ईसा मसीह और हिमाचल में नड़ के जी उठने में क्या है समानता?

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यतिन पंडित।। जॉन दी बैप्टिस्ट ने एक फरिश्ते की मदद से यीशु को एक आवरण प्रदान किया था। जिसके पश्चात वे इस जगत में वो सब कर पाए जो उन्हें यीशु बनने के लिए आवश्यक था। या कहें इसी घटनाक्रम के बाद उनमें पारलौकिक शक्तियां आई थीं। – Via : Zohar stargate ancient discovery youtube channel (Translated)

इस ऐतिहासिक घटनाक्रम का वर्णन विलियम हेनरी/William Henry ने अपनी पुस्तक “The Secret Of Sion” में किया है। उनके अनुसार जॉन बैप्टिस्ट ने यीशु के शरीर को किसी वाइब्रेशन से और विभिन्न विद्युतीय सतरंगी तरंगों से परिपूर्ण करवाया था। अपने एक लेक्चर वे इंगित करते हैं कि क्रिश्चियन मान्यताओं में भी कुछ अन्य स्थानों पर इसका वर्णन आता है।

परंतु इन शक्तियों के प्राप्त होने के बावजूद यीशु को कैसे क्रुसिफिक्स किया गया? ऐसा विचार अक़्सर आता है; क्रुसिफिक्स के समय वे शक्तियां या कलाएं कहां थीं जो जॉन बैप्टिस्ट ने उन्हें दीं थीं?

बचपन में क्रिश्चिएनिटी की कहानियों में सबसे ज़्यादा हैरान करने वाला कथानक यीशु का क्रॉस पर प्राण त्यागना और उसके पश्चात फिर से लौट आना लगता था। समय बीतने के साथ, जैसे-जैसे हिमालय की दुर्लभ संस्कृति से अधिक साक्षात्कार हुआ; और जब कुछ अन्य अद्भुत अनुभवों से सामना हुआ तो यीशु का यह री-इन्कार्नेशन वाला कथानक उनके समक्ष गौण लगने लगा।

चलिए, आज इसी इंकार्नेशन और यीशु की प्रमुख कला को ध्यान में रखते हुए उनके व्यक्तित्व के एक पहलू को हिमालय की प्राचीन संस्कृति के परिप्रेक्ष्य में देखते हैं।

सबसे पहले यहां यह प्रश्न आवश्यक है कि, यहां ऐसा कौन है जो मरकर फिर से ज़िंदा होता है?

बेशक, मैदानी इलाकों के लोग इस कबाइली प्रक्रिया से वाकिफ़ नहीं होंगे, परंतु हिमालय के लोग, सम्भवतः अंदरूनी हिमालय के लोग भली भांति जानते हैं कि “ऐसा कौन है जो मरकर ज़िंदा होता है?”
इसका उत्तर है नड़, या जिसे स्थानीय आम बोलचाल की भाषा मे नौड़ कहा जाता है। हिमालय में नड़ प्रजाति का देव कारिंदा वो एकमात्र व्यक्ति है, जो आज भी मरकर पुनः जीवित होता है। यह हिमालय की एक कबाइली प्रथा है। इस प्रथा को निभाने के लिए यहां एक विशेष आयोजन किया जाता है जिसे ‘काहिका’ कहते हैं। जिसमे स्थानीय देवता नड़ के प्राण जाने के बाद उसे पुनः जीवित करते हैं।

पहले थोड़ा सा इस बात पर प्रकाश डाल लेते हैं कि वास्तव में नड़ समुदाय क्या है और इनका क्या महत्व है। ऊपरी हिमालय के संदर्भ में अधिकतर लोग अभी केवल शामन्स से परिचित होंगे। नड़ या नौड़ अधिकांश लोगों के लिए एक बिल्कुल नया नाम हो सकता है। आपको बता दें कि हिमाचल प्रदेश के कुल्लू ज़िला में नड़ समुदाय का अस्तित्व है। यह समुदाय अधिक चर्चित नहीं परंतु इसी प्रजाति से सम्बंधित एक अन्य घटनाक्रम बेहद चर्चित है। हिमाचल के निरमण्ड और शिमला ग्रामीण में मनाया जाने वाला ‘भूंडा उत्सव’ बहुत प्रसिद्ध है। जिसमे देव परम्परा के अनुरूप चयनित एक व्यक्ति को रस्से पर बांधकर खाई की ओर भेजा जाता है। यह उत्सव प्राचीन काल के नरमेध यज्ञ का कबाइली स्वरूप माना जा सकता है।

प्राचीन है हिमाचल की देव पंरपरा

इसी प्रकार से ज़िला कुल्लू में मनाया जाने वाला “काहिका” देव-उत्सव भी इसी प्रथा का एक अलग स्वरूप है। जिसमे बलि के लिए चयनित व्यक्ति ‘नौड़’ कहलाता है। ऐसा माना जाता है कि नड़/नौड़ समुदाय एक ही खानदान के वंशज होते हैं, जिन्हें इस परम्परा को निभाने के लिए चयनित किया जाता है। कुल्लू की देव परम्परा में काहिका उत्सव से जुड़ा एक नियम यह भी है कि, यदि मरने के बाद नड़/नौड़ देवताओं की शक्ति से जीवित ना हो पाए तो संबंधित देवता की सारी संपत्ति उसकी पत्नी को दे दी जाती है।

बेशक आज यह प्रथा प्रतीकात्मक रूप में निभाई जाती हो और कालांतर में इस प्रथा में कुछ बदलाव भी आए होंगे; परंतु नड़ समुदाय का अस्तित्व उतना ही पुराना है जितना पुराना पहाड़ों में बसने वाले कबीलों का अस्तित्व है; और विशेष बात यह है कि नड़ या नौड़ विशेष समुदाय का वह व्यक्ति है जो जगत के पाप स्वयं पर लेकर प्राण देता है और देव अनुकम्पा से पुनः जीवित होता है। ऐसा ही मिलता-जुलता वर्णन यीशु के विषय मे देखने को भी मिलता है। जिन्होंने जगत के पाप स्वयं पर लेकर अपने प्राणों की आहुति दी थी।

तो क्या, हम इस आधार पर यह मानें कि यीशु भी एक प्रकार के नड़ थे? हो सकता है यह विचार कहीं तक सही हो, पर यहां एक पक्ष और भी है।

यीशु के सम्बन्ध में आमतौर पर एक और बात भी सामने आती है। यह सर्वविदित है कि वे प्रभु का सन्देश लोगों तक पहुंचाते थे। वैसे भी यीशु के जीवन को यदि देखें तो वे जीवन पर्यंत परमात्मा के संदेश वाहक ही बने रहे। ऊपर जॉन बैप्टिस्ट और यीशु का जो वर्णन किया है, कि उन्होंने यीशु को एक आवरण के रूप में कलाएं प्रदान की, इसके बारे में एक मत यह हो सकता है कि यह दरअसल वह प्रक्रिया जॉन का यीशु को शामन/ओरेकल/गूर विद्या का ज्ञान देना है।

तो यहां अब दूसरा प्रश्न :

विश्व भर के प्राचीन कबीलाई कल्ट्स के अनुसार लोगों के लिए प्रभु का सन्देश/पैगाम कौन लाता है?

इसका सीधा जवाब है – गूर, जिसे अधिकतर लोग ओरेकल या शामन्स के रूप में जानते हैं।

सम्भवतः यह प्रणाली भी लगभग उतनी ही पुरानी है जितना पुराना नड़ समुदाय है।

तो, यहां एक सवाल यह भी उठता है कि क्या यीशु नड़ थे या देवताओं के ओरेकल/गूर थे?

इस प्रश्न के विपरीत, ऐसा बहुत कम देखने मे आता है कि कोई गूर या शामन इस प्रकार से पूजित हुआ हो, जैसे यीशु हुए हैं। हां, बेशक कुछ गूर पूजित हुए हैं, परंतु केवल कुछ एक विशेष परिस्थितियों में ही और बहुत ही सीमित मान्यता के अंतर्गत।

तीसरा पक्ष एक विचार यह भी देता है कि यीशु का नड़ होना या ओरेकल होना, दो प्राचीन प्रजातियों के मध्य उनके वर्णसंकर होने का संकेत हो सकता है।

ख़ैर… नड़ और गूर सम्प्रदाय तथा यीशु का इनमें से एक होना या ना होना, फिलहाल गहन तथा तार्किक शोध की मांग करता है। परंतु हिमालय की विभिन्न लोक परंपराओं के आधार पर देखें, तो यहां आज भी स्थानीय शामन प्रणाली इसी ओर इशारा करती है कि जो देवताओं का संदेश लाता है, वह गूर/शामन होता है। साथ ही, यहां की नड़ जाति और देवताओं से सम्बंधित परम्परागत प्रणाली हमे बताती है कि पाप छिद्रण अथवा प्रायश्चित के लिए इस समुदाय के लोग आज भी पहले की तरह ही अपने प्राणों की बलि देकर जगत के पाप अपने ऊपर लेते हैं। तथा दूसरों के लिए अपने प्राण देकर देव अनुकम्पा से पुनः जीवित होने की प्रथा को बनाए हुए हैं।

कई देशों की प्राचीन संस्कृतियों में शामन का स्थान अहम रहा है

संस्कृतियों के सापेक्ष अध्ययन में इस तरह की मिलती जुलती बातें सामने आना कोई नई बात नहीं है। एक जिज्ञासु होने के नाते वैसे भी हम सबके मन मे ऐसे बहुत से प्रश्न विचरते रहते हैं। यह भी सम्भवतः अभी एक नया विचार है, एक ऐसा विचार, जिससे परम्परागत सोच वाले लोगों को असहमति भी हो सकती है। परंतु यह एक नए पक्ष के रूप में हिमालय और अन्य संस्कृतियों के विभिन्न आयामों के अध्ययन को एक अलग दिशा दे सकता है। एक अलग आयाम और एक नए दृष्टिकोण के रूप में इस पर विचार करके, बहुत सी अबूझ बातों को समझने का प्रयत्न तो किया ही जा सकता है। नड़ और गूर सम्प्रदाय के विषय मे ऐसी कई गूढ़ बातें हैं जिनपर यदि गौर किया जाए, तो हमे अपने इतिहास और संस्कृति से सम्बंधित बहुत से सवालों के जवाब मिल सकते हैं। बस हमे यह ध्यान रखना होगा कि हिमालय की इन प्राचीन प्रथाओं का यथोचित सम्मान रखा जाए।

यहां.. हिमालय और हिमालय की अबूझ संस्कृति के संबंध में कृष्णनाथ जी की लिखी पंक्तियां याद आती हैं :―

हिमालय को कौन पूरा जान सकता है ? केवल हिमालय ही हिमालय को जानता है । या शायद …. वह भी नहीं जानता ! आँख ; आँख को कहाँ देख सकती है?

(लेखक यतिन पंडित कुल्लू से हैं और हिमाचल प्रदेश की संस्कृति व देव परंपराओं के इतिहास में दिलचस्पी रखते हैं।)

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