राजेश वर्मा।। शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी एक ऐसी शख्सियत जिन्हें धर्मगुरु कहें, समाजसेवी कहें या सनातन धर्म के प्रचारक प्रसारक कहें या कुछ और? जमाने के साथ चलने वाले शंकराचार्य का चले जाना दुखद ही नहीं बल्कि देश व समाज के लिए अपूरणीय क्षति है। भारतीय संस्कृति को नए जमाने के साथ चलते हुए कैसे संरक्षित रखा जा सकता है यह इनसे बेहतर आजतक कोई नहीं कर पाया। इन्होनें न केवल सनातन धर्म की रक्षा की बल्कि सनातन धर्म के प्रति फैली भ्रांतियों को भी दूर करने का हर संभव प्रयास किया।
सभी जानते हैं सनातन धर्म में किस तरह जाति वर्ग विशेष का बोलबाला रहा लेकिन यह पहले शंकराचार्य हुए जिन्होनें ऐसे सनातन धर्म की परिभाषा गढ़ी जिसमें सभी जाति वर्ग के लोगों को एक सूत्र में पिरोने की बात कही गई। यही वजह थी कि यह सबके लिए पूजनीय भी थे। आज भले ही राजनीतिक दल धर्म के नाम पर राजनैतिक रोटियाँ सेंकते रहें परंतु जयेंद्र सरस्वती ने धर्म के नाम पर हिंदू समाज को हमेशा जोड़ने का काम किया व सनातन की तरफ मोड़ने का काम किया। जिस तरह अपने-अपने धर्म की रक्षा व आस्था बनाए रखने के लिए सभी प्रयासरत रहते हैं वही काम इन्होनें किया। भारत देश की जिस संस्कृति का उल्लेख हमें हमारे ग्रंथों, वेदों व अन्य स्त्रोतों में मिलता है उसी बहुमूल्य धरोहर को बनाए रखने के लिए जयेंद्र सरस्वती जी ने अपना पूरा जीवन लगा दिया।
शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी का जन्म 18 जुलाई 1935 में तमिलनाडु के तंजावुर जिले में हुआ। माता-पिता ने उन्हें सुब्रमण्यम महादेवन नाम दिया। शंकराचार्य जी बचपन से ही अन्य बच्चों से अलग व बेहद कुशाग्र बुद्धि के धनी थे कम उम्र में ही वो हिंदू धर्म में सबसे अहम व शक्तिशाली समझे जाने वाली कांची कामकोटी पीठ में आ गए। केवल 19 साल की उम्र में ही अति प्राचीन कांची कामकोटी पीठ के उत्तराधिकारी के तौर पर 69वें शंकराचार्य के रूप में इनका अभिषेक हुआ। महज इतनी छोटी आयु में ही इन्होंने सांसारिक जीवन को त्याग कर अपने आध्यात्मिक सफर की शुरुआत की। वैसे तो इनसे पहले कई शंकराचार्य रहे लेकिन इनमें बहुत कुछ ऐसा था जो इन्हें अन्य सभी से अलग करता था। इन्होंने नई परिभाषाएं गढ़ी, सीमाओं और बंधनों को तोड़ा कांची मठ्ठ को जमाने के साथ चलाया।
जातिवाद विरोधी
जयेंद्र सरस्वती ही पहले शंकराचार्य थे जिन्होंने हिंदू धर्म की खुल कर पैरवी की लेकिन इस पैरवी में इन्होनें हिंदू धर्म को किसी जाति विशेष की जागीर बनने की पैरवी नही की। जातिगत सीमाओं को तोड़ते हुए धर्म को नई राह दिखाने के लिए इन्होनें ही सबसे पहले दलितों के मंदिर प्रवेश की वकालत करने के साथ-साथ दलितों को मंदिर में प्रवेश देने का अभियान चलाया। वहीं धर्म परिवर्तन का पुरजोर विरोध किया। आलोचक व अन्य राजनैतिक दल इन पर भाजपा व हिंदू संगठनों के फायदे की राजनीति करने का आरोप भी लगाते रहे हलांकि वह पहले शंकराचार्य थे, जिन्होंने अपने राजनीतिक विचारों को दबाने की बजाए उन पर खुलकर बोलने का काम किया। शायद यह भी एक प्रमुख वजह थी जिसके चलते तमिलनाडु में करुणानिधि की डीएमके की आंखों में खटकने से लेकर जयललिता तक इनकी ठन गई।
अपने समय में इन्होंने सनातन परंपराओं की स्थापना के लिए अपनी सोच व दर्शन में हिंदू समाज को जिस तरह आगे रखा, वह सचमें अलग था। जयेंद्र सरस्वती जी बेहद विद्वान थे,सभी वेदों व हिंदू दर्शन से जुड़े तमाम धर्म ग्रंथों का उन्हें बहुत गहरा ज्ञान था। घंटों तक संस्कृत में वेदांत व उपनिषदों पर धारा प्रवाह बात करते। यह सब किसी साधारण धर्म गुरु के बस की बात नहीं थी। जैसे ही इन्होनें कांची कामकोटी पीठ की कमान संभाली उसके बाद ये मठ्ठ आध्यात्मिक और आर्थिक शक्ति का बड़ा केंद्र बनकर उभरता गया। शुरू में उनकी सक्रियता की किसी को भी समझ नहीं लगी सभी के लिए पहेली बन गए लेकिन धीरे-धीरे सभी समझने लग गए की बदलते समय के साथ यदि हम नहीं बदले तो जमाना हमें बदल देगा। यही वह चीजें थी जिसने मठ को धार्मिक कार्यों के साथ-साथ सामाजिक कार्यों की तरफ भी सक्रियता दिखाने पर मजबूर किया। इस सब के पीछे शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती जी की ही सोच व दूरदर्शिता थी। इन्हीं के समय में शिक्षा व स्वास्थ्य के क्षेत्र में बड़े-बड़े प्रोजेक्ट पर काम शुरू हुआ।
जयेंद्र सरस्वती की पहल से ही मुफ्त अस्पताल, शिक्षण संस्थान और बेहद सस्ती कीमत पर उच्च शिक्षा देने के लिए विश्वविद्यालय तक संचालित किए गए । चेन्नई स्थित शंकर नेत्रालय आज की तारीख में देश का सबसे बड़ा और आधुनिक सुविधाओं वाला आंखों का अस्पताल है और इस अस्पताल की खास बात यह है कि यहां किसी भी धर्म जाति व राजनैतिक दल से संबंध रखने वाला शख्स यहां स्वास्थ्य सेवाओं का लाभ ले सकता है और लाभ ले भी रहें हैं। ऐसा ही एक अस्पताल बाद में गुवाहाटी में भी खोला गया। बहुत से और अस्पतालों व स्कूलों की शुरुआत भी इन्हीं की देन है, इनके शंकराचार्य बनने के बाद कांची मठ केवल धार्मिक संस्थाओं तक ही सीमित नहीं रहा बल्कि कई ट्रस्ट, शैक्षिक संस्थान व स्वास्थ्य के कामों को संचालित करने का केंद्र भी बन गया।
अयोध्या में मंदिर निर्माण के बड़े पैरोकार के तौर पर भी इन्हें याद रखा जाएगा जब अटल जी की सरकार केंद्र में सत्ता में आई तो शंकराचार्य इस मामले में काफी सक्रिय दिखे। वह मंदिर निर्माण के बड़े पैरोकार बनकर उभरे, यहां तक की मृत्यु से कुछ समय पहले भी उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में कहा कि अयोध्या में हर हाल में मंदिर बनना चाहिए।
देश में शंकराचार्य परंपरा 9वीं सदी से चली आ रही है। समय के साथ शंकराचार्यों ने सनातन हिंदू धर्म जागरण के लिए तमाम काम किए, देशभर में लगातार यात्राएं की इसी परंपरा को आगे बढ़ाने वाले शंकराचार्य रहे जयेंद्र सरस्वती, लेकिन उन्होंने अपनी भूमिका को और ज्यादा बड़े परिप्रेक्ष्य में देखा उसे विस्तार भी दिया। उनसे मिलने वाले भी उनकी विद्वता व जटिल चीजों को समझने की क्षमता से चकित रह जाते थे। पूर्ववर्ती शंकराचार्यों की तरह वो कई भाषाओं पर अधिकार रखते थे और माना जाता था कि वह भी कई ईश्वरीय शक्तियों से लैस हैं। बेहद साधारण जीवन व्यतीत करने वाले जयेंद्र सरस्वती जी से मिलना कठिन नहीं था। कई बार में उन्होंने ऐसे काम भी किए कि लोग हैरान रह गए, 1987 में उन्होंने अचानक मठ्ठ छोड़ दिया किसी को पता नहीं चला की वह कहां गए। यह खबर देशभर के अखबारों में सुर्खियां बन गई। दो तीन दिन बाद पता लगा कि वो कर्नाटक में हैं।
देश के उनके अनुयायियों से लेकर व खुद उनके लिए साल 2004 बडा़ मुश्किलों भरा रहा जब जयललिता के मुख्यमंत्री रहते हुए शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती को बड़ी बेअदबी के साथ गिरफ्तार किया गया। कहते हैं कि कार्तिक का महीना शुरू होने वाला था इसे देखते हुए जयेंद्र सरस्वती आंध्र प्रदेश के महबूबनगर में त्रिकाल संध्या पूजन की तैयारी कर रहे थे। उन्हें पूरी रात जागकर पूजा करनी थी लेकिन इसी दौरान तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता के आदेश पर जयेंद्र सरस्वती को पूजा के बीच से पुलिस गिरफ्तार करके चेन्नई ले आई। मठ के मैनेजर शंकर रामन की हत्या की साजिश रचने का आरोप इन पर लगाया गया था। हालांकि जयेंद्र बार बार कहते रहे कि इससे उनका कोई लेना देना नहीं है लेकिन राजनैतिक प्रतिशोध के चलते जयललिता अड़ी रही।
जयललिता सरकार के इस कदम के खिलाफ पूरे देश में गुस्सा भड़का,विरोध प्रदर्शन भी हुए। निचली अदालत ने उन्हें तीन बार जमानत देने से मना कर दिया बाद में उन्हें सुप्रीम कोर्ट से जमानत मिल गई। अंततः वह इस मामले से बरी भी हो गए। इस हत्याकांड में शंकराचार्य जयेंद्र सरस्वती और उनके उत्तराधिकारी विजयेंद्र सरस्वती के गिरफ्तार होने के बाद आध्यात्मिक मठ की रौनक गायब हो गई थी। जहां एक समय इस मठ में बड़े राजनेताओं से लेकर तमाम सेलीब्रिटी व सितारों का मेला लगा रहता था वहीं इसके हत्याकांड के बाद लोगों ने कई सालों तक इससे किनारा कर लिया मगर पूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी इस मिथक को तोड़ते हुए मठ में दर्शन के लिए पहुंचे और पुनः लोगों का आवागमन होने लगा।
एक तरफ जयललिता तो दूसरी तरफ दूसरी तरफ डीएमके प्रमुख करुणानिधि जयेंद्र सरस्वती की राजनीतिक सक्रियता से इस कदर खफा थे कि उन्होंने ठान लिया था कि इस मठ को सरकार के नियंत्रण में लेकर रहेंगे लेकिन सांच को आंच क्या? करुणानिधि चाहकर भी ऐसा नहीं कर पाए इसके बाद तो कांची मठ और मजबूत होकर उभरा, न केवल देश में ही बल्कि प्रवासी भारतीयों के साथ जाने माने राजनीतिज्ञों का संरक्षण भी इसे मिला। अब इससे बड़ा सम्मान और क्या हो सकता है कि तमिलनाडु आने वाला कोई भी केंद्रीय मंत्री, प्रधानमंत्री, राष्ट्रपति अपने कार्यक्रम में कांची मठ्ठ का दर्शन जोड़ना नहीं भूलता है।
मैं समझता हूं कि हिंदू दर्शन व सनातन के लिए जो कुछ इनके द्वारा किया गया वह भारतीय संस्कृति व हिंदू समाज के लिए बहुत कुछ भंडारण कर गया। आने वाले समय में उनकी इस विरासत को उनके बाद बनने वाले उनके उत्तराधिकारी विजेंद्र सरस्वती जी के लिए किसी चुनौती से कम न होगा क्योंकि किसी चीज़ को उपर ले जाने से भी ज्यादा कठिन है उस ऊंचाई को बरकार रख पाना। सभी जानते हैं आज सनातन धर्म किस दौर से गुजर रहा है। खुद अपने लोग ही ऊंगलियां उठा रहे हैं। राजनीतिज्ञों के लिए हिंदू व सनातन केवल राजनीति का विषय बन कर रह गया है उन्हें इससे कोई लेना-देना नहीं की आज खुद उनकी पहचान इसी सनातन से है।
(स्वतंत्र लेखक और शिक्षक राजेश वर्मा बलद्वाड़ा, मंडी के रहने वाले हैं और उनसे 7018329898 पर संपर्क किया जा सकता है।)
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