जयराम ठाकुर ने आखिरी वक्त में बागियों से ऐसे जीते धर्मशाला और पच्छाद

इन हिमाचल डेस्क।। हिमाचल प्रदेश की दो विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी को जीत मिली है। पच्छाद और धर्मशाला सीटें इसी साल लोकसभा चुनाव के बाद खाली हुई थीं। पच्छाद के विधायक रहे सुरेश कश्यप शिमला से सांसद बन गए हैं और धर्मशाला के एमएलए रहे किशन कपूर कांगड़ा के एमपी हैं। दोनों सीटें बीजेपी की थीं, इसलिए बीजेपी को स्वाभाविक अडवांटेज मिलना चाहिए था। मगर ऐसा हुआ नहीं। दोनों ही सीटों पर मामला ऐसा पेचीदा हो गया कि बीजेपी के कैंडिडेट जीत बेशक गए मगर कड़े संघर्ष के बाद।

पच्छाद में भाजपा के बागी ने 22 फीसदी जबकि धर्मशाला वाले ने 32 फीसदी वोट लिए। त्रिकोणीय मुकाबले के बावजूद भाजपा प्रत्याशियों की जीत को जयराम ठाकुर की उपलब्धि माना जा रहा है। इन उपचुनावों को उनके अब तक के कार्यकाल का लिटमस टेस्ट कहा जा रहा था। विश्लेषकों का मानना है कि इसमें जयराम लोकसभा चुनावों की तरह ही सफल रहे हैं।

ये चुनाव इसलिए भी खास रहे कि बीजेपी ने नए और युवा चेहरों को उतारा था। दोनों ही सीटों पर कई बड़े नेता अपने करीबियों को टिकट दिलवाना चाहते थे मगर आवंटन में जयराम की ही चली। फिर इन्हीं नेताओं में से कुछ ने कथित तौर पर अपने करीबियों की मदद से भाजपा के उम्मीदवारों के खिलाफ काम किया मगर उन्हें सफलता नहीं मिल पाई। इन चुनावों में अपने प्रत्याशियों की जीत को भाजपा जयराम ठाकुर की साफ छवि और अब तक के शानदार काम का परिणाम बता रही है।

प्रबंधन में भी सफल
पच्छाद में बीजेपी की बागी दयाल प्यारी ने पार्टी की नाक में दम कर दिया था। पहले उन्होंने टिकट न मिलने पर असंतोष जताया, निर्दलीय चुनाव लड़ने की बात कहीं, फिर उनके मान जाने की खबर आई और आखिकार उन्होंने हर हाल में चुनाव लड़ने का फैसला कर लिया। अब बीजेपी की ओर से मैदान में थीं- रीना कश्यप। कांग्रेस से मैदान में थे पूर्व विधायक और क्षेत्र के पुराने नेता गंगू राम मुसाफिर। लेकिन दयाल प्यारी के भी मैदान में उतरते ही मामला त्रिकोणीय हो गया।

भाजपा की ओर इस चुनाव का जिम्मा आईपीएच मिनिस्टर महेंद्र ठाकुर को सौंपा गया था। राजीव बिंदल भी यहां सक्रिय थे। मगर वे दयाल प्यारी को मनाने में नाकाम रहे थे। उल्टा मीडिया में यह खबर फैल गई कि मंत्री के दबाव के कारण ही दयाल प्यारी बीच में नामांकन वापस लेने को तैयार हुई थीं। लेकिन जब नामांकन वापस नहीं लिया, खुद सीएम जयराम को मोर्चा संभालना पड़ा। उधर, नाराज चल रहे आशीष सिक्टा भी आखिरकार मान गए।

सीएम जयराम ने खुद पच्छाद के ओपिनियन लीडर्स को साधा। दयाल प्यारी के समर्थन में सहानभूति के कारण पाला बदल रहे अहम कार्यकर्ताओं को समझाने से लेकर जयराम ने कांग्रेस के पाले से भी लोगों को भाजपा के पक्ष में किया। सूत्रों का कहना है कि भाजपा की प्रत्याशी की जीत में अहम योगदान उन वोटरों का है जो पहले कांग्रेस के पारंपरिक वोटर रहे थे। मगर सीएम ने क्षेत्र में अपने लोकप्रिय संपर्क सूत्रों की मदद से उन्हें बीजेपी के पक्ष में वोट करवाने में सफल रहे।

दयाल प्यारी

धर्मशाला
धर्मशाला में भी इस बार हालात खराब थे। किशन कपूर को 2017 के विधानसभा चुनाव में भी बहूत मुश्किल से टिकट मिला था और फिर मंत्री पद के लिए भी उन्हें कथित तौर पर शांता कुमार और अन्य से मदद लेनी पड़ी रही। जब 2019 लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने उन्हें कांगड़ा से प्रत्याशी बनाया, वह राजी तो हो गए मगर माना जा रहा था कि इससे वह खुश नहीं थे। सांसद बन जाने के बाद उनकी कोशिश थी कि उपचुनाव में टिकट उनके परिवार में मिले और इसके संकेत भी मिले थे। मगर विश्लेषकों का मानना है कि विशाल नैहरिया को बीजेपी का टिकट मिला तो किशन कपूर ने उस तरह से समर्थन नहीं दिया, जिस तरह एक सीनियर नेता से उम्मीद की जाती है।

किशन कपूर ने भले खुलकर नैहरिया का विरोध नहीं किया मगर आलाकमान को रिपोर्ट मिल गई कि धर्मशाला में क्या हो रहा है। यहां स्वास्थ्य मंत्री बिपिन सिंह परमार मोर्चा संभाले हुए थे। इस बीच किशन कपूर की बेटी ने फेसबुक पर नैहरिया को अनपढ़ कहा था और आलोचना की थी। इसके स्क्रीनशॉट्स सोशल मीडिया पर सर्कुलेट हुए। इससे पहले उन्होंने उस वक़्त नाम लिए बिना सीएम पर भी निशाना साधा था, जब किशन कपूर पर एबीवीपी के छात्रों से कथित दुर्व्यवहार के आरोप लगे थे। इससे पता चला कि किशन कपूर के समर्थकों के बीच किस तरह का संदेश जा रहा है।

बीजेपी आराम से धर्मशाला वाला चुनाव जीत सकती थी क्योंकि सुधीर खुद कांग्रेस की ओर से चुनाव नहीं लड़ रहे थे और कांग्रेस के नए प्रत्याशी को लेकर उनका समर्थन वैसा ही था, जैसे नैहरिया को कपूर का। उधर यहां भी मामला त्रिकोणीय हो गया क्योंकि निर्दलीय उम्मीदवार राकेश चौधरी भी तेजी से अपने समुदाय के वोटों के दम पर ताल ठोक रहे थे। ऐसे में फिर सीएम ने यहां राजनीतिक प्रबंधन किया। सूत्र बताते हैं कि आसपास की सीटों के प्रभावशाली नेताओं के माध्यम से उन्होंने चौधरी-गद्दी कॉम्बिनेशन बनाया। अगर रातोरात यह प्रबंधन न हुआ होता तो कांग्रेस-बीजेपी दोनों के प्रत्याशी भितरघात में फंस जाते और बाजी मार लेता निर्दलीय। निर्दलीय उम्मीदवार राकेश दूसरे नम्बर रहे हैं जबकि कांग्रेस के उम्मीदवार विजय इंद्र करण जमानत भी नहीं बचा पाए।

ध्यान देने की बात है कि पच्छाद में रीना मात्र 2742 वोटों और धर्मशाला में विशाल ने 6758 वोटों से जीत हासिल की है। अगर आखिरी लम्हों पर सीएम खुद सक्रिय न होते तो परिणाम इसके उलट भी हो सकते थे। यह स्थिति सीएम के साथ साथ भाजपा के लिए भी असहज करती क्योंकि वोट 370 और मोदी के नाम पर भी मांगे गए थे।

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