आई.एस. ठाकुर।। एक बेरोगजार से भी अगर फेयर कॉम्पिटिशन में शामिल होने का मौका छीना जाता है तो यह घोर अन्याय है।
हिमाचल में हाल ही में हुई पटवारी परीक्षा में कहीं सेंटर का नाम गलत था, किसी के रोल नम्बर में गड़बड़ी थी तो कहीं प्रश्नपत्र देरी से बांटे गए। इस सभी या अन्य किसी कारण के चलते अगर नौकरी के चाहवान टेस्ट नहीं दे पाए या ढंग से नहीं दे पाए, उन्हें फिर से मौका देना सरकार की नैतिक जिम्मेदारी है।
अगर सरकार को लगता है कि परीक्षा रद्द करना इतने सारे अभ्यर्थियों के साथ अन्याय होगा तो उसे यह भी सोचना होगा कि तंत्र की लापरवाही के कारण जो लोग प्रभावित हुए हैं, उन्हें कैसे न्याय दिलाया जाए। अगर सरकार कहती है कि उसके पास सही आंकड़े नहीं हैं कि परीक्षा के दौरान विभिन्न गड़बड़ियों से कितने अभ्यर्थी प्रभावित हुए तो ये उसके लिए न सिर्फ शर्म की बात है बल्कि उसकी कार्यशैली पर ही प्रश्न चिह्न है।
हिमाचल में सरकारी नौकरियों की भर्ती के लिए बाकायदा दो-दो डेडिकेटेड बॉडीज हैं, फिर भी जिस तरह से विभिन्न विभाग अपने स्तर पर भर्तियां कर रहे हैं, उनमें कई अनियमितताएं देखने को मिल रही है। जब विभागों के पास परीक्षाएं करवाने का अनुभव नहीं है तो फिर क्यों वे खुद ऐसे आयोजन कर रहे हैं?
पिछले कुछ सालों से देखने को मिल रहा है कि हर भर्ती के टेस्ट में गड़बड़ी के कारण बेरोजगार फेयर कॉम्पिटिशन के मौके से वंचित रह जाते हैं और फिर भर्तियों में भी गड़बड़ी के आरोप लगते हैं। हर बेरोजगार बराबर का जरूरतमंद होता है। इसलिए उनमें से किसी को भी टेस्ट देने का मौका न मिल पाना या सिफारिश से किसी और की नौकरी लग जाना बहुत गलत है।
सरकार याद रखे कि वह नौकरियों के सृजन और भर्तियों में पारदर्शिता के वादे के साथ सत्ता में आई है। अगर वह अपने इस मुख्य वादे को निभाने में ही असफल रहेगी तो बाकी जो मर्जी कर ले, अगले चुनावों में 8 लाख से अधिक बेरोजगार मतदाता उसे सत्ता से बाहर भी कर सकते हैं। बेहतर होगा अगर वह प्रभवित अभ्यर्थियों की पहचान करके उन्हें फिर से टेस्ट का मौका दे।
(लेखक लंबे समय से हिमाचल प्रदेश से जुड़े विषयों पर लिख रहे हैं. उनसे kalamkasipahi @ gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है)
ये लेखक के निजी विचार हैं