हिमाचल प्रदेश के स्वतंत्रता सेनानी: जब अंग्रेजों को मिली पहाड़ से चुनौती

इन हिमाचल के सभी पाठकों को स्वतंत्रता दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं। आज का दिन सिर्फ उन शहीदों को याद करने का नहीं है, जिनकी वजह से हमें आजादी मिली। बल्कि आज का दिन है उनके जीवन और बलिदान से प्रेरणा लेने का और यह प्रण लेने का कि इस आजादी के सही मायनों को हम समझेंगे। अगर उन लोगों ने यह सोचकर आजादी की मांग की थी कि हम खुद इस देश को अच्छे तरीके से चलाकर प्रगति की राह पर आत्मसम्मान के साथ बढ़ेंगे तो यह सोच आज भी हमारे अंदर होनी चाहिए।

अक्सर हमारी पाठ्य पुस्तकों में उन महान विभूतियों के बारे में पढ़ाया जाता है, जिन्होंने बड़े स्तर पर उठकर अंग्रेजों की नाक पर दम किया। मगर हमें किसी एक व्यक्ति या मुट्ठी भर लोगों की वजह से आजादी नहीं मिली। उस दौर में हर घर से अंग्रेजों को प्रतिरोध की आवाज सुनाई दी थी। आइए, हम जानें कि हमारे हिमाचल प्रदेश से कौन सी ऐसी विभूतियां हुईं, जिन्होंने खुद आम जन के मन में आजादी की लालसा जगाई।

सिरमौर
सिरमौर की पहाड़ी चोटी से निकले बझेतु खड्ड के दोनों ओर बसी वादी को पझौता के नाम से जाना जाता है, क्योंकि सबसे पहले इसी क्षेत्र से राजा के खिलाफ विरोध की चिंगारी उठी थी। इसलिए इसे पझौता आंदोलन का नाम दिया गया था। वैद्य सूरत सिंह पझौता आंदलन के महानायक थे। पझौता आंदोलन’ भारत छोड़ो आंदोलन का एक हिस्सा रहा था।

ब्रिटिश अफसर ने अंग्रेजी फौज को इस आंदोलन को कुचलने के लिए राजगढ़ भेजा था, जहां उन्होंने सरोट नामक स्थान पर मोर्चा बांध कर निहत्थे लोगों पर गोलियों की बरसात की थी। राजा के सैनिकों ने कलीराम शावगी और वैद्य सूरत सिंह का का तिमंजला मकान भी डाइनामइट से उड़ा दिया। सिरमौर कमनाराम शहीद हो गए व दर्जन भर स्वतंत्रता सेनानी घायल हो गए। आजादी के बाद भी वैद्य सूरत राम लगभग एक वर्ष बाद जेल से छूटे थे।

ऊना
प्रदेश के मैदानी जिले ऊना के वासी लक्ष्मण दास भगत सिंह के चाचा सरदार अजीत सिंह के संपर्क में आने के बाद लाला लाजपत राय से मिले। उनकी पत्नी दुर्गाबाई, दोनों पुत्र सत्य भूषण एवम् सत्यमित्र ने भी स्वाधीनता संग्राम में अपना योगदान दिया। महिलायों से लेकर बच्चों तक को ऊना में इन्होंने आजादी के लिए जागृत किया।

विदेशी कपड़ों की होली जलाने के दौरान बाबा लक्षमण दास को 1930 में उनके 14 वर्षीय बेटे सत्य प्रकाश के साथ अंग्रेजी हकूमत ने बेड़ियों में जकड दिया और कोठरी में बन्द करके आटे की चक्की चलाने की सजा दी। ज़िला ऊना से अन्य स्वाधीनता सेनानियों में अनंत राम (गगरेट) जगदीश सिंह (मालहत ) ठाकुर दास (धर्मपुर) धनि राम (दुलैहड़) लक्षमण दास (ओयल ) ठाकुर वरयाम सिंह ( दौलतपुर) वतन सिंह , ख़ुशी राम , गोपी राम, जमना देवी , लक्ष्मण दास आदि ने महत्वपूर्ण योगदान दिया।

कांगड़ा
आज की तरह वीरों की भूमि ज़िला कांगड़ा उस दौर में भी अंग्रेजों से लोहा ले रही थी। जब तक भारत को आजादी नहीं मिल जाती, काले कपड़े ही पहनने की पहनने की प्रतिज्ञा करने वाले पहाड़ी गांधी बाबा कांशी राम ने इसी धरा पर जन्म लिया था। बम बनाने में एक्सपर्ट भगत सिंह के राईट हैण्ड माने जाने वाले यशपाल तात्कालिक कांगड़ा ज़िला से ही संबंध रखते थे। तात्कालिक कांगड़ा के नादौन से इंदरपाल नूरपुर से वजीर राम सिंह पठानिया।

आजाद हिन्द फ़ौज के रणबांकुरे कैप्टेन दल बहादुर थापा , राष्ट्र गान की धुन के रचियता राम सिंह ने इस सिलसिले को आगे बढ़ाया। राम सिंह ठाकुर को सुभाष चन्द्र बोस ने वायोलिन दिया था जिसे आजीवन राम सिंह ने अपने पास रखा कदम कदम बढाए जा ख़ुशी के गीत गाये जा गाने की धुन वही रचियता थे। इसके अलावा कांगड़ा घाटी से बिशन दत्त। बलदेव सिंह बुद्धि सिंह, बरवाल सिंह , होशियार सिंह , जैसी राम सुशील रतन , युद्धवीर सिंह कटोच लाल सिंह ,कश्मीर सिंह आदि ने माँ भारती को बेड़ियों से मुक्त करने के लिए अपना योगदान दिया।

बिलासपुर
ज़िला बिलासपुर तात्कालिक कोट केहलूर रियासत से 332 मतवालों ने स्वतंत्रता संग्राम में विभिन मोर्चो पर हिस्सा लिया। आजादी की लड़ाई से हिमाचल का जब भी जिक्र आता है स्वर्गीय दौलत राम सांख्यान का नाम बड़े अदब से लिया जाता है। बिलासपुर में प्रजामंडल का गठन करके उन्होंने सीढ़ी टक्कर ब्रीटानी हकूमत से ले ली थी। अंग्रेज सरकार ने उनकी संपत्ति कुर्क करके उन्हें जेल में डालने से लेकर रियासत से तड़ीपार तक किया था।

इसी जिले से स्वर्गीय नरोत्तम दत्त शास्त्री ने सुकेत सत्याग्रह एवम प्रजामंडल आन्दोलनों में बढ़ चढ़ कर भाग लिया। धर्मवीर सिंह इस रियासत से अकेले शक्श से जो आल इंडिया सतत पीपल कॉन्फ्रेंस में भाग लेने ग्वालियर गए थे। निष्कासन की गाज इनपर भी गिरी थी , इनके अलावा आजाद हिन्द फ़ौज के बहुत सिपाही बिलासपुर से थे जिन्होंने नेताजी के साथ काम किया।

सोलन
सोलन से 68 सेनानी स्वतंत्रता संग्राम में कूदे धर्मपुर से भगवान् दास अर्की से भजनु राम ने धामी गोली काण्ड में हिस्सा लिया और कारावास गए नालागढ़ के मंगल राम को सेना में चट्गवं में ब्रटिश हकूमत से विद्रोह करने के लिए कारवास की सजा दी गयी। भारत चोर्डो आंदोलन के दौरान नालागढ़ के ही मनफल दास को एक वर्ष के लिए लाहौर की जेल में बंद कर दिया गया। अर्की से किरपा राम , केशव राम , गौरीशंकर आदि कई सेनानियों ने भारत की आजादी के लिए संघर्ष किया।

हमीरपुर
तात्कालिक कांगड़ा की तहसील हमीरपुर से 8 महानायकों ने जंगे आजादी में योगदान दिया किरपा राम ज़िला के लम्बलू पंचयात से सबंध रखते थे नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के साथ इन्होंने आजाद हिन्द फ़ौज में काम किया था। बाद में किरपा राम को भारतीय सेना में शामिल किया गया। हमीरपुर ज़िला से ही बृजलाल , दुनीचंद , हरिचंद लालचन्द आजाद हिन्द फ़ौज के सक्रिय सदस्य रहे थे।

मंडी
मंडी से 50 वीरों ने आजादी के दिन के लिए संघर्ष किया कृष्णनंद स्वामी , पंडित गौरी प्रसाद , पूर्णा नन्द , हिरदा राम जैसे गांधि वादियों के साथ मंडी की रानी खैरागढ़ी (उनके बेटे जोगिंदर सेन के नाम पर जोगिंदर नगर का नाम रखा गयाहै) का नाम बड़े अदब से लिया जाता है। इस साहसी राजकुमारी ने ब्रिटिश राज के खिलाफ बिगुल फूंका साथ ही क्रांतिकारियों को धन भी मुहैया करवाया था। तात्कालिक सुकेत वर्तमान सुंदरनगर से भी 12 सेनानी आंदोलन का हिस्सा रहे।

कुल्लू
देव भूमि कुल्लू भी इस रण से अछूती नही रही। लग घाटी से नवल ठाकुर ऐसे मतवाले हुए जो अल्प आयु में स्कूल से भागकर आन्दोलनों में हिस्सा लेने पहुँच जाते थे और गावँ गावँ में किस्से लोगों को आजादी के नायकों के सुनाते थे। संघ के आदेश पर ढालपुर मैदान में इक्कठा हुए लोगों पर ब्रटिश हकूमत ने गोलियां चलानी शुरू की जिसमे लग घाटी के 7 युवक शहीद हुए परंतु नवल ठाकुर किसी तरह अपने आप को बचाने में कामयाब रहे।

आजादी के बाद कुल्लू रियासत में तिरंगा सर्वप्रथम किशन चन्द ने फहराया। कुल्लू के रणबांकुरों का 1857 के विद्रोह में भी नाम रहा कुल्लू से क्रांति वीरप्रताप सिंह और उनके सबंधी वीर सिंह ने सेना का गठन किया और अंग्रेज हकूमत से टक्कर ली परंतु इन दोनों वीरों को अंग्रेजों ने ग्रिफ्तार कर लिया और फांसी के फहंदी पर चढ़ दिया।

शिमला
बहुत सी छोटी रियासतों में बंटा आज का शिमला आजादी की लड़ाई का गढ़ था धामी गोली काण्ड को भला कौन हैं जानता कॉमरेड अमीचंद जैसे सेनानी शिमला से ही हुए। 1937 में धामी प्रजामंडल की स्थापना, बेगार प्रथा को बंद करने और कर में कमी के लिए धामी के मैदान में लोग जुटे और वहां के राणा के समक्ष अपनी मांगे रखीं।

इन्हीं मांगों के लिए 1939 में 1500 लोगों का समूह भागमल सौठा के नेर्तित्व में राणा के महलों की तरफ जलूस की शक्ल में चल पड़ा 16 जुलाई 1939 को घनहट्टी के पास भागमल सौठा को ग्रिफ्तार कर लिया गया। जनता उग्र हो गयी और राणा की तरफ दौड़ी पुलिस लाठी चार्ज करती रही पर विद्रोही नहीं रुके। राणा ने गोली चलाने का आर्डर दे दिया और दो व्यक्ति उमा चन्द और दुर्गा दास शहीद हो गए बहुत से लोग घायल हुए। हिमाचल प्रदेश की वादियों में गोली चलाने की यह पहली घटना थी जिसकी गूंज दिल्ली तक गयी। और राजवाड़ा शाही की तरफ एक आक्रोश पुरे प्रदेश में शुरू हुआ।

ऐसा नहीं है जिन लोगों के नाम यहाँ बताये गए मात्र यही लोग प्रदेश से जंगे आजादी का हिस्सा रहे। सैंकड़ों ऐसे भी मतवाले रहे होंगे जिनके नाम बेशक सरकारी रिकॉर्ड में नहीं होंगे पर उन्होंने भी माँ भारती को गुलामी की बेड़ियों से आजाद करवाने अपना अमूल्य योगदान दिया होगा जिसकी वजह से यह देश 15 अगस्त की सुबह आजादी का सूरज देख पाया था। ऐसे असंख्य गुमनाम सेनानियों को भी हम नमन करते हैं। स्वतंत्रता प्राप्ति के उस दौर में सार्वजनिक नैतिक और भावनात्मक रूप से दिया गया हर योगदान करोड़ों जन्मों के पुण्य प्रताप से भी बढ़कर है।

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