को टारगेट देते हैं और नीचे वाले सड़कों पर फॉर्म लेकर घूम रहे हैं ताकि अपने आका के सामने नंबर बना सकें।
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सांकेतिक तस्वीर (The Hindu से साभार) |
बस स्टैंड से लेकर गांव की चाय की दुकान वाली चौपाल तक जहां भी चार व्यक्ति खड़े मिलें, ये नेता जेब से पेन और फॉर्म बुक निकल कर रिक्वेस्ट करने लग जा रहे हैं। मिस कॉल की रिक्वेस्ट पूरी होने पर ये नेता राहत की सांस लेते है कि फलां व्यक्ति बीजेपी से जुड़ गया है। ऐसा ही वाकया हमीरपुर जिले में देखा गया। बस के इंतज़ार में कुछ लोग खड़े थे कि एक ‘नेता जी’ फॉर्म लेकर पहुंच गए। लोगों के बीच कुछ सरकारी कर्मचारी भी थे। अब नेता जी पड़ गए पीछे। ठीक उसी तरह, जैसे डोर टु डोर सेल्समैन प्रॉडक्ट बेचने के लिए पीछे पड़ जाते हैं। अब नेता जी भी लोकल और लोग भी लोकल। तो गांव का आदमी समझकर पिंड छुड़ाने के लिए दो चार बन्दों ने मिस कॉल मार दी और फॉर्म भी भर दिया।
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अब नेता जी ने रिश्तेदारी गिनाकर एक महिला का भी फॉर्म भर दिया। वह बेचारी सरकारी स्कूल में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी थी। महिला ने बहुत ना-नुकर की पर नेता जी फॉर्म भरकर और मिस कॉल मरवाकर ही माने। अब नेता जी को कौन समझाता कि जनाब! सरकारी कर्मचारी किसी पार्टी का सदस्य नहीं होता। मगर उन्हें तो बस टारगेट पूरा करना था। बाद में जब महिला से किसी ने पूछा कि आप तो अब बीजेपी वाली हो गईं, तो पहाड़ी में महिला कहती है- “फुक्या ए फारम, एनी रिस्तेदारी कढी ती। ना नी करी होई। मिसकॉल मारिओ, बोट थोड़ी पाया। बोट ता मर्जिया ते पाणा।(ऐसी-तैसी इस फॉर्म की। इसने रिश्तेदारी निकाल दी इसलिए न नहीं कह सकी। मिस कॉल मारी है, वोट थोड़े ही डाला है। वोट तो मर्जी से डालूंगी।”
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इस पर सभी ने हंसी के ठहाके लगाए। पार्टी के आला नेता साफ कर चुके हैं कि पार्टी का सदस्य बनाने का मतलब है कि लोगों को पार्टी की विचारधारा और सरकार की नीतियों के बारे में बताकर पहले उन्हें समझाया जाए और उन्हें कन्वींस किया जाए ताकि वे खुद ही सदस्या लेने के इच्छुक हों। इस बारे में इन हिमाचल ने भारतीय जनता युवा मोर्चा के राष्ट्रीय सदस्य और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष नरेद्र अत्री से बात की। हमने उन्हें बताया कि ‘इन हिमाचल’ को जानकारी मिली है कि पार्टी के कार्यकर्ता लोगों के पीछे पड़कर फॉर्म भरवा रहे हैं। इस पर जब उनसे प्रतिक्रिया मांगी गई तो उन्होंने कहा इन बातों में कोई सचाई नहीं है।
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बीजेवाईएम नेता नरेंदर अत्री से हुई बातचीत का स्क्रीनशॉट |
जिस तरह का वाकया हमीरपुर में देखने को मिला, अगर पूरे प्रदेश और देश में इसी तरीके से अभियान चलाया जा रहा है तो इससे बीजेपी को फायदा होने की संभावनाएं कम ही हैं। क्योंकि लोग औपचारिक रूप से सदस्यता तो ले लेंगे और सदस्यों की संख्या बहुत ज्यादा हो जाएगी। मगर यह संख्या वोटों में भी बदल पाएगी, इसकी उम्मीद कम ही है।
2017 में प्रदेश में बाली बनाम नड्डा के समीकरण
मोदी रथ पर सवार बीजेपी हर राज्य में नए प्रयोग कर रही है और उसमें उसे आशातीत सफलता भी मिल रही है। बीजेपी प्रदेश में युवा तुर्कों, स्वच्छ छवि और संघ की विचारधारा के लोगों को नेतृत्व का मौका दे रही है। देवेन्द्र फडणवीस, मनोहर लाल खट्टर , रघुवीर दास समेत अन्य राज्यों के चुनाव के साथ यह लिस्ट और भी लम्बी हो सकती है। मोदी-शाह और संघ मॉडल को लेकर चले तो यह कहना भी अतिश्योक्ति नहीं होगी कि हिमाचल प्रदेश की जनता के सामने भी बीजेपी एक नए नेतृत्व का विकल्प रख सकती है। इसी मॉडल को ध्यान में रखते हुए अगर हिमाचल प्रदेश की राजनीति को देखें तो बीजेपी के कप्तान प्रेम कुमार धूमल 2017 तक 74 वर्ष के हो जाएंगे। ऐसे में बीजेपी चाहेगी ऐसे हाथों में सत्ता सौंपी जाए जो मात्र अगले पांच साल के लिए नहीं, बल्कि दस पंद्रह साल की नींव डाल सके। बीजेपी का मानना है कि जब अन्य राज्यों में वह लगातार जीत सकती है हिमाचल में क्यों नहीं। धूमल के अलावा हिमाचल बीजेपी में नेतृत्व की बात करें तो जगत प्रकाश नड्डा मोदी मॉडल में सब से फिट बैठते हैं और केंद्र में अमित शाह से लेकर संघ तक के प्रिय भी हैं।
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प्रदेश बीजेपी में नड्डा समर्थकों की अच्छी खासी फौज है। नड्डा के बढे़ रुतबे से हिमाचल बीजेपी पदाधिकारी भी नड्डा से नजदीकियां बढ़ाने लग गए हैं। समीकरण कह रहे हैं शांता धूमल गुटों में पिसती आई प्रदेश बीजेपी नड्डा के रूप में आगे बढ़ने की सोच सकती है। नड्डा के बाद बीजेपी को मोदी मॉडल से देखा जाए तो युवा तुर्क अनुराग ठाकुर भी रुतबा रखते हैं। मोदी के नवरत्नों में से एक अनुराग ठाकुर राष्ट्रीय राजनीति में बीजेपी का एक क्रन्तिकारी चेहरा हैं। उनके रास्ते की रुकावट है- राजनितिक खानदान से होना। परिवारवाद पर निशाना साधकर हर राज्य में विपक्ष को निशाने पर लेने वाले प्रधानमंत्री शायद ही अनुराग ठाकुर को हाल-फ़िलहाल प्रदेश राजनीति में उतारने का रिस्क लें। कुल मिलाकर बीजेपी नड्डा के साथ जाती ही दिख रही है। अन्य विकल्पों में राजीव बिंदल, जय राम ठाकुर या रविंदर रवि भी हो सकते हैं, लेकिन इनके आगे बढ़ने में भी नड्डा की ही भूमिका अहम होगी।
अब जरा सत्ता में में बैठी कांग्रेस के समीकरणों पर गौर किया जाए तो हिमाचल में कांग्रेस की राजनीति के पितामाह राजा वीरभद्र सिंह बूढ़े हो चले हैं। 2017 तक 85 साल के होंगे। इस बार भी बमुश्किल कांग्रेस हाईकमान ने उन्हें मौका दिया था। उनके बिना हिमाचल में देखें तो कांग्रेस मॉडल कहता है कि गांधी परिवार और केंद्रीय संगठन से जिसकी नजदीकियां होंगी, वही राज्यों में कांग्रेस का नेता होता है। मंडी सीट से प्रतिभा सिंह जब उपचुनाव में जीत कर आई थी तो जीत से उत्साहित वीरभद्र सिंह को लगा था कि कैसे भी करके वह अपनी विरासत उन्हें सौंप देंगे। मात्र एक साल बाद आई मोदी आंधी ने उनका सपना काफी हद तक चकनाचूर कर दिया है। इनके बाद कांग्रेस में लम्बी लिस्ट है- जिसमे आनंद शर्मा ,कौल सिंह, जी.एस. बाली, सुधीर शर्मा और मुकेश अग्निहोत्री के नाम हैं। आनंद शर्मा खुद जानते हैं वह हिमाचल की जनता में स्वीकार्य नहीं हो पाएंगे इसलिए वह हमेशा राज्य राजनीति से अपने आप को दूर ही रखते हैं। कौल सिंह सदियों से राजा के बाद मुख्यमंत्री बनने का अरमान पाले हुए हैं परन्तु उनकी दिक्कत यह है की हाल के कुछ बरसों को छोड़कर उनकी सारी जिंदगी राजा ‘भक्ति’ में ही बीती है। ऐसे में वह कांग्रेस में ऊपर तक ज्यादा पहचान नहीं रखते। पिछली बार भी वह आनंद शर्मा की दया पर ही निर्भर थे। ऐसे ही सुधीर शर्मा , मुकेश अग्निहोत्री आदि की भी वीरभद्र से आगे राष्ट्रीय स्तर पर कोई पहचान नहीं है। अब बचते है जी एस बाली, जो मौजूदा राजनीति के हिसाब से सबसे फिट बैठते हैं।
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बाली हमेशा सुर्ख़ियों में रहने वाले मंत्री हैं। दबंग नेतृत्व की पहचान बाली गांधी परिवार और कांग्रेस संगठन से ठीक करीबियां रखते हैं। कांग्रेस के दिग्गज महासचिव अभिषेक मनु सिंघवी से बाली की नजदीकियां जग जाहिर हैं। नगरोटा की रैली में बाली के साथ विद्या स्टोक्स , राजेश धर्माणी का होना उन्हें स्टोक्स और वीरभद्र विरोधी खेमे का मौन समर्थन समझा जा रहा है। बाली अपने आप को विकल्प के रूप में जनता के सामने लाने की पूरी तैयारी में है। कुल मिलाकर 2017 चुनाव में बीजेपी-कांग्रेस दोनों ही दलों की तरफ से नए नेतृत्व का आगाज होगा। बीजेपी के वाइब्रेंट नेता जेपी नड्डा और कांग्रेस के दबंग जीएस बाली में से हिमाचल प्रदेश को कोई मुख्यमंत्री मिलेगा, यह समीकरण कह रहे हैं।
क्या एम्स भी राजनीति की भेंट चढ़ जाएगा?
हिमाचल प्रदेश में एम्स को लेकर इन दिनों जमकर राजनीति हो रही है। सत्ताधारी कांग्रेस और विपक्षी कांग्रेस इस मुद्दे को भुनाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहीं। मगर आप यह जानकर शायद हैरान रह जाएं कि प्रदेश सरकार ने भी इस मुद्दे पर गंभीर लापरवाही बरती है। क्या है यह पूरा मसला, आइए एक-एक पॉइंट को लेकर समझें।
1. केंद्र ने संस्थान के लिए जगह ढूंढने को कहा
जून में जब मोदी सरकार बनी थी, तब केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने 11 राज्यों को चिट्ठी लिखकर कहा था कि वे अपने यहां एम्स जैसे संस्थान के निर्माण के लिए 200 एकड़ जमीन तलाश करें।
2. हिमाचल सरकार नहीं ढूंढ पाई जमीन
केंद्र से आई इस चिट्ठी का जवाब एक महीने के अंदर दिया जाना था। यानी एक महीने के अंदर प्रदेश सरकार को जमीन फाइनल करके केंद्र सरकार को उसकी जानकारी देनी थी। मगर वीरभद्र सरकार जमीन ही नहीं ढूंढ पाई।
3. हिमाचल सरकार ने दिया अनोखा सुझाव
तय वक्त पर जमीन ढूंढ पाने में नाकाम रही हिमाचल सरकार ने केंद्र को अनोखा सुझाव दे दिया। वीरभद्र सरकार ने केद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय को लिखी चिट्ठी में सुझाव दिया कि अगर एम्स बनाना है तो क्यों न टांडा मेडिकल कॉलेज को ही एम्स में बदल दिया जाए।
4. केंद्र ने ठुकराया हिमाचल सरकार का प्रस्ताव
टांडा मेडिकल कॉलेज को एम्स में बदलने का प्रस्ताव केंद्र ने ठुकरा दिया। केंद्र ने कहा कि पहले से ही मेडिकल कॉलेज को कैसे एम्स में बदल दिया जाए। केंद्र का कहना था कि बात नए एम्स जैसे संस्थान की स्थापना की हो रही है, न कि किसी पुराने संस्थान को अपग्रेड करके एम्स बनाने की।
5. इस साल टल गया एम्स का प्रस्ताव
हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा तय वक्त में जमीन का चुनाव न कर पाने और फिर उसके सुझाव के खारिज हो जाने का नतीजा यह निकला कि हिमाचल में एम्स के मुद्दे पर इस साल कोई प्रगति नहीं हो सकी। प्रदेश सरकार अभी जमीन ढूंढने में लगी है। 12 जिलों के डीसी को अपने यहां एम्स के लिए 200 एकड़ जमीन तलाश करने को कहा गया है।
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ऊपर जो भी बातें कही गई हैं, उसकी जानकारी खुद हिमाचल के स्वास्थ्य मंत्री कौल सिंह ठाकुर ने दी। धर्मशाला में चल रहे विंटर सेशन में प्रश्न काल के दौरान बीजेपी विधायक गुलाब सिंह ठाकुर ने एम्स को लेकर सवाल किया था। उस पर जवाब देते हुए कौल सिंह ने बताया कि अब तक इस मामले में क्या-क्या डिवेलपमेंट हुआ। कौल सिंह ने बताया कि 12 डीसी से कहा गया है कि वे बताएं कि उनके जिले मे कहां पर एम्स बनाया जा सकता है। आखिरी फैसला लेने के बाद उस जमीन को केंद्र को दे दिया जाएगा।
इस पूरे प्रकरण से न सिर्फ हिमाचल प्रदेश सरकार के कामकाज के तौर-तरीके का पता चलता है, बल्कि यह भी साफ होता है कि वह कितनी अदूरदर्शी है। पता चलता है कि:
1. सरकार ने कभी नहीं सोचा कि अगर कोई बड़ा संस्थान बनाना हो तो उसके लिए जमीन कहां-कहां उपलब्ध है। अगर सरकार के पास विजन होता तो वह पहले से ही हर जिले में जगहें ढूंढकर अपने रेकॉर्ड में रखती।
2. सरकार के पास विज़न नहीं है। अगर जगह तय नहीं हो पाई थी, तो वह केंद्र से कह सकती थी कि थोड़ा और वक्त दिया जाए। मगर बजाय इसके यह लिखा गया कि टांडा मेडिकल कॉलेज को एम्स बना दिया जाए।
3. उसे महसूस नहीं हुआ कि अगर एक और उच्च स्तरीय हॉस्पिटल खुलेगा तो यह लोगों के लिए फायदेमंद ही है। डांटा मेडिकल कॉलेज को एम्स बनाने का सुझाव देने से साफ होता है कि प्रदेश सरकार ने अपने सिर से बला टालनी चाही।
4. सरकार को अभी भी यह बात समझ नहीं आ रही है कि एम्स जैसे संस्थान को ऐसी जगह पर होना चाहिए, जहां से वह पूरे प्रदेश के लोगों के लिए फायदेमंद हो। इसीलिए सरकार ने सभी जिलों के डीसी से पूछा है कि जमीन का पता लगाओ।
कहां बनना चाहिए एम्स?
‘इन हिमाचल’ ने प्रदेश के विभिन्न भागों के लोगों से बातचीत करके जानना चाहा कि एम्स कहां बनना चाहिए। ज्यादातर लोगों का कहना था कि इसे प्रदेश के केंद्र में होना चाहिए, ताकि पूरा प्रदेश इसका फायदा उठा सके। कुल्लू में रहने वाले धीरज भारद्वाज बताते हैं कि अगर हमारे यहां कोई सड़क हादसा हो जाए तो अस्पताल पीजीआई रेफर कर देते हैं और घायल रास्ते में दम तोड़ देते हैं। वहीं सोलन और बिलासपुर आदि पंजाब से लगते जिलों से पीजीआई नजदीक है। ऐसे में एम्स ऐसी जगह बने जहां से कुल्लू के लोग भी जल्दी पहुंचे और सोलन, बिलासपुर, ऊना, चंबा, किन्नौर आदि के भी।
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सिरमौर में रहने वाले दिनेश शर्मा बताते हैं कि एम्स के मुद्दे पर राजनीति हो रही है। कुछ लोग उसे अपने चुनाव क्षेत्र में बनवाना चाहते हैं। मगर उन्हें सोचना चाहिए कि यह क्रिकेट स्डेडियम बनाने की नहीं, बल्कि जनता के लिए हॉस्पिटल खोलने की बात हो रही है। यह लग्ज़री नहीं, बल्कि बुनियादी जरूरत है। हमें कोई आपत्ति नहीं कि यह हमीरपुर में बने या लाहौल स्पीति में। मगर इसके पीछे वजह होनी चाहिए। जमीन तो कहीं भी मिल सकती है, मगर जमीन वहां देखी जाए जहां बनाना प्रदेश की जनता के हित में हो।
करसोग के रहने वाले डॉक्टर विजय कुमार ने ‘इन हिमाचल’ से कहा कि 12 के 12 जिलों को जमीन ढूंढने के लिए कहना दिखा रहा है कि प्रदेश सरकार अभी तक दुविधा में है। वह यही तय कर पाने की स्थिति में नहीं है कि एम्स को कहां बनाना लोकहित में। वरना पहले वह लोकेशन तय कर लेती और उसके बाद वहां पर जमीन की तलाश शुरू की जाती है। यह बड़े अफसोस की बात है।
इसके अलावा इन हिमाचल ने फेसबुक पर भी अपने पाठकों से सवाल पूछा था कि एम्स कहां खोला जाना चाहिए। जवाब इस तरह हैं:
“टांडा मेडिकल कॉलेज को एम्स में अपग्रेड कर देना चाहिए और टांडा मेडिकल कॉलेज जैसा कोई संस्थान हिमाचल के बीचोबीच बनाना चाहिए, ताकि सभी हिमाचलियों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं मिलें।” –वरिंदंर चौधरी, कांगड़ा।
“मंडी जिले में ESIC ने कॉलेज कम हॉस्पिटल पर 756 करोड़ रुपये इन्वेस्ट किए हैं, मगर आज तक यह इस स्थिति में नहीं पहुंचा है कि लोग इसका लाभ उठा सकें। ESIC तो इसे चलाने के मूड में दिख नहीं रहा है, ऐसे में इसे एम्स में बदल देना चाहिए। नेरचौक में न सिर्फ जमीन उपलब्ध है, बल्कि यह प्रदेश के एकदम सेंटर में भी है।” -गोविंद ठाकुर, मंडी।
“लोअर हिमाचल में कहीं भी बनना चाहिए। देहरा, शाहपुर या धर्मशाला।” -बिकास डोगरा, नूरपुर।
“इसे बिलासपुर में बनाना सही होगा।” –राजिंदर गर्ग, घुमारवीं।
“यह मंडी जिले में ही कहीं होना चाहिए, क्योंकि मंडी हमीरपुर, कांगड़ा, कुल्लू, बिलासपुर जैसे जिलों से नजदीक है। इसलिए ज्यादा से ज्यादा लोग इस प्रॉजेक्ट का फायदा उठा सकते हैं।” -प्रणव घाबरू, बैजनाथ
“एम्स में मंडी में बनना चाहिए।” -संजय ठाकुर, धर्मपुर।
‘एम्स हिमाचल के बीच में कहीं बनना चाहिए। कांगड़ा या हमीरपुर में बनाया जा सकता है।” -ओजस्वी कौशल, चंडीगढ़।
हिमाचल प्रदेश में नहरों के ऊपर लगेंगे सौर ऊर्जा प्लांट
शिमला।।
ऊर्जा राज्य हिमाचल प्रदेश ने हाइड्रो प्रोजेक्ट्स से बिजली पैदा करने के अलावा सौर ऊर्जा से बिजली पैदा करने की ओर भी अपने कदम बढ़ा दिए हैं। दिलचस्प बात यह है की यह सौर ऊर्जा प्लांट खाली जमीन पर नहीं बल्कि नहरों के ऊपर लगाए जाएंगे। गौरतलब है की केंद्र सरकार ने प्रदेश की नहरों पर सोलर प्लांट लगाने की सम्भावना का प्रस्ताव राज्य सरकार से माँगा था जिसकी प्रारंभिक रिपोर्ट हिम ऊर्जा ने तैयार कर ली है।
सिंचाई के लिए बनी प्रदेश की नहरों पर यह प्लांट लगाये जाएंगे। हिम ऊर्जा की रिपोर्ट के अनुसार जिला कांगड़ा की सिद्धार्थ नहर में सब से ज्यादा सोलर बिजली पैदा करने का पोटेंशियल है। यूँ तो नहर की लम्बाई या चौड़ाई के आधार पर पता चलेगा की कितना एरिया आवश्यक होगा परन्तु फिर भी औसतन यह आँका गया है की लगभग एक किलोमीटर नहर पर एक मेगावाट तक बिजली पैदा की जा सकती है। हिम ऊर्जा के निदेशक भानु प्रताप सिंह ने इस बात की पुष्टि की है।
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deshgujrat.com से साभार। |
केंद्र सरकार इन प्रोजेक्ट्स के लिए अनुदान देगी बाकी राज्य सरकार खर्च करेगी। इन हिमाचल ने इस तरह के प्रोजेक्ट्स की तकनीकी व्यावहारिकता के बारे में आईआईटी दिल्ली में सोलर एनर्जी की फील्ड में कार्य करने वाले शोधकर्ता आशीष नड्डा जी से जानकारी ली तो उन्होंने बताया की निश्चित रूप से यह एक ऐतिहासिक कदम होगा ऐसे प्रोजेक्ट्स जरूर कामयाब होंगे तथा दोहरा लाभ मिलेगा । एक तो नहरों के सोलर पैनल से ढक जाने से दिन के समय पानी का ऐवपोरशन रेट भी कम होगा, दूसरे नहर के पानी की ठंडक से सोलर पैनल गर्म नहीं हो पाएंगे जिस से उनकी उत्पादन क्षमता सही रहेगी।
आशीष नड्डा ने बताया कि एक निर्धारित तापमान के बाद सोलर पैनल की उत्पादन क्षमता कम हो जाती है। परन्तु हिमाचल का ठंडा मौसम और नहर के ऊपर पैनल लगे होने से हिमाचल प्रदेश में यह सम्भावना कम रहेगी। उन्होंने जोड़ा की पिछले कुछ वर्षों में ही सोलर से पैदा हुए बिजली के दाम और लागत बहुत कम हुए है तथा हाइड्रो प्रोजेक्ट्स से होने वाले पर्यावरण नुक्सान को देखते हुए हिमाचल प्रदेश को भी सोलर एनर्जी के क्षेत्र में संभावनाएं तलाशनी चाहिए।
शर्मनाक! 17 साल में भी नहीं लग पाए बिजली के तार
शिमला।।
चीन को 1,181 किलोमीटर लंबा गोर्मू-ल्हासा रेलमार्ग बिछाने में सिर्फ 4 साल का वक्त का लगा, मगर चीन से लगते हिमाचल प्रदेश के किन्नौर जिले में 150 किलोमीटर लंबी बिजली की तारें लगाने में ही 17 साल से ज्यादा का वक्त लग गया है। अफसोस, काम अभी भी पूरा नहीं हुआ है।
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सर्दियों में जनजातीय इलाकों में बिजली की सप्लाई बरकरार रहे, इसलिए लिए साल 1997 में राज्य सरकार ने 66 किलोवाट का प्रॉजेक्ट लगाने का फैसला किया। इरादा था कि किन्नौर और लाहौल-स्पीति जिलों के दूर-दराज के इलाकों में बिजली पहुंचाई जाए। मगर अफसोस! अभी तक यह काम पूरा नहीं हो पाया है।
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ये सर्दियां भी अंधेरे में कटेंगी |
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने हाई लेवल इन्क्वायरी के आदेश दिए हैं। बिजली विभाग का कहना है कि अगले साल मई तक यह काम पूरा कर लिया जाएगा। मगर लोगों की परेशानी का अंदाजा लगाइए, जिन्हें ये सर्दियां भी बिना बिजली के गुजारनी पड़ रही हैं। वहीं मैदानी इलाकों और राजधानी में बड़े कार्यालयों में बैठने वाले आला अफसर और नेता सरकारी बिजली पर हीटर सेंक रहे हैं।
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