इन्वेस्टर्स मीट से आखिर हिमाचल को क्या हासिल हुआ

इन हिमाचल डेस्क।। कई महीनों की मेहनत और बड़ी रकम खर्च करने के बाद हिमाचल प्रदेश सरकार की महत्वाकांक्षी ‘इन्वेस्टर्स मीट’ आखिरकार धर्मशाला में सम्पन्न हो गई। मुख्यमन्त्री जयराम ठाकुर शुरू से ही कोशिश कर रहे थे कि सीमित आर्थिक संसाधनों वाले प्रदेश में निवेश बढ़ाया जाए ताकि सरकार की आमदनी के साधन भी बढ़ें और नौकरियां भी पैदा हों।

इस इन्वेस्टर्स मीट को सफल बनाने के लिए सीएम ने भारत और अन्य देशों के कई शहरों की यात्रा की और कॉरपोरेट घरानों के मालिकों से लेकर मंत्रियों व अधिकारियों से मुलाकातें की। विभिन्न जगहों पर किए गए रोड शो तब कामयाब होते दिखे जब धर्मशाला में बड़ी संख्या में निवेशक जुटे। पीएम मोदी ने भी इसमें शिरकत की और राज्य सरकार के प्रयास को सराहा।

क्या कहती है सरकार
अब कार्यक्रम जब सम्पन्न हुआ है तो आकंड़े सामने आए हैं कि इससे प्रदेश को क्या हासिल हुआ। हिमाचल सरकार का कहना है कि 93 हजार करोड़ निवेश क्षमता के 614 एमओयू हस्ताक्षरित किए गए हैं। अनुमान यह है कि इससे बड़े स्तर पर नौकरियां भी पैदा होंगी। आकलन है कि नौकरियों का आकंड़ा 1 लाख 85 हजार तक जा सकता है।

अच्छी बात यह है कि सरकार की ओर से जारी बयान में ‘क्षमता वाले’ जैसे शब्द इस्तेमाल किए गए हैं। यानी सरकार बता रही है कि MoU जरूरी नहीं आखिर में निवेश में बदल ही जाएंगे। यह एक तरह से निवेशक का शुरुआती इरादा दर्शाता है कि वह क्या करने का इच्छुक है। सम्भव है बाद में उसे निवेश करना उचित न लगे और यह एमओयू कागज का टुकड़ा बनकर ही रह जाए।

सीएम जयराम ने पहले भी यह बात स्पष्ट की थी एमओयू का मतलब यह नहीं कि निवेश हो ही गया। उनकी इस साफगोई की तारीफ भी हुई थी कि वह न सिर्फ खुद इस मामले में व्यावहारिक अप्रोच अपना रहे हैं बल्कि जनता को भी आकंड़ों के आधार पर गुमराह नहीं कर रहे।

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने इन्वेस्टर्स मीट के बाद कहा है कि जो समझौता ज्ञापन हस्ताक्षरित किए जा चुके हैं उन्हें सभी प्रकार का सहायता एवं सहयोग सुनिश्चित किया जाएगा, ताकि इन पर कार्य शीघ्रता से कार्य आरम्भ हो सके।

सीएम ने ये भी कहा है कि सभी संबंधित विभाग परियोजनाओं के लिए विभिन्न प्रकार के अनापत्ति प्रमाण-पत्र एवं स्वीकृतियां प्रदान करने के लिए कारगर कदम उठाएंगे ताकि उद्यमियों को आगे की कार्रवाई में कोई परेशानी न हो।

ऊपर सीएम के हवाले जो बातें लिखी हैं, वे बहुत महत्वपूर्ण है। इनके आधार पर ही सीएम को खुद सुनिश्चित करना होगा कि जिन कम्पनियों और समूहों ने एमओयू साइन किये हैं, उनके सम्पर्क में रहकर फॉलोअप लिया जाता रहे और उन्हें प्रोत्साहित किया जाता रहे कि आप जल्दी काम शुरू करिए, आपकी जो भी दिक्कतें होंगी, उन्हें हम दूर करेंगे।

बेहतर होगा कि सरकार खुद भी तमाम एमओयू की समीक्षा करे और देखे कि कौन सी कंपनियां दमदार हैं जो निवेश को लेकर गंभीर रह सकती हैं और उनके प्रस्ताव हिमाचल के हितों के भी अनुकूल होंगे। वरना बहुत सी कंपिनयां ऐसी होती हैं जो ऐसे इन्वेस्टर्स मीट्स में यूं ही चली आती हैं। ये चलताऊ कम्पनियां एमओयू में भारी भरकम रकम का जिक्र करने के लिए आती हैं ताकि इसकी खबर छपवाकर अपना माहौल बना सकें।

इसलिए कम्पनियों की प्रोफाइलिंग करना जरूरी है। जो कंपनियां खुद लड़खड़ा रही हों, कर्ज में डूबी हों, डिफॉल्टर हों, उनसे दूर रहने में भलाई। भले 10 निवेशक आएं, मात्र पांच ही आएं, अगर वे गंभीर हों तो उतना ही काफी। अच्छी पूंजी और रेप्युटेशन वाले समूह आमतौर पर प्लानिंग के साथ चलते हैं और उनके पीछे हटने की आशंका कम ही होती है।

अभी तो जयराम सरकार ने निवेश लाने की दिशा में आधा रास्ता ही तय किया है। अब आगे का रास्ता थोड़ा कठिन है, जिसमें कई चुनौतियां होंगी। सरकार की परीक्षा इसी में होगी कि हिमाचल में निवेश की इच्छा जता एमओयू साइन करने वाली फर्मों को आगे वह कैसे संभालती है, कैसे उनसे जल्द से जल्द निवेश करवाकर प्रॉजेक्ट शुरू करवाती है।

93 हज़ार करोड़ का आधा भी अगर असल निवेश में तब्दील हुआ तो यह बड़ी बात होगी। इससे सरकार को राजस्व तो मिलेगा ही, बेरोजगारी दूर करने में भी कुछ हद तक मदद मिलेगी।

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