…तो जयराम ठाकुर और रविंदर रवि में से एक बन सकता है सीएम कैंडिडेट

  •  सुरेश चंबियाल
हिमाचल  बीजेपी  में घटनाक्रम  तेज़ी से करवटें ले रहा है।  2017 पास आते-आते हर योद्धा फील्डिंग सेट करने में जुटा है।  जेपी नड्डा के बढ़े हुए कद ने हिमाचल में नेतृत्व के विकल्पों को असमंजस में  डाल दिया है।  भाजपा की अंदरूनी कशमकश घेरे तो तोड़ना चाहती है लेकिन अनुशासन के बंधन आह भी बाहर नहीं आने दे रहे हैं।  शांता कुमार के लेटर बम को भुनाने के लिए धूमल गुट  ने कांगड़ा से एकमात्र जीत कर आए अपने योद्धा रविंदर सिंह रवि को किसी खास मकसद के साथ ही आगे किया होगा, लेकिन अनुशासन के डंडे ने सारा प्लान चौपट कर दिया। रविंदर रवि ने प्रेस कॉन्फ्रेंस करके शांता कुमार के ऊपर ताबड़तोड़ जो हमले किए, उसके कयास कई राजनीतिक पंडित लगा रहे हैं।
हाल ही के चुनावों और आने वाले बिहार चुनाव को देखें तो भाजपा बिना नेता दिखाए ही जनता से वोट मांग रही है।  चर्चा यह भी छिढ़ी है कि  केंद्र में 75 वर्ष की रिटायरमेंट लॉजिक को भाजपा ने राज्यों में 70 साल कर दिया है।  पार्टी चाहती है राज्यों की बागडोर युवा हाथों में सौंपी जाए ताकि  भविष्ये में किसी राज्य में नेतृत्व विहीनता का विकल्प न रहे जिससे भाजपा अक्सर ग्रसित रही है।  हिमाचल  में दो धड़ों में बंटती  आ रहे भाजपा  असंसजस की इस स्थिति में पड़ी है की आखिर 2017 में किसका कितना वजूद होगा।
रविंदर रवि (बाएं) और जयराम ठाकुर की चमक सकती है किस्मत
शांता खेमे की राजनीति सिर्फ धूमल विरोध पर आधारित है। ये लोग नहीं चाहते की धूमल फिर से नेतृत्व करें।  वहीं विपक्ष का नेता होने के बावजूद समीकरणों और पार्टी एजेंडों को देखते हुए खुद धूमल गुट भी असमंजस में है की क्या 2017 में 74  वर्ष के धूमल जी को पार्टी अपना नेता बनाएंगे, वह भी तब जब वीरभद्र धूमल परिवारों की आपसी लड़ाई से जनता त्रस्त है  साथ ही साथ पार्टी का युवा मुख्यमंत्री देने का एजेंडा भी महाराष्ट्र से लेकर हरियाणा झारखण्ड में क्रियान्वित  हो गया है।   धर्मशाला में अमित शाह भी पूछ चुके हैं की हम बाकी प्रदेशों में रिपीट हुए हिमाचल में क्यों नहीं और साथ ही साथ यह हींट भी दे गए की हम बिना नेता के जब जब लड़ें है परिणाम सुखद रहा है।
अमित शाह के इन कथनों से  धूमल गुट में  बेचैनी बढ़ी है।  हालांकि आधी से ज्यादा बीजेपी  इस सोच में चल रही है कि जेपी नड्डा अब प्रदेश का रुख करेंगे। मोदी और शाह के ख़ास नड्डा  अब  हिमाचल बीजेपी के केंद्र बिंदु हो गए हैं।  पार्टी काडर का मानना है टिकट आबंटन में सब से अहम रोल नड्डा का ही रहेगा  ताकि  शांता-धूमल गुट की लड़ाई में पार्टी को नुकसान न हो।
फिर भी कुछ लोगों का  मानना है की  जिस स्थिति में नड्डा अभी केंद्र  में है  और संग़ठन के महत्वपूर्ण धुरी नड्डा को क्या पार्टी आलाकमान एक छोटे  से प्रदेश हिमाचल में भजेगा जहां  से सिर्फ चार सांसद चुन कर आते हैं? या नड्डा चाहेंगे कि दिल्ली दरबार की शानोशौकत छोड़कर प्रदेश का रुख करें, जहां हर पांच साल बाद सत्ता परिवर्तन का इतिहास रहा है।  खैर यह सब अब नड्डा की सोच पर निर्भर करता है कि वो  क्या  चाहते हैं।  जहाँ तक नड्डा की बात है, नड्डा के पास हिमाचल का मुख्यमंत्री बनने  के लिए 10 साल का समय है। 55 साल के नड्डा 10 साल बाद भी 70  वाले फॉर्मूले में नहीं आ  रहे हैं। खैर अगर ऐसा हुआ तो क्या नड्डा अपने खास सिफालसार जयराम ठाकुर को कमान दे देंगे, जिन्हे शांता खेमे का भी बराबर का आशीर्वाद है। वह उसी राजपूत बिरादरी से आते हैं, जिसका हिमाचल की राजनीति में वर्चस्व है।
धुमल गुट भी हर समीकरण पर नजर रखे हुए है।  धूमल को डर है कहीं 74 के तकाजे में पार्टी गवर्नर का  पद  ना ऑफर कर दे या  आडवाणी जोशी की तरह मार्गदर्शक मंडल में ना डाल  दे।  इसलिए धूमल गुट ने भी अपना एक आदमी  रेस में आगे करने की पूरी तैयारी की है। धर्मशला के मैदान से शांता के ऊपर रविंदर रवि की दहाड़ इसी सोच  का नतीजा थी।  राजीव बिंदल के समय के साथ नड्डा के साथ पींगे बढ़ाने के कारण अब सिर्फ रविंदर रवि के ऊपर धूमल खेमे का विश्वास टिका हुआ है।
आम तौर पर शांत रहने वाले रविंदर सिंह रवि खुलकर मैदान में आ गए हैं।  चाहे कांगड़ा में शांता कुमार की किलेबंदी को चुनौती देने की कोशिश हो या धूमल समर्थन में वीरभद्र सिंह को घेरने की कवायद; रविंदर रवि अग्रिम पंक्ति में मोर्चा संभाले हुए हैं।  लगातार पांचवी बार जीत का परचम लहरा चुके रवि  धूमल के किन्ही कारणों से मुख्यमंत्री नहीं बन पाने के कारण पहली पसंद हो सकते हैं,  ऐसा राजनीतिक पंडितों का मानना है।
बाकी समय ही बताएगा क्या होगा परन्तु कुल मिलाकर धूमल गुट  विशेष परिस्थिति में कांगड़ा जिला से  रवि का नाम मुख्यमंत्री के लिए आगे कर के एक तीर से दो शिकार जरूर करना चाहेगा। पहला- हम  नहीं तो हमारा आदमी, दूसरा- शांता समर्थकों के उस दावे की हवा निकालना कि कांगड़ा की अनदेखी हो रही है। रविंदर रवि को शयद तैयार रहने का इशारा भी किया जा चुका है। कुल मिलाकर समीकरण ऐसे भी जा सकते हैं कि विशेष परिस्थितियों में जय राम ठाकुर या रविंदर रवि के हाथ में भी बटेर लग सकता है।
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