लेख: शर्म करें हिमाचल के नेता, हद हो गई फोटोबाजी की

आई.एस. ठाकुर।। जितना दुख शिमला में एक बेटी के साथ हुए जघन्य अपराध से पहुंचा, उससे कहीं ज्यादा दुख पहुंचाया है इस मामले को लेकर फोटोशूट करवाने और खबरों में छपने का लालच रखने वाले लोगों ने, जिनमें जनता से लेकर राजनेता तक शामिल हैं। मुख्यमंत्री के उस बयान से भी ठेस पहुंची कि ऐसी घटनाएं होती रहती हैं। हताशा यह देखकर हुई जब गुड़िया को इंसाफ दिलाने की मांग को लेकर प्रदर्शन हुए तो उनमें बहुत से लोग बत्तीसी निकालते हुए नजर आए तो कुछ सेल्फी लेते नजर आए। और अफसोस कि इन लोगों में वे लोग भी शामिल थे जिन्हें हम अपना नेता कहते हैं, अपना प्रतिनिधि कहते हैं।

गुड़िया के घर पहुंचने से पहले फोटो सेशन
आज हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल के नेतृत्व में बीजेपी नेताओं, जिनमें विधायक भी थे, का एक समूह पीड़िता के घर पहुंचा। और अफसोस कि पूर्व मुख्यमंत्री समेत कई नेताओं ने फेसबुक पर कुछ तस्वीरें शेयर कीं, जिन्होंने यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि हमारे नेताओं का स्तर क्या है। फेसबुक पेज पर तस्वीरें शेयर की गई हैं उनमें दिख रहा है कि कुछ लोग रास्ते में जा रहे हैं। दो चार लोग इन फोटो में भी आपको हंसते हुए नजर आ जाएंगे।

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क्या हम किसी के यहां सामान्य तौर पर शोक व्यक्त करने जाते हैं तो क्या अपने फोटो खिंचवाते हैं और फेसबुक पर डालते हैं कि फ्लां जगह फ्लां बंदा नहीं रहा और मैं वहां शोक व्यक्त करने गया? फिर ऐसी क्या जरूरत आ गई कि इस तरह से खींचे गए फोटो शेयर किए गए? क्या आप शो ऑफ नहीं करना चाहते कि मैं गुड़िया के घर गया? हद यह थी कि वहां एक विडियोग्राफर घूम-घूमकर वीडियो बना रहा था। अगर वह मीडिया पर्सन भी हो, तो क्या उसे भी संवेदनशीलता नहीं बरतनी चाहिए?

अगर कोई बड़ा नेता कहीं शोक व्यक्त करने जाता है तो तस्वीरें मीडिया के लोग खींचते हैं और यह खबर होती है कि फ्लां नेता वहां गए और उन्होंने ऐसा किया। यह बेहूदगी की हद है कि कोई नेता खुद ही इन तस्वीरों को शेयर करे। गुड़िया मामला छोड़िए, अगर कोई नेता किसी शहीद के यहां श्रद्धांजलि देने जाता है तो उसे यह काम मीडिया अटेंशन पाने के लिए नहीं बल्कि दिल से करना चाहिए। तस्वीरें खींचकर छापने का काम उसे मीडिया के लिए छोड़ देना चाहिए। मगर हमारे हिमाचल के नेता इतने संवेदनहीन हैं कि खुद को संवेदनशील दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ना चाहते।

गुड़िया के परिजनों की पहचान सार्वजनिक कर दी
जिस तरह से गुड़िया के असली नाम पर उसके स्कूल का नाम रखना कानूनन गलत है, उसी तरह से उसकी या उसके परिजनों की पहचान किसी भी रूप मे जाहिर करना गलत है। दूसरों को नसीहतें देने वालों ने आज फोटो सेशन करवाकर गुड़िया के घर में तस्वीरें खिंचवाकर फेसबुक पर डाली हैं और उनमें गुड़िया के पिता समेत कई परिजनों का चेहरा नजर आ रहा है। आप यह क्यों भूल जाते हैं कि नाम ही नहींं, फोटो या कोई और पहचान जाहिर करना भी गैरकानूनी है। मगर सोशल मीडिया पर तो इसका वीडियो भी शेयर किया जा रहा है।

यह सोचकर दिल बैठता कि किसी के घर में कोई हादसा हो जाए, वह शोक में डूबा हो और कोई शोक व्यक्त करने आए और उसके साथ आए लोग फोटो खींचते रहें तो कैसा लगेगा। मीडिया यह काम करे तो समझ आता है। बाद मे पता चले कि शोक व्यक्त करने आया आदमी अपनी फेसबुक पर उन तस्वीरों पर डाल चुका है तो परिजन कैसा महसूस करेंगें?

खैर, कई तस्वीरें ज्ञापन देने वालों की ऐसी भी दिखीं जो बार-बार फोटो खिंचवा रहे थे गुड़िया को इंसाफ की मांग के लिए ज्ञापन देकर। ज्ञापन क्या चुपचाप नहीं दिया जा सकता? फोटो खिंचवाना जरूरी है? क्या ज्ञापन देते हुए नॉर्मल मोड मे ंपत्रकार फोटो खींच दे, यह काफी नहीं? बत्तीसी निकालकर कैमरे पर देखकर फोटो खिंचवाना जरूरी है? शर्म आती है ऐसे नेताओं पर जो अखबारों के लिए हर काम करते हैं। दिखावे के लिए हर काम करते हैं।

नेताओं को थोड़ा संवेदनशील होना चाहिए क्योंकि वे समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं। राजनीति अपनी जगह है, जमकर करें। आपका काम है राजनीति करना, मगर संवेदनशील होत हुए राजनीति करें।

(लेखक हिमाचल प्रदेश से संबंध रखते हैं और इन दिनों आयरलैंड में हैं। पिछले कुछ समय से हिमाचल प्रदेश से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। उनके kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

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