बल्क ड्रग फार्मा पार्क आखिर क्या है और क्या इससे हिमाचल को फायदा होगा?

प्रतीकात्मक तस्वीर

आई.एस. ठाकुर।। भारतीय जनता पार्टी पिछले कुछ समय से हिमाचल में बल्ड ड्रग फार्मा पार्क बनाने को केंद्र की मंजूरी मिलने को ‘डबल इंजन सरकार’ की उपलब्धि बता रही है। आज मंडी के पड्डल मैदान में जुटे भाजयुमो कार्यकर्ताओं को वर्चुअली संबोधित करते हुए पीएम नरेंद्र मोदी ने भी इसका जिक्र किया और कहा कि हिमाचल एशिया से विश्व का फार्मा हब बनने जा रहा है। दूसरी ओर कांग्रेस, खासकर नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री, जिनके क्षेत्र हरोली में यह पार्क बनना है, कहते हैं कि यह घोषणा सिर्फ चुनावी स्टंट है। बावजूद इसके बीजेपी का मानना है कि हिमाचल के लिए बल्क ड्रग फार्मा पार्क एक बहुत बड़ा तोहफा है क्योंकि अगर यह हिमाचल को न मिलता तो पहले से हिमाचल में मौजूद फार्मा इंडस्ट्री कहीं और शिफ्ट हो जाती।

इसमें कोई दो राय नहीं कि विषम भौगोलिक परिस्थितियों वाले हिमाचल प्रदेश के लिए आर्थिक लिहाज से देखा जाए तो करीब दो दशकों बाद बल्क ड्रक पार्क के रूप में दूसरी बड़ी उपलब्धि हाथ लगी है। करीब दो दशक पहले 2003 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल विहार वाजपेयी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने हिमाचल में औद्योगिक विकास के लिए एक विशेष पैकेज की घोषणा की थी। उसी औद्योगिक पैकेज की बदौलत हिमाचल प्रदेश एशिया का फार्मा हब बना और आज हिमाचल केवल भारत ही नहीं बल्कि एशिया के फार्मा उत्पाद की 35 फीसदी डिमांड पूरा करता है।

हिमाचल ही नहीं भारत की आर्थिकी में भी इसका बड़ा योगदान है। अब बल्क ड्रग पार्क हिमाचल और देश को जीवन रक्षक दवाओं के निर्माण के क्षेत्र में उस शिखर पर लेकर जाएगा, जिसका ताना-बाना कोविड काल से आत्मनिर्भर भारत के रूप में बुना जा रहा था। ऐसे में हम इस खबर के माध्यम ये उन पहलुओं को समझने की कोशिश करेंगे कि आखिर बल्क ड्रग पार्क क्या है। यह हिमाचल के लिए लाभकारी है या नहीं और अगर है तो कितना और किस तरह से और नहीं है तो कैसे।

Anurag Thakur seeks bulk drug park establishment in Himachal Pradesh, meets Mandaviya

क्या है बल्क ड्रग फार्मा पार्क
बल्क ड्रग को ए.पी.आई (एक्टिव फार्मास्यूटिकल इनग्रीडियेंट) भी कहते हैं। आसान भाषा में कहें तो हर दवा दो मुख्य घटकों से बनती है। इसमें एक घटक रासायनिक रूप से सक्रिय ए.पी.आई. तथा दूसरा घटक रासायनिक रूप से निष्क्रिय (एक्सेपिएंस) घटक होता है। इन दोनों मिला कर ही किसी दवा का फ़ॉर्मूला तैयार होता है। इसमें भी कई सारी प्रक्रियाएं है। सीधे शब्दों में कहें तो इन दवाओं के लिए बड़े पैमाने पर एक जगह तैयार किया जाएगा। जिस तरह आप आईटी पार्क को देख सकते हैं कि एक ही जगह पर बहुत सारी आईटी कंपनी कार्य करती हैं ठीक वैसे भी दवा के एपीआईए के लिए बल्क ड्रग पार्क है।

खत्म होगा चीन का आधिपत्य
बल्क ड्रग पार्क से हिमाचल और देश के फार्मा उद्योग की कच्चे माल को लेकर चीन से निर्भरता खत्म होगी और हम आत्मनिर्भर बनेंगे। दरअसल भारत इस समय दुनिया के सबसे बड़े फार्मा उद्योगों वाले देशों में शुमार है, लेकिन भारत को एपीआई के लिए चीन पर ही निर्भर रहना पड़ता है। आसान भाषा में कहें तो दवाएं तैयार करने के लिए जो कच्चा माल चाहिए होता है वो भारत को चीन से आयात करना पड़ता है। राज्यसभा में दिए गए आंकड़ो के मुताबिक भारत ने वित्त वर्ष 2021 में 28 हज़ार 529 करोड़ रुपये के बल्क ड्रग और ड्रग इंटरमिडिएट्स आयात किए। इसमें से 19 हज़ार 402 करोड़ रुपये की खरीद केवल चीन से की गई थी। यह करीब 68 फीसदी बैठता है। चीन के इसी आधिपत्य को समाप्त करने के साथ भारत और हिमाचल आत्मनिर्भर बनेगा।

Bulk Drug Park & Production Linked Incentive (PLI) Scheme - IndiaFilings

हिमाचल के लिए इतना आसान नहीं था कॉम्पिटिशन
देश के मात्र तीन बल्क ड्रग पार्क में से एक पार्क हिमाचल के हिस्से आना बड़ी सफलता है। क्योंकि गुजरात और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य हिमाचल की आर्थिकी के लिहाज से बहुत ही बड़े राज्य हैं। इसके अलावा भी कई अन्य राज्य भी इस प्रोजेक्ट को अपने यहां लाना चाह रहे थे। हालांकि इस सफलता की कहानी बुनना इतना भी आसान नहीं था। जिस बल्क ड्रग पार्क के लिए देश के तमाम बड़े राज्यों के साथ कॉम्पिटिशन था उस कॉम्पिटिशन में पहले नंबर पर रहना छोटी बात तो कतई नहीं है।

विश्लेषकों का माना है कि यदि नाकामियों के लिए सरकार के सरदार और सेवादारों से जवाबदेही ली जाती है तो सफलता का श्रेय भी उन्हीं को जाना चाहिए। विश्लेषक कहते हैं कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर को विपक्ष लगातार अफसरशाही पर पकड़ न रखने के लिए कोसता था मगर आज जयराम ठाकुर ने बता दिया है कि काम पकड़ ही नहीं प्यार से भी हो जाता है। दरअसल इस प्रोजेक्ट में भी मुख्यमंत्री और उनकी टीम का बड़ा योगदान रहा, जिन्होंने कागजी कामों में तेजी दिखाई और काम पुख्ता किया कि पूरे जब देश के सभी राज्यों के साथ बल्ड ड्रग पार्क के लिए कड़ी स्पर्धा हुई तो हिमाचल प्रदेश नंबर-1 पर रहा। इसके अलावा समय-समय पर दिल्ली दौरे के दौरान मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने प्रधानमंत्री और तमाम केंद्रीय नेतृत्व से मिलकर प्रयास लगातार जारी रखे।

विज्ञापन

निवेश में हिमाचल को मिलेगा विशेष राज्य का लाभ
1 हज़ार 190 करोड़ रुपये की लागत वाले इस बल्क ड्रग पार्क के लिए केंद्र सरकार से ग्रांट इन एड के तौर पर 1 हज़ार करोड़ रुपये मिलेंगे। यानी हिमाचल सरकार को सिर्फ 190 करोड़ रुपये ही खर्च करने पड़ेंगे। हिमाचल को विशेष पहाड़ी राज्य का दर्जा प्राप्त होने का लाभ मिलेगा क्योंकि इस प्रोजेक्ट के लिए 90 फीसदी राशि केंद्र सरकार दे रही और हिमाचल को केवल 10 फीसदी राशि ही देनी है।

रोजगार और निवेश में हिमाचल की दूसरी क्रांति
बल्क ड्रग पार्क के पूरे होने पर करीब 50 हज़ार करोड़ रुपये का निवेश होगा और 20 से 30 हज़ार लोगों को प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से रोजगार मिलेगा। निश्चित तौर पर यह रोजगार और निवेश के नजरिए से हिमाचल प्रदेश की दूसरी क्रांति साबित होगी। 2003 के औद्योगिक पैकेज के बाद अब हिमाचल आगामी दस वर्षों में आत्मनिर्भरता के एक नए शिखर पर पहुंचेगा।

Coronavirus: Cabinet approves relaunch of bulk drug park scheme | Mint

मेडिकल डिवाइस पार्क का भी सहारा
हालांकि हिमाचल प्रदेश में बल्क ड्रग पार्क की ही बात हो रही है, लेकिन यह अकेली उपलब्धि हिमाचल के हिस्से नहीं आई है। देश को मिले कुल चार मेडिकल डिवाइस पार्क में से एक पिछले वर्ष ही हिमाचल के हिस्से आ चुका है। इसके लिए देश के सभी राज्यों से आवेदन मांगे गए थे। इसमें बिडिंग को लेकर बढ़िया काम किया गया। नतीज यह निकला की नालागढ़ में करीब 349 करोड़ रुपये का मेडिकल पार्क मंजूर हो चुका है। इसमें केंद्र सरकार की ओर से 100 करोड़ रुपये खर्च किए जाएंगे। इस पार्क में भी करीब 5 हज़ार करोड़ रुपये की इन्वेस्टमेंट होगीं और 10 हज़ार लोगों को रोजगार मिलेगा।

इस तरह से देखें तो वाकई हिमाचल प्रदेश के विकास में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से बल्क ड्रग फार्मा पार्क का योगदान रहेगा। एक ओर जहां विश्व पटल पर हिमाचल की नई पहचान बनेगी, वहीं प्रदेश को राजस्व मिलेगा और यहां के युवाओं को भी रोजगार मिलेगा। इसके अलावा, हिमाचल प्रदेश ने जो ग्रीन स्टेट बनने का लक्ष्य रखा है, यानी फॉसिल फ्यूल से बनने वाली बिजली से मुक्ति का जो टारगेट रखा है, अगर वह उसे हासिल कर लेता है तो हिमाचल में बनने वाली दवाइयां ही नहीं, दूसरे उत्पाद भी पूरी दुनिया में ग्रीन प्रॉडक्ट के रूप में बिकेंगे। यह बड़ी बात होगी क्योंकि आज की जेनरेशन पर्यावरण का ख्याल रखते हुए ग्रीन प्रॉडक्ट्स इस्तेमाल करने को तरजीह दे रही है, खासकर विदेश में।

बहरहाल, हिमाचल को इस बल्क ड्रग फार्मा पार्क का लाभ तभी मिल पाएगा जब तुरंत यह धरातल पर उतरे। और इसके लिए जरूरत है अच्छे राजनीतिक तालमेल और मजबूत इच्छाशक्ति की।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विषयों पर लंबे समय से लिख रहे हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

SHARE