रोहतांग में CNG वाली गाड़ियां चलाने से हो सकती है कैंसर की संभावना: धूमल

मनाली।।
हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने कहा है कि रोहतांग में सीएनजी वाली गाड़ियां चलाने के फैसले पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए, क्योंकि CSIR के सर्वे में साफ हुआ था कि इससे कैंसर होने की आशंका रहती है। गौरतलब है कि रोहतांग पर प्रदूषण फैलाने वाली गाड़ियों पर बैन लगाने के एनजीटी के फैसले के बाद हिमाचल सरकार सीएनजी वाले वाहन चलाने पर विचार कर रही है।
धूमल ने मनाली में प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा, ‘रोहतांग में सीएनजी चलाने के फैसले पर पर सरकार को पुनर्विचार करना चाहिए। सीएसआईआर के सर्वे में साफ कहा गया है कि सीएनजी का प्रयोग खतरनाक है और इससे कैंसर की आशंका रहती है।’
धूमल का कैंसर सबंधी यह बयान CSIR के उस रीसर्च के नतीजों पर आधारित है, जिसमें कहा गया था कि इसके जलने पर निकलने वाले धुएं में कैंसर पैदा करने वाले तत्व होते हैं। यह स्टडी छोटे पैमाने पर की गई थी, इसलिए इसे मान्यता नहीं मिल पाई थी। हालांकि देश-विदेश में हुए अन्य शोधों में इस तरह की कोई बात सामने नहीं आई है।
एनजीटी के फैसले पर चिंता जाहिर करते हुए धूमल ने कहा कि इससे स्थानीय लोगों के सामने रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है। उन्होंने यह आरोप भी लगाया कि सरकार मामले की गंभीरता को समझ नहीं रही है। धूमल नेे कहा कि अगर रोहतांग में प्रदूषण होता तो इतनी अधिक बर्फबारी न होती।
धूमल ने यह भी कहा कि रोहतांग पर ग्लेशियर की बात हास्यास्पद है और वहां ग्लेशियर कभी नहीं था। पूर्व सीएम ने पर्यटन व्यवसाय में आई गिरावट के लिए कांग्रेस सरकार को जिम्मेदार ठहराया।

भारतीयों को ही आने नहीं दे रहा कसोल का एक इजरायली कैफे

  • ए. आर. प्रसन्न
पार्वती घाटी में बसे कसोल का नाम तो आपने सुना ही होगा? वही कसोल, जिसकी पहचान मिनी इजरायल के तौर पर बन गई है। ऐसी जगह, जहां पर विदेशी टूरिस्ट, खासकर इजरायली, निर्वाण प्राप्त करने पहुंचते हैं। निर्वाण तो क्या, वे यहां चरस-गांजा पीने, ड्रग्स में डूबकर मौज-मस्ती करने आते हैं। दरअसल कसोल हिपी कल्चर का गढ़ बना हुआ है।

जहां विदेशियों ने माहौल बनाया हो, वहां पर भारतीय टूरिस्ट भी खिंचे चले आते हैं। मगर क्या हो, जब भारत की ही जमीन पर बने रेस्तरां में भारतीयों की एंट्री बैन हो? जी हां, जिस कसोल में आपको हिब्रू में साइन बोर्ड तक लगे दिखते हैं, वहां पर एक ऐसा रेस्तरां हैं, जिसमें भारतीयों के प्रवेश पर बैन लगा हुआ है।

इस कैफे में नहीं आ सकते भारतीय
फेसबुक एक ऐसी पोस्ट दिखी, जिसमें दावा किया गया है कि एक रेस्तरां ने विदेशी नागरिक को तो जाने दिया, मगर भारतीय को प्रवेश की इजाजत नहीं दी।

चिंकी सिन्हा लिखती हैं, ‘इजरायलियों ने भारत में फ्री कसोल नाम से कैफे बनाया है, जिसमें भारतीयों की एंट्री बैन है। उन्होंने एक गोरे दोस्त को तो जाने दिया, मगर भारतीय को रोक दिया।’

So, some Israelis have set up a cafe called Free Kasaul in Kasaul, and deny Indians admission. Our friend was denied…
Posted by Chinki Sinha on Sunday, August 16, 2015

चिंकी ने आगे लिखा है, ‘इजरायल जाने पर वे लोग पूरे कपड़े उतारकर तलाशी लेते हैं और वहां बंद बस्तियां बनाई हैं। वे यहां निर्वाण के नाम पर मस्ती करने  आते हैं और मानते हैं कि वे ही यहां हे सर्वेसर्वा हैं। ‘

इन लोगों के साथ गए एक विदेशी मित्र ने लिखा है, ‘हम फ्री कसोल कैफे में गए तो उन्होंने बमें मेन्यु नहीं दिया औऱ कहा कि यह सिर्फ मेंबर्स के लिए है। मैंने मांगा तो दे दिया। मैंने पूछा तुम तो कह रहे थे कि मेंबर्स के लिए है तो उसने कहा कि आपने तो देखने के लिए मांगा, इसलिए दिया। मैंने कहा तो देखने के बाद क्या मैं ऑर्डर नहीं दे सकूंगा तो उसने कहा- हां।

This restaurant in Kasol is called ‘Free Kasol’. The freak asshole who runs it refuses to serve Indians. I walked in…
Posted by Stefan Kaye on Monday, August 17, 2015

मैंने मालिक को कहा कि वह गलत कर रहा है तो उसने कहा, ‘यह मेरा कैफे है और मैं कुछ भी कर सकता हूं।’ जब यह हो रहा था तो वहां मौजूद गोरे लोग आराम से चुस्कियां ले रहे थे और स्नैक्स खा रहे थे।
पता चला मालिक भारतीय है और पिछले 15 साल से हर साल इजरायल जा रहा है।
अगर यह घटना सच है तो बहुद दुखद है। हिमाचल प्रदेश में आकर ड्रग्स कल्चर को बढ़ावा देना, भारतीयों के साथ भेदभाव करना बेहद गलत है। हिमाचल प्रदेश अपनी पहचान खोता जा रहा है। टूरिजम को प्रमोट करने का यह मतलब नहीं है कि किसी भी तरह की मनमानी को बढ़ावा दिया जाए।

हिमाचल प्रदेश सरकार को इस मामले का संज्ञान लेना चाहिए और इस कैफे समेत कसोल में चल रहे खेल पर लगाम लगानी चाहिए।

(लेखक ‘इन हिमाचल’ के स्तंभकार हैं)

नाहन शहर के बीचोबीच चल रहा था बम, कारतूस बनाने का कारखाना

नाहन।।


नाहन
शहर के बीचोबीच एक चार मंजिला मकान में गोला-बारूद और विस्फोटकों का भंडार पकड़ा गया है। अखबार ‘हिमाचल दस्तक’ में छपी खबर के अनुसार पुलिस ने शमशेरजंग मोहल्ला निवासी इमरान शेख पुत्र इमतयाज शेख उर्फ भाईजान के घर से विस्फोटक सामग्री बनाने में उपयोग होने वाले केमिकल्स के अलावा 3000  कारतूस, 220 किलो छर्रे, सैकडों किलो बारूद, डिटोनेटर, कई कट्टे, फ्यूज वायर, चार बंदूकें और भारी मात्रा में बंदूकें बनाने का सामान बरामद किया है।

इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद होने से नाहन शहर में सनसनी फैल गई है। फरेंसिक और सेना के विस्फोटक विशेषज्ञों ने विभिन्न कैमिकलस व विस्फोटक सामग्री की जांच के बाद कुछ सैंपल भर जांच शुरू कर दी है। विस्फोटक सामग्री की मात्रा देख कर अंदाजा लगाया जा रहा है कि इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटकों से शहर में बड़ी अनहोनी हो सकती थी।

सांकेतिक तस्वीर

यह विस्फोटक व गोला बारूद नाहन में सदर थाना व एसपी ऑफिस से महज 50 मीटर दूरी पकड़ा जाना अपने आप में कई सवाल खड़े कर रहा है। शहर के बीचोबीच इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक की मौजूदगी सुरक्षा और खुफिया विभागों की नाकामी उजागर करता है। बहरहाल पुलिस ने इस मकान के मालिक इमरान शेख व उसके दो भाई शरिक शेख व वाशिर शेख को गिरफ्तार कर लिया है। इनके अलावा कुछ और लोगों को पूछताछ के लिए बुलाया गया है।

मामले की गंभीरता को देखते हुए नाहन छावनी क्षेत्र से फस्ट पेरा के विस्फोटक विषेषज्ञ और शिमला से फोरेंसिक विशेषज्ञों के दल ने विस्फोटकों की जांच कर कुछ कैमिल के सैंपल जांच के लिए भेज दिए हैं। एसपी सौम्या सांबशिवन ने बताया कि शस्त्र अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर जांच की जा रही है। उन्होंने बताया कि घर की तलाशी के दौरान 220 किग्रा छर्रे सिक्का, छर्रे बनाने के सांचे, 3000 कारतूस, 4 टोपीदार बंदूकें, बंदूक बनाने की अन्य सामग्री ब्रामद की गई। उन्होंने बताया कि विस्फोटक सामग्री, गन पाउडर, सल्फर, कार्बन व अन्य सामान, कलपुर्जे जिनकी पहचान नहीं हो सकी है, भी बरामद किए गए हैं।

परिवहन मंत्री के फैसले मातृशक्ति के लिए ऐतिहासिक पहल

  • सुरेश चंबियाल 
आजादी के जश्न का दिन सरकारों से लेकर आमजन के लिए ख़ास होता है इस दिन हम अपने देश की उन महान हस्तियों को तो याद करते ही हैं जिन्होंने जंगे  आजादी में बहुमूल्य योगदान दिया हो साथ ही साथ  यह सरकारों के लिए ख़ास दिन इसलिए भी होता है क्योंकि इस दिन हर सरकार जनहित में हर योजना को आरम्भ करती है।  हिमाचल प्रदेश में भी अलग अलग मंत्रियों ने  विब्भिन्न जिला हेडक्वार्टर पर  तिरंगा झंडा फहराने की रस्म अदा की साथ ही साथ अपने अपने मंत्रालयों की तरफ से जनहित  और प्रदेश की तरक्की से सबंधित कई घोषणाएं  की।

उद्द्योग मंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने ऊना जिला के पंडोगा में 122 करोड़ के इंडस्ट्रियल कॉरिडोर की घोषणा की तो शिमला में वीरभद्र सिंह ने  कर्मचारियों एवं  पेंशनर्स होल्डर्स के लिए 6 % डी  ए की की घोषणा के साथ ट्राइबल इलाकों के लिए 8 नयी एम्बुलेंस देने के साथ लोकनिर्माण विभाग के 6 -7 दिहाड़ीदारों को पक्का किया।  बाकि मंत्री अपने विभाग की तरफ से कुछ ख़ास उपलब्धि आगे नहीं ला पाये।

इन सब से अलग परिवहन मंत्री मंडी में ऐसे गरजे की कार्यक्रम के बाद लोगों की जुबान पर बाली की ही  चर्चा थी।  मीडिआ ने भी उन्हें ख़ास तवज्जो दी।  बाली ने हिमाचल प्रदेश में ऐतिहासिक पहल करते हुए  इस बार का अपना सारा कार्यक्रम एवं योजनाये महिला शक्ति के नाम सपर्पित कर दी।

प्रदेश की आधी आबादी ,3,382,729 (2011 जनगणना)    महिलाओं को परिवहन मंत्री ने  आने वाले सोमवार यानि 17  अगस्त से  प्रदेश के अंदर सरकारी बसों के किराए में 25 %  छूट  की ऐतिहासिक घोषणा मंडी के सेरी मैदान से करते हुए आधी आबादी का दिल जीत लिया।  बाली यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने मौजदा समय के सबसे ज्वलंत मुद्दे महिला सुरक्षा पर भी संज्ञान लेते हुए ,महिलाओं के ही एक ऐसे स्पेशल दस्ते की घोषणा कर दी जो महिलाओं से यात्रा के दौरान कोई बदतमीजी न कर सके इस बात का ख्याल रखेगा साथ ही साथ बस स्टॉप या खाना खाने के लिए जो भी  होटल आदि हैं वहां महिलाओं के लिए पर्याप्त स्वच्छ टॉयलेट फैसिलिटी  से सबंधित चेकिंग आदि भी देखेगा।

महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देते हुए परिवहन मंत्री की एक और पहल की  निगम महिलाओं को कौशल विकास भत्ते में सम्मिलित करते हुए  रोजाना दो घंटे की ड्राइविंग  ट्रेनिंग फ्री में देगा बहुत सराहनीय कदम है इस से निम्न माध्यम वर्ग और गरीब परिवारों की वो महिलाये फायदा उठा पाएंगी जो ड्राइविंग सीखने के अरमान तो पालती हैं परन्तु कमजोर आर्थिक स्थिति एवं ड्राइविंग स्कूल की हाई फीस उनके रास्ते रोके रखती है।
खैर सब से  परिवहन मंत्री की जिस घोषणा ने आकर्षित किया है वो है ड्राइवर कंडक्टर के लिए 2 लाख के बीमा  कवर की घोषणा  आये दिन हिमाचल  प्रदेश के दुर्गम इलाकों में  बसों की दुर्घटना चिंता का सबब है।  लोगों के साथ साथ ड्राइवर कंडक्टर भी जान  हथेली पर रखकर  दुर्गम इलाकों में सेवाएं दे रहे हैं उनके लिए यह एक सकारात्मक पहल है।
शिमला से जयपुर और धर्मशाला से श्रीनगर बस सेवा भी अपने आप में एक पहल है इस से पहले  शिमला से जयपुर  राजस्थान रोडवेज़ की एक आर्डिनरी बस सेवा है अगर हिमाचल परिवहन निगम इन रुट्स पर वोलोवो सर्विस  देता है तो निस्चय ही  पर्यटन के लिए यह फायदे का सौदा हो सकता है।  यह बसें इन दोनों राज्यों में हिमाचल प्रदेश की ब्रांड अम्बेस्डर हो सकती  हैं।
शिमला मंडी धमर्शाला  मनाली कुल्लू से चंडीगढ़ के लिए  10  सीटर सुपर लक्सेरी बसें भी अपने आप में एक पहला प्रयोग है। यह होना भी चाहिए था अक्सर देखा गया है की बड़ी बड़ी वोल्वो बसें आफ टूरिस्ट सीजन में खाली जाती हैं तेल की खपत ज्यादा और इनकम कम होती है ऐसे में टैक्सी या कैब की तरह छोटी बस फायदे का सौदा हो सकती है।  कुल मिलाकर स्वन्त्त्रता दिवस पर परिवहन मंत्रीं ने पुरे प्रदेश का ध्यान अपनी तरफ खींचा है और नए रिस्क के साथ लीक से हटकर फैसले लिए हैं जिनका प्रशंसा होना लाज़मी है।
(लेखक प्रदेश मुद्दों पर लिखते रहते हैं ) 

आखिर क्यों हम युवाओं के कंधों पर टिका है स्वच्छ भारत का सपना ?

0

  • प्रज्ज्वल बस्टा।।

दुष्यंत  और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम से जाने जाता हमारा देश भारत आज स्वतंत्रता के 67 साल बाद एक नई करवट ले रहा है। जब पिछले साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वछ भारत की कल्पना का दर्शन दिया तो वास्तव में पूरा देश एक नए प्रण के लिए उमड़ पड़ा।  सच में 2 अक्टूबर 2014  का दिन भारत के लिए महत्वपूर्ण था। महात्मा गांधी की जयंती, उनका स्वप्न और युवा पीढ़ी का उत्साह; सब कुछ अछा होता दिख रहा था, जब प्रधानमंत्री जी ने 9 स्वच्छता प्रहरी नियुक्त किए और वो भी युवा। मुझे वास्तव में विश्वास हो गया कि यह स्वछता अभियान अब जनांदोलन बन जाएगा, क्योंकि प्रधानमंत्री जी ने इसे सफल बनाने के लिए युवा पीढ़ी को चुना है।
  

आज का युवा आज का नागरिक है, जो नए भारत की तस्वीर है। जींस-टीशर्ट पहनकर या संजीदगी से इस्त्री किए हुए पहनावे में युवा वर्ग भारत की पहचान है। भारत ने जब-जब युवा पीढ़ी पर भरोसा किया, तब-तब इस देश ने वैभव को पाया है।  आखिर लाल बहादुर शास्त्री ने किस से एक समय भोजन की अपील की थी? आखिर लोक नायक जय प्रकाश  ने आपातकाल का विरोध  क्यों युवाओं के कंधे पर दिया था? आखिर कंप्यूटर के माउस पर थिरकते इन हाथों ने जब झाड़ू उठाया तो सोच समझकर ही उठाया है।
  
स्वच्छता से जहां देश की अवधारणा का सम्मान बढ़ेगा, वहीँ देशवासियों की सेहत का मान रखना भी हमारा ही कर्तव्य है। हम जानते है कि गंदगी और गरीबी का चोली दामन का साथ है।  स्वस्थ मन में स्वस्थ शरीर निवास करता है परन्तु स्वच्छ परिवेश में  स्वस्थ  शरीर ही नहीं, बल्कि स्वस्थ मन दोनों निवास  करते हैं। स्वछता से जहां पर्यटन को बढ़ावा मिलेगा, वहीँ रोजगार के अवसर सृजित होंगे। जो सीधे सीधे युवा पीढ़ी को सम्बल देंगे , आखिर युवा जैसा खुद को देखना चाहता है वैसे ही अपने देश को भी देखना चाहता है, रोजगार और आर्थिक संबल से स्वयं को सशक्त कहीं पर्वत झुके भी हैं,  कहीं दरिया रुके भी हैं।

‘नहीं रुकती रवानी है, नहीं झुकती जवानी है’ – शायद इसी बात को देख कर यह अभियान युवा पीढ़ी ने अपने हाथों में लिया है।  हम गंदगी के कारण बढ़ते रोगों को अब देख नहीं सकते , हम कूड़े  के ढेर पर लिपटे अपने शहर को लज्जित होते कब तक देखेंगे , कब तक सांप सपेरों के देश की बात हम विदेशों से सुनते रहेंगे? 




अगर आज युवा पीढ़ी ने यह संकल्प हाथ में लेने से कोताही की तो घर घर गंदगी के ढेर लगे होंगे, हर शहर, हर क़स्बा कूड़े के ढेर में खोता हुआ दिखेगा। हमारे महानगर अपने अस्तित्व को धिक्कारते हुए नज़र आएंगे और तब,  हम अपने ही  साये से घबराने लगेंगे।  इसलिए समय रहते मित्रो हमे आगे आना ही होगा, इस अभियान को देश शहर परिवार और अपने लिए सफल बनाना ही होगा। आओ इस अभियान को जान आंदोलन बना सफल करें।
स्वच्छता वास्तव में व्यवहार है, जैसे नियमों का पालन व्यवहार है, सड़क पर बाएं चलना व्यवहार है, रोज घर में सफाई व्यवहार है। व्यवहार परिवर्तन एक दिन में नहीं हो सकता, जिनका बंद शौचालय में दम घुटता हो वो एक दिन में खुले में शौच की प्रथा छोड़ देंगे, यह सम्भव नहीं। परन्तु असंभव भी नहीं क्योंकि युवा असम्भव को सम्भव करना जनता है। समझता है उन तौर तरीकों को कि कैसे समाज में परिवर्तन लाया जा सकता है।
  
युवाओं को जब भी मौका मिला है, उन्होंने पूरे विश्व मैं अपनी क्षमता से अधिक परिणाम दिए हैं। अभी हाल ही में हॉन्ग-कॉन्ग का आंदोलन युवाओं ने ही तो लड़ा। स्वच्छता की बात करें तो बांग्लादेश में भारत की तरह ही खुले मैं शौच का चलन था, उसे ख़त्म करने के लिए युवा ही तो आगे आए थे। युवा प्रकृतिक तौर पर नेता होते हैं, सबको साथ लेकर चलना  युवाओं का महत्वपूर्ण गुण है।

हम अपने घरों में झांक कर देखेंगे तो पाएंगे कि युवा ही स्वच्छता की बागडोर संभाल रहा है। गांवों में बावड़ी और चश्मे गंदे हैं, सूखे है तो वे अपने युवा साथियों को निहार रहे हैं। आखिर यह सड़कें यह शहर यह कार्यालय भी तो युवा वर्ग से आस लगाए बैठें हैं कि कब नौजवान उठेगा और क्रांति आएगी। इंतजार है कि यह भारत फिर से आजाद हो जाएगा और यह आजादी गंदगी से होगी। यह आज़ादी  बीमारियों से होगी, यह आज़ादी खुले में शौच करने की आदत से होगी, यह आज़ादी व्यववहार से होगी। युवाओ के बारे में एक बात कहकर मैं अपनी बात समाप्त करना चाहूंगी-

‘हम वो पत्ते नहीं जो आंधियों के डर से शाख से गिर जाएं 
आंधियों को कहना कि अपनी औकात में रहे।’  


(लेखिका सामाजिक मुद्दों पर आवाज बुलंद करती रहीं हैं एवं हिमाचल प्रदेश यूनिवर्सिटी से लॉ कर रहीं हैं। उनसे  prajwalbusta@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

…तो जयराम ठाकुर और रविंदर रवि में से एक बन सकता है सीएम कैंडिडेट

  •  सुरेश चंबियाल
हिमाचल  बीजेपी  में घटनाक्रम  तेज़ी से करवटें ले रहा है।  2017 पास आते-आते हर योद्धा फील्डिंग सेट करने में जुटा है।  जेपी नड्डा के बढ़े हुए कद ने हिमाचल में नेतृत्व के विकल्पों को असमंजस में  डाल दिया है।  भाजपा की अंदरूनी कशमकश घेरे तो तोड़ना चाहती है लेकिन अनुशासन के बंधन आह भी बाहर नहीं आने दे रहे हैं।  शांता कुमार के लेटर बम को भुनाने के लिए धूमल गुट  ने कांगड़ा से एकमात्र जीत कर आए अपने योद्धा रविंदर सिंह रवि को किसी खास मकसद के साथ ही आगे किया होगा, लेकिन अनुशासन के डंडे ने सारा प्लान चौपट कर दिया। रविंदर रवि ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके शांता कुमार के ऊपर ताबड़तोड़ जो हमले किए, उसके कयास कई राजनीतिक पंडित लगा रहे हैं।
हाल ही के चुनावों और आने वाले बिहार चुनाव को देखें तो भाजपा बिना नेता दिखाए ही जनता से वोट मांग रही है।  चर्चा यह भी छिढ़ी है कि  केंद्र में 75 वर्ष की रिटायरमेंट लॉजिक को भाजपा ने राज्यों में 70 साल कर दिया है।  पार्टी चाहती है राज्यों की बागडोर युवा हाथों में सौंपी जाए ताकि  भविष्ये में किसी राज्य में नेतृत्व विहीनता का विकल्प न रहे जिससे भाजपा अक्सर ग्रसित रही है।  हिमाचल  में दो धड़ों में बंटती  आ रहे भाजपा  असंसजस की इस स्थिति में पड़ी है की आखिर 2017 में किसका कितना वजूद होगा।
रविंदर रवि (बाएं) और जयराम ठाकुर की चमक सकती है किस्मत
शांता खेमे की राजनीति सिर्फ धूमल विरोध पर आधारित है। ये लोग नहीं चाहते की धूमल फिर से नेतृत्व करें।  वहीं विपक्ष का नेता होने के बावजूद समीकरणों और पार्टी एजेंडों को देखते हुए खुद धूमल गुट भी असमंजस में है की क्या 2017 में 74  वर्ष के धूमल जी को पार्टी अपना नेता बनाएंगे, वह भी तब जब वीरभद्र धूमल परिवारों की आपसी लड़ाई से जनता त्रस्त है  साथ ही साथ पार्टी का युवा मुख्यमंत्री देने का एजेंडा भी महाराष्ट्र से लेकर हरियाणा झारखण्ड में क्रियान्वित  हो गया है।   धर्मशाला में अमित शाह भी पूछ चुके हैं की हम बाकी प्रदेशों में रिपीट हुए हिमाचल में क्यों नहीं और साथ ही साथ यह हींट भी दे गए की हम बिना नेता के जब जब लड़ें है परिणाम सुखद रहा है।
अमित शाह के इन कथनों से  धूमल गुट में  बेचैनी बढ़ी है।  हालांकि आधी से ज्यादा बीजेपी  इस सोच में चल रही है कि जेपी नड्डा अब प्रदेश का रुख करेंगे। मोदी और शाह के ख़ास नड्डा  अब  हिमाचल बीजेपी के केंद्र बिंदु हो गए हैं।  पार्टी काडर का मानना है टिकट आबंटन में सब से अहम रोल नड्डा का ही रहेगा  ताकि  शांता-धूमल गुट की लड़ाई में पार्टी को नुकसान न हो।
फिर भी कुछ लोगों का  मानना है की  जिस स्थिति में नड्डा अभी केंद्र  में है  और संग़ठन के महत्वपूर्ण धुरी नड्डा को क्या पार्टी आलाकमान एक छोटे  से प्रदेश हिमाचल में भजेगा जहां  से सिर्फ चार सांसद चुन कर आते हैं? या नड्डा चाहेंगे कि दिल्ली दरबार की शानोशौकत छोड़कर प्रदेश का रुख करें, जहां हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन का इतिहास रहा है।  खैर यह सब अब नड्डा की सोच पर निर्भर करता है कि वो  क्या  चाहते हैं।  जहाँ तक नड्डा की बात है, नड्डा के पास हिमाचल का मुख्यमंत्री बनने  के लिए 10 साल का समय है। 55 साल के नड्डा 10 साल बाद भी 70  वाले फॉर्मूले में नहीं आ  रहे हैं। खैर अगर ऐसा हुआ तो क्या नड्डा अपने खास सिफालसार जयराम ठाकुर को कमान दे देंगे, जिन्हे शांता खेमे का भी बराबर का आशीर्वाद है। वह उसी राजपूत बिरादरी से आते हैं, जिसका हिमाचल की राजनीति में वर्चस्व है।
धुमल गुट भी हर समीकरण पर नजर रखे हुए है।  धूमल को डर है कहीं 74 के तकाजे में पार्टी गवर्नर का  पद  ना ऑफर कर दे या  आडवाणी जोशी की तरह मार्गदर्शक मंडल में ना डाल  दे।  इसलिए धूमल गुट ने भी अपना एक आदमी  रेस में आगे करने की पूरी तैयारी की है। धर्मशला के मैदान से शांता के ऊपर रविंदर रवि की दहाड़ इसी सोच  का नतीजा थी।  राजीव बिंदल के समय के साथ नड्डा के साथ पींगे बढ़ाने के कारण अब सिर्फ रविंदर रवि के ऊपर धूमल खेमे का विश्वास टिका हुआ है।
आम तौर पर शांत रहने वाले रविंदर सिंह रवि खुलकर मैदान में आ गए हैं।  चाहे कांगड़ा में शांता कुमार की किलेबंदी को चुनौती देने की कोशिश हो या धूमल समर्थन में वीरभद्र सिंह को घेरने की कवायद; रविंदर रवि अग्रिम पंक्ति में मोर्चा संभाले हुए हैं।  लगातार पांचवी बार जीत का परचम लहरा चुके रवि  धूमल के किन्ही कारणों से मुख्यमंत्री नहीं बन पाने के कारण पहली पसंद हो सकते हैं,  ऐसा राजनीतिक पंडितों का मानना है।
बाकी समय ही बताएगा क्या होगा परन्तु कुल मिलाकर धूमल गुट  विशेष परिस्थिति में कांगड़ा जिला से  रवि का नाम मुख्यमंत्री के लिए आगे कर के एक तीर से दो शिकार जरूर करना चाहेगा। पहला- हम  नहीं तो हमारा आदमी, दूसरा- शांता समर्थकों के उस दावे की हवा निकालना कि कांगड़ा की अनदेखी हो रही है। रविंदर रवि को शयद तैयार रहने का इशारा भी किया जा चुका है। कुल मिलाकर समीकरण ऐसे भी जा सकते हैं कि विशेष परिस्थितियों में जय राम ठाकुर या रविंदर रवि के हाथ में भी बटेर लग सकता है।

ऐसे होगा आपदा प्रबंधन? राजेंद्र राणा ने पीठ पर सवार होकर किया मुआयना

मंडी।।
राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण के उपाध्यक्ष  राजेंद्र राणा मंडी के धर्मपुर में बरसात से हुई तबाही जायजा लेने के लिए पहुंचे, वह भी तीन दिन बाद। यानी तब तक आपदा बीत चुकी थी। मगर यहां जनाब को अपने जूते भीग जाने का इतना डर था कि एक युवक की पीठ पर सवार होकर मुआयना करते दिखे।
सोशल मीडिया पर वाइरल हुई तस्वीरों में दिख रहा है कि बाकी सब लोग तो टखनों तक के पानी पर चल रहे हैं, मगर राजेंद्र राणा को युवक ने पीठ पर उठाया हुआ है। न तो वह जख्मी थे और न ही इतने बुजुर्ग कि इन हालात में उन्हें किसी की इस तरह की मदद लेनी पड़ती। साफ है कि वह ठाठ से मुआयना करना चाहते थे।
गौरतलब है कि राजेंद्र राणा एक वक्त पूर्व सीएम प्रेम कुमार धूमल के मीडिया सलाहकार थे, मगर शिमला में होटल बुडविला के  कॉल गर्ल्स प्रकरण में उनका नाम आ जाने के कारण  आरोपों के चलते उन्हें पद से इस्तीफा देना पड़ा था। हालाँकि उसमे बाद में कुछ भी निकल कर नहीं आया था।  बाद में वह बागी हो गए। विधायक पद से इस्तीफा दिया और हमीरपुर से कांग्रेस के टिकट से अनुराग के खिलाफ चुनाव लड़ा।
इन चुनाव में बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा तो मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने उन्हें आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का उपाध्यक्ष बना दिया। यूं तो इस तरह से तुष्ट करने के लिए राजनीतिक नियुक्तियां करना नई बात नहीं है, मगर राजेंद्र राणा की पहले से ही आलोचना होती रही है। सोशल मीडिया पर लोग, खासकर युवा, राणा और सरकार की खासी आलोचना कर रहे हैं।

गौरतलब है यह प्राधिकरण निकम्मेपन की वजह से मीडिया के निशाने पर भी है। कई अखबारों की रिपोर्ट्स की मुताबिक अभी तक बादल फटने, फसलों को नुकसान पहुंचने या अन्य किसी आपदा के प्रबंधन की बात तो दर, अभी तक कहीं पर भी नुकसान का आकलन करने में इसे कामयाबी नहीं मिली है। आरोप है कि जनता के खून-पसीने की कमाई को सरकार ऐसे पदों पर अपने लोगों को बिठाकर लुटा रही है।

अनुराग पर कहे अपने शब्द वापस लेता हूं: वीरभद्र

शिमला।।
 
मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने ऊना जिले के धुसाड़ा में दिए भाषण को तोड़-मरोड़ कर पेश करने पर निराशा व्यक्त करते हुए कहा कि उनके भाषण के कुछ अंशों को इसकी मूल भावना से अलग कर बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया है। उन्होंने कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और सांसद अनुराग ठाकु र के सम्मान को ठेस पहुंचाने की उनकी कोई मंशा नहीं थी। दैनिक पत्र अमर उजाला में छपी खबर के अनुसार राजभवन में राज्यपाल के स्वागत में कार्यक्रम के दौरान वीरभद्र ने मीडिया से यह शब्द कहे। 

वीरभद्र ने कहा कि वह हर व्यक्ति विशेष की प्रतिष्ठा का पूर्ण सम्मान करते हैं। यदि उनके शब्दों से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो उन्हें अपने शब्द वापस लेने में कोई गुरेज नहीं है। मुख्यमंत्री ने मंगलवार को कहा कि राजनीतिक कारणों के चलते कुछ केंद्रीय परियोजनाओं के कार्यान्वयन में हो रहे विलंब पर चिंता के चलते उन्होंने कुछ कड़ी टिप्पणियां की थीं। उन्होंने अनुराग ठाकुर को सकारात्मक सोच अपनाने और लोगों के व्यापक हित के मद्देनजर अपने निर्वाचन क्षेत्र एवं प्रदेश के विकास के लिए कार्य करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि वह विपक्ष के नेताओं का पूरा सम्मान करते हैं। वीरभद्र सिंह ने कहा कि उनके ऊना दौरे के दौरान स्थानीय लोगों ने उन्हें जानकारी दी कि क्षेत्र के लिए विभिन्न केंद्रीय परियोजनाओं में जानबूझकर देरी की जा रही है। 500 करोड़ रुपये के इंडियन ऑयल डिपो का शिलान्यास रखने में काफ ी विलंब के कारण इसका कार्य अभी तक शुरू नहीं हो सका है जबकि प्रदेश सरकार ने इस परियोजना से संबंधित भूमि हस्तांतरण इत्यादि सभी औपचारिकताएं काफी पहले पूरी कर ली थीं।

13 साल का यह हिमाचली बच्चा है सेबों का गजब आढ़ती

शिमला।।

13 साल का नैतिक सुंटा गजब का आढ़ती है। वह बडे़-बडे़ आढ़तियों के बीच बोलियां लगाकर सेब की खरीद करता है। दैनिक पेपर पंजाब केसरी में छपी खबर के अनुसार  नैतिक पढ़ाई में तो अव्वल है ही, वह शिमला के भट्टाकुफर स्थित फल मंडी में भी कमाल दिखा रहा है। बताया जा रहा है कि पहले नैतिक को सेब खरीदने का महज शौक था, अब उसका ये शौक नशा बन चुका है। नैतिक को आई.ए.एस. अधिकारी बनना है। वहीं नैतिक ने बताया कि उसका स्कूल पौने 2 बजे लगता है। इससे पहले वह 10 से 12 बजे के बीच रोजाना भट्टाकुफर मंडी जाता है। वहां आढ़तियों के बीच बोलियां लगाता है। इतना ही नहीं छुट्टी वाले दिन तो वह मंडी में ही रहता है।
 
रविवार और सोमवार को नैतिक ने गुजरात के जामनगर की आढ़ती फर्म एलएएच के लिए सेब खरीदा। उसने कहा कि पिता संजीव सुंटा की गैरमौजूदगी में वह अकेले ही सेब बेचता है। पिता जी का सहयोग करने के लिए वह ऐसा करता है। नैतिक के पिता संजीव सुंटा ने बताया कि वह बचपन से ही सेब की खरीद कर रहा है। नैतिक के आईक्यू को देखते हुए ही उसे आढ़ती का ऑफर मिला था। उसका आईक्यू इतना तेज है कि वह पेटी खोलते ही सेब का रेट तय कर लेता है। इस कारण उसे बड़ी मंडियों के कामकाज की भी समझ है। 
 
गौरतलब है कि राज्य सरकार ने उसकी प्रतिभा को देखते हुए समय से पहले 5वीं कक्षा की परीक्षा देने की विशेष अनुमति दी थी। इसके बाद से नैतिक बिना रुके आगे बढ़ता रहा। वह अब शिमला की राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक पाठशाला संजौली में 11वीं में पढ़ रहा है जबकि उसकी उम्र के बच्चे अभी 8वीं या 9वीं कक्षा से आगे नहीं निकल पाए हैं। 
 
 
 
नैतिक सुंटा मूल रूप से रोहडू़ में नावर टिक्कर के पास खलावन गांव के निवासी हैं। उनके इलाके में भी सेब के बगीचों के लिए अतिक्रमण हुआ है

तकनीकी एवं उच्च शिक्षा के मामले में सुस्त और अदूरदर्शी रही है हिमाचल की पॉलिसी

मनीष कौशल।। शिक्षित राज्यों की लिस्ट पर अगर नजर दौड़ाई जाए तो हिमाचल प्रदेश का नाम प्रमुख  राज्यों की श्रेणी में आता है।  परन्तु शिक्षा का मतलब सिर्फ डिग्री लेना मात्र नहीं है बल्कि सही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ कम्पीटीशन के इस युग में अपने आप को दौड़ में रखना भी महत्वपूर्ण है।  जिसमे हिमाचल प्रदेश फिसड्डी पाया गया है और सबसे खराब बात यह है की बीते दशकों में नए से नए  संस्थान खोलने के अलावा प्रदेश सरकारें इस दिशा में ना कुछ सोच पायीं हैं ना कुछ कर पायीं हैं।

हिमाचल प्रदेश के पास शिक्षा के लिए ना कोई नीति है ना ही भविष्ये के लिए रोडमैप इसलिए बी टेक  जैसी जैसी बड़ी बड़ी डिग्रिया लेकर भी यहाँ बेरोजगारों की फौज घर बैठने पर मजबूर है।   हर अभिवावक  चाहते है  कि उनका बच्चा  अचछी शिक्षI ग्रहण  करे।    इसके लिए अभिवावक अपनी उम्र भर की पूंजी बच्चों की शिक्षा पर लगाने के लिए तैयार भी हैं परन्तु   शिक्षा   खास कर तकनिकी  शिक्षा के नाम पर प्रदेश में या तो निजी संगठन हैं जिनका मुख्य मक्सद पैसे  कमाना है या फ़िर ऐसी सरकारी  संस्थाये हैं जिनके पास तकनीकी  शिक्षा के लिये जरूरी बुनियादी सुविधाये   भी न के बराबर  हैं।

हम इसी से अंदाजा लगा  सकते हैं कि प्रदेश मे लग्भग 24000 इंजीनियरिंग की सीटें हैं  और इस बार के आंकड़ों के अनुसार आधी सीटें भी नहीं भर पायी हैं।  आखिर यह हुआ क्यों इसके लिए थोड़ा इतिहास पर नजर दौड़ाना  आवश्यक है।

1990 के दशक के प्रारम्भिक  वर्षों में भारतीय अर्थववस्था ने जब उदारीकरण की राह पकड़ी तो उसका असर दशक के उत्तरार्ध में दिखा।  आई टी सेक्टर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर एवं कम्युनिकेशन क्रांति के साथ देश में इंजीनियर्स की जरुरत पैदा हुयी।  सरकारी संस्थान जैसे आई आई टी  एवं राज्यों के इंजीनियरिंग कालेज इतनी मैनपॉवर  नहीं दे पा रहे थे इसलिए कुछ राज्यों ने जैसे कर्नाटक महाराष्ट्र आदि ने निजी संस्थानों के लिए इस क्षेत्र में रास्ते खोले।  `धीरे धीरे इंजीनियरिंग कालेजों में निजी क्षेत्र की भागीदारी पंजाब तक भी पहुंची।  उस दौर में  मैनपॉवर की इतनी मांग मार्किट से थी की  नए नए खुले संस्थान भी  इंजीनियरिंग में दाखिला  देने के लिए पहले भारी भरमक डोनेशन की मांग करते थे।  और दोयम दर्जे के कालेजों से पास आउट हुए छात्र भी ठीक ठाक पैकेज पर कार्य करते थे।  यह सब मार्किट और इनपुट में समन्वय के कारण था।

1990  के अंतिम  दौर में हिमाचल प्रदेश में  इंजीनियरिंग  करने के लिए  कालेज  के नाम पर सिर्फ  1987  में खोला  गया  संस्थान रीजनल इंजीनियरिंग कालेज हमीरपुर था। 2001 में हिमाचल प्रदेश की आबादी  60 लाख के करीब पहुँच गयी थी  मार्किट में  मांग जोरों पर थी परन्तु प्रदेश  के बच्चों का भविष्ये एक ही इंजीनियरिंग कालेज के सहारे चल रहा था बाद में वो भी केंद्रीय संस्थान  नेशनल इंस्टिट्यूट आफ टेक्नोलॉजी बन गया।

उस समय मार्किट की स्थिति की भांपते हुए पंजाब ने अपने यहाँ निजी इंजीनियरिंग कालेजों  के लिए रास्ते खोल दिए परन्तु हिमाचल प्रदेश की सरकार सोयी रहीं , हिमाचल के बच्चों को जो शिक्षा घर द्वार भी मिल सकती थी उसके लिए पंजाब का रुख करना पड़ा।  सारे पंजाब हरियाणा के कालेज हिमाचली बच्चों से भरे रहे परन्तु प्रदेश  में उन्हें सिर्फ 2 या तीन प्राइवेट  कालेज  मिले ।

2005-06 में जब रिसेशन का दौर आया अंतरास्ट्रीय स्तर पर मार्किट बिगड़ी  इंजीनियर बेरोजगार होने लगे।  तब हिमाचल सरकारें  उस क्षेत्र में सोचने लगी जो डूब रहा था और बाकी प्रदेश जो सोच 10  साल पहले ही  सोच चुके थे  आर कार्य करके फल ले चुके थे।  फिर भी देर सवेर  प्रदेश में  पहला सरकारी इंजीनियरिंग संस्थान जवाहर लाल नेहरू इंजीनियरिंग कालेज खुला।  जो कई वर्षों तक सिर्फ दो कोर्स एवं आधे अधूरे इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ चलता रहा या यूँ कहें अभी भी चल रहा है ।

इसके बाद तो मानों हिमाचल की सरकारों में क्रांति ही आ गयी हो पहले अदूरदर्शी बनकर सोयी रही सरकारें  आँख बंद करके रेवड़ियों की तरह इंजीनियरिंग संस्थान  बांटने लगीं।   ऐसे ऐसे लोग इंजीनियरिंग कालेज खोल कर बैठ गए जिन्हे सिर्फ सड़के और पुलिया  बंनाने में महरात थी कुछ को तो स्कूल तक चलाने का अनुभव नहीं था।  एक क्षेत्र विशेष में 5 -5  किलोमीटर के दायरे में डीम्ड यूनिवर्सिटी की बाढ़ आ गयी।  इंजीनियरिंग कालेज खोलना और घोषणा करना राजनीति का मुद्दा हो गया।

अभी सरकारी क्षेत्र का पहला  कालेज  (सुंदरनगर) बजट फैकल्टी और इंफ्रास्ट्रक्चर को तरस रहा था और अगली सरकार ने  शिमला के प्रगतिनगर में एक और इंजीनियरिंग  कालेज की घोषणा कर दी।

एक बार एक बच्चे  मुझे बताया की भाई प्रगतिनगर  कालेज की कक्षाएं जिस बिल्डिंग में लगती हैं उसमे एक ही छत है बाकी 8 -8  फ़ीट दीवारे देकर कमरों को डिवाइड किया गया है , हाल यह है की अगर एक तरफ टीचर बोलता है तो तीन  कमरों में सुनायी देता है।  आधी अधूरी कॉन्ट्रैक्ट फैवल्टी पर चलते हुए यह संस्थान जब सही का इंफ्रास्ट्रक्चर  नहीं दे पाये तो आगे की गुणवत्ता और बच्चों को मार्किट से माहोल से लड़ने की शिक्षा क्या दे पाते।  प्राइवेट संस्थान शोशण करते रहे लोग लुटे जाते रहे पर आखिर सरकार किस आधार और पैमाने पर उन्हें रोकती जब उसके खुद के सस्थान स्टैण्डर्ड मीट नहीं कर पा रहे थे।  हिमाचल के इंजीनियरिंग संस्थान नौकरी प्लेसमेंट देना तो दूर की बात इंफ्रास्टक्चरे में भी बाहरी राज्यों का मुक़ाबला नहीं कर पाये।

स्थिति यहीं नहीं थमी  उसके बाद कई प्राइवेट संस्थानों को परमिशन देने के  साथ सरकार ने नगरोटा और जेयूरी में भी भी इंजीनियरिंग कालेज खोल दिया। हिमाचल प्रदेश टेक्निकल  यूनिवर्सिटी  का गठन किया गया   जिसका अभी खुद का अपना भवन नहीं है।  कुल मिलाकर हिमाचल में अभी 4 सरकारी एवं दर्जनों प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज हैं जिनके पास 24000  सीटें हैं।  और आधी भी हर साल  नहीं भर पा रहीं हैं.  इनमे से अभी  तीन  सरकारी संस्थानों  की  मूल बिल्डिंग भी नहीं है।

यह सब हिमाचल में तब हो रहा है  जब देश में इंजीनियरिंग की मांग उतार पर थी फिर भी यह प्रशन सरकार के मन में नही आया की   इतने  इंजीनियर्स  बना के क्या करेगी अगर उनके पास प्रदेश में इंजीनियर्स को  नौकरी देने की ना खुद केपेसिटी है ना ही   मार्किट में अब मांग है।    इंजीनियरिंग की सीटें कालेज  बढ़ाने  से अच्छा होता सरकार  क्वालिटी एडुकेशन की तरफ ध्यान देती।    कुछ नियम कानून बनती उन्हें सही से लागू करती ताकि गुणवत्ता की शिक्षा सुनिश्चित होती  तब  प्रदेश के इंजीनियर्स चार  साल का कोर्स करके पैसा खर्च करके घरो में ना बैठे होते।

प्रदेश की जनसँख्या को देखते हुए अगर यहाँ  सरकारी प्राइवेट मिलाकर 10 इंजीनियरिंग संस्थान भी  होते और क्वालिटी एजुकेशन देते तो बहुत थे।   परन्तु हैरानी की बात है पिछले दो दशकों में आई प्रदेश सरकारों का क्या विज़न था ये कोई नहीं जानता।  आजकल इंजीनियरिंग की ये दशा है कि कोई भी अभिवावक  अपने बच्चो को इंजीनियरिंग नहीं  करवाना चाहता।   क्योंकि कॉलेज इंजीनियर्स नहीं बना रहे बस डिग्री दे रहे हैं।   स्टूडेंट्स में क्वालिटी नाम की चीज  ही नहीं तो जॉब कहाँ से मिलेगी।

हिमाचल सरकारों के विज़न का पता यहीं से चल जाता है की  निजी  संस्थानों की जो हालत है सो है।   पर 10 साल पहले खुले सरकारी इंजीनियरिंग कालेज में अभी स्टाफ पूरा नहीं कई कोर्स नहीं चलते  और तो और हॉस्टल की सुविधा नहीं परन्तु तीन तीन कालेज और खोल दिए गए हैं

क्या ऐसा नहीं किया जा सकता था की जेयूरी , नगरोटा प्रगतिनगर में  सस्थान खोलकर  थोड़ा थोड़ा पैसा वहां देने से  अच्छा होता अगर  सुंदरनगर इंजीनियरिंग  कालेज का ही वो बजट देकर  सेंटर फॉर एक्सीलेंस टाइप बनाया जात्ता  यहाँ कोर्स बढाए  जाते।    राष्ट्रीय संस्थानों के लेवल पर हिमाचल का एक   इंजीनियरिंग कालेज  तो  पहुँच पाता।  तकनिकी संस्थान कोई अस्पताल   तो हैं नहीं जो जगह जगह खोल दो   जनता की सुविधा के लिए. .  अरे भाई जब टेस्ट पास करके ही आना है तो सस्ंथान कहीं भी  क्या फर्क पड़ता है। इसमें आखिर क्या वोट बैंक है और अगर जनता भी अपने अपने इलाके में संस्थान खुल जाने से खुश है चाहे वहां पढ़कर बच्चों  भविष्ये लटक जाए तो जनता को भी आत्ममंथन  करना होगा।

यह सब  सिर्फ तकनिकी शिक्षा के हाल नहीं है हिमाचल प्रदेश सरकारों की यही अदूरदर्शिता  साइंस और बीएड एवं साइंस  के क्षेत्र में भी  रही।  जब प्रदेश से स्टूडेंट भारी संख्या में बी एड करते थे तब यहाँ दो ही बी एड कालेज हुआ करते थे।  हमारे लोगों को बीड करने जम्मू से श्रीनगर आगरा ग्वालियर जाना पड़ता था।  छोटे छोटे बच्चों को छोरड़कर माएं  बीएड  करने  प्रदेश से बाहर  जाती थीं।

किसी सरकार को यहाँ बीएड के लिए निजीकरण करने की सुध नहीं आई , बीएड की डिग्री  के लिए ऐसा क्या  आधारभूत ढांचा जरुरी था जिसके लिए हमें बाहर जाना पड़ता था।  और जब लोगों ने बी एड से मुंह मोड़ लिया तो तहसील लेवल पर निजी क्षेत्र को आगे लाकर सरकार  ने  घर द्वार बीएड कालेज खोल दिए।  तब करने वाले कोई नहीं थे यही काम हमारी सरकारों ने एमएससी आदि कोर्सेज के साथ किया। कुल मिलाकर स्कूली शिक्षा के आधार पर शिक्षा क्षेत्र में आयाम छूने का दावा करने वाले इस प्रदेश की सरकारें  हमेशा दूरदर्शिता  के मामले में फिसड्डी रहीं और अपने यहाँ  गुणवत्तापूर्ण  उच्च शिक्षा को  उचित समय पर पर कभी  बढ़ावा नहीं दे पायीं।