हिमाचल में हर साल 3000 हादसों में जाती है 1000 की जान

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इन हिमाचल डेस्क।। शिमला के गुम्मा में हुए सड़क हादसे ने पूरे प्रदेश को झकझोर दिया है। मगर यह न तो इस तरह का पहला हादसा है और दुख की बात है कि न ही यह आखिरी हादसा लगता है। आए दिन हादसों की खबरें आती हैं। कभी कोई गाड़ी नदी में गिर जाती है तो कभी टूरिस्ट्स की बस पलट जाती है। कभी कोई जीप खाई में गिर जाती है तो कभी कोई यात्री वाहन लुढ़क जाता है। बावजूद इसके हादसों पर मुआवजों का ऐलान होता है, लोग एक-आध दिन दुखी होते हैं और फिर अपने कामों में डूब जाते हैं। इस बीच फिर हादसा होता है, फिर वही सिलसिला और फिर कोई नतीजा नहीं। मगर 60 लाख की आबादी वाले प्रदेश में इतने हादसे होते हैं जिनका कोई हिसाब नहीं है।

इस मामले में आंकड़े भी चौंकाने वाले हैं। 2015 तक पिछले 10 सालों में हिमाचल में 29,555 सड़क हादसे दर्ज किए गए। 2011 से 2015 के बीच ही 15,047 हादसे हुए और इनमें 5,612 लोगों की जिंदगी चली गई और 26,580 जख्मी हो गए। पुलिस द्वारा दर्ज किया गया यह आंकड़ा दिखाता है कि हर साल इस राज्य में 3000 हादसे होते हैं और उनमें 1000 लोगों की मौद हो जाती है जबकि 5000 जख्मी हो जाते हैं। चौंकाने वाली बात यह है कि 2016 में नवंबर तक 2,096 हादसे दर्ज किए गए थे और उनमें 780 लोगों की मौत हो चुकी थी। 3,919 लोग जख्मी हो गए थे।

File Photo
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ये हादसे होते क्यो हैं? अखबारों पर नजर डालें तो ज्यादातर हादसे वाहनों के खाई से लुढ़कने या सड़क से बाहर गिरने पर होते हैं। शराब पीकर गाड़ी चलाना या ओवरस्पीडिंग भी वजह हो सकती है मगर इस बारे में अभी कोई स्पष्ट आंकड़ा उपलब्ध नहीं है मगर प्रदेश की सड़कों की हालत भी दयनीय है। कई प्रमुख सड़कों को बना तो दिया गया है, मगर यह नहीं देखा गया कि सड़क की ढलान कैसे रखनी है। मोड़ों पर पैराफिट, क्रैश बैरियर तो छोड़िए कुछ जगहों पर साइन बोर्ड नहीं होते और न ही रिफ्लेक्टर लगे होते हैं। आए दिन सड़कों के किनारे भवन निर्माण सामग्री गिराना या केबल बिछाने के लिए खुदाई करना भी हादसों को आमंत्रित करता है।

पिछले साल सितंबर में दिल्ली में सभी प्रदेशों के परिवहन मंत्रियों की बैठक हुई थी। उसमें हिमाचल के परिवहन मंत्री जी.एस. बाली ने भारत सरकार से गुजारिश की थी कि पहाड़ी इलाकों में रोड इंजिनियरिंग की टेक्नॉलजी को बदलने की जरूरत है। उन्होंने कहा था कि पहाड़ी इलाकों में विशेष तौर पर डिजाइन की हुईं सड़कें बननी चाहिए। साथ ही उन्होंने गुजारिश की थी कि हिमाचल को एयर ऐंबुलेंस की सुविधा दी जाए ताकि जख्मी लोगों को तुरंत मेडिकल सहायता दी जाए। दरअसल हादसों के बाद आधे लोग तो अस्पताल ले जाते वक्त ही दम तोड़ देते हैं। अस्पतालों में कभी डॉक्टर नहीं होते तो कभी डॉक्टरों के पास अनुभव नहीं होता तो कभी जरूरी सुविधाएं नहीं होतीं। रेफर करने का गेम चलता है और इलाज मिलने से पहले ही जानें चली जाती हैं।

सवाल एक ही उठता है- जिम्मेदार कौन है?