हिमाचल सरकार की हर भर्ती पर सवाल क्यों उठते हैं

राजेश वर्मा।। प्रदेश भर में 3 लाख से ज्यादा बेरोजगार अभ्यर्थियों ने 17 नवंबर को 1194 पदों के लिए जैसे ही पटवारी की परीक्षा दी तो तुरंत बाद कहीं प्रश्न पत्र मिलने में देरी, कहीं नकल करने करवाने के आरोप तो कहीं निर्धारित समय के बाद भी परीक्षा जारी रखने आदि के तमाम आरोपों प्रत्यारोपों के बीच यह भर्ती प्रक्रिया का मामला हाईकोर्ट में चला गया और अब हाईकोर्ट ने इसी पटवारी भर्ती परीक्षा की तीन माह के भीतर सीबीआई जांच करवाने का सरकार को निर्देश दे दिया।

यह एक अकेली पटवारी परीक्षा ही नहीं है जिस पर अंगुली उठी हो समय-समय पर प्रदेश में बहुत सी भर्ती परीक्षाओं पर धांधलियों के आरोप लगते रहे हैं। चाहे पुलिस भर्ती हो, शिक्षक भर्ती हो, कंडक्टर भर्ती हो, बैंकों में भर्ती हो, या अन्य विभिन्न विभागों में विभिन्न पदों पर होने वाली भर्तियां हो। ऐसा भी नहीं की यह किसी विशेष सरकार के कार्यकाल में ही हुआ हो, सत्ता में कोई भी दल हो लेकिन ऐसी अंगुलियां उठती ही रही हैं।

आखिर क्यों हर बार उन बेरोजगारों के लिए कोर्ट ही एकमात्र सहारा बनता है जो बेरोजगारी के इस आलम में नौकरी की चाह में अपनी मेहनत से दिन रात एक कर देते हैं लेकिन उन्हें फिर कहीं न कहीं कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाने पर मजबूर होना पड़ता है। कोई भी बेरोजगार न्यायालय के चक्कर में नहीं पड़ना चाहता लेकिन फिर भी उसे मजबूरीवश ऐसा कदम उठाना ही पडता है क्योंकि भर्ती प्रक्रियाओं में जब खामियाँ होंगी तो कोई भी अपने संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करने से पीछे नहीं हटेगा।

श्रम व रोजगार विभाग के नवीनतम आंकड़ों के अनुसार प्रदेश में विभिन्न रोजगार कार्यालयों में 8 लाख से ज्यादा बेरोजगारों की फौज का आंकड़ा दर्ज है। पटवारी परीक्षा में ऐसा लगा मानों पूरा हिमाचल ही परीक्षा देने उतरा हो क्या गांव क्या शहर? सभी मैट्रिक पास और इससे उपर की शैक्षणिक योग्यता रखने वाले बेरोजगार पटवारी बनने की चाह लिए थे, मीडिया हो या सोशल मीडिया सभी जगह पटवारी ही छाए हुए थे। वे पटवारी जिनके दीदार को गांव में लोगों की नजरें तरस जाती हैं उस पटवारी पद के लिए एक ही झटके में इस परीक्षा ने प्रदेश के 11 जिलों में 1194 पदों पर 3 लाख से ज्यादा बेरोजगारों ने पटवारी बनने के लिए आवेदन कर दिया।

पहली बार महसूस हो रहा था कोई भी आपस में छोटा बड़ा नहीं है सब बस पटवारी बनते बनाते ही नजर आ रहे थे, न तो 10 पास बेरोजगार की नजर में एक बीटेक इंजीनियर था और न ही एमफिल- पीएचडी डिग्री धारक की नजर में एमए, बीएड वाला कोई मास्टर, सब एक दूसरे की नजर में पटवारी थे लेकिन जब भी धांधली या इस तरह की घटनाएं देखने सुनने को मिलती हैं तो भले ही ऐसी परीक्षाएं निष्पक्ष आयोजित हों फिर भी लोग इसे शक की निगाह से देखते हैं। भर्ती होंगे सिर्फ़ 1194 लेकिन शेष जो लाखों रह गए उनकी नजर में तो यह चेहतों को लाभ देने वाली बात ही होगी और कोई भी सरकार कभी नहीं चाहेगी की कोई भर्ती परीक्षा ऐसी हो जिसके कारण महज 1 हजार के लिए वह लाखों बेरोजगारों का आक्रोश झेले।

भर्ती प्रक्रिया का अंतिम परिणाम जो जो भी होगा अच्छा ही होगा क्योंकि इन्हीं लाखों बेरोजगारों में से ही ये पटवारी लगेंगे। एक बात और गौर करने वाली है कि आखिर उच्च शैक्षणिक योग्यता रखने वाले युवा भी आखिर पटवारी क्यों बनने की सोचने लगे? तो इसके पीछे की एकमात्र मुख्य वजह है बेरोजगारी। श्रम एवं रोजगार विभाग के नवीनतम आंकड़ें बताते है की पोस्ट ग्रेजुएट या इससे अधिक शैक्षणिक योग्यता रखने वाले लगभग 80 हजार बेरोजगार, ग्रेजुएट 1 लाख 30 हजार के करीब, सीनियर सेकंडरी पास 4 लाख 50 हजार 5 सौ 36 व मैट्रिक के 1 लाख 28 हजार 402 बेरोजगार युवा प्रदेश के विभिन्न रोजगार कार्यालयों में वर्तमान में दर्ज हैं। इन आंकड़ों से साफ पता चलता है की अकेले मैट्रिक से लेकर सीनियर सेकंडरी तक का आंकड़ा 5 लाख से ऊपर है। इसी तरह ग्रेजुएट व पोस्ट ग्रेजुएट का आंकड़ा 2 लाख से उपर है। कुल 8 लाख से उपर बेरोजगारों की फौज को सरकारी क्षेत्र में घटते नौकरियों के मौकों ने इन युवाओं को किसी भी छोटी बड़ी प्रतियोगी परीक्षा में भाग लेने के लिए मजबूर कर दिया है।

आज बेरोजगार अपनी बेकारी से इतना तंग नहीं जितना वह नौकरी के लिए अपनाई जाने वाली ऐसी प्रतियोगी परीक्षाओं की प्रक्रिया से प्रताड़ित होता है। परीक्षा केंद्रों में तैनात स्टाफ़ सदस्यों को उनका मेहनताना मिल जाएगा परंतु किसी ने यह नहीं सोचा की किसी बेरोजगार ने कैसे-कैसे भारी-भरकम आवेदन शुल्क भरा होगा उसके बाद दूर दराज के क्षेत्रों से कोई 50 मील की दूरी तो कोई शख्स 100 मील से ज्यादा की दूरी तय करके बस किराया खाने पीने व रहने का खर्च करके परीक्षा देने पहुंचा होगा लेकिन जब उसे परीक्षा केंद्र में इस तरह के घटनाक्रम से जूझना पड़ा होगा तो उसकी व उसके परिवार की मानसिक पीड़ा को शायद ही कोई समझ सका होगा।

प्रदेश में पढे़-लिखे बेरोजगारों को जितना विश्वास कर्मचारी चयन आयोग व लोक सेवा आयोग पर है उतना भरोसा किसी अन्य ऐंजसी पर नहीं है, हो भी क्यों न? क्योंकि प्रदेश का कर्मचारी चयन आयोग निष्पक्ष व बेहतरीन भर्ती प्रक्रिया आयोजित करने के मामले में आज भी अपनी स्वच्छ छवि के लिए बेरोजगारों के दिलो-दिमाग में है।

प्रश्न यह भी है कि जब हमारी सरकारों ने हम प्रदेश वासियों को सरकारी नौकरियों में भर्ती के लिए कर्मचारी चयन आयोग व लोकसेवा आयोग जैसी संवैधानिक संस्थाएं दी हैं तो विभिन्न विभाग अपने स्तर पर इन भर्तियों को आयोजित क्यों करवा रहे हैं। कभी पुलिस भर्ती, कभी ड्राइवर- कंडक्टर भर्ती, कभी फाॅरेस्ट गार्ड की भर्ती,कभी लाईन मैन की भर्ती, कभी बैंकों में भर्ती तो कभी अन्य भर्तियां आदि। यह सब भर्तियां कर्मचारी चयन आयोग व लोक सेवा आयोग द्वारा क्यों नहीं की जाती जबकि इनका गठन भी इसी उद्देश्य के लिए किया गया है। इतना तय है यदि इसी तरह कर्मचारी चयन आयोग व लोक सेवा आयोग की बजाए सभी विभाग खुद ही बिना उचित नीति के भर्तियां करते रहे तो ना तो बेरोजगारी कम हो पाएगी और न हीं हम प्रदेश के करीब 8 लाख बेरोजगारों का भरोसा जीत पाएंगे। कभी परीक्षा में धांधली कभी प्रश्न पत्रों में गड़बड़ियां कभी अन्य कारण आदि।

प्रतीकात्मक तस्वीर

रोजगार देना बहुत कल्याणकारी योजना है लेकिन यह तभी अपनी मंजिल पर पहुंच पाएगी जब निष्पक्षता से इसे एक सही समय में पूरा कर लिया जाए। भर्ती प्रक्रिया प्रारंभ करने का मतलब यह नहीं की आपने रोजगार दे दिया। रोजगार देने का उद्देश्य तो तब सार्थक होगा जब इसे पाने वाले के साथ-साथ इस प्रक्रिया में भाग लेने वाले भी इसकी प्रक्रिया से संतुष्ट होंगे। प्रदेश के युवाओं में चेहतों को लगाने का डर खत्म करना होगा। किसी को रोजगार का न मिलना इतना कष्टकारी नहीं जितना की इसकी प्रक्रियाओं में लगने वाले आरोप-प्रत्यारोपों से उसे पीड़ा होती है, तब वह यह नहीं सोचता की उसमें कुछ कमी रह गई होगी तब उसके मन में बस एक ही सवाल उठता है कि नौकरी तो बस अपनों को मिलती है और सिफारिश से मिलती है।

(स्वतंत्र लेखक राजेश वर्मा लम्बे समय से हिमाचल से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं। उनसे vermarajeshhctu @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)

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