अनिरुद्ध शर्मा, नादौन क्वॉरन्टीन सेंटर से।। मैं 42 दिन मैं बेंगलुरु में अपने कमरे में बंद रहकर क्वॉरन्टीन रहा। हिमाचल सरकार ने लोगों को वापस लाने की अच्छी पहल की है मगर आगे क्या? क्या आपको लगता है कि वापस ला देने भर से आपकी जिम्मेदारी खत्म हो गई? कृपया देखिए क्वॉरन्टीन सेंटर की हालत क्या है। ये बदहाल है, कोई कैसे यहां रह सकता है। अब मुझे लगने लगा है कि वापस आने का फैसला मेरी बेवकूफी थी।
हमें सिद्धार्थ कॉलेज नादौन में रखा गया है जहां नहाने तक के लिए जगह नहीं है। वॉशबेसिन और टॉयलट जाम हो रहे हैं। हमें इमारत से बाहर भी निकलने नहीं दिया जा रहा, गेट को बंद कर दिया गया है। हमें पतले से गद्दे, एक चादर और कुछ चीजें दी हैं जिनका कोई मतलब नहीं है। हम यहां क्या करेंगे?
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चार्जिंग करने की सुविधा नहीं है। कैंपसे के सभी कमरों को बारी-बारी चेक किया और फिर जहां प्लग काम करते मिले, वहां मोबाइल चार्ज करने के लिए बारी का इंतजार करना पड़ता है। कमरों में सिगनल भी नहीं आता। अपने माता-पिता को फोन करके बता भी नहीं सकते जो हमारे बारे में सोचकर परेशान हैं। बस हम एक-दूसरे के मास्क लगे चेहरों को देखते रहते हैं।
एक कमरे में कम से कम 10 लोग हैं। अगर इनमें से एक को भी कोविड 19 हो तो पूरा कैंपस संक्रमित हो सकता है। क्या इस तरह से आप खुद या किसी को क्वॉरन्टीन करेंगे? जहां हम ठहराए गए हैं, वहां फर्श तक का ढंग से साफ नहीं किया गया। ब्रश करते समय लोग पास-पास खड़े होते हैं, खुले में थूमते हैं। ऐसे कैसे सोशल डिस्टैंसिंग बनेगी? इन हालात में मैं कैसे सुरक्षित रहूं?
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हम घर लौटने की उम्मीद लेकर आए थे। अगर आप हमें क्वॉरन्टीन ही करना चाहते है तो ढंग की सुविधाएं भी दीजिए। हमें ऐसा अहसास तो मत करवाइए कि हमने घर लौटकर गलती कर दी। हम कैदी नहीं है और हमारे साथ कैदियों जैसा सलूक करना बंद करिए।
हमे खाना भी ढंग से नहीं दिया जा रहा। वहा उन्होंने बेंच रखा है जिसपर वे डिस्पोज़ेबल प्लेट रखते है और खाना डाल देते हैं। फिर वे हमें कहते हैं कि इस खाने को लेकर अपनी सीट पर जाकर खाइए। यह किस तरह की तहज़ीब है?
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और पुलिसवालों के रवैये से मुझे लगने लगा है कि उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि मै ं पराये शहर में कैसे जिंदा रहा होऊंगा। उन्होंने मान लिया है कि हम लोगों को कोरोान है। वे हमसे 15 फुट दूरी से बात करते हैं। कोई बिल्डिंग के आसपास भी नहीं फटकता। वे कैंपस के बाहर एक छोटी सी दुकान पर बैठकर कोरोना पेशंट मान लिए गए लोगों का शो देखते रहते हैं। क्या यही तरीका है हमारे साथ व्यवहार का? वे कहते हैं कि उन्हें सिर्फ़ यह देखना है कि कोई बिल्डिंग से बाहर न निकले।
या तो हमें सुविधाएं दीजिए या फिर घर भेज दीजिए। मुझे पता है कि अपना ख्याल कैसे रकना है। मैं गंभीरता से ये बात कह रहा हूं और सरकार को इस बारे मे ंसोचना चाहिए। मैं हिमाचल इसलिए लौटा हूं ताकि संकट की इस घड़ी में अपने प्रियजनों के साथ समय बिता सकूं। इसलिए नहीं कि कोरोना से मरना था यहां आकर।
(अनिरुद्ध नादौन के रहने वाले हैं और बेंगलुरु से लौटे हैं। उन्होंने अपनी व्यथा फ़ेसबुक पर डाली है और ‘इन हिमाचल’ को भी बताया कि क्वॉरन्टीन सेंटर की हालत क्या है। उन्होंने बताया कि अव्यवस्था का आलम यह है कि लोग अगर एक भी व्यक्ति वाक़ई कोरोना संक्रमित हो तो वह बाक़ी स्वस्थ लोगों को संक्रमित कर देगा। उनका कहना है कि बाथरूम में नहाने की सही व्यवस्था नहीं है और पानी रुक जाने बीमारियाँ फैलने का ख़तरा है। उन्होंने यह भी बताया कि लोगों की संख्या ज़्यादा है जबकि टॉयलट भी कम हैं। वह बताते हैं कि वह सिर्फ़ अपनी बात कह रहे हैं और इस पर भी लोग उन्हें उलाहनाएं दे रहे हैं कि क्या आपको फ़ाइव स्टार होटल में ठहरा दिया जाए। अनिरुद्ध ने कहा कि उन्हें क्वॉरन्टीन किए जाने से दिक़्क़त नहीं है, वह तो चाहते हैं कि अनहाइजीनिक माहौल में स्वस्थ व्यक्ति भी किसी दूसरे से संक्रमित न हो जाएं और क्वॉरन्टीन किए जाने का मक़सद ही ख़त्म न हो जाए।)
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