रोहतांग में CNG वाली गाड़ियां चलाने से हो सकती है कैंसर की संभावना: धूमल
भारतीयों को ही आने नहीं दे रहा कसोल का एक इजरायली कैफे
- ए. आर. प्रसन्न
जहां विदेशियों ने माहौल बनाया हो, वहां पर भारतीय टूरिस्ट भी खिंचे चले आते हैं। मगर क्या हो, जब भारत की ही जमीन पर बने रेस्तरां में भारतीयों की एंट्री बैन हो? जी हां, जिस कसोल में आपको हिब्रू में साइन बोर्ड तक लगे दिखते हैं, वहां पर एक ऐसा रेस्तरां हैं, जिसमें भारतीयों के प्रवेश पर बैन लगा हुआ है।
![]() |
इस कैफे में नहीं आ सकते भारतीय |
चिंकी सिन्हा लिखती हैं, ‘इजरायलियों ने भारत में फ्री कसोल नाम से कैफे बनाया है, जिसमें भारतीयों की एंट्री बैन है। उन्होंने एक गोरे दोस्त को तो जाने दिया, मगर भारतीय को रोक दिया।’
So, some Israelis have set up a cafe called Free Kasaul in Kasaul, and deny Indians admission. Our friend was denied…
Posted by Chinki Sinha on Sunday, August 16, 2015
चिंकी ने आगे लिखा है, ‘इजरायल जाने पर वे लोग पूरे कपड़े उतारकर तलाशी लेते हैं और वहां बंद बस्तियां बनाई हैं। वे यहां निर्वाण के नाम पर मस्ती करने आते हैं और मानते हैं कि वे ही यहां हे सर्वेसर्वा हैं। ‘
This restaurant in Kasol is called ‘Free Kasol’. The freak asshole who runs it refuses to serve Indians. I walked in…
Posted by Stefan Kaye on Monday, August 17, 2015
हिमाचल प्रदेश सरकार को इस मामले का संज्ञान लेना चाहिए और इस कैफे समेत कसोल में चल रहे खेल पर लगाम लगानी चाहिए।
(लेखक ‘इन हिमाचल’ के स्तंभकार हैं)
नाहन शहर के बीचोबीच चल रहा था बम, कारतूस बनाने का कारखाना
नाहन शहर के बीचोबीच एक चार मंजिला मकान में गोला-बारूद और विस्फोटकों का भंडार पकड़ा गया है। अखबार ‘हिमाचल दस्तक’ में छपी खबर के अनुसार पुलिस ने शमशेरजंग मोहल्ला निवासी इमरान शेख पुत्र इमतयाज शेख उर्फ भाईजान के घर से विस्फोटक सामग्री बनाने में उपयोग होने वाले केमिकल्स के अलावा 3000 कारतूस, 220 किलो छर्रे, सैकडों किलो बारूद, डिटोनेटर, कई कट्टे, फ्यूज वायर, चार बंदूकें और भारी मात्रा में बंदूकें बनाने का सामान बरामद किया है।
इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक सामग्री बरामद होने से नाहन शहर में सनसनी फैल गई है। फरेंसिक और सेना के विस्फोटक विशेषज्ञों ने विभिन्न कैमिकलस व विस्फोटक सामग्री की जांच के बाद कुछ सैंपल भर जांच शुरू कर दी है। विस्फोटक सामग्री की मात्रा देख कर अंदाजा लगाया जा रहा है कि इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटकों से शहर में बड़ी अनहोनी हो सकती थी।
![]() |
सांकेतिक तस्वीर |
यह विस्फोटक व गोला बारूद नाहन में सदर थाना व एसपी ऑफिस से महज 50 मीटर दूरी पकड़ा जाना अपने आप में कई सवाल खड़े कर रहा है। शहर के बीचोबीच इतनी बड़ी मात्रा में विस्फोटक की मौजूदगी सुरक्षा और खुफिया विभागों की नाकामी उजागर करता है। बहरहाल पुलिस ने इस मकान के मालिक इमरान शेख व उसके दो भाई शरिक शेख व वाशिर शेख को गिरफ्तार कर लिया है। इनके अलावा कुछ और लोगों को पूछताछ के लिए बुलाया गया है।
मामले की गंभीरता को देखते हुए नाहन छावनी क्षेत्र से फस्ट पेरा के विस्फोटक विषेषज्ञ और शिमला से फोरेंसिक विशेषज्ञों के दल ने विस्फोटकों की जांच कर कुछ कैमिल के सैंपल जांच के लिए भेज दिए हैं। एसपी सौम्या सांबशिवन ने बताया कि शस्त्र अधिनियम के तहत मामला दर्ज कर जांच की जा रही है। उन्होंने बताया कि घर की तलाशी के दौरान 220 किग्रा छर्रे सिक्का, छर्रे बनाने के सांचे, 3000 कारतूस, 4 टोपीदार बंदूकें, बंदूक बनाने की अन्य सामग्री ब्रामद की गई। उन्होंने बताया कि विस्फोटक सामग्री, गन पाउडर, सल्फर, कार्बन व अन्य सामान, कलपुर्जे जिनकी पहचान नहीं हो सकी है, भी बरामद किए गए हैं।
परिवहन मंत्री के फैसले मातृशक्ति के लिए ऐतिहासिक पहल
- सुरेश चंबियाल
उद्द्योग मंत्री मुकेश अग्निहोत्री ने ऊना जिला के पंडोगा में 122 करोड़ के इंडस्ट्रियल कॉरिडोर की घोषणा की तो शिमला में वीरभद्र सिंह ने कर्मचारियों एवं पेंशनर्स होल्डर्स के लिए 6 % डी ए की की घोषणा के साथ ट्राइबल इलाकों के लिए 8 नयी एम्बुलेंस देने के साथ लोकनिर्माण विभाग के 6 -7 दिहाड़ीदारों को पक्का किया। बाकि मंत्री अपने विभाग की तरफ से कुछ ख़ास उपलब्धि आगे नहीं ला पाये।
इन सब से अलग परिवहन मंत्री मंडी में ऐसे गरजे की कार्यक्रम के बाद लोगों की जुबान पर बाली की ही चर्चा थी। मीडिआ ने भी उन्हें ख़ास तवज्जो दी। बाली ने हिमाचल प्रदेश में ऐतिहासिक पहल करते हुए इस बार का अपना सारा कार्यक्रम एवं योजनाये महिला शक्ति के नाम सपर्पित कर दी।
प्रदेश की आधी आबादी ,3,382,729 (2011 जनगणना) महिलाओं को परिवहन मंत्री ने आने वाले सोमवार यानि 17 अगस्त से प्रदेश के अंदर सरकारी बसों के किराए में 25 % छूट की ऐतिहासिक घोषणा मंडी के सेरी मैदान से करते हुए आधी आबादी का दिल जीत लिया। बाली यहीं नहीं रुके बल्कि उन्होंने मौजदा समय के सबसे ज्वलंत मुद्दे महिला सुरक्षा पर भी संज्ञान लेते हुए ,महिलाओं के ही एक ऐसे स्पेशल दस्ते की घोषणा कर दी जो महिलाओं से यात्रा के दौरान कोई बदतमीजी न कर सके इस बात का ख्याल रखेगा साथ ही साथ बस स्टॉप या खाना खाने के लिए जो भी होटल आदि हैं वहां महिलाओं के लिए पर्याप्त स्वच्छ टॉयलेट फैसिलिटी से सबंधित चेकिंग आदि भी देखेगा।
आखिर क्यों हम युवाओं के कंधों पर टिका है स्वच्छ भारत का सपना ?
- प्रज्ज्वल बस्टा।।
दुष्यंत और शकुंतला के पुत्र भरत के नाम से जाने जाता हमारा देश भारत आज स्वतंत्रता के 67 साल बाद एक नई करवट ले रहा है। जब पिछले साल 15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने स्वछ भारत की कल्पना का दर्शन दिया तो वास्तव में पूरा देश एक नए प्रण के लिए उमड़ पड़ा। सच में 2 अक्टूबर 2014 का दिन भारत के लिए महत्वपूर्ण था। महात्मा गांधी की जयंती, उनका स्वप्न और युवा पीढ़ी का उत्साह; सब कुछ अछा होता दिख रहा था, जब प्रधानमंत्री जी ने 9 स्वच्छता प्रहरी नियुक्त किए और वो भी युवा। मुझे वास्तव में विश्वास हो गया कि यह स्वछता अभियान अब जनांदोलन बन जाएगा, क्योंकि प्रधानमंत्री जी ने इसे सफल बनाने के लिए युवा पीढ़ी को चुना है।
‘नहीं रुकती रवानी है, नहीं झुकती जवानी है’ –
शायद इसी बात को देख कर यह अभियान युवा पीढ़ी ने अपने हाथों में लिया है। हम गंदगी के कारण बढ़ते रोगों को अब देख नहीं सकते , हम कूड़े के ढेर पर लिपटे अपने शहर को लज्जित होते कब तक देखेंगे , कब तक सांप सपेरों के देश की बात हम विदेशों से सुनते रहेंगे?…तो जयराम ठाकुर और रविंदर रवि में से एक बन सकता है सीएम कैंडिडेट
- सुरेश चंबियाल
![]() |
रविंदर रवि (बाएं) और जयराम ठाकुर की चमक सकती है किस्मत |
ऐसे होगा आपदा प्रबंधन? राजेंद्र राणा ने पीठ पर सवार होकर किया मुआयना
गौरतलब है यह प्राधिकरण निकम्मेपन की वजह से मीडिया के निशाने पर भी है। कई अखबारों की रिपोर्ट्स की मुताबिक अभी तक बादल फटने, फसलों को नुकसान पहुंचने या अन्य किसी आपदा के प्रबंधन की बात तो दर, अभी तक कहीं पर भी नुकसान का आकलन करने में इसे कामयाबी नहीं मिली है। आरोप है कि जनता के खून-पसीने की कमाई को सरकार ऐसे पदों पर अपने लोगों को बिठाकर लुटा रही है।
अनुराग पर कहे अपने शब्द वापस लेता हूं: वीरभद्र

वीरभद्र ने कहा कि वह हर व्यक्ति विशेष की प्रतिष्ठा का पूर्ण सम्मान करते हैं। यदि उनके शब्दों से किसी की भावनाओं को ठेस पहुंची हो तो उन्हें अपने शब्द वापस लेने में कोई गुरेज नहीं है। मुख्यमंत्री ने मंगलवार को कहा कि राजनीतिक कारणों के चलते कुछ केंद्रीय परियोजनाओं के कार्यान्वयन में हो रहे विलंब पर चिंता के चलते उन्होंने कुछ कड़ी टिप्पणियां की थीं। उन्होंने अनुराग ठाकुर को सकारात्मक सोच अपनाने और लोगों के व्यापक हित के मद्देनजर अपने निर्वाचन क्षेत्र एवं प्रदेश के विकास के लिए कार्य करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि वह विपक्ष के नेताओं का पूरा सम्मान करते हैं। वीरभद्र सिंह ने कहा कि उनके ऊना दौरे के दौरान स्थानीय लोगों ने उन्हें जानकारी दी कि क्षेत्र के लिए विभिन्न केंद्रीय परियोजनाओं में जानबूझकर देरी की जा रही है। 500 करोड़ रुपये के इंडियन ऑयल डिपो का शिलान्यास रखने में काफ ी विलंब के कारण इसका कार्य अभी तक शुरू नहीं हो सका है जबकि प्रदेश सरकार ने इस परियोजना से संबंधित भूमि हस्तांतरण इत्यादि सभी औपचारिकताएं काफी पहले पूरी कर ली थीं।
13 साल का यह हिमाचली बच्चा है सेबों का गजब आढ़ती
तकनीकी एवं उच्च शिक्षा के मामले में सुस्त और अदूरदर्शी रही है हिमाचल की पॉलिसी
मनीष कौशल।। शिक्षित राज्यों की लिस्ट पर अगर नजर दौड़ाई जाए तो हिमाचल प्रदेश का नाम प्रमुख राज्यों की श्रेणी में आता है। परन्तु शिक्षा का मतलब सिर्फ डिग्री लेना मात्र नहीं है बल्कि सही गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के साथ कम्पीटीशन के इस युग में अपने आप को दौड़ में रखना भी महत्वपूर्ण है। जिसमे हिमाचल प्रदेश फिसड्डी पाया गया है और सबसे खराब बात यह है की बीते दशकों में नए से नए संस्थान खोलने के अलावा प्रदेश सरकारें इस दिशा में ना कुछ सोच पायीं हैं ना कुछ कर पायीं हैं।
हिमाचल प्रदेश के पास शिक्षा के लिए ना कोई नीति है ना ही भविष्ये के लिए रोडमैप इसलिए बी टेक जैसी जैसी बड़ी बड़ी डिग्रिया लेकर भी यहाँ बेरोजगारों की फौज घर बैठने पर मजबूर है। हर अभिवावक चाहते है कि उनका बच्चा अचछी शिक्षI ग्रहण करे। इसके लिए अभिवावक अपनी उम्र भर की पूंजी बच्चों की शिक्षा पर लगाने के लिए तैयार भी हैं परन्तु शिक्षा खास कर तकनिकी शिक्षा के नाम पर प्रदेश में या तो निजी संगठन हैं जिनका मुख्य मक्सद पैसे कमाना है या फ़िर ऐसी सरकारी संस्थाये हैं जिनके पास तकनीकी शिक्षा के लिये जरूरी बुनियादी सुविधाये भी न के बराबर हैं।
हम इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि प्रदेश मे लग्भग 24000 इंजीनियरिंग की सीटें हैं और इस बार के आंकड़ों के अनुसार आधी सीटें भी नहीं भर पायी हैं। आखिर यह हुआ क्यों इसके लिए थोड़ा इतिहास पर नजर दौड़ाना आवश्यक है।
1990 के दशक के प्रारम्भिक वर्षों में भारतीय अर्थववस्था ने जब उदारीकरण की राह पकड़ी तो उसका असर दशक के उत्तरार्ध में दिखा। आई टी सेक्टर मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर एवं कम्युनिकेशन क्रांति के साथ देश में इंजीनियर्स की जरुरत पैदा हुयी। सरकारी संस्थान जैसे आई आई टी एवं राज्यों के इंजीनियरिंग कालेज इतनी मैनपॉवर नहीं दे पा रहे थे इसलिए कुछ राज्यों ने जैसे कर्नाटक महाराष्ट्र आदि ने निजी संस्थानों के लिए इस क्षेत्र में रास्ते खोले। `धीरे धीरे इंजीनियरिंग कालेजों में निजी क्षेत्र की भागीदारी पंजाब तक भी पहुंची। उस दौर में मैनपॉवर की इतनी मांग मार्किट से थी की नए नए खुले संस्थान भी इंजीनियरिंग में दाखिला देने के लिए पहले भारी भरमक डोनेशन की मांग करते थे। और दोयम दर्जे के कालेजों से पास आउट हुए छात्र भी ठीक ठाक पैकेज पर कार्य करते थे। यह सब मार्किट और इनपुट में समन्वय के कारण था।
1990 के अंतिम दौर में हिमाचल प्रदेश में इंजीनियरिंग करने के लिए कालेज के नाम पर सिर्फ 1987 में खोला गया संस्थान रीजनल इंजीनियरिंग कालेज हमीरपुर था। 2001 में हिमाचल प्रदेश की आबादी 60 लाख के करीब पहुँच गयी थी मार्किट में मांग जोरों पर थी परन्तु प्रदेश के बच्चों का भविष्ये एक ही इंजीनियरिंग कालेज के सहारे चल रहा था बाद में वो भी केंद्रीय संस्थान नेशनल इंस्टिट्यूट आफ टेक्नोलॉजी बन गया।
उस समय मार्किट की स्थिति की भांपते हुए पंजाब ने अपने यहाँ निजी इंजीनियरिंग कालेजों के लिए रास्ते खोल दिए परन्तु हिमाचल प्रदेश की सरकार सोयी रहीं , हिमाचल के बच्चों को जो शिक्षा घर द्वार भी मिल सकती थी उसके लिए पंजाब का रुख करना पड़ा। सारे पंजाब हरियाणा के कालेज हिमाचली बच्चों से भरे रहे परन्तु प्रदेश में उन्हें सिर्फ 2 या तीन प्राइवेट कालेज मिले ।
2005-06 में जब रिसेशन का दौर आया अंतरास्ट्रीय स्तर पर मार्किट बिगड़ी इंजीनियर बेरोजगार होने लगे। तब हिमाचल सरकारें उस क्षेत्र में सोचने लगी जो डूब रहा था और बाकी प्रदेश जो सोच 10 साल पहले ही सोच चुके थे आर कार्य करके फल ले चुके थे। फिर भी देर सवेर प्रदेश में पहला सरकारी इंजीनियरिंग संस्थान जवाहर लाल नेहरू इंजीनियरिंग कालेज खुला। जो कई वर्षों तक सिर्फ दो कोर्स एवं आधे अधूरे इंफ्रास्ट्रक्चर के साथ चलता रहा या यूँ कहें अभी भी चल रहा है ।
इसके बाद तो मानों हिमाचल की सरकारों में क्रांति ही आ गयी हो पहले अदूरदर्शी बनकर सोयी रही सरकारें आँख बंद करके रेवड़ियों की तरह इंजीनियरिंग संस्थान बांटने लगीं। ऐसे ऐसे लोग इंजीनियरिंग कालेज खोल कर बैठ गए जिन्हे सिर्फ सड़के और पुलिया बंनाने में महरात थी कुछ को तो स्कूल तक चलाने का अनुभव नहीं था। एक क्षेत्र विशेष में 5 -5 किलोमीटर के दायरे में डीम्ड यूनिवर्सिटी की बाढ़ आ गयी। इंजीनियरिंग कालेज खोलना और घोषणा करना राजनीति का मुद्दा हो गया।
अभी सरकारी क्षेत्र का पहला कालेज (सुंदरनगर) बजट फैकल्टी और इंफ्रास्ट्रक्चर को तरस रहा था और अगली सरकार ने शिमला के प्रगतिनगर में एक और इंजीनियरिंग कालेज की घोषणा कर दी।
एक बार एक बच्चे मुझे बताया की भाई प्रगतिनगर कालेज की कक्षाएं जिस बिल्डिंग में लगती हैं उसमे एक ही छत है बाकी 8 -8 फ़ीट दीवारे देकर कमरों को डिवाइड किया गया है , हाल यह है की अगर एक तरफ टीचर बोलता है तो तीन कमरों में सुनायी देता है। आधी अधूरी कॉन्ट्रैक्ट फैवल्टी पर चलते हुए यह संस्थान जब सही का इंफ्रास्ट्रक्चर नहीं दे पाये तो आगे की गुणवत्ता और बच्चों को मार्किट से माहोल से लड़ने की शिक्षा क्या दे पाते। प्राइवेट संस्थान शोशण करते रहे लोग लुटे जाते रहे पर आखिर सरकार किस आधार और पैमाने पर उन्हें रोकती जब उसके खुद के सस्थान स्टैण्डर्ड मीट नहीं कर पा रहे थे। हिमाचल के इंजीनियरिंग संस्थान नौकरी प्लेसमेंट देना तो दूर की बात इंफ्रास्टक्चरे में भी बाहरी राज्यों का मुक़ाबला नहीं कर पाये।
स्थिति यहीं नहीं थमी उसके बाद कई प्राइवेट संस्थानों को परमिशन देने के साथ सरकार ने नगरोटा और जेयूरी में भी भी इंजीनियरिंग कालेज खोल दिया। हिमाचल प्रदेश टेक्निकल यूनिवर्सिटी का गठन किया गया जिसका अभी खुद का अपना भवन नहीं है। कुल मिलाकर हिमाचल में अभी 4 सरकारी एवं दर्जनों प्राइवेट इंजीनियरिंग कालेज हैं जिनके पास 24000 सीटें हैं। और आधी भी हर साल नहीं भर पा रहीं हैं. इनमे से अभी तीन सरकारी संस्थानों की मूल बिल्डिंग भी नहीं है।
यह सब हिमाचल में तब हो रहा है जब देश में इंजीनियरिंग की मांग उतार पर थी फिर भी यह प्रशन सरकार के मन में नही आया की इतने इंजीनियर्स बना के क्या करेगी अगर उनके पास प्रदेश में इंजीनियर्स को नौकरी देने की ना खुद केपेसिटी है ना ही मार्किट में अब मांग है। इंजीनियरिंग की सीटें कालेज बढ़ाने से अच्छा होता सरकार क्वालिटी एडुकेशन की तरफ ध्यान देती। कुछ नियम कानून बनती उन्हें सही से लागू करती ताकि गुणवत्ता की शिक्षा सुनिश्चित होती तब प्रदेश के इंजीनियर्स चार साल का कोर्स करके पैसा खर्च करके घरो में ना बैठे होते।
प्रदेश की जनसँख्या को देखते हुए अगर यहाँ सरकारी प्राइवेट मिलाकर 10 इंजीनियरिंग संस्थान भी होते और क्वालिटी एजुकेशन देते तो बहुत थे। परन्तु हैरानी की बात है पिछले दो दशकों में आई प्रदेश सरकारों का क्या विज़न था ये कोई नहीं जानता। आजकल इंजीनियरिंग की ये दशा है कि कोई भी अभिवावक अपने बच्चो को इंजीनियरिंग नहीं करवाना चाहता। क्योंकि कॉलेज इंजीनियर्स नहीं बना रहे बस डिग्री दे रहे हैं। स्टूडेंट्स में क्वालिटी नाम की चीज ही नहीं तो जॉब कहाँ से मिलेगी।
हिमाचल सरकारों के विज़न का पता यहीं से चल जाता है की निजी संस्थानों की जो हालत है सो है। पर 10 साल पहले खुले सरकारी इंजीनियरिंग कालेज में अभी स्टाफ पूरा नहीं कई कोर्स नहीं चलते और तो और हॉस्टल की सुविधा नहीं परन्तु तीन तीन कालेज और खोल दिए गए हैं
क्या ऐसा नहीं किया जा सकता था की जेयूरी , नगरोटा प्रगतिनगर में सस्थान खोलकर थोड़ा थोड़ा पैसा वहां देने से अच्छा होता अगर सुंदरनगर इंजीनियरिंग कालेज का ही वो बजट देकर सेंटर फॉर एक्सीलेंस टाइप बनाया जात्ता यहाँ कोर्स बढाए जाते। राष्ट्रीय संस्थानों के लेवल पर हिमाचल का एक इंजीनियरिंग कालेज तो पहुँच पाता। तकनिकी संस्थान कोई अस्पताल तो हैं नहीं जो जगह जगह खोल दो जनता की सुविधा के लिए. . अरे भाई जब टेस्ट पास करके ही आना है तो सस्ंथान कहीं भी क्या फर्क पड़ता है। इसमें आखिर क्या वोट बैंक है और अगर जनता भी अपने अपने इलाके में संस्थान खुल जाने से खुश है चाहे वहां पढ़कर बच्चों भविष्ये लटक जाए तो जनता को भी आत्ममंथन करना होगा।
यह सब सिर्फ तकनिकी शिक्षा के हाल नहीं है हिमाचल प्रदेश सरकारों की यही अदूरदर्शिता साइंस और बीएड एवं साइंस के क्षेत्र में भी रही। जब प्रदेश से स्टूडेंट भारी संख्या में बी एड करते थे तब यहाँ दो ही बी एड कालेज हुआ करते थे। हमारे लोगों को बीड करने जम्मू से श्रीनगर आगरा ग्वालियर जाना पड़ता था। छोटे छोटे बच्चों को छोरड़कर माएं बीएड करने प्रदेश से बाहर जाती थीं।
किसी सरकार को यहाँ बीएड के लिए निजीकरण करने की सुध नहीं आई , बीएड की डिग्री के लिए ऐसा क्या आधारभूत ढांचा जरुरी था जिसके लिए हमें बाहर जाना पड़ता था। और जब लोगों ने बी एड से मुंह मोड़ लिया तो तहसील लेवल पर निजी क्षेत्र को आगे लाकर सरकार ने घर द्वार बीएड कालेज खोल दिए। तब करने वाले कोई नहीं थे यही काम हमारी सरकारों ने एमएससी आदि कोर्सेज के साथ किया। कुल मिलाकर स्कूली शिक्षा के आधार पर शिक्षा क्षेत्र में आयाम छूने का दावा करने वाले इस प्रदेश की सरकारें हमेशा दूरदर्शिता के मामले में फिसड्डी रहीं और अपने यहाँ गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा को उचित समय पर पर कभी बढ़ावा नहीं दे पायीं।