हिमाचल: बीजेपी ने खुद ही क्यों निकाल दी ‘वंशवाद’ विरोध के फुकणू की हवा

आई.एस. ठाकुर।। आपने प्लेटो का नाम सुना होगा। ग्रीस यानी यूनान के महान दार्शनिक, जिन्हें अफलातून भी कहा जाता है। उन्होंने आज से 2400 साल पहले एक किताब लिखी थी- ‘द रिपब्लिक।’ इसमें उन्होंने आशंका जताई थी कि पहले तो  ‘पढ़े-लिखे और बुद्धिमान लोगों के बच्चे अंतत: आराम और विशेष अधिकार मिलने के कारण भ्रष्ट हो जाएंगे। फिर वे सिर्फ अपने बारे में और अपनी संपत्ति के बारे में सोचेंगे। फिर एरिस्टोक्रेसी (बेहतरीन लोगों का शासन) जो है, वह ओलिगार्की (चंद लोगों तक सिमटा शासन) में तब्दील हो जाएगा।

वे एक अलग व्यवस्था के बारे में बात कर रहे थे मगर डेमोक्रेसी में भी यही हालत होती दिख रही है। 15 अगस्त 2022 को लाल किले की प्राचीर से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्षी पार्टियों, खासकर कांग्रेस पर वंशवाद को लेकर निशाना साधा। इसे संकेत माना गया कि भारतीय जनता पार्टी वंशवाद से दूरी बनाने के सिद्धांत पर काम करेगी। मगर चंद महीने बाद हिमाचल प्रदेश के चुनावों में ही इस अवधारणा की हवा निकल गई।

उपचुनाव में जब चेतन बरागटा का टिकट काटकर नीलम सरैक को दिया गया था तो नीलम पांच हजार वोट भी नहीं ले पाई थीं। उसके बाद एक कार्यक्रम में बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ने कहा था कि पार्टी ने तय किया है कि परिवारवाद को बढ़ावा नहीं देना है तो हमने कठोर फैसला लिया। हम सीट हारे लेकिन एक पहल की। अब जेपी नड्डा के उन शब्दों का भी कोई मोल नहीं रहा। उल्टा कांग्रेस कार्यकर्ता उस वीडियो को सोशल मीडिया पर कुछ मजे लेकर शेयर कर रहे हैं।

ऐसा इसलिए क्योंकि बीजेपी ने सभी 68 सीटों पर उम्मीदवार उतार दिए हैं और इनमें चार नए चेहरे परिवारवाद की श्रेणी में हैं। ये हैं- चंबा सीट पर नीलम नैयर जो वपर्तमान विधायक पवन नैयर की पत्नी हैं। धर्मपुर सीट से रजत ठाकुर जो कि जल शक्ति मंत्री महेंद्र ठाकुर के बेटे हैं। जुब्बल कोटखाई से चेतन बरागटा जो दिवंगत पूर्व मंत्री नरेंद्र बरागटा के बेटे हैं। इसी तरह बड़सर सीट पर माया शर्मा जो बलदेव शर्मा की पत्नी हैं। इसके अलावा भी, मनाली से गोविंद ठाकुर, भोरंज से अनिल धीमान, हमीरपुर से नरेंद्र ठाकुर, मंडी से अनिल शर्मा और सोलन से राजेश कश्यप भी परिवारवाद की श्रेणी में आते हैं।

बीजेपी का स्टैंड कमजोर हुआ
हिमाचल में भी बीजेपी के नेता और प्रवक्ता खुलकर कांग्रेस पर हमला कर रहे थे। वे कह रहे थे कि दिल्ली से हिमाचल तक कांग्रेस में वंशवाद चल रहा है। कांग्रेस के पास इस सवाल का कोई तोड़ नहीं होता था। वे ज्यादा से ज्यादा पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल और उनके बेटे व केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का जिक्र कर देते थे। लेकिन अब परिस्थितियां बदल गई हैं।

बीजेपी के नेताओं के सामने संकट यह है कि वे ऐसा भी नहीं बोल सकते कि आपके यहां वंशवाद के उदाहरण ज्यादा हैं, जबकि हमारे पास कम हैं। यह तो कोई तार्किक जवाब हुआ नहीं। तो कुल मिलाकर स्थिति यह है कि आम जनता के बीच भी यह मुद्दा अब फुस्स हो चुका है। टिकटों में परिवारवाद झलकने के कारण न सिर्फ हिमाचल में बीजेपी की छवि कमजोर हुई है बल्कि इस कदम ने एक तरह से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विश्वसनीयता को भी कम करने वाला काम किया है।

अब बीजेपी भविष्य में जो भी करे, कम से हिमाचल में तो वह परिवारवाद को लेकर कांग्रेस पर हमला नहीं कर पाएगी। हो सकता है कुछ नेता कहें कि हमारे यहां परिवारवाद का मतलब है कि एक परिवार से एक ही व्यक्ति को पद या अवसर मिलेगा। लेकिन यह भी हास्यास्पद लॉजिक होगा। ऐसा लॉजिक कांग्रेस के लोग देते रहे हैं। खासकर कौल सिंह ठाकुर का वह बयान चर्चा में रहा था, जब उन्होंने कहा था उनकी बेटी चंपा ठाकुर के मामले में परिवारवाद नहीं बनता क्योंकि उनकी शादी हो चुकी है और गोत्र बदल गया है।

सवाल ये भी है कि अगर विनेबिलिटी यानी जीत की संभावना पर ही टिकट देना है तो कांग्रेस और अन्य पार्टियां भी तो यही कहती हैं कि जिताऊ उम्मीदवार को ही टिकट दिए जाते हैं, परिवार को देखकर नहीं। पर इस पूरे मामले के बीच एक सवाल जो उभर रहा है, बीजेपी को उस पर विचार करना चाहिए। क्या वह अब भी The Party with a Difference की टैगलाइन को मजबूत करना चाह रही है या सभी मामलों में यह फर्क खत्म कर देना है।

(लेखक लंबे समय से हिमाचल प्रदेश से संबंधित विषयों पर लिख रहे हैं। उनसे kalamkasipahi@gmail.com पर संपर्क किया जा सकता है।)

ये लेखक के निजी विचार हैं

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