क्या हिमाचल सरकार ने धारा 118 में संशोधन किया है?

ऐसी खबरें समय समय पर सामने आती रहती हैं।

शिमला।। सोशल मीडिया पर कुछ समाचार पत्रों की कटिंग्स शेयर की जा रही है जिनमें दावा किया गया है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने ‘मुजारियल एवं भू-सुधार अधिनियम-1972’ की ‘धारा-118’ में संशोधन किया है। कहा जा रहा है कि इसके तहत “प्रदेश के विभिन्न विभागों में कार्यरत गैर हिमाचली अधिकारियों व कर्मचारियों को सरकार ने बड़ी राहत दी है” और स्पष्ट किया है कि “यदि कोई गैर हिमाचली अधिकारी एवं कर्मचारी किसी कारणवश स्वयं आवास योग्य भूमि लेने में असमर्थ है, तो वह अपने बच्चों के नाम से भी भूमि ले सकता है।”

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वापस लिया गया 118 के तहत आवेदन करने के नियम में संधोशन

मूल खबर का बाकी हिस्सा:
धारा 118 हिमाचल प्रदेश की जनता के लिए संवेदनशील विषय रहा है। हिमाचल प्रदेश टेनंसी ऐंड लैंड रिफॉर्म्स ऐक्ट 1972 में एक विशेष प्रावधान किया गया था ताकि हिमाचलियों के हित सुरक्षित रहें। इस ऐक्ट के 11वें अध्याय ‘कंट्रोल ऑन ट्रांसफर ऑफ लैंड’ में आने वाली धारा 118 के तहत ‘गैर-कृषकों को जमीन हस्तांतरित करने पर रोक’ है। सेक्शन 118 ऐसे किसी भी व्यक्ति को जमीन ट्रांसफर किए जाने पर प्रतिबंध लगाता है, जो हिमाचल प्रदेश में कृषक नहीं है। इसका मतलब है कि हिमाचल का गैर-कृषक आदमी भी जमीन नहीं खरीद सकता हिमाचल में।

मगर अभी जो समाचार सामने आया है, उसमें कहा गया है कि इस कानून में संशोधन किया गया है। हिमाचल दस्तक ने लिखा है, “राजस्व विभाग ने सभी उपायुक्तों और मंडलायुक्तों को क्लेरिफिकेशन जारी कर कहा है कि गैर हिमाचली अधिकारियों एवं कर्मचारियों के बच्चे भी धारा 118 के तहत जमीन खरीदने के लिए पात्र होंगे। इन पर (बच्चों के लिए) 30 साल प्रदेश में काम करने का प्रमाण पत्र लेने की शर्त भी नहीं लगेगी। यह शर्त गैर हिमाचली कर्मचारियों के लिए वर्तमान में है। इस बारे में संयुक्त सचिव राजस्व राकेश मेहता की ओर से लिखित निर्देश जारी हुए हैं। इन निर्देशों के तहत गैर हिमाचली कर्मचारी जो राज्य में कार्यरत हैं, वे यहां आवास हेतु जमीन खरीदने के लिए पात्र हैं। इनके पात्र होने के कारण इनके बच्चे चाहे वो पुत्र हो या पुत्री, वो भी यहां भूमि खरीद के लिए पात्र हैं।”

हालांकि समाचार में आगे यह भी स्पष्ट किया गया है, “यह भूमि केवल आवास निर्माण के लिए मिलेगी। यदि संबंधित कर्मचारी के बच्चे प्रदेश से बाहर काम कर रहे हैं, लेकिन रहने के लिए हिमाचल में ही आवास बनाना चाहते हैं, तो भी कोई आपत्ति नहीं होगी। इस मामले में 30 वर्ष के प्रदेश में काम करने का प्रमाण पत्र भी अपेक्षित नहीं होगा। यह गैर हिमाचली परिवारों के लिए बड़ी राहत है, जो यहां घर तो बनाना चाहते हैं, लेकिन आवेदन जिला स्तर पर ही खारिज हो रहे थे। हालांकि हिमाचल मुजारियत एवं भू-सुधार अधिनियम 1972 की धारा 118 के तहत इन्हें अनुमति लेनी होगी, जो सरकार से ही मिलेगी।”

इसी तरह दिव्य हिमाचल ने भी लिखा है, “प्रदेश सरकार के राजस्व विभाग की ओर से यह अधिसूचना 25 जुलाई, 2018 को जारी की गई है, लेकिन इसके बाद विभाग की ओर से अगस्त माह में एक अन्य अधिसूचना जारी की गई। इसमें स्पष्ट किया गया कि कोई भी गैर हिमाचली अधिकारी एवं कर्मचारी इसे धारा-118 में छूट न समझें, क्योंकि ऐसे सभी अधिकारियों एवं कर्मचारियों को धारा-118 के तहत ही अनुमति लेने के अप्लाई करना होगा।”

क्या है सच
ऊपर की इन खबरों को सच मानें तो स्पष्ट है कि जुलाई महीने में सरकार की ओर से मंडलायुक्तों को बताया गया है कि गैर हिमाचली अधिकारियों के बच्चे जमीन खरीदने के लिए आवेदन कर सकते हैं और वे सिर्फ रहने के लिए ही जमीन खरीद सकते हैं और इसके लिए भी अनुमति सरकार से ही मिलेगी।

गौरतलब है कि कई अधिकारी जो मूलरूप से अन्य राज्यों में हैं, हिमाचल प्रदेश में सेवाएं दे रहे हैं और यहीं रह रहे हैं। हिमाचल प्रदेश टेनेंसी ऐंड लैंड रिफॉर्म्स रूल्स 1975 जो कि 2012 तक संशोधित है, उसमें 38 A के तहत शर्त तीसरे अनुच्छेद में लिखा गया है कि सब-रूल 2 के तहत कुछ कामों के लिए जिन योग्यताओं के आधार पर इजाजत दी जा सकती है। इसमें b) शर्त कहती है कि घर बनाने के लिए 500 स्क्वेयर मीटर(150 स्क्वेयर मीटर से काम नहीं) वे लोग जमीन ले सकते हैं

  • 1. b) जो हिमाचल में 30 से ज्यादा सालों तक काम कर रहे हों और संबंधित स्थानीय निकाय ने उसे इजाजत देने की सिफारिश की हो।

ऐक्ट की कॉपी यहां क्लिक करके देखी या डाउनलोड की जा सकती है

इसी पैमाने वाला व्यक्ति दुकान के लिए भी जमीन खरीदने का आदेवन कर सकता है। मगर समाचार कहते हैं कि इस नियम में ढील देते हुए कर्मचारियों के बच्चों को जमीन खरीदने का आवेदन करने की इजाजत दे दी गई है और उनके लिए (बच्चों के लिए) हिमाचल में 30 साल तक काम करने की शर्त भी जरूरी नहीं है यानी वे भले ही बाहर कहीं काम कर रहे हों, वे हिमाचल में जमीन खरीदने के लिए आवेदन करने के योग्य हो गए हैं।

समाचारों में स्पष्टता का अभाव
धारा 118 स्पष्ट तौर पर कहती है कि कोई भी भारतीय नागरिक (गैर-हिमाचली) हिमाचल में रिहायश बनाने के लिए जमीन खरीदने के लिए आवेदन कर सकता है। 38 A के ही तहत तीसरे अनुच्छेद में सब सेक्शन C में लिखा है कि कोई भी भारतीय नागरिक (OCI समेत) और भारत में पंजीकृत कानूनी एंटिटी डेप्युटी कमिश्नर की सिफारिश पर रिहायशी इलाका बनाने के लिए 500 स्क्वेयर मीटर तक जमीन खरीदने का आवेदन कर सकता है। मगर इसके लिए शर्त यह है कि जो जमीन खरीदी जा रही हो, वह टाउन ऐंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट के पास पंजीकृत हो और डिपार्टमेंट ने वहां इमारत बनाने के लिए पहले से NOC न दिया हो।

ये नियम जमीन खरीदने के नहीं, जमीन के खरीदने के लिए आवेदन से जुड़ने नियम हैं। इसलिए आगे पढ़ते समय और ऊपर लिखी बातों में आवेदन शब्द पर ध्यान दें। ये नियम सिर्फ रिहायश बनाने के लिए ही और अधिकतम 500 स्क्वेयर मीटर तक ही जमीन खरीदने के लिए आवेदन की इजाजत देते हैं। मगर इसके लिए भी सरकार की इजाजत चाहिए होगी और ये आवेदन सरकार ही मंजूर या रद कर सकती है। हालांकि यह देखा जाता रहा है कि सरकारें अपने चहेतों को यह इजाजत देने में दरियादिली दिखाती हैं और उनमें अभिनेताओं से लेकर राजनेता भी शामिल हैं।

इस हिसाब से देखें तो 2012 तक के संशोधित ऐक्ट के नियम बताते हैं कि कोई भी व्यक्ति, चाहे वह हिमाचली कर्मचारी हो या न हो, जमीन खरीदने के लिए आवेदन कर सकता है। फर्क इतना है कि 30 साल की सेवा पूरी करने वाले व्यक्ति के आवेदन पर स्थानीय निकाय सिफारिश कर सकते हैं और अगर कोई भी भारतीय नागरिक (गैर-हिमाचली) को जमीन खरीदने की अनुमति देने की सिफारिश सिर्फ डीसी कर सकते हैं। लेकिन ये सिफारिशें भी यूं ही नहीं की जा सकतीं, इसके लिए आवेदक को कुछ और शर्तें पूरी करनी होती हैं। मसलन उसके हिमाचल आकर बसने से हिमाचल को क्या लाभ होगा, उसे बताना होता है।

क्या है संभावना
ऐसे में संभव है कि हिमाचल प्रदेश सरकार ने इसी संबंध में क्लैरिफिकेशन जारी की हो यानी स्पष्टीकरण जारी किया हो। विभिन्न विभाग समय-समय पर कर्मचारियों को नियमों आदि को स्पष्ट करने के लिए इस तरह के सर्कुलर भेजा करते हैं। सवाल उठ रहा है कि अगर सरकार ने ऐसा संशोधन किया होता तो उसे इसकी नोटिफिकेशन सार्वजनिक करनी पड़ती मगर जुलाई महीने में ऐसी कोई नोटिफिकेशन हमें हिमाचल प्रदेश रेवेन्यू डिपार्टमेंट की वेबसाइट पर नहीं मिली। हालांकि यह भी तथ्य है कि अधिकतर सरकारी विभाग सभी नीतिगत फैसलों और अन्य कानून और नियमों के संशोधनों की अधिसूचनाएं वेबसाइटों पर अपलोड नहीं करते। ऐसे में दो ही संभावनाएं हो सकती हैं-

1) सरकार ने चुपके से संशोधन करके उसकी नोटिफिकेशन सार्वजनिक नहीं की जो अब मीडिया के जरिए सामने आई है।

2) अखबारों ने किसी मौजूदा नियम के क्लैरिफिकेशन को संशोधन का समाचार समझकर प्रकाशित किया।

अगर ऐसा हुआ है तो इन हिमाचलियों के साथ अन्याय
अगर हिमाचल में काम करने वाले बाहरी राज्यों के कर्मचारियों या अधिकारियों के बच्चों को जमीन खरीदने में नियमों में बदलाव किया गया है तो यह हिमाचल प्रदेश के उन गैर-कृषक हिमाचलियों के साथ छल है, जो हिमाचली होने के बावजूद हिमाचल में ज़मीन नहीं खरीद सकते और जिन्हें बाहरियों की तरह की जमीन खरीदने की इजाजत के लिए आवेदन करना पड़ता है। पढ़ें-(जो कृषक नहीं हैं, क्या वह हिमाचली नहीं है?)

मगर फिर भी इस पूरे मामले में अभी तक रहस्य बना हुआ है, क्योंकि न तो सरकार ने अभी तक इन खबरों का खंडन किया है और न ही विपक्ष ने इस मामले पर कोई टिप्पणी की है । ऐसे में सोशल मीडिया पर सरकार की चुप्पी पर भी सवाल उठाए जा रहे हैं कि  अगर ये खबरें गलत हैं तो सरकार के किसी मंत्री को सामने आकर इस पर स्पष्टीकरण देना चाहिए या फिर बयान जारी करके स्थिति स्पष्ट करनी चाहिए।

आसान भाषा में समझें, हिमाचल की धारा 118 आखिर क्या है

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