हिमाचल की वे महिलाएं जिनका काम सबके लिए मिसाल है

इन हिमाचल डेस्क।। आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है। इस मौके पर हमने कोशिश की है हिमाचल प्रदेश से संबंध रखने वाली उन महिलाओं के बारे में जानकारी जुटाने की जिन्होंने प्रतिकूल हालात में कुछ ऐसा काम किया जिसकी मिसाल दी जा सकती है। आज हिमाचल प्रदेश की बेटियां विभिन्न क्षेत्रों में कामयाब हैं। चाहे वह शिक्षा का क्षेत्र हो, राजनीति का, फिल्म और कला का, विज्ञान का या कारोबार का। ऐसे में सभी का नाम तो इस सूची में आ नहीं पाएगा। इसलिए हमने उन नामों को इसमें सम्मिलित किया है, जो उस समय प्रेरणा का स्रोत बने जब हालात आज के मुकाबले और भी सख्त और प्रतिकूल हुआ करते थे और उनके कामों ने न सिर्फ महिलाओं बल्कि पुरुषों और हर शख्स को प्रभावित किया।

किंकरी देवी
किंकरी देवी ऐसा नाम है जिन्होंने पर्यावरण बचाने को लेकर ऐसा संघर्ष किया कि पूरी दुनिया में उनके नाम की चर्चा हुई। सिरमौर के दूर-दराज इलाके में घांटो संगड़ाह में जन्मीं किंकरी देवी ने गिरिपार इलाके में अवैध और अवैज्ञानिक तरीके से हो रहे खनन के खिलाफ आवाज उठाई थी। 1940 को जन्मीं किंकरी देवी ने विरोध प्रदर्शन, भूख हड़ताल, ज्ञापन भेजकर लोगों को जागरूक किया कि ये जो अवैध ढंग से खदानों में खनन किया जा रहा है, यह ठीक नहीं है। ऐसा भी कहा जाता है कि पैसे कम थे तो उन्होंने संघर्ष का खर्च निकालने के लिए मंगलसूत्र तक बेच दिया था।

80 के दशक के बीच में उन्होंने महिलाओं को एकजुट किया और अन्य संगठनों को साथ लेकर एक व्यापक अभियान छेड़ा था। उन्होंने ग्रामीणों को पढ़ाई-लिखाई और खासकर ल़ड़कियों को भी स्कूल भेजने के लिए प्रोत्साहित किया था। उन्होंने खनन माफिया के खिलाफ सरकारों को कार्रवाई करने के लिए कहा। सरकारें तो ढीली रहीं मगर 1987 में दायर एक जनहित याचिका पर 1991 में फैसला आया और 50 से ज्यादा खदानें बंद हो गईं।

किंकरी देवी (बीच में)

आज हिमाचल की नई पीढ़ियां भले ही किंकरी देवी के बारे में न जानती हों मगर पूरी दुनिया ने उनको सराहा है। 2001 में भारत सरकार ने उन्हें स्त्री शक्ति नैशनल अवॉर्ड दिया था। मगर उससे पहले 1998 में चीन की राजधानी बीजिंग में हुए महिला सम्मेलन का शुभारंभ किंकरी देवी से ही करवाया गया था। 30 दिसंबर 2007 को बीमारी के बाद किंकरी देवी का निधन हो गया था मगर हिमाचल की नई पीढ़ियों पर हमेशा उनकी कर्जदारी रहेंगी।

गंभरी देवी
“खाणा-पीणा नंद लैणी हो गंभरिये…” गाने वाली गंभरी देवी। साल 1922 में हिमाचल प्रदेश के बिलासपुर जिले के बंदला गांव में जन्मीं। बचपन से नाचने और गाने की शौकीन थीं। छोटी उम्र में शादी कर दी गई मगर अपने जुनून को कायम रखा। जब वो गातीं और अभिनय करते हुए नाचती तो हर कोई अलग ही दुनिया में पहुंच जाता। उनकी ख्याति अपने गांव, जिले से दूर पहुंची और लोग उन्हें कार्यक्रमों में बुलाने लगे। जिस किसी को पता चलता कि फ्लां जगह गंभरी आ रही हैं, वहां भीड़ जुट जाती।

गंभरी देवी

उनकी टीम में बसंता (बसंत पहलवान उर्फ पिस्तू) नाम के एक शख्स थे जो बहुत शानदार ढोलक बजाया करते। बसंता ढोलकी की थाप पर तान छेड़ते और गंभरी सुरीली आवाज से सुरों की ऐसी बारिश करतीं कि घंटों तक लोग मंत्रमुग्ध रहते। लंबे समय तक वह गाती रहीं, लोगों का मनोरंजन करती रहीं। साल 2013 में 91 साल की उम्र में उनका निधन हुआ। उनके गीत आज भी नई पीढ़ी के गायकों का मार्गदर्शन कर रहे हैं और जनता का मनोरंजन।

रानी खैरागढ़ी- ललिता
मंडी रियासत के राजा रहे भवानी सेन की पत्नी ललिता खैरागढ़ रियासत की राजकुमारी थीं, इसीलिए उन्हें रानी खैरागढ़ी कहा जाता था। साल 1912 में राजा भवानी सेन का निधन हो गया। राजा भवानीसेन और ललिता के कोई अपनी संतान नहीं थी मगर बालक जोगिंदर सेन को गोद लिया गया था। जोगिंदर सेन मंडी रियासत के वारिस तो थे मगर संरक्षक की भूमिका निभा रही उनकी मां ललिता ने पुत्रमोह के बजाय देशप्रेम को प्राथमिकता दी। रानी खैरागढ़ी ने क्रांति का रास्ता अपना लिया। उन्होंने अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले लाला लाजपतराय के संगठन के लिए काम किया। उन्होंने आजादी के लिए संघर्ष करने वालों को आर्थिक योगदान तो दिया ही, खुद भी सक्रिय भूमिका निभाई।

बम बनाने का प्रशिक्षण भी उन्होंने लिया था। मंडी में गदर पार्टी के कई सदस्य सक्रिय थे और रानी खैरागढ़ी उनके संरक्षक की भूमिका में थीं। साल 1914 में योजना बनाई गई कि नागचला स्थित सरकारी खजाने को लूट लिया जाए। पंजाब से क्रांतिकारियों की तरफ से बनाए गए बम भी मंगवाए गए थे। क्रांतिकारी मंडी में अंग्रेज सुपरिटेंडेंट, वजीर और अन्य अंग्रेज अफसरों को उड़ाना चाहते थे। नागचला में खजाने को तो लूट लिया गया, मगर दलीप सिंह और पंजाब के क्रांतिकारी निधान सिंह पकड़े गए। पुलिस ने इन्हें भयंकर यातनाएं दीं और उन्होंने सभी सदस्यों के बारे में जानकारी दे दी।

बद्रीनाथ, शारदा राम, ज्वाला सिंह, मियां जवाहर सिंह और लौंगू नाम के क्रांतिकारियों को पुलिस ने पकड़कर जेल में डाल दिया। बात रानी खैरागढ़ी की आई तो उन्हें रियासत से निकाल दिया गया। कोई और होता तो हार मान लेता या झुक जाता, मगर रानी ललिता ने ऐसा नहीं किया। उन्होंने लखनऊ में प्रवास के दौरान कांग्रेस में सक्रियता से हिस्सा लेना शुरू किया। उन्होंने असहयोग आंदोलन में भी हिस्सा लिया और महिला कांग्रेस की अध्यक्ष भी चुनी गईं।

साल 1938 में मंडी रियासत का सिल्वर जुबली समारोह था। बेटे जोगिंद्रसेन, जो मंडी के राजा थे, ने मां को लखनऊ से मंडी बुलाया। मां चल दी, लेकिन मन में एक ही आग थी कि अंग्रेज दफा होने चाहिए इस देश से। आज के जोगिंद्रनगर (सुक्राहट्टी) में हराबाग नाम की जगह है, जहां पर क्रांतिकारियों के साथ वह बैठक कर रही थीं। गांववालों ने क्रांतिकारियों के लिए खाना भेजा मगर वह शायद खराब था। रानी को हैजा हो गया और उनका निधन हो गया। अफसोस कि देश को आजाद देखे बिना ही वह इस दुनिया से चली गई।

नोरा रिचर्ड्स
नोरा रिचर्ड्स हिमाचल में जन्मी नहीं थीं मगर हिमाचल उनकी कर्मभूमि रहा है। 1876 में आयरलैंड में जन्मीं नोरा अभिनेत्री थीं। थिएटर की दुनिया में उनका नाम बड़े अदब से याद किया जाता है। 60 साल उन्होंने पंजाब (जिसमें उस समय आज के हिमाचल का बड़ा हिस्सा शामिल था) में थिएटर को मजबूत करने का काम किया। 1920 में उनके पति की मृत्यु हुई तो इंग्लैंड चली गईं मगर 1924 में भारत आ गईं।

नोरा रिचर्ड्स

वो कांगड़ा घाटी में बसीं और अंद्रेटा में रहने लगीं। दरअसल कांगड़ा घाटी में कई अंग्रेजों ने जमीन जायदाद बना ली थी। ऐसे की एक अंग्रेज अधिकारी ने इंग्लैंड जाने से पहले नोरा को अपनी संपत्ति दे दी थी जिसका नाम वुडलैंड्ट एस्टेट था। नोरा गांव के लोगों में रहीं और मिट्टी का कच्चा मकान बनाया जैसा आम लोगों का था। घर का नाम उन्होंने रखा- चमेली निवास।

यहां उन्होने ड्रामा स्कूल खोला जहां पर खुले में उनके स्टूडेंट गांव वालों के सामने नाटक करते। पृथ्वीराज कपूर और बलराज साहनी जैसे बड़े नाम भी यहां आया करते। बाद में प्रोफेसर जय दयाल, चित्रकार शोभा सिंह और फरीदा बेदी जैसे लोग जो नोरा के दोस्त थे, वे भी वुडलैंड एस्टेट में रहे। जिस दौर में अंग्रेज और अंग्रेजीदां भारतीय यहां की परंपराओं का मजाक उड़ाया करते थे, नोरा अपने नाटकों के जरिये उन परंपराओं और मान्यताओं का समर्थन करती थीं। उन्होंने नाटकों के जरिये समाज में फैली बुराइयों को दूर करने का भी काम किया।

ये तो कुछ ही नाम हैं। इनके अलावा भी हिमाचल प्रदेश में जन्मीं या इसे अपनी कार्यभूमि बनाने वाली महिलाएं विभिन्न क्षेत्रों में नाम कमा रही हैं। लेकिन सिर्फ नाम कमाना ही उपलब्धि नहीं है। विभिन्न स्थानों पर हर महिला का योगदान अहम है। एक बार फिर शुभकामनाएं- आप स्वतंत्र रहें, निर्भीक रहें और अपने सभी सपने पूरे करें।

SHARE