नाऊ जाग: जब सुनाया जाता है ‘देवताओं और दुरात्माओं के युद्ध’ का रिजल्ट

इन हिमाचल डेस्क।। मंडी-मनाली हाइवे पर कुल्लू की ओर जाते समय पनारसा नाम की जगह आती है। यहां से लगभग चार-पांच किलोमीटर दूर है नाऊ पंचायत। यहां पर अंबिका माता के मंदिर में सैकड़ों सालों से हर साल ‘जाग’ का आयोजन किया जाता है। अंबिका माता के जन्मदिवस के मौके पर यह कार्यक्रम होता है।

क्या है जाग
‘जाग’ मंडी और कुल्लू जिला में मनाए जाने वाला एक अलग तरह का धार्मिक आयोजन है जो इन दो जिलों की संस्कृति से सैंकड़ो सालों से जुड़ा है। दरसल हिंदी पंचाग के हिसाब से भादो महीने को इन इलाकों में काला महीना माना जाता है। भादो (भाद्रपद) यानी अंग्रेजी कैलेंडर के अनुसार अगस्त और सितंबर के महीने के दौरान का समय। इस महीने को हिमाचल और पंजाब के कुछ इलाकों में भी काले महीने के नाम से जाना जाता है।

इस महीने धार्मिक मान्यताओं के अनुसार देवी-देवताओं के मंदिर के कपाट बंद रहते हैं और ऐसा माना जाता है की देवी-देवता महीना भर डैणों (दुरात्माओं) और दैत्यों के साथ युद्ध करते हैं। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जाग वाले दिन भी रात भर देवी देवताओ और दुरात्माओं के बीच युद्ध चलता रहता है और इस दिन कुछ विशेष मंदिरो में जाग का आयोजन किया जाता है।

जाग की तिथि मंदिर के पुरोहित और वहाँ की परंपरा के अनुसार निकाली जाती है लेकिन अमूमन यह तारीख काले महीने के अंतिम हफ्ते में भी होती है। जाग वाले दिन देवताओं और बुरी शक्तियों के बीच हुए युद्ध का समापन माना जाता है और देवी-देवता के गुर (विशेष पुरोहित) के माध्यम से विभिन्न जगह हुए युद्धों का नतीजा बताया जाता है कि कौन सी जगह देवता जीते और कहाँ दुरात्माएं जातीं।

मान्यताओं के अनुसार इन जीत और हार का लोगों की फसलों, पशुओं और उनके जीवन पर आने वाले साल क्या प्रभाव रह सकता है इसपर गुर द्वारा भविष्यवाणी की जाती है। मान्यता यह है कि देवता जीते तो इंसानों के लिए आने वाला वर्ष खराब रहेगा और डैण जीते तो फसलों के लिए। ऐसा इसलिए क्योंकि माना जाता है कि इस युद्ध में दुरात्माएं जहां इंसानों और पशुओं को दांव पर लगाते हैं जबकि देवता फसलों आदि को। ऐसे में जिसकी हार होगी, मान्यताओं के अनुसार उसके द्वारा दांव पर लगाई गई चीज़ पर खतरा पैदा हो जाएगा।

मंडी स्थित ‘पोल स्टार प्रोडक्शन’ के निर्देशक मुकेश ठाकुर ने अपनी टीम के साथ पहली बार इस तरीके से ‘नाऊ जाग’ को फिल्माया है और दिखाने की कोशिश की है कि कैसे सैंकड़ो सालों से स्थानीय लोग इस परंपरा को निभा रहे हैं। इसे अंधविश्वास भी इसे कहा जाता सकता है मगर इसके सांस्कृतिक पहलू पर डॉक्युमेंट्री देखें:

आप यह डॉक्यूमेंट्री पोल स्टार हिमाचल के फेसबुक पेज या YouTube चैनल पर भी देख सकते हैं।

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