देवेंद्र।। हिमाचल प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग हमीरपुर को भंग करने को लेकर बहुत से बेरोजगार प्रतिक्रिया दे रहे हैं कि बहुत बढ़िया हुआ,एकदम सही फैसला, इसे पहले ही बंद कर देना चाहिए था आदि-आदि। क्या यह सचमें सही हुआ। आज जिस लोकसेवा आयोग के माध्यम से भविष्य की भर्तियों की बात सभी कर रहे हैं उस पर भी तो समय-समय पर अंगुलियां उठती आयी हैं। क्या कभी किसी ने इस ओर ध्यान दिया?
देखा जाए तो प्रदेश के 8 लाख के लगभग शिक्षित बेरोजगारों के लिए चयन आयोग का बंद होना कोई सुखद समाचार नहीं हैं। गुनाह किसी ने किया और सजा किसी और को मिली। एक बेरोजगार के लिए चंबा से हमीरपुर में भर्ती प्रक्रिया में भाग लेना आसान है या चंबा से शिमला जाना? सरकार को यदि करना था तो पेपर चोरी व लीक करने के मामले में दोषियों को ऐसी सजा देनी चाहिए थी कि भविष्य में कोई भी ऐसा करने से पहले सौ बार सोचता।
बेरोजगारों के लिए कर्मचारी चयन आयोग मात्र भर्ती संस्था ही नहीं है बल्कि उनके सपनों को पूरा करने के लिए मां-बाप के बाद कोई दूसरा है तो वो है प्रदेश कर्मचारी चयन आयोग।
अच्छी बात है प्रदेश सरकार ने इस भ्रष्टाचार को उजागर कर इसका भंडाफोड़ किया, लेकिन क्या ऐसा संभव नहीं हो सकता था कि आयोग को भंग करने की बजाए, पिछले 5 वर्ष की भर्ती प्रक्रियाओं की जांच की जाती और जो भी अनैतिक तरीके से सरकारी सेवा में आए हैं, उन्हें भी बाहर का रास्ता दिखाया जाता। यह भी तो संभव था कि आयोग में मौजूदा पूरे स्टाफ को बदल कर इनके स्थान पर नया स्टाफ लगा दिया जाता। इससे कम से कम कर्मचारी चयन आयोग का अस्तित्व तो बरकरार रहता।
मैदानी या लोअर हिल्स वाले हिमाचल के लोगों का जीवन-यापन या तो सरकारी नौकरी पर निर्भर है या फिर दिहाड़ी मजदूरी पर। यहां के लोगों के लिए बागबानी आर्थिकी का जरिया नहीं है। हमीरपुर, कांगड़ा, ऊना, बिलासपुर, चंबा, मंडी, कुल्लू, लाहौल स्पीति आदि जिलों के बेरोजगार युवाओं के लिए भर्ती प्रक्रिया में भाग लेने के लिए शिमला पहुंचने की बजाए हमीरपुर एक सुगम व सस्ता क्षेत्र रहा है, हमीरपुर में कर्मचारी चयन आयोग का गठन भी इसी उद्देश्य के लिए किया गया था। आज कर्मचारी चयन आयोग बंद होने के समाचार से उन हजारों युवाओं को भी ठेस लगी होगी जिन्होंने कड़ी मेहनत से इसी आयोग के माध्यम से नौकरी हासिल की होगी।
ऐसा भी नहीं कि कर्मचारी चयन आयोग के माध्यम से केवल भाजपा के कार्यकाल में ही भर्तियां हुई, सरकार भले भाजपा की रही हो या कांग्रेस की, सभी के कार्यकाल में कर्मचारी आयोग के माध्यम से भर्तियां हुई हैं। इस बार सत्ता परिवर्तन में बेरोजगारों ने भी अहम भूमिका निभाई है, उम्मीद है सरकार भले ही किसी का विश्वास जीतने में पीछे रह जाए लेकिन बेरोजगारों का विश्वास टूटने न पाए क्योंकि बेरोजगार पहले ही बहुत बुरी तरह से टूटा हुआ है।
(ये लेखक के निजी विचार हैं। उनसे jahubhamblabum@gmail.com पर ईमेल के माध्यम से संपर्क किया जा सकता है)