देवेंद्र।। विधानसभा चुनावों के लिए दो प्रमुख राजनीतिक दलों भाजपा व कांग्रेस में टिकट आवंटन को लेकर जैसे-जैसे इंतजार लंबा खिंच रहा है, वैसे ही अपने-अपने विधानसभा क्षेत्र में कार्यकर्ताओं व मतदाताओं की धड़कने भी तेज़ होती जा रही हैं। जिन क्षेत्रों में टिकट आवंटन को लेकर स्थिति साफ है, वहां तो दोनों दलों को कोई दिक्कत नहीं। लेकिन जहां टिकटों को लेकर आपसी खींचतान व असमंजस की स्थिति है, वहां कांग्रेस तथा भाजपा के लिए हार व जीत का संशय भी बिल्कुल इसी तरह बरकरार है। मंडी जिले के सरकाघाट विधानसभा क्षेत्र की बात करें तो पिछले कुछेक चुनावों से यह सीट लगातार प्रदेश के लिए हॉट सीट बनी हुई है।
सरकाघाट विधानसभा क्षेत्र से 7 बार प्रतिनिधित्व करने वाले कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रंगीला राम राव को पिछले चुनाव में विधानसभा टिकट नहीं मिल पाया लेकिन इस बार टिकट के लिए वे अपनी दावेदारी जता चुके हैं। वर्तमान विधायक कर्नल इंद्र सिंह ठाकुर भाजपा के टिकट से लगातार तीन बार चुनाव जीत चुके हैं और चौथी बार भी टिकट को लेकर अपनी दावेदारी जता रहे हैं। इसी तरह कांग्रेस के टिकट से पिछली बार चुनाव लड़ने वाले पवन ठाकुर मान रहे हैं कि इस बार भी उन्हीं को टिकट मिलेगा। जबकि प्रदेश युवा कांग्रेस के कार्यकारी अध्यक्ष यदुपति ठाकुर ने भी टिकट को लेकर ताल ठोक दी है। कांग्रेस में युवाओं को टिकट मिलने की फेहरिस्त में उनका नाम भी चर्चा में चला हुआ है।
भाजपा में मौजूदा विधायक कर्नल इंद्र सिंह ठाकुर के अलावा जिला पार्षद चंद्र शर्मा भी बीजेपी से टिकट चाहते हैं। वहीं सरकाघाट में भाजपा संगठन को खड़ा करने वाले और संगठन के लिए चुपचाप बिना अपनी महत्वाकांक्षाओं को जाहिर किए काम करने वाले भाजपा जिलाध्यक्ष दलीप ठाकुर भी टिकट के दावेदार बताए जा रहे हैं। इसी तरह प्रदेश भाजपा सचिव के पद पर नियुक्त डाक्टर सीमा ठाकुर का नाम भी चर्चा के रूप में सामने आता है।
भाजपा को लेकर निराशा
सरकाघाट में कांग्रेस हो या भाजपा, किसी भी दल को जीतना है तो उसमें चेहरा बहुत अहम भूमिका निभाएगा। वर्तमान में विधायक कर्नल इंद्र सिंह ठाकुर पर जिस तरह क्षेत्र की अनदेखी व क्षेत्र के विकास के लिए मौन रहने के आरोप लगते रहे हैं, उससे इस बार इनकी राह इतनी आसान नहीं लगती। कुछ लोगों का तो यह भी कहना है कि जो विकास या जो कुछ काम सरकाघाट के लिए रंगीला राम राव के मंत्री रहते हुए, उसके बाद सरकाघाट में कुछ भी विशेष नहीं हो पाया।
किसी समय प्रदेश में सरकाघाट विधानसभा क्षेत्र अग्रणी होता था लेकिन आज अपने पड़ोसी विधानसभा क्षेत्र धर्मपुर से भी पिछड़ गया है। जहां भाजपा का एक गुट कर्नल से अभी भी नाराज है, वहीं बहुत से कार्यकर्ताओं का कहना है कि हमारी अनदेखी कर विरोधियों को तवज्जो दी गई। भाजपा अगर नाराज कार्यकताओं को साथ लाकर जीत दर्ज करना चाहती है तो वह नए चेहरे पर भी दांव खेल सकती है। वक कोई ऐसा चेहरा हो सकता है, जिसकी संगठन से लेकर पार्टी व आमजन तक पकड़ हो। इस लिहाज से दलीप ठाकुर का पलड़ा थोड़ा भारी लग रही है।
कांग्रेस की आपसी कलह
वहीं कांग्रेस की स्थिति यहां तब मजबूत हो सकती है, जब रंगीला राम राव को टिकट मिलता है। जिन लोगों को लगता है कि सरकाघाट की अनदेखी हुई है, वे राव के पीछे लामबंद हो सकते हैं। वह इसलिए कि अगर वे जीतते हैं और कांग्रेस सत्ता में वापसी करती है तो कांग्रेस में वरिष्ठ होने के चलते उन्हें मंत्री पद अवश्य मिलेगा। लोगों में इस बात को लेकर भी कहीं न कहीं दर्द है कि कर्नल इंद्र सिंह ठाकुर को तीन बार जिताने के बावजूद मंत्री पद नहीं मिला।
कांग्रेस की आपसी कलह जगजाहिर है। पिछली बार पवन ठाकुर बहुत कम मार्जन से हारे थे और इस हार का एक प्रमुख कारण गुटबाजी को भी माना गया। इस बार भी यदि पवन ठाकुर को टिकट मिलता है तो लगता नहीं कि रंगीला राम राव व यदुपती ठाकुर मन से उनके साथ चल पाएंगे। लेकिन पार्टी यदि रंगीला राम राव को टिकट देती है तो पुराने कांग्रेसी मंत्री पद मिलने की उम्मीद में उनके साथ चल सकते हैं। लेकिन उस स्थिति में पवन और यदुपति की भूमिका भी अहम रहेगी।
स्थितियां टिकट आवंटन के बाद साफ हो जाएंगी। लेकिन इतना तय है कि सरकाघाट की राह दोनों ही प्रमुख दलों के लिए आसान नहीं दिख रही है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। उनसे jahubhamblabum@gmail.com पर ईमेल के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है)