ढोलरू: प्रकृति को समर्पित हिमाचल प्रदेश का लोक गायन

इन हिमाचल डेस्क।। आपमें से बहुत लोगों को शायद पता नहीं होगा कि ‘ढोलरू’ क्या है। चैत्र महीने की शुरुआत होते ही कुछ लोगों की टोली घर-घर घूमती है और लोकगीत सुनाती है। ढोलक की थाप पर गाए जाने वाले गाने को कहते है ढोलरू और इस घुमंतू टोली को कहते हैं ‘ढोलरू वाले।’

दरअसल पुराने समय से कुछ इलाकों में मान्यता चली आ रही है कि चैत्र महीना आने पर उसका नाम तब तक नहीं लेना है, जब तक “ढोलरू वाले’ आकर उन्हें इस महीने का नाम न सुना दें। संक्रांति को ढोलरू वाले ढोलक बजाकर चैत्र का नाम गायन के माध्यम से सुनाते हैं। यह प्रक्रिया एक हफ्ते तक चलती है और वे गांव-गांव जाकर ढोलरू सुनाते हैं।

कभी दो लोग होते हैं तो कभी 4 से 5 लोगों की टोली ढोलरू सुनाती है। पहले तो चैत्र का नाम सुनाया जाता है और फिर लोग गुजारिश करें तो अन्य लोक गीत भी गाए जाते हैं, जिनमें रुल्ह-कुल्ह, धोबण और कंढी शामिल हैं। रुल्ह-कुल्ह चंबा की रानी की कहानी है और धोबण एक धोबिन की। इसी तरह कंढी में बहन की कहानी है। आखिर में लोग इन ढोलरू वालों को अनाज, कपड़े और पैसे वगैरह देकर विदा करते हैं।

अब आप सोच रहे होंगे कि ढोलरू में गाया क्या जाता है। हमने जितने भी गाने इस आर्टिकल में लगाए हैं, उन्हें अलग-अलग व्यक्तियों ने अलग-अलग शैली में गाया है, मगर सबका कॉन्टेंट एक ही है और अर्थ भी एक ही है। जाने-माने साहित्यकार अनूप सेठी जी ने अपने ब्लॉग में ढोलरू के बारे में लिखा है- ‘ढोलरू के प्रचलित बोल भी विनम्रता और कृतज्ञता से भरे हैं। दुनिया बनाने वाले का नाम पहले लो, दुनिया दिखाने वाले माता पिता का नाम पहले लो, दीन दुनिया का ज्ञान देने वाले गुरु का नाम पहले लो और उसके बाद बाकी नाम लो। नए वर्ष के महीनों की बही तो उसके बाद खुलेगी।’

नीचे दिए गए विडियो को देखें, जिसमें पहले दुनिया बनाने वाले के नाम, फिर माता-पिता के नाम और फिर गुरु का नाम पहले  लेने की बात कही गई है। ध्यान से सुनें:

सेठी आगे लिखते हैं, ‘हमारे कृषि-प्रधान समाज में तकरीबन हर जगह त्‍योहार इसी तरह मनाए जाते हैं जिनमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञता व्‍यक्‍त की जाती है और मनुष्‍य के साथ उसका तालमेल बिठाया जाता है। लगता है कि त्‍योहार मनाने के ये तरीके किसी शास्‍त्र ने नहीं रचे। ये लोक जीवन की सहज अभिव्‍यक्तियां हैं जो सदियों में ढली हैं।’

अनूप सेठी का पूरा लेख यहां क्लिक करके पढ़ा जा सकता है। उन्होंने अपनी फेसबुक टाइमलाइन पर एक वीडियो भी शेयर किया है। इसमें भी वही गाया गया है, जो ऊपर वाले लोगों ने गाया है, मगर अलग अंदाज में। नीचे वीडियो देखें:

चम्बा में जम्मू से आए ढोलरू
चम्बा की बात करें तो यहां शुभ माने जाने वाले चैत्र माह का नाम लोगों को सुनाने के लिए जम्मू राज्य के बन्नी इलाके से हर साल लोग चंबा जिला मुख्यालय पहुंचते हैं। ढोलरू नाम से प्रसिद्ध यह लोग इन दिनों भी चंबा में डेरा डाले हुए हैं। अपने पूर्वजों की परम्परा को निभाते हुए ये लोग गीत गाकर लोगों को चैत्र माह का नाम सुनाते हैं। गीत सुनने की एवज में जहां लोग इन ढोलरुओं को कपड़े देते हैं वहीं अनाज, मिठाईयां व पैसे भी देते हैं। इस माह के दौरान घर-घर इनकी टोलियां देखी जा सकती हैं तथा ढोलकी की धुनों पर गीत गाकर यह लोगों का मनोरंजन करते हैं।

जम्मू राज्य के बन्नी इलाके से चंबा पहुंचे ढोलरुओं के अनुसार साल भर उन्हें इस महीने का इंतजार रहता है तथा वे इस माह चंबा आकर लोगों को चैत्र माह का नाम सुनाते हैं ताकि उनके जीवन में सुख शांति रहे। उनके अनुसार वे अपने पूर्वजों की परम्परा को निभा रहे हैं तथा गीत गाने की एवज में लोग उन्हें कपड़े, अनाज, मिठाईयां तथा पैसे इत्यादि देते हैं जिससे वह साल भर अपना गुजारा करते हैं।

स्थानीय लोगों ने बताया कि वे बचपन से ही इस परंपरा को देखते आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि चैत्र मास में यह ढोलरू घर घर जाकर चैत्र महीने का नाम सुनाते हैं जिसे सुनकर लोगों का पूरा साल सुख और समृद्धि से बीतता है। उन्होंने बताया कि वह इन लोगों से चैत्र महीने का नाम सुनते हैं और उसके बदले में नहीं कपड़े अनाज और पैसे देते हैं।

Image: fb/ Rohit Sharma

क्या है मान्यता
आखिर क्यों लोग एक वर्ग विशेष के लोगों के मुख से चैत्र माह का नाम सुनते हैं? इसके पीछे भी अनेकों कहानियाँ सुनने को मिलती है। पंडितों का कहना है कि इसी माह में भगवान ब्रह्मा ने सृष्टि की रचना की थी, इसी माह भगवान ने मानव जाति की रचना की थी।

मान्यता है कि एक विशेष वर्ग के लोग भगवान शंकर की शरण में जाकर उनकी स्तुति करने लगे। भक्ति से प्रश्न होकर भगवान ने उन्हें मंगल मुखी होने का वरदान दिया। भगवान ने कहा कि पृथ्वी लोक में जो कोई मानव आपके मुख से चैत्र माह का गुणगान सुनेगा, उसका सारा साल शुभ बीतेगा। मान्यता है कि इसी कारण इस वर्ग के लोग घर-घर जाकर आज भी चैत्र माह का नाम सुनाते हैं।

SHARE