PUBG और TikTok को लेकर यूं ही डरा रहा है मीडिया

आई.एस. ठाकुर।। क्या आपने कभी खबर पढ़ी कि फलां जगह बच्चे पढ़ाई छोड़ दिन भर धूप में क्रिकेट खेलते रहते हैं, फलां जगह सुबह से फुलबॉल खेल रहे बच्चे की शाम को मैदान में अचानक मौत हो गई या फलां जगह रोलर स्केटिंग कर रहा बच्चा रीढ़ में चोट लगने से विकलांग हो गया? फिर PUBG के जुनून, उससे पढ़ाई में हो रहे कथित नुकसान और गेम खेलते समय किसी एक बच्चे की जान चले जाने को लेकर हो-हल्ला क्यों हो रहा है?

मुझे लगता है कि जिसमें आपकी दिलचस्पी न हो, उसकी आलोचना करना और उसे बेकार या घातक बता देना आसान होता है। PUBG और TikTok को इसी तरह का निरर्थक विरोध झेलना पड़ रहा है। मीडिया का एक हिस्सा इन्हें ऐसे दिखा रहा है जैसे महामारी फैल गई हो।

चिंता खतरे की है तो आउटडोर गेम्स कौन सा कम खतरनाक हैं जहां जानलेवा चोट लग सकती है? चिंता अडिक्शन को लेकर है तो म्यूजिक, स्पोर्ट्स या किताबों में डूबे रहना क्या अडिक्शन नहीं? चिंता गैजेट्स पर ज़्यादा समय बिताने को लेकर है तो यह निरर्थक चिंता है क्योंकि दफ्तर से लेकर घर तक लगातार कई-कई घन्टों तक कम्प्यूटर और मोबाइल स्क्रीन पर चिपके रहना आज ज़रूरत बन गया है।

PUBG वगैरह को लेकर डर फैला रहा मीडिया का यह वही वर्ग है जो कुछ साल पहले तक स्वाइन फ्लू और डेंगू को लेकर हाहाकार करता था। मगर आज ऐसे चुप है जैसे इन बीमारियों का उन्मूलन हो चुका हो। यह वही मीडिया है जिसके लिए सिर्फ खबर मायने रखती है, उसकी प्रामाणिकता नहीं। यह वही मीडिया है जो रबर के चावल, प्लास्टिक की गोभी और अंडे की हास्यास्पद खबरें चलाकर लोगों के दिमाग में वहम भरता है। इसी मीडिया को अब PUBG के रूप में नया विषय मिला है।

नई या मनोरंजक चीज को लेकर जुनून होना स्वाभाविक है। मगर ‘डराना = कमाना’ सिद्धान्त पर चलते हुए अपवादों को उदाहरण के तौर पर पेश करके लोगों को बेवजह डराया जा रहा है।

(लेखक लंबे समय से हिमाचल और देश-दुनिया से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं, उनसे kalamkasipahi @ gmail.com पर सम्पर्क किया जा सकता है)

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