ज़हर से बंदर मारने वाले हिमाचल में हथिनी की मौत पर हाहाकार

प्रतीकात्मक तस्वीर

आशीष भरमौरिया।। कल सुबह केरल की हथिनी के बारे में पढ़ा तो उसी समय अंदाज़ा हो गया था कि अब सोशल मीडिया पर संवेदना की बाढ़ आ जाएगी। दोपहर होते-होते केरल की हथिनी पर खबरों और कार्टूनों की बाढ़ सी आ गई थी। देश के सबसे साक्षर राज्य केरल में हथिनी को जो कराह उठी, वो अभी कुछ दिन और गूंजती रहेगी और साथ ही इंसान की झूठी संवेदनाएँ भी।

इस दुखद घटना को लेकर हिमाचलवासियों ने भी जमकर केरल को कोसना शुरू कर दिया। ये सोचे बगैर कि देवभूमि में बंदरों के आतंक से छुटकारा पाने के लिए हम इन उत्पातियों को ठीक वैसे ही जहर देकर मार रहे हैं, जैसे किसी ने शरारत या जानबूझकर हथिनी के साथ किया.

हाल ही में सरकार ने एक बार फिर बंदरों की संख्या नियंत्रित करने के लिए उन्हें वर्मिन घोषित करवा दिया है। ये कहते हुए कि ये फसलों और इंसानों के लिए हानिकारक हैं। ऐसा पहली बार नहीं हो रहा। अब तक कई सरकारें इस तरह की योजनाएँ ला चुकी है और इस काम में करोड़ों खर्च हो गए। कुछ लोगों ने नोट भी खूब कमाए लेकिन बंदरों की संख्या कम नहीं हुई।

सरकार योजनाओं का एलान करे या न करे, गाँवों में आज भी बंदर खूब मारे जा रहे हैं। जानते हैं कैसे? बड़े ही दर्दनाक ढंग से। रोटियों और आटे में ज़हर रखा जा रहा है। जैसे ही भूखे बंदर इन रोटियों को खाते हैं, उनका कलेजा फट जाता है। वे उस हथिनी की तरह ही पानी की तलाश में निकलते हैं जो मुँह में धमाका होने के बाद नदी में घुस गई थी। लेकिन ये बंदर जैसे ही पानी पीते हैं, कुछ ही पलों के अंदर मर जाते हैं।

इसका एक वीडियो देखा था जिसने मुझे परेशान करके रख दिया था। एक बंदरिया को ज़हर दिया गया था। उसके मुँह से खून निकल रहा था। वह निढाल थी मगर उसके सीने से चिपका बच्चा माँ को छोड़ने के लिए तैयार नहीं था। अगर हिम्मत हो, तभी यहां क्लिक करके आगे का वीडियो देखें

यह सच है कि हिमाचल में बहुत सी ऐसी जगहें हैं जहां लोगों ने खेती करना छोड़ दिया क्योंकि बंदर सब कुछ उजाड़ देते थे। मैंने भी बंदरों का आतंक देखा और महसूस किया है। मैं किसान नहीं हूँ तो हो सकता है कि फसल बर्बाद होने के दर्द को उस तरह से महसूस नहीं कर सकता जैसा किसान करते हैं। हो सकता है वे कहें कि उन्हें मजबूरी में ये कदम उठाना पड़ता है। मगर मेरा सवाल ये है कि इंसान जानवरों की जान को इतना सस्ता कैसे समझ लेता है कि उनकी हत्या ही कर डालता है?

आज एक वायरस आया तो डर के मारे इंसान को घर में क़ैद होना पड़ा। कोरोना के हमारे जीने का तरीक़ा बदल दिया तो हमें बड़ी परेशानी हो रही है। वो भी तब, जब हम सबसे समझदार जीव हैं और जानते हैं कि इस वायरस से कैसे बचा जा सकता है, कैसे इसके रहते हुए भी सावधानी से हम अपनी रूटीन पर लौट सकते हैं। मगर हम इंसानों ने जो दुनिया की ऐसी-तैसी कर दी है, हर जगह घुसपैठ कर दी है। अपनी ज़रूरतों से ज़्यादा अपनी लग्ज़री, अपनी सुविधाओं के लिए हमने धरती का स्वरूप बदलकर रख दिया है। फिर इन बदले हुए हालात से परेशान हुए जब जंगली जीव सिर्फ़ अपना पेट भरने के लिए भटकते हैं तो हम उनकी भी जान लेने पर आमादा हो जाते हैं।

केरल की साक्षरता पर सवाल उठाने वालों को बता दूं कि जरा साक्षऱ और शिक्षित होने के बीच का फर्क पढ़ लें। हिमाचल भी साक्षरता दर के हिसाब से देश के शीर्ष प्रदेशों में है। मगर केरल को लेकर टिप्पणी करने और हथिनी के प्रति संवेदना दिखाने से पहले एक बार आईना देख लें। हम उन्हीं लोगों के बराबर खड़े मिलेंगे। वरना सरकारें भी बदरों को मारने की जगह किसी और विकल्प पर विचार करती।

और अगर संवेदना हथिनी के प्रेगनेंट होने को लेकर ज़्यादा है तो मत भूलिए कि जिस बंदरिया को ज़हर दिया जाता है, जिस मादा सुअर को मारा जाता है, वो भी प्रेगनेंट हो सकती हैं। फ़र्क़ इतना है कि उनका कोई पोस्टमॉर्टम नहीं करता तो ये बात पता नहीं चल पाती। बेहतर होगा कि हम अपनी मरी हुए संवेदनाओं का पोस्टमॉर्टम करें कि क्यों हम इंसानों और अन्य जीवों की जान में भेद करने लगे हैं।

(लेखक पत्रकार हैं और हिमाचल प्रदेश के मंडी ज़िले से ताल्लुक़ रखते हैं।)

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