नुकसान करवा सकती है पीएम के सामने धूमल समर्थकों की नारेबाजी

इन हिमाचल डेस्क।। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हिमाचल दौरे को लेकर बीजेपी ने बड़े स्तर पर तैयारी की थी और शिमला रैली में उसका नतीजा देखने को भी मिला। ऐतिहासिक रिज मैदान पर बीजेपी कार्यकर्ताओं का जमावड़ा लगा था। प्रदेश के कोने-कोने से पार्टी कार्यकर्ता शिमला पहुंचे थे। पार्टी संगठन ने इस रैली को कामयाब बनाने के लिए पूरी मेहनत की थी। मौजूदा विधायकों के अलावा विभिन्न विधानसभाओं से पार्टी विधायक रहे नेताओं और पदाधाकारियों ने अपने स्तर पर ज्यादा से ज्यादा लोग लाने की कोशिश की थी। कुल-मिलाकर पार्टी की यह कोशिश सफल हुई और रिज मैदान पर तिल धरने को भी जगह नहीं बची थी। इससे यह संकेत तो मिला कि बीजेपी के कार्यकर्ताओं का जोश इस वक्त पूरे उफान पर है, मगर यह भी नजर आया कि खेमों में बंटी हुई है। खेमेबाजी का सबसे बड़ा सबूत उस वक्त देखने को मिला जब शिमला के रिज पर कार्यकर्ताओं का एक समूह एक नेता विशेष के पक्ष में नारे लगा रहा था। शुरू से लेकर आखिर तक यह समूह उस नेता के पक्ष में नारेबाजी करता रहा। क्षेत्र विशेष से आए कार्यकर्ताओं के इस समूह की यह हरकत उस नेता के लिए नुकसानदेह साबित होती दिख रही है, जिसके पक्ष में वे नारे लगा रहे थे। बीजेपी हाईकमान के पास यह संदेश गया है कि उक्त नेता ने इन समर्थकों के जरिए अपना शक्ति प्रदर्शन करने की कोशिश की है।

शिमला में रैली के दौरान देखा गया कि एक हिस्से में बैठे कार्यकर्ता बार-बार नारेबाजी कर रहे थे। उनकी पार्टी का सबसे बड़ा नेता और देश का प्रधानमंत्री मंच पर बैठा हुआ था मगर वह उसके समर्थन में नारेबाजी करने के बजाय पूर्व सीएम और विधानसभा मे नेता प्रतिपक्ष प्रेम कुमार धूमल लेते हुए नारेबाजी कर रहा था। यह समूह शुरू से लेकर आखिर तक नारेबाजी करता रहा। यह नारेबाजी उस वक्त भी जारी रही जब बीजेपी के अन्य वरिष्ठ नेता और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद भी भाषण दे रहे थे। जब धूमल खुद भाषण देने आए तो समर्थकों का यह समूह और जोश से नारे लगाने लगा। नारे कुछ इस तरह से थे-धूमल जी आगे बढ़ो, हम तुम्हारे साथ हैं। आलम यह रहा कि खुद धूमल को कहना पड़ा कि मैं आगे तो तभी बढ़ूंगा जब आप लोग चुप होंगे। इसके बाद रिज मैदान के कार्यकर्ताओं के बीच ठहाके गूंज उठे। उस वक्त तो बात मजाक में आई-गई हो गई मगर ‘इन हिमाचल’ को सूत्रों से जानकारी मिली है कि इस हरकत पर पार्टी का शीर्ष नेतृत्व गंभीर है और इस कदम को अनुशासनहीनता मान रहा है। पार्टी आलमाकमान को लगातार हो रही इस नारेबाजी से संदेश गया है कि इन समर्थकों की नारेबाजी के जरिए अपनी ताकत और प्रासंगिकता दिखाई जा रही थी।

दरअसल हर बार किसी न किसी को सीएम कैंडिडेट बनाकर लड़ती रही बीजेपी ने इस बार पत्ते नहीं खोले हैं। हिमाचल प्रदेश विधानसभा चुनावों के लिए बहुत कम वक्त रह गया है मगर इस बार यह नहीं बताया गया कि पार्टी किसके नेतृत्व में चुनाव लड़ेगी। ऐसे में अपने-अपने नेता के सीएम कैंडिडेट बनने का ख्वाब देख रहे बीजेपी कार्यकर्ताओं में बेचैनी बढ़ती जा रही है। पिछली बार तक यह साफ रहता था कि बीजेपी प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ेगी। मगर इस बार बीजेपी ने राष्ट्रीय स्तर पर ही अपनी रणनीति बदल दी है। हरियाणा, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड समेत कई राज्यों में बीजेपी बिना किसी को सीएम कैंडिडेट बनाए चुनाव लड़ी और सफलता हासिल की। इससे बीजेपी को पार्टी की गुटबाजी और भितरघात से बचने में भी सफलता मिली। अब इसी रणनीति को वह हिमाचल प्रदेश में भी लागू करने की तैयारी में है। पार्टी नहीं चाहती कि अब तक शांता और धूमल खेमों में बंटी रही बीजेपी अब आगे भी इसी तरह बंटी रहे। इस संबंध में आलाकमान पहले भी निर्देश देता रहा है मगर रिज पर इन निर्देशों का खुलकर उल्लंघन हुआ।

गौरतलब है कि बीजेपी हर विधानसभा चुनाव से पहले अपनी एक टीम तैनात करती है जो उस राज्य का सर्वे करती है। गुपचुप काम करने वाली यह टीम देखती है कि उस राज्य में क्या-क्या मुद्दे हैं जिन्हें उठाया जा सकता है। यह मौजूदा सरकार की कमजोरियों को पकड़ती है और साथ ही संगठन की कमियों पर भी रिपोर्ट बनाती है। यह स्थानीय मीडिया और सोशल मीडिया पर भी नजर रखती है। यह देखा जाता है अपनी पार्टी का कौन सा नेता पार्टी लाइन से हटकर संगठन के बजाय सेल्फ प्रमोशन के लिए बयानबाजी कर रहा है या मीडिया को मैनेज कर रहा है। शिमला रैली के बाद विभिन्न अखबारों में और पत्रिकाओं में इस तरह के आर्टिकल्स की बाढ़ आ गई थी जिनमें दावा किया जा रहा है कि शिमला रैली मोदी के बजाय धूमल मय हो गई क्योंकि लोग धूमल के पक्ष में नारे लगाते रहे। ‘इन हिमाचल’ को सूत्रों ने बताया है कि इस संदर्भ में भी इस टीम ने एक रिपोर्ट तैयार की है। यह रिपोर्ट भी धूमल के खिलाफ जा सकती है।

इस टीम में शामिल होने का दावा करने वाले एक शख्स ने नाम न बताने की शर्त पर ‘इन हिमाचल’ को बताया, ‘पार्टी आलाकमान ने पहले ही साफ किया है कि चुनाव से पहले सभी को एकजुट होना है। मुख्यमंत्री कौन बनेगा कौन नहीं, यह तब की बात होगी जब मिलकर चुनाव जीतेंगे। पार्टी में अगर आप हैं तो सीएम क्या किसी भी पद के लिए दावेदारी जताने का आपको अधिकार है। अगर चुनाव जीतने से पहले ही कोई व्यक्ति या नेता खुद को मीडिया या अन्य माध्यमों के जरिए सक्षम दिखाने की कोशिश करता है तो वह अनुशासनहीनता है। बेहतर हो कि अगर किसी को शंका है तो वह आलाकमान से स्पष्ट बात करे न कि अप्रत्यक्ष रूप से दबाव बनाने की कोशिश करे।’ जब इनसे पूछा गया कि समर्थक तो अपनी तरफ से भी नारेबाजी कर सकते हैं, इसके लिए नेता को कैसे जिम्मेदार माना जा सकता है, तो जवाब मिला, ‘देखिए समर्थकों को सही दिशा-निर्देश देना नेताओं का काम है। प्रधानमंत्री अगर आ रहे हों तो समर्थकों को ब्रीफ किया जाना चाहिए क्या करना है क्या नहीं। और फिर प्रदेश में और भी तो वरिष्ठ नेता हैं, उनके समर्थकों ने तो उनके पक्ष में इस तरह से नारेबाजी नहीं की। नेताओं को समझना चाहिए कि इस तरह की हरकतें न सिर्फ पार्टी को कमजोर करती हैं बल्कि अन्य कार्यकर्ताओं का मनोबल भी तोड़ती हैं।’

गौरतलब है कि शिमला में रैली के दौरान शांता कुमार, जेपी नड्डा और अनुराग ठाकुर के पक्ष में भी नारे लगे थे मगर जोरदार नारेबाजी धूमल के पक्ष में ही हुई थी। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बीजेपी के वरिष्ठ नेता शांता कुमार अब हिमाचल की राजनीति में रुचि नहीं रख रहे इसलिए उनकी तरफ से किसी तरह की कोई दावेदारी अब बाकी नहीं रही है। नड्डा खुद हिमाचल लौटने के इच्छुक लगते हैं मगर वह सार्वजनिक मंचों से कभी भी ऐसी बात कहते नजर नहीं आते जिससे लगे कि वह दावेदारी पेश कर रहे हों। संभवत: यह परिपक्वता इसलिए भी है क्योंकि अब वह बीजेपी के राष्ट्रीय संगठन में अहम भूमिका में हैं और जब चाहें हिमाचल लौट सकते हैं। अमित शाह के अध्यक्ष बनने के बाद बीजेपी में नड्डा को अहम भूमिका रही है क्योंकि जब नड्डा भाजयुमो के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे, उसके बाद अमित शाह भाजयुमो के राष्ट्रीय कोषाध्यक्ष बने थे। बीजेपी पार्ल्यामेंट्री बोर्ड के मेंबर जेपी नड्डा लोकसभा चुनाव से लेकर विभिन्न राज्यों में विधानसभा चुनाव के दौरान टिकट आवंटन में मुख्य भूमिका में रहे थे। विश्लेषकों का यह भी मानना है कि शायद नड्डा अब हिमाचल लौटने के बजाय केंद्र में ही रहेंगे और वहां बड़ी जिम्मेदारी संभालते रहेंगे। मगर बीच-बीच में ऐसी खबरें भी आती रही हैं कि नड्डा की भूमिका टिकट आवंटन में अहम रहेगी और वह अपने किसी खास व्यक्ति को हिमाचल का सीएम बना सकते हैं।

उधर राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि धूमल जैसे अनुभवी नेता को Between the lines पढ़ना चाहिए। उन्हें देखना चाहिए हर जगह पर बीजेपी नए और युवा चेहरों को सीएम बना रही है। वैसे भी 70+ को बड़ी जिम्मेदारी न देने की बीजेपी की रणनीति भी धूमल के सीएम के तौर पर भविष्य पर सवालिया निशान लगाती है। ऊपर से पार्टी अध्यक्ष अमित शाह भी हिमाचल दौरे के दौरान कर चुके हैं कि अब हिमाचल में बीजेपी को ऐसा नेतृत्व चाहिए जो कम से कम 20-25 साल टिक सके। उनका इशारा धूमल की तरफ ही माना जा रहा है क्योंकि धूमल और शांता कभी भी हिमाचल में बीजेपी की सरकार को लगातार रिपीट करवाने में नाकाम रहे हैं। ऐसे में बावजूद इसके पीएम के शो में समर्थकों का नारेबाजी करना या आए दिन अनुराग ठाकुर का उनके पक्ष में बयानबाजी करना फायदे के बजाय नुकसान करवा सकता है। यह न सिर्फ उनके लिए, बल्कि उनके बेटे अनुराग ठाकुर के लिए भी नुकसानदेह हो सकता है कि क्योंकि भविष्य में अनुराग ठाकुर को भी हिमाचल प्रदेश की राजनीति करनी है। विश्लेषकों का कहना है कि इसलिए उन्हें दूरदृष्टि अपनाते हुए संगठन के अनुरूप चलना चाहिए। उत्साह में अप्रत्यक्ष रूप से भी दावेदारी पेश करना पांव पर कुल्हाड़ी मारने जैसा साबित हो सकता है।

SHARE