महाकाल मंदिर बैजनाथ: कोई नहीं लगा पाया इस पवित्र मंदिर के एक रहस्य का पता

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कांगड़ा।। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिले में बहुत से प्रसिद्ध मंदिर हैं। यहां पर बैजनाथ नाम की जगह है जहां पर भगवान शिव का प्राचीन मंदिर है। मगर यहीं से सिर्फ 5 किलोमीटर दूर एक और शिव मंदिर है, जिसका नाम है- महाकाल मंदिर। इस मंदिर को लेकर कई कहानियां प्रचलित हैं। इस जगह पर मेलों का आयोजन भी होता है। आज हम आपको इसी मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं।

माना जाता है कि यहां पर जो शिवलिंग है, वह भगवान शिव के तेज से प्रकट हुआ था। खास बात यह है कि यहां शिवलिंग पर चढ़ने वाला पानी या दूध कहीं भी बाहर निकलता नजर नहीं आता। कहा जाता है कि कई लोग यह जानने की कोशिश कर चुके हैं मगर किसी को पता नहीं चला। यह रहस्य आज तक बरकरार है।

जैसा कि हिमाचल के बहुत से मंदिरों को लेकर मान्यता है, इस मंदिर को लेकर भी यह कहा जाता है कि पांडवों ने इसका निर्माण करवाया था। कहते हैं कि मंदिर बनवाने के बाद पांडवों ने माता कुंती के साथ यहां पर महाकाल की आराधना की थी। इस मंदिर को लेकर एक और खास बात यह है कि इसे अघोरी साधकों और तंत्र विद्या का केंद्र माना जाता है। यहां पर शिव के साथ अपरोक्ष रूप से महाकाली का वास भी बताया जाता है। पहले ऐसी मान्यता थी कि अगर यहां कोई शव जलने न आए तो घास का पुतला जलाया जाता था।

मान्यता यह भी है कि सप्तऋषि जब इस क्षेत्र के प्रवास पर थे, तब सात कुंडों की स्थापना की गई थी। इनमें से चार कुंड- ब्रह्म कुंड, विष्णु कुंड, शिव कुंड और सती कुंड आज भी मंदिर में मौजूद हैं। तीन कुंड- लक्ष्मी कुंड, कुंती कुंड और सूर्य कुंड मंदिर परिसर के बाहर हैं।

बताया जाता है कि ब्रह्म कुंड का पानी पीने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। शिव कुंड के पानी से महाकाल का अभिषेक किया जाता है और इस पानी को नहाने में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। सती कुंड के पानी को इस्तेमाल नहीं कहा जाता। कहा जाता है कि यहां पर किसी दौर में 3 रानियां सती हुई थीं।

हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा में साल 1905 में भीषण भूकंप आया था जिसमें भारी तबाही मचाई थी। उस भूकंप में इस मंदिर का एक बड़ा हिस्सा ढह गया था। उस हिस्से को दोबारा बनाया गया है। खास बात यह है कि यहां पर दुर्गा मंदिर की स्थापना मंडी के राजा ने करीब साढ़े चार सौ साल पहले की थी।  मगर राजा के इकलौते बेटे का निधन हो गया था तो उसने मूर्ति की स्थापना करने से इनकार कर दिया। कहा जाता है कि इसके बाद जो भी मूर्ति की स्थापना करना चाहता, उसके या उसके परिजनों के साथ कोई हादसा हो जाता। ऐसे में कई सालों बाद साल 1982 में स्वामी रामानंद ने यहां पर दुर्गा प्रतिमा स्थापित की थी। वैसे इस जगह पर एक शनि मंदिर भी है।