प्रदेश राजनीति में बाली शांता जुगलबंदी के मायने !

सुरेश चंबयाल

हिमाचल की राजनीति में आजकल खासे किस्से उभर कर सामने आ रहे हैं एक तरफ धूमल एवं वीरभद्र परिवारों की आपसी खींचतान चरम पर है तो दूसरी तरफ टांडा मेडिकल कालेज में सराय के शिलान्यास कार्यक्रम में वीरभद्र शांता कुमार की जुगलबंदी अलग ही कहानी ब्यान करती है।  वीरभद्र धूमल को घेरने के लिए शांता कुमार की शालीनता के तीर को हमेशा तरकश में रखते हैं।  वहीँ शांता कुमार बेशक मुख्यमंत्री से इस्तीफा मांग चुके हों परन्तु शिलान्यास के लिए उन्हें ही बुलाते हैं।
खैर यह तो काफी पहले से चल रहा है वैसे भी बुढ़ापे में बुजुर्गों का आपसी प्रेम बढ़ ही जाता है , शांता कुमार कांगड़ा घाटी से एकछत्र नेता रहे हैं।  बेशक उन्होंने चुनाव हारे भी हो फिर भी कांगड़ा में जितना असर शांता कुमार का रहा है उतना किसी का नहीं रहा है।  हालाँकि भाजपा कांग्रेस में भी  कंवर दुर्गा चंद. जी एस बाली  रविंदर सिंह रवि , चन्द्र कुमार सत महाजन पंडित संत राम जैसे दिग्गज कांगड़ा से निकल कर  आये हैं या हैं परन्तु इन सबका प्रभाव एक विधानसभा क्षेत्र तक ज्यादा सीमित रहा है।  पिछले 50 वर्षों की राजनीति पर अगर नजर दौड़ाई जाएँ तो दोनों दलों में से शांता कुमार ही ऐसे नेता रहे हैं जिन्हे किसी ख़ास क्षेत्र का न कहते हुए विशुद्ध कांगड़ा का सर्वमान्य लीडर कहा जा सकता है इसी कांगड़ा के दम पर शांता कुमार दो बार प्रदेश के मुख्यमन्त्रीं भी बने।
अब बात करते हैं मोजुदा दौर की शांता कुमार अब बुजुर्ग हो चले  हैं सम्भवत् राजनितिक सक्रियता के रूप में उनकी यह अंतिम पारी है।  शांता कुमार के बाद ऐसा कोई नहीं दिखता जो दोनों दलों में पुरे कांगड़ा का नेता माना जाए।   तमाम विरोध के बावजूद पिछले चुनाव में देखा गया की कांग्रेस जनों के अंदर भी शांता के लिए इमोशनल फेवर था।  शांता कुमार को वर्तमान राजनीति के परिपेक्ष में आदर्श नेता माना जाता रहा है।  इसलिए विरोधी भी उनकी इज़्ज़त लगातार करते रहे हैं।
शांता कुमार के बाद एक नेता जो नूरपुर से लेकर ज्वालाजी और देहरा से लेकर बैजनाथ तक फैली कांगड़ा सल्तनत के दम पर हिमाचल का मुख्यमन्त्रीं बंनने का सपना संजोए हुए दिख रहा है तो वो नगरोटा के क्षत्रप लीडर जी एस बाली हैं।  1998 में शांता कुमार की प्रदेश राजनीति से  विदाई के बाद धूमल वीरभद्र के हाथों में बंटती आ रही मुख्यामंत्री की कुर्सी पर अब कांगड़ा से जी एस बाली ने दावेदरी ठोकने का अभियान शुरू  कर दिया है।  इसी तर्ज में बाली सिर्फ  नगरोटा का लीडर होने की अपनी इमेज को तोड़कर कम से कम कांगड़ा चम्बा का लीडर होने के बाद इस छवि को प्रदेश स्तर पर ले जाने के लिए दिलोजान से लगे हुए  हैं।  इसी कड़ी में बाली ने सोसल मीडिया के उन अस्त्रों का सहारा ठोक बजाकर लेना शुरू कर दिया है जिनपर कांग्रेस जन ज्यादा विस्वास नहीं करते हैं।  बाली इस समय सोशल मीडिया पर प्रदेश के सबसे एक्टिव नेता है जो समस्याओं का समाधान भी इसी प्लेटफॉर्म से कर रहे हैं। बाली कहीं न कहीं चाहते हैं की जनता यह न सोचे वो सिर्फ नगरोटा के नेता है बल्कि कम से कम उनके गृह जिले के लोग उन्हें पार्टीबाजी से ऊपर उठकर ऐसे नेता के रूप में देखें जो राजनीति में हाशिये पर गए इस जिले को मुख्यमंत्री पद भी दिलवा सकता है।
यूँ तो बाली के सबंध  विपक्ष के हर नेता से ठीक रहे हैं चाहे वो प्रेम कुमार धूमल हों या शांता कुमार हों। परन्तु कांगड़ा में बाली अब शांता कुमार का स्थान विशेष रूप से लेने के लिए उनके ऊपर ज्यादा मेहरबान हैं इसी कड़ी में टांडा मेडिकल कालेज की सराय निर्माण के लिए धन उपलब्ध करवाने के लिए बाली का शांता को लीक से हटकर  धन्याबाद देना हो या नए चलने वाले वॉल्वो रुट श्रीनगर धर्मशाला बस को शांता से झंडी दिखलाकर  विदा करवाने की रणनीति हो।  इसे सम्मान  कहें या स्वार्थ   बाली भविष्ये में शांता काडर को और शांता कुमार के मौन फेवर को अपने लिए भी प्रयोग करना चाहते हैं।  कहा जाता रहा है की शांता कुमार कांगड़ा में जब चन्द्र कुमार से हारे थे उस समय ओ बी सी वोटर्स का बहुत बड़ा रोल था।  बाली हैं तो ब्राह्मण पर उनका नगरोटा मॉडल आफ डेवलपमेंट ओ बी सी मतदाता पर ही चला है 70 % OBC बाहुल्य सीट से बाली लगातार जीतकर आ रहे हैं शांता का मौन समर्थन अगर मिलता है तो ब्राह्मण वोट बैंक भी बाली के साथ जा सकता है।
हालंकि यह सब इतना आसान भी नहीं है बाली को टक्कर विपक्ष से इतनी नहीं है जितनी अपनी पार्टी के सेनापतियों से है।  राजा के ख़ास प्यादे मजबूती से बाली के आसपास मोर्चों पर घाटी में मौजूद हैं चाहे वो सुधीर शर्मा हों , पवन काजल हों नीरज भारती हो या संजय रतन हो।  कांगड़ा किले के सेनापतियों में नूरपुर के किले से बाली को थोड़ी बहुत मदद है थोड़ा बाली पालमपुर से भी आशा रख सकते हैं बाकी कांगड़ा की हमीरपुर मंडी और ऊना से लगती सीमायों पर बैठे राजा के प्रहरी क्या बाली को पुरे  कांगड़ा का सर्वमान्य लीडर होने देंगे जो मुख्यमंत्री की कुर्सी तक पहुँचने के लिए बहुत जरुरी है इस पर संदेह है।  नगरोटा में बाली की सोनिया के स्वागत में होने वाली प्रस्तावित रैली राजनीति में इस दबंग नेता के अरमानों का पहला शक्ति प्रदर्शन होगी.. . . ऐसा राजनीतिक पंडित कह रहे हैं।
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बाकी लोकतंत्र में जनता ही सर्वोपरि है कांगड़ा की जनता क्या बाली में अपने अरमानों को शिमला की सरदारी के रूप में देखती है या नहीं यह आने वाला वक़्त ही बताएगा।  परन्तु फिलहाल के क्रियाकलाप और शांता कुमार के प्रति बाली के हालिया सम्मान से यह पता जरूर चलने लगा है की २०१७ में अगर कांग्रेस हाई कमान ने हरी झंडी दे दी तो बाली पुरे बल प्रयोग के साथ कांगड़ा दुर्ग के दम  पर शिमला के लिए चढ़ाई को तैयार होने वाले हैं।  और ऐसा तो राजा वीरभद्र सिंह  की बाली के रास्ते में  आने वाली कूटनीति का तोड़ बाली भी कांगड़ा से शांता की शालीनता और मौन फेवर से देने की सोच रहे है , यही इसी जुगलबंदी के मायने फिलहाल लग रहे हैं।
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