अंग्रेज चुनौती न देते तो शायद हम अपना संविधान न बना पाते

भारतीय संविधान सभा
राजेश वर्मा।। अंग्रेज़ी हुकूमत अडिग रही कि वह उनके लिए संविधान नहीं लिखेगी, तत्कालीन भारतीय सचिव लॉर्ड बिरकेनहेड ने 1925 में भारतीयों को हाउस ऑफ लॉर्ड्स में चुनौती देते हुए ललकार कर कहा कि ‘ … उन्हें (भारतीयों को) एक ऐसा संविधान बनाने दें जो भारत के महान लोगों के बीच सामान्य समझौते का एक उचित उपाय करता हो। …’। अर्थात ऐसी वैकल्पिक योजना के साथ आने की चुनौती दी जो सभी भारतीयों को स्वीकार्य हो।
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द्वितीय विश्व युद्ध के बाद ब्रिटेन में बनी लेबर पार्टी की सरकार ने 1946 में कैबिनेट मिशन की स्थापना कर दी, भारत आकर मिशन ने कांग्रेस और मुस्लिम लीग से बातचीत करके संविधान सभा की पहली बैठक 9 दिसंबर 1946 को की।
संविधान सभा के सदस्य वयस्क मताधिकार के आधार पर निर्वाचित हुए और इनका चुनाव जुलाई 1946 में संपन्न हुआ। 6 दिसंबर 1946 को संविधान सभा की स्थापना हुई। कांग्रेस के 208 सदस्य, मुस्लिम लीग के 73 व अन्य 15 सदस्य निर्वाचित हुए। कुल 296 सदस्यों का चुनाव हुआ जबकि 93 सदस्य देसी रियासतों द्वारा मनोनीत हुए। इस तरह संविधान सभा में कुल 389 सदस्य बने । 11 दिसंबर 1946 को डाक्टर राजेंद्र प्रसाद को संविधान सभा का स्थायी अध्यक्ष चुन लिया गया। 15 अगस्त को देश स्वतंत्र हुआ लेकिन दो भागों में विभाजित हो गया। नए भारत के लिए संविधान सभा का कार्य बहुत महत्वपूर्ण हो चुका था। देश के सभी लोगों के लिए अधिकारों के साथ-साथ नए कानून बनाने की जिम्मेदारी भी संविधान सभा की थी। इसके लिए बहुत सी कमेटियां बनायी गयी।
29 अगस्त 1947 को गठित संविधान सभा की प्ररूप समिति का अध्यक्ष डाक्टर भीम राव आंबेडकर को बनाया गया। 1946 में संविधान लिखने के लिए बनायी गयी कमेटी के अध्यक्ष जवाहरलाल नेहरू थे, आसिफ अली, के टी सिंह, डाक्टर गॉडगिल, के एम मुंशी, हुमायूं कबीर, आर संथानम तथा एन. गोपाल स्वामी आयंगर इस कमेटी के सदस्य थे। जवाहरलाल नेहरू के अलावा सरदार पटेल, डाक्टर राजेंद्र प्रसाद और मौलाना आज़ाद ने भी संविधान निर्माण में अपना-अपना योगदान दिया लेकिन इन सबके बावजूद संविधान को बनाने और इसे पार्लियामेंट से पास करवाने का श्रेय डाक्टर भीम राव आंबेडकर को जाता है।
भारतीय नागरिकों को बराबरी का दर्जा चाहे वह मताधिकार की बात हो, छुआछूत के भेदभाव को ख़त्म करने की बात हो, धार्मिक स्वतंत्रता, सामाजिक व न्यायिक समानता,लैंगिक समानता जिनमें महिलाओं को बराबरी का दर्जा देने, पिछड़े व अछूत समझे जाने वाले वर्ग के लोगों को नौकरियों व शैक्षणिक संस्थानों में आरक्षण की आदि बात हो यह सब व्यवस्थाएं संविधान लागू होने से पहले किसी ने सपने में भी नहीं सोची थी, डाक्टर भीम राव आंबेडकर ने संविधान को इतना लचीला रखा कि जरूरी होने पर इसमें संशोधन भी किया जा सकता है।
भारत देश को एकजुट रखने के लिए पूरे देश के ज्यूडिशियल ढांचे व अखिल भारतीय सेवाओं की नीवं भी इनकी ही देन है जिसका प्रावधान संविधान में हुआ है।
संविधान को बनने में 2 साल 11 महीने और 17 दिन का समय लगा। 7600 के लगभग प्रस्ताव संशोधन के लिए सामने आए जिसमें से 2473 प्रस्तावों पर बहस उपरांत निपटारा किया गया। दिलचस्प बात यह भी है कि पूरा संविधान हाथ से लिखा गया,
संविधान को लिखने में जो 432 निब घिस गईं थी इन्हें इंग्लैंड से मंगावाया गया था।
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देश के प्रथम राष्ट्रपति डाक्टर राजेंद्र प्रसाद ने 26 नवंबर 1949 को पार्लियामेंट में डाक्टर आंबेडकर की तारीफ करते हुए कहा था कि ” मैंने संविधान बनते देखा है, जिस लगन और मेहनत से संविधान प्रारूप समिति के सदस्यों और विशेषता डाक्टर आंबेडकर ने अपनी खराब सेहत के वाबजूद काम किया, मैं समझता हूँ कि डाक्टर आंबेडकर को इस समिति का अध्यक्ष बनाने के सिवाए कोई और अच्छा कार्य हमनें नहीं किया। उन्होंने न केवल अपने चुनाव को सही साबित किया बल्कि अपने कार्य को भी चार चांद लगा दिए।
(स्वतंत्र लेखक राजेश वर्मा लम्बे समय से हिमाचल से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। उनसे vermarajeshhctu@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)
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