हिमाचल: झूठ फैला रहे फर्जी पोर्टलों को भी कैसे मिल रहे हैं सरकारी विज्ञापन

इन हिमाचल डेस्क।। आईटी सेक्टर में तेजी से हुई प्रगति के कारण कई अच्छी चीजें हुई हैं। मीडिया का भी स्वरूप भी बदला है। अखबार, रेडियो और टीवी जैसे पारंपरिक मीडिया को तो डिजिटल प्लैटफॉर्म्स पर आना ही पड़ा, कुछ नए डिजिटल ओनली मीडिया प्लैटफॉर्म भी उभरे हैं। हिमाचल प्रदेश में भी कई ऐसे समाचार और विचार आधारित पोर्टल हैं जो अच्छा काम कर रहे हैं। इनमें से कई का कॉन्टेंट बहुत सारे पारपंरिक मीडिया संस्थानों से भी बेहतर है। मगर इसी मीडिया को गलत ढंग से भी इस्तेमाल किया जा रहा है।

फेक न्यूज
जहां पत्रकारों और मीडिया का काम जनता के हित के मुद्दे उठाना और सरकार की योजनाओं या फैसलों की समीक्षा करना है, वहीं कुछ पोर्टल इस सब से परे कुछ और ही काम कर रहे हैं। इन पोर्टलों की जनता के बड़े वर्ग तक पहुंच नहीं है मगर ये क्लोज फेसबुक और वॉट्सऐप ग्रुपों के माध्यम से एक विशेष तरह के आर्टिकल प्रसारित करते हैं जिनका अक्सर सच्चाई और तथ्यों से कोई वास्ता नहीं होता। वॉट्सऐप पर सबसे तेजी से फेक न्यूज का प्रसार होता है और न्यूज की शक्ल में पेश की गई किसी भी बात पर आम लोग जल्दी यकीन कर लेते हैं।

न्यूज के नाम पर कुछ भी छापा जा रहा है।

ब्लैकमेलिंग और धन उगाही
डिजिटल मीडिया के संबंध में अभी तक कोई कानून या नीति नहीं है, इसलिए डिजिटल मीडिया सेल्फ रेग्युलेटेड ही है। इसका फायदा यह है कि पोर्टलों पर किसी भी तरह के प्रभाव का इस्तेमाल नहीं किया जा सकता, आसानी से कोई सेंसरशिप नहीं थोपी जा सकता। मगर इसका नुकसान भी है। दरअसल इसी स्वतंत्रता की आड़ में कुछ लोग गैरजिम्मेदाराना रिपोर्टिंग भी करने लगे हैं। इसके पीछे का मकसद जनहित नहीं बल्कि ब्लैकमेलिंग से लेकर राजनीतिक या व्यावसायिक हितों को साधना तक हो सकता है। इस तरह के कई मामले आए दिन सामने आ रहे हैं।

बद्दी के एक चर्चित मामले का उदाहरण
हिमाचल प्रदेश के औद्योगिक शहर बद्दी में इसी साल जून में असिस्टेंड ड्रग कंट्रोलर (एडीसी) और एक स्थानीय पत्रकार पर मिलकर एक फार्मा कंपनी को ब्लैकमेल के आरोप लगे थे। इस मामले में फार्मा कंपनी ने शिकायत दी थी कि एडीसी ने 27 जून को 12 बजे एक वेब पोर्टल के पत्रकार के साथ मिलकर फर्जी रेड की कहानी रची। पुलिस को दी गई शिकायत में फार्मा कंपनी के मालिक ने लिखा है कि ये दोनों लोग भारत सरकार के चिह्न वाली गाड़ी में आए बदतमीजी करने लगे। यही नहीं, कथित तौर पर इनसे कहा गया कि ड्रग विभाग के आला अधिकारियों के खिलाफ कैमरे के सामने बयान दो वरना सैंपल भरके कार्रवाई की जाएगी।

पोर्टल पर खबर फ्रेम करने का आरोप
शिकायत में लिखा गया है कि एडीसी और कथित पत्रकार ने बतदमीजी भी की। फार्मा कंपनी के मुताबिक बिना नोटिस इस तरह की कार्रवाई नहीं की जा सकती थी। एडीसी और पत्रकार ने यह भी कहा था कि पुलिस भी थोड़ी देर में पहुंचेगी मगर पुलिस वहां नहीं आई। आरोप यह भी है कि बाद में एडीसी ने बिहार के स्टेट ड्रग कंट्रोलर को चिट्ठी भेजकर उनकी कंपनी से गया माल फ्रीज करवा दिया। शिकायत में कहा गया है कि इस घटनाक्रम में शामिल रहे पत्रकार ने ‘फर्जी रेड’ की खबर बनाकर अपने पोर्टल पर लगा दी जिससे उनकी छवि को नुकसान पहुंचा।

पुलिस को दी गई शिकायत का हिस्सा

उस समय एसपी ने शिकायत के आधार पर मामला दर्ज करने और जांच के बाद कार्रवाई करने की बात कही थी। अब क्या स्थिति है, यह स्पष्ट नहीं। मगर सवाल यह है कि पत्रकार पर लगे इस गंभीर आरोप की जांच क्यों नहीं की जा रही? दूध का दूध और पानी का पानी होना जरूरी है वरना कल को सभी पत्रकारों से लोगों का भरोसा उठ जाएगा। इस तरह के मामलों में बरती जाने वाली सुस्ती से सरकार पर भी सवाल उठते हैं कि वह क्यों शांत है और कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकारी तंत्र में ही बैठे कुछ लोग ऐसे लोगों को संरक्षण देते हैं। ऐसे हर मामले में पुलिस को तुरंत कार्रवाई करनी चाहिए ताकि अगर कोई शख्स पत्रकारिता की आड़ में गलत काम कर रहा हो तो उसे सलाखों के पीछे डाला जाए।

बहरहाल, बद्दी का यह मामला एक बार फिर से चर्चा में है क्योंकि इस विवादित घटनाक्रम में कथित तौर पर शामिल रहे पत्रकार के गुमनाम से पोर्टल को एक नहीं, तीन-तीन सरकारी विज्ञापन मिले हुए हैं। ऑनलाइन मीडिया संस्थानों के कर्मचारियों और पत्रकारों के बीच चर्चा छिड़ गई है कि इस तरह के पोर्टल को धड़ल्ले से सरकारी विज्ञापन मिल रहे हैं जबकि हिमाचल में कई सालों से काम कर रहे भरोसेमंद और स्थापित पोर्टलों को सरकारी विज्ञापन देने में कोताही की जा रही है। सवाल उठ रहा है कि सरकार के विज्ञापन जारी करने वाले महकमे में कौन बैठा है जो इस तरह के पोर्टलों को आश्रय दे रहा है।

कैसे दिए जाते हैं सरकारी ऐड
हिमाचल प्रदेश का सूचना एवं जनसंपर्क विभाग ही प्रदेश सरकार की ओर से जारी होने वाले विज्ञापनों को आवंटन करता है। अमूमन होना यह चाहिए कि अखबारों और मीडिया चैनलों की तर्ज पर डिजिटल मीडिया प्लैटफॉर्म्स को भी उनकी रीडरशिप/व्यूरअरशिप के आधार पर विज्ञापन मिलने चाहिए और उनका रेट भी उसी आधार पर फिक्स होना चाहिए। मगर ‘इन हिमाचल’ को जानकारी मिली है कि विभाग में तय नियमों का कोई पालन नहीं किया जाता।

अखबारों और चैनलों को अधिकारियों की मर्जी से ही ऐड दिए जाते हैं। होना यह चाहिए कि जिस अखबार का सर्कुलेशन ज्यादा है, उसे किसी विज्ञापन के लिए अधिक पैसे मिलने चाहिए जबकि कम पहुंच वाले अखबार को कम। मगर इसमें पूरी तरह से सर्कुलेशन को आधार नहीं बनाया जाता। रही बात पोर्टल की, उसके लिए कोई पॉलिसी ही नहीं है। यह जांच होनी चाहिए कि कौन सरकार के यानी कि आपके पैसे की बंदरबांट कर रहा है। विज्ञापन सरकार की योजनाओं को जनता तक पहुंचाने के लिए दिए जाते हैं। वे जनता तक तभी पहुंचेंगे जब विज्ञापन लेने वाला मीडिया जनता तक पहुंचता हो।

विज्ञापन उस पोर्टल, अखबार या चैनल को मिलने चाहिए जिसकी पहुंच हो।

बंदरबांट
हिमाचल प्रदेश में आप कई पोर्टल देखेंगे जिन्हें खुले एक महीना नहीं हुआ मगर उनके ऊपर हिमाचल सरकार के विज्ञापन होते हैं। उनकी पहुंच भले ही पोर्टल के संचालक और उसके चार परिजनों तक हो, उसे वह विज्ञापन मिल रहा है। इसके साथ ही जो पोर्टल हर मीने लाखों लोगों तक पहुंचते हैं, उन्हें भी वह विज्ञापन मिल रहा है। मगर आपको हैरानी होगी कि चार लोग जिसे पढ़ते हैं, उस पोर्टल को भी 10 हजार दिए जा रहे हैं और जिसे 10 लाख पढ़ते हैं, उसे भी 10 हजार। बहुत सारे लोग तो ऐसे हैं जिन्होंने बाजार में न दिखने वाले साप्ताहिक या मासिक अखबार चलाए हैं और उन्हीं के नाम पर पोर्टल खोलकर डबल ऐड ले रहे हैं।

यानी हिमाचल प्रदेश सरकार ने कोई नीति, कोई क्राइटीरिया नहीं रखा है कि किसे विज्ञापन देना है और किस दाम पर। अगर आप भी हर महीने 10 हजार का ऐड लेना है तो तुरंत एक वेबसाइट बनाइए और शिमला में संबंधित विभाग में कोई जुगाड़ खोजकर आवेदन कर दीजिए। बेरोज़गारी भत्ते से तो ज्यादा ही पैसे मिलेंगे आपको।

ऑनलाइन मीडिया के पत्रकारों का दर्द
इसके अलावा अगर आप लंबे समय से टीवी या अखबार के लिए काम कर रहे हैं तो हिमाचल सरकार आपको मान्यता देगी। मगर पूरी दुनिया में जो मीडिया टीवी और अखबार पर हावी हो चुका है, उस मीडिया के लिए काम करने वाले पत्रकारों की उपेक्षा हो रही है। जी हां, डिजिटल प्लैटफॉर्म्स के लिए काम करने वाले पत्रकारों को मान्यता हासिल करना मुश्किल है। यही कारण है अच्छे अनुभवी पत्रकार डिजिटल पोर्टलों के साथ काम करने से कतराते हैं और यही कारण है कि डिजिटल पोर्टलों के कॉन्टेंट में तीखापन देखने को नहीं मिलता है।

बहरहाल, जरूरी है कि सरकार न सिर्फ डिजिटल मीडिया में काम करने वाले पत्रकारों को अन्य पत्रकारों की तरह मान्यता दे, बल्कि यह भी जरूरी है कि ऑनलाइन प्लैटफॉर्म्स को ऐड देने के नियम तय किए जाएं। यह देखा जाए कि वे कितने समय से हैं, उनकी रीच (पहुंच) कितनी है और उनकी विश्वसनीयता क्या है। तभी ऑनलाइन मीडिया का स्तर बेहतर होगा, अच्छे और अनुभवी लोग अच्छे पोर्टलों से जुड़ेंगे। साथ ही फर्जी खबरें फैलाने वाले पोर्टलों पर भी लगाम लगेगी।

Disclaimer: ‘इन हिमाचल’ सरकार, कंपनियों, संस्थानों, राजनीतिक दलों या संगठनों से किसी तरह के विज्ञापन नहीं लेता है और न ही ऐसा करने का इरादा रखता है। इस संबंध में हमारी नीति पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें

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