हिमाचल पर लघुकथा: बेटा, पहले ये करो फिर काशीफल खाएंगे

मुक्तकंठ कश्यप।।

गुरु : बेटा सुबह हो गई है। जाओ जंगल से लकड़ियां बटोर कर लाओ फिर काशीफल खाएंगे। समझो कि यह लोकसभा चुनाव है।चेला: जी गुरु जी ले आया। लाइये काशीफल!
गुरु: बेटा अब आग जलाओ। इसे इन्वेस्टर्स मीट समझो फिर काशीफल खाएंगे।
चेला: गुरु जी कर दिया जी।
गुरु: बेटा अब बैठने का स्थान साफ कर दो, समझो कि यह उपचुनाव है।
चेला: गुरु जी, दो स्थान साफ कर दिए जी। लाइये काशीफल!
गुरु: अब पहाड़ पर खड़े होकर मेरे सुर में मिलाओ, प्रदेश के सुर में सुर मिलाओ। समझो कि यह हवाई अड्डे का विस्तार है। फिर काशीफल खाते हैं।
चेला: गुरु जी कर दिया। लेयाओ काशीफल!
गुरु: अब मैं ध्यान लगा रहा हूं, अपने गुरुओं को याद कर रहा हूं, किचन गार्डन में कुछ उत्पाती प्राणी आ गए हैं जो काशीफल की बेल को खींच रहे हैं। साथ दो। फिर खाएंगे काशीफल।
चेला: गुरु जी ठीक है लेकिन ये तो बताओ कि काशीफल होता क्या है?
गुरु: बेटा इसे कद्दू कहते हैं।

(लेखक साहित्य और समाज से जुड़े विषयों पर तीखी टिप्पणियों के लिए सोशल मीडिया पर चर्चित हैं)

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