वीरभद्र को अपने परिवार के अलावा सब ‘मकरझंडू’ क्यों दिखते हैं?

आई.एस. ठाकुर।। हिमाचल प्रदेश में जिस कांग्रेस को विपक्ष की भूमिका निभाते हुए जनहित के मुद्दे पर सरकार पर दबाव बनाने में व्यस्त होना चाहिए, आज वह गृहयुद्ध में उलझी हुई है। एक समय हिमाचल में कांग्रेस के आधार रहे पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह लगातार पूर्व प्रदेशाध्यक्ष सुखविंदर सिंह सुक्खू पर निशाना साध रहे हैं और बदले में सुक्खू भी खुलकर पलटवार कर रहे हैं।

दोनों नेताओं के बीच ऐसी बयानबाजी नई नहीं है मगर यह पहला मौका है जब संगठन के अन्य नेताओं को भी खुलकर बीचबचाव में उतरना पड़ा। पार्टी इस मुद्दे पर दोफाड़ भी होती नजर आई। वीरभद्र के करीबी नेता उनके पक्ष में खड़े हैं जबकि अन्य नेता सुक्खू के पक्ष में। यह लड़ाई इतनी बढ़ चुकी है कि पार्टी आलाकमान तक पहुंच चुकी है।

कब से उठा विवाद

इस पूरे विवाद की जड़ में जाएं तो पता चलेगा कि यह विवाद तभी से शुरू हो गया था जब सुक्खू की कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष के तौर पर ताजपोशी हुई थी। वीरभद्र को सुक्खू उसी समय से खटक भी रहे थे। शुरू में सुक्खू ने सभी को साथ लेकर चलने की कोशिश की मगर यह बात वीरभद्र को रास नहीं आई। वीरभद्र चाहते थे कि सुक्खू उनकी उंगलियों पर नाचें। जो वीरभद्र चाहें, सुक्खू बस वही करें। मगर सुक्खू ने जब ऐसा नहीं किया तो वीरभद्र ने खुलकर सुक्खू पर निशाना साधना शुरू कर दिया।

खुद अपने करीबी अधिकारियों को अहम पद देने वाले, हारे हुए नेताओं को सरकार ओहदे देने से लेकर अन्य कई तरह की नियुक्तियां देते रहे वीरभद्र कहने लगे कि सुक्खू अयोग्य लोगों को जिम्मेदारियां दे रहे हैं। इन प्रतिक्रियाओं का शुरू में तो सुक्खू की ओर से कोई जवाब नहीं आया, मगर बाद में उन्होंने पत्रकारों के सवालों के जवाब में नाम लिए बिना प्रतिक्रिया देना शुरू कर दिया। यही नहीं, वीरभद्र के करीबी नेताओं ने भी उस समय प्रदेश में संगठन के सबसे बड़े नेता की उपेक्षा की।

विधानसभा चुनाव के नजदीक बढ़ी लड़ाई

जब तक वीरभद्र सरकार चलाने में व्यस्त रहे, उनकी टिप्पणियां सुक्खू पर कभी-कभार आती थीं। मगर जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव नजदीक आते गए, वीरभद्र के हमले न सिर्फ तेज हो गए, बल्कि वे निजी भी होते गए। इस बीच मुख्यमंत्री वीरभद्र जगह-जगह कुछ ऐसे बयान देने लगे, जिससे पार्टी की छवि को नुकसान होने लगा। उदाहरण के लिए बीजेपी के दिवंगत नेता आईडी धीमान की सीट पर हो रहे उपचुनाव में प्रचार के दौरान उन्होंने यह कह दिया कि आईडी धीमान के बेटे अपने पिता की राह पर चल रहे हैं और उनमें कई अवगुण हैं।

इसी तरह उन्होंने कई मंचों से नेताओं पर ऐसी टिप्पणियां कीं, जिन्हें शालीन नहीं कहा जा सकता। उदाहरण के लिए भाजपा के तत्कालीन विधायक रविंद्र रवि को खोखा चलाने वाला कहना, वनरक्षक होशियार सिंह की मौत को छोटी-मोटी घटना बताना, गुड़िया मामले मे लीपापोती करना। वीरभद्र का एक-एक बयान कांग्रेस को चुनावों में भारी पड़ने वाला था। इस बीच काग्रेस पदयात्रा निकालने लगी तो वीरभद्र ने कहा कि इस बारे में उन्हें जानकारी नहीं है। जब इस बारे में पत्रकारों ने सुक्खू से सवाल किया तो उन्होंने कहा कि सीएम बुजुर्ग हैं, उन्हें याद नहीं रहा होगा।

इसके जवाब में वीरभद्र सिंह ने कहा- मुझे वो दिन भी याद है जब सुक्खू पैदा हुए थे। जवाब में सुक्खू ने कहा कि अगर ऐसा है तो उन्हें पदयात्रा याद क्यों नहीं रही। यह पहला मौका था जब सुक्खू ने भी वीरभद्र की ओर से हो रहे हमलों का खुलकर जवाब दिया। सुक्खू इससे कुछ समय पहले ही दिल्ली का चक्कर लगा आए थे और राजनीतिक गलियारों में चर्चा होने लगी कि सुक्खू को आलाकमान का विश्वास हासिल है।

वीरभद्र को कठपुतली अध्यक्ष चाहिए?

उधर वीरभद्र खेमा इस घटनाक्रम से तिलमिलाता नजर आया। विभिन्न आरोपों, खासकर गुड़िया केस में नाकामी को लेकर घिर चुकी वीरभद्र सरकार को जब लगने लगा कि इस बार सत्ता में लौटना मुश्किल हो सकता है तो सुक्खू पर हमलों की रफ्तार बढ़ गई। एक मजेदार बात यह है कि जिन वीरभद्र सिंह पर यह आरोप लगता रहा है कि वह हिमाचल में कांग्रेस को अपने ऊपर निर्भर बनाए रखना चाहते हैं, उन्होंने ही सितंबर 2017 में एक बयान दिया था, जो किसी और के बजाय उन्हीं के ऊपर ज्यादा लागू होता था।

वीरभद्र ने कहा, “कांग्रेस के लोग आजकल पार्टी के बजाए व्यक्ति विशेष के प्रति वफादार हैं। आजादी के समय की कांग्रेस और स्वतंत्रता उपरांत की कांग्रेस में बहुत बड़ा बदलाव आया है। आजकल जो लोग चापलूसी करते हैं, उन्हें चुनावों की अवधारणा को भुलाकर उच्च पदों पर बिठाया तथा मनोनीत किया जाता है।(पढ़ें)”

दरअसल वीरभद्र के साथ समस्या यह है कि उन्हें अपने पीछे चलने वाले लोग तो पसंद हैं मगर किसी को वो अपने बराबर आता या खुद से आगे बढ़ता हुआ नहीं देख सकते। उन्होंने हमेशा अपने वफादारों को फायदा पहुंचाया है। फिर वे नेता हों, अधिकारी या पूर्व अधिकारी। इस बात के लिए वीरभद्र की तारीफ भी होती है कि अपने लोगों को कभी भूलते नहीं। राजनीति में पकड़ बनाए रखने के लिए वफादारों को होना भी जरूरी है। इसे वीरभद्र की योग्यता भी कहा जा सकता है कि इसी कारण हिमाचल के किसी भी कोने में वीरभद्र के वफादार मिल जाएंगे।

लेकिन वीरभद्र का दूसरा पहलू भी है। वह अपने प्रतिद्वंद्वियों के पीछे पर हाथ धोकर पड़ जाते हैं। यही कारण है कि हिमाचल में कांग्रेस में वीरभद्र के बाद कोई भी ऐसा सशक्त नेता नहीं उभरा जो उन्हें टक्कर दे। वीरभद्र ने किसी को उभरने ही नहीं दिया। कुछ नेता वीरभद्र के खिलाफ बयानबाजी जरूर करते रहे हैं मगर बाद में वे मजबूरी में वीरभद्र को लेकर प्रतिबद्धता जताते रहे हैं। मगर सुक्खू का मामला अलग रहा। वह खुलकर ऐसे काम करते रहे जो वीरभद्र को रास नहीं आए।

वीरभद्र को सुक्खू से मिली टक्कर

आलाकमान का आशीर्वाद होने के कारण सुक्खू ने ऐसे कदम भी उठाए जिनसे वीरभद्र तिलमिला गए। इनमें वीरभद्र के कुछ वफादारों को चुनावों में पार्टी विरोधी काम करने के लिए बाहर का रास्ता दिखाना भी था। वीरभद्र सुक्खू के खिलाफ बयान पर बयान देते रहे, मगर सुक्खू अपनी धुन में लगे रहे। शायद यह पहला मौका था जब वीरभद्र को कोई उनकी ही शैली में जवाब दे रहा था। जाहिर है, ऐसे में हताशा बढ़ना लाजिमी था।

जैसे ही लोकसभा चुनाव की बात उठी, वीरभद्र सिंह ने फिर सुक्खू पर निशाना साधना शुरू कर दिया। विधानसभा चुनाव में हार के बाद वीरभद्र विधानसभा में अपने करीबी मुकेश अग्निहोत्री को कांग्रेस विधायक दल का नेता बनवाने में तो कामयाब हो गए मगर सुक्खू को हटवाने में उनका बस नहीं चल रहा था। विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने खूब कोशिशें की थीं मगर वे नाकामयाब रही थीं। वीरभद्र की चिंता यह भी थी कि कार्यकाल खत्म होने के बावजूद सुक्खू को हटाया नहीं जा रहा।

दरअसल कांग्रेस ने हिमाचल के मामले में बहुत बड़ी गलती की है। पूरे देश में आप कांग्रेस का पैटर्न देखें तो पता चलेगा कि कांग्रेस ने कभी भी किसी भी एक व्यक्ति को इतना नहीं चढ़ने दिया कि वह कल्ट बन जाए। अगर किसी राज्य में कोई नेता ज्यादा उभरने लगे, तो उसके समानांतर एक और नेतृत्व खड़ा कर दिया जाता है ताकि संतुलन बना रहे। वीरभद्र के समय सुखराम इस तरह का संतुलन बना रहे थे मगर दूरसंचार घोटाले में नाम आने के बाद सुखराम कांग्रेस से क्या हटे, वीरभद्र को पूरी ताकत मिल गई। उन्होंने इसका फायदा उठाया भी।

मगर उधर कांग्रेस का पूरे देश पर था, छोटी आबादी वाले पहाड़ी राज्य हिमाचल पर उसका फोकस कभी रहा ही नहीं। इस कारण उसने वीरभद्र को ऐब्सल्यूट पावर देकर रखी। मगर बाद में जब 2014 के लोकसभा चुनाव में झटका लगा, सत्ता से बाहर बैठकर सोच-विचार करने की फुरसत मिली तब आलाकमान ने सुक्खू को शक्तियां दीं कि वह स्वतंत्र होकर काम करें। इसलिए भले ही वीरभद्र ने दिल्ली के कई चक्कर लगाए मगर सुक्खू अपने पद पर बने रहे।

सुक्खू का कार्यकाल पिछले साल पूरा हो चुका था, ऐसे में जाहिर है उनकी जगह किसी और को प्रदेश अध्यक्ष बनना ही था। मगर हाल ही में जैसे ही आनंद शर्मा के करीबी कुलदीप सिंह राठौर को यह जिम्मेदारी सौंपी गई, वीरभद्र ने राहत की सांस ली। इसके साथ की एक बार फिर बयानबाजी का दौर शुरू हो गया। हद तो तब हो गई जब उन्होंने सुक्खू की टीम में मौजूद रहे नेताओं को ‘कबाड़’ बता दिया। वीरभद्र के लिए ये नेता कबाड़ इसलिए थे क्योंकि वे उनके खेमे के या उनके वफादार नहीं थे।

ब्लैकमेलिंग के आरोप

वीरभद्र का दूसरों को अपमानित करने वाले बयान देना पार्टी संगठन के बीच उनकी छवि को खराब कर चुका है। वह समय अलग था जब प्रदेश के हर विधानसभा क्षेत्र में वीरभद्र सिंह के करीबी थे। अब संगठन से जुड़े युवा वीरभद्र के प्रति नहीं, प्रदेश और देश के बारे में ज्यादा सोचते हैं। वे जानते हैं कि एक समय चुनाव से पहले क्यों वीरभद्र के कांग्रेस छोड़कर एनसीपी में जाने की तैयारी करने की अटकलों वाली खबरें छाई थीं। यह वह दौर था जब कौल सिंह ठाकुर कांग्रेस अध्यक्ष रहे थे और खुद को सीएम कैंडिडेट के तौर पर प्रॉजेक्ट कर रहे थे। शायद यही कारण है कि आज सुक्खू ने बयान दिया है कि वीरभद्र चुनाव से पहले पार्टी और कार्यकर्ताओं को ब्लैकमेल करते हैं।

वीरभद्र सिंह खुद और उनकी पत्नी प्रतिभा सिंह मंडी से कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ते रहे हैं और जीतते भी रहे हैं। मगर पिछले चुनाव में जब प्रतिभा सिंह की हार हुई थी, लंबे समय तक मंडी में विकास कार्य ठप होने और सीएम के मंडी न आने की खबरें चर्चा में रही थीं। यही नहीं, जिस सीट से वीरभद्र खुद जीते थे, उनकी धर्मपत्नी जीती थी, वहां से रामस्वरूप शर्मा के जीतने पर उन्होंने मंडी के बल्ह में ब्राह्मणों को लेकर बयानबाजी की थी। यानी मीठा-मीठा गप्प, कड़वा-कड़वा थू।

मकरझंडू

अब इस बार जब उनसे मंडी से चुनाव लड़ने के लिए बारे में पूछा गया थात तो उन्होंने कहा था- न मैं लड़ूंगा औ न मेरे परिवार के सदस्य, कोई नया मकरझंडू लड़ेगा। यानी वीरभद्र और उनके परिवार के अलावा और कोई कांग्रेस से चुनाव लड़ेगा तो वह मकरझंडू होगा? मकरझंडू शब्द को वीरभद्र दूसरों को अपमानित करने में इस्तेमाल करते रहे हैं। मकरझंडू शब्द कभी उन्होंने अध्यापकों के लिए इस्तेमाल किया औऱ एक बार ज्वालामुखी में कहा कि आज के अध्यापक मकरझंडू हैं। इस शब्द को वह अपने राजनीतिक विरोधियों के लिए भी इस्तेमाल करते रहे हैं। कभी वह कांग्रेस संगठन के लोगों को मकरझंडू कह देते हैं तो कभी किसी को।

दरअसल इस विषय पर कई बार बात हो चुकी है कि खुद को ऱाजसी समझने वाले वीरभद्र भूल जाते हैं कि रियासत काल चला गया और यह लोकतंत्र है। मगर उनका रवैया, उनका ऐटिट्डूयड रजवाड़ों जैसा ही है। मगर हैरानी की बात यह है कि कांग्रेस क्यों उन्हें ढो रही है? वीरभद्र के बयानों की फेहरिस्त बनाई जाए तो नैतिकता के आधार पर पार्टी संगठन के अनुशासनहीनता के सारे पैमाने टूट जाएं।

कुलदीप क्या करेंगे?

आज अगर कुलदीप सिंह राठौर संतुलन साधने की कोशिश करते हुए इस तरह की बयानबाजी को नजरअंदाज करेंगे तो कल को उनके लिए ही मुश्किल हो जाएगी। क्योंकि कल को जब आप स्वतंत्र ढंग से काम करने लगेंगे तो वीरभद्र आपको भी उसी तरह निशाने पर लेकर बयानबाजी कर सकते हैं जैसे सुक्खू को लेकर करते रहे हैं। जैसे सुक्खू स्वतंत्र काम करने लगे तो वीरभद्र के लिए वह मकरझंडू हो गए थे, उसी तरह से कल को कुलदीप अगर स्वतंत्र काम करेंगे तो वह भी मकरझंडू हो जाएंगे। वैसे भी वीरभद्र के लिए तो अपने परिवार के अलावा दूसरा हर शख्स मकरझंडू है ही।

अगर कुलदीप चाहते हैं कि संगठन को वह संगठन की तरह चलाएं तो उन्हें किसी भी बाहरी हस्तक्षेप से बचना होगा। ऐसे में उन्हें आज ही सख्त कदम उठाते हुए हिदायत जारी करनी चाहिए कि कोई कितना भी बड़ा नेता क्यों न हो, पार्टी के अनुशासन से बड़ा वह नहीं हो सकता। फिर वह वीरभद्र ही क्यों न हो। हां, अगर वह अध्यक्ष पद पर सिर्फ नाम भर के लिए बैठना चाहते हैं तो कोई दिक्कत नहीं है। वह आराम से वीरभद्र के हिसाब से काम कर सकते हैं और बदले में वह उनकी तारीफ करते रहेंगे। राठौर को चुनना होगा कि उन्हें क्या करना है।

देश बदल गया है, राजनीति बदल गई है और राजनीति की जरूरतें भी बदल गई हैं। ऐसे में पार्टी को कल के लिए तैयार करना है तो इसे परंपरागत चमचावाद से दूर करके नए ढंग से गढ़ना होगा। ऐसे में कुलदीप सिंह राठौर को चाहिए कि वह वीरभद्र को खुद पर हावी न होने दें, अपने हिसाब से अपने विज़न के हिसाब से पार्टी को चलाएं।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से जुड़े विषयों पर लिखते रहते हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

ये लेखक के निजी विचार हैं

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