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लेख: मुख्यमंत्री जी, हम हिमाचलियों को आखिर किसने ‘होशियार’ बनाया?

नयन रांगटा।। स्कूल से घर जाती एक बच्ची लापता हो जाती है और दो दिन बाद उसकी लाश निर्वस्त्र मिलती है। पोस्टमॉर्टम में पता चलता है कि इस बच्ची के साथ रेप हुआ हुआ है और उसके बाद उसकी हत्या कर दी गई है। इस घटना ने हर संवेदनशील हिमाचली की आंखों को नम किया है। वह बच्ची एक परिवार की बेटी नहीं थी, हिमाचल का हर परिवार महसूस कर रहा है मानो उसकी बेटी के साथ ऐसा हो गया हो। एक डर हर हिमाचली के मन में बैठ गया है कि क्या हालात ऐसे हो गए हैं कि बेटियां सुरक्षित नहीं? लोग मांग कर रहे हैं कि इस घटना की जांच सीबीआई से हो। आखिर क्यों लोग सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं?

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हर कोई चाहता है कि ऐसे मामलों में अपराधी तुरंत सलाखों के पीछे हों ताकि कानून का डर बना रहे। मगर प्रदेश की हालत देखें और हाल ही की कुछ घटनाओं को देखें तो पता चलता है कि कानून का यह डर खत्म होता चला जा रहा है। अगर पुलिस आनन-फानन में बला टालने के लिए या अपनी अयोग्यता की वजह से पता न लगा पाने या गलत जांच हो जाने की वजह से हत्या को आत्महत्या में बदलकर मामला निपटा दे तो अपराधियों की हिम्मत तो बढ़ती ही है। तब और मेसेज जाता है जब साफ पता चल रहा हो कि मामला कुछ और था मगर पुलिस ने कुछ और कहा। इससे पुलिस पर लोगों की यकीन घटता है। जल्दबाजी में होशियार सिंह केस में क्या हुआ, यह सबने देखा। पुलिस ने अपना मखौल बनाने के अलावा अब तक इस केस में कुछ नहीं किया है।

जब पुलिस से मामला सुलझने की उम्मीद न हो, तब जनता और परिजनों की ओर से सीबीआई जांच की मांग होती है। और आजकल तो हर संगीन मामले की जांच लोग सीबीआई से करवाने की मांग करते हैं। सोचने की बात है कि आखिर पुलिस से भरोसा किस वजह से उठा है जनता का? कहीं इसके लिए पुलिस की जिम्मेदार तो नहीं? समाजशास्त्र कहता है कि जब शासक चुस्त न हों तो पूरा सिस्टम ही ढीला हो जाता है। यही वजह है कि पुलिस के इस तरह के मामलों में हाथ-पैर फूल जाते हैं। कम अनुभव होने और इस तरह के मामलों को टैकल करने का अनुभव न होने की वजह से अनाड़ी गलतियों पर गलतियां करते चले जाते हैं। क्राइम सीन को मच्छी बाजार बना दिया होता है जहां कोई भी चला आता है। जनता तो है ही ढक्कन। फोटो लेने के लिए आतुर होती है। जबकि क्राइम सीन में किसी को घुसने नहीं दिया जाना चाहिए। आपने देखो होगा कि क्राइम सीन को सबसे पहले रस्सी से घेरा जाता है जिसके अंदर हर कोई नहीं जा सकता। मगर ऐसा देखने को नहीं मिलता।

हिमाचल प्रदेश के मीडिया पर नजर डालें तो आए दिन पुलिस की जांच और कार्रवाई पर सवाल उठते हैं। सोशल मीडिया पर तो यह चर्चा है कि अगर किसी ने खुलेआम हत्या न की हो, खुलेआम किसी को किडनैप न किया हो, खुलेआम आत्महत्या न की हो या सुसाइड नोट न छोड़ा हो तो पुलिस को परिस्थितिजन्य और अन्य सबूत ढूंढने और कड़ियां जोड़ने में चक्कर आने लगते हैं। जहां मेहनत करके सबूत जुटाने हों और क्राइम को लिंक करना हो, वहां हिमाचल पुलिस ने कभी प्रभावित नहीं किया है। कहीं सुसाइड नोट मिल गया तो वहीं उसके आधार पर केस क्लोज। वरना केस या तो पेंडिंग हैं या कोर्ट में पुलिस को मुंह की खानी पड़ती है।

आज कोटखाई के लोग अगर सीबीआई जांच की मांग कर रहे हैं तो इसके पीछे की वजह समझनी चाहिए। यह सही है कि पुलिस जांच कर रही है और हो सकता है कि जल्द ही आरोपियों को पकड़ भी ले। मगर जनता के मन में आक्रोश है। यह आक्रोश पुलिस की कार्यप्रणाली की वजह से ही है। लोग तो यह भी चर्चा कर रहे हैं कि शिमला के आला अधिकारी का नाम खुद आत्महत्या के लिए उकसाने के मामले में आया है और मरने वाले ने सुसाइड नोट में उनका नाम लिखा है। जब उनके खिलाफ ही पुलिस ने कार्रवाई नहीं की तो वह पुलिस और उस अधिकारी से क्या उम्मीद रखी जाए। अगर पुलिस ऐसे दोहरे मापदंड अपनाएगी तो जनता सवाल उठाएगी ही। क्योंकि होशियार सिंह के केस में तो सुसाइड नोट मिलते ही पुलिस ने मामले को हत्या से आत्महत्या बदल दिया था। फिर शिमला के एसपी के मामले में पुलिस क्यों चुप है।

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लोग सदमे में हैं और उनकी सीबीआई जांच की मांग करना वाजिब या गैरवाजिब हो सकता है। मगर प्रदेश का मुखिया उन लोगों को “जरूरत से ज्यादा होशियार’ कर दे, यह दुर्भाग्यपूर्ण है। अगर न्याय की मांग करना होशियार होना है तो जब कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री जी के रिश्तेदार की हत्या हुई थी, तब क्यों वह सब छोड़-छाड़ वहां चले गए थे और क्यों परिजन सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे? क्या वे भी होशियार बन रहे थे? कम से कम ऐसे मामलों पर तो मुख्यमंत्री को वाणी पर संयम रखना चाहिए। अगर उम्र की वजह से ऐसा हो रहा है तो उन्हें जनता ने नहीं कहा है कि जबरन आप लगे रहिए। घर पर बैठकर आराम करें। कम से कम ऐसे बयानों से जले पर नमक तो न छिड़कें।

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मुख्यमंत्री के बयान लोगों के सीने में चुभते हैं। गरीब परिवार का बेटा होशियार मरा, कैसे भी मरा, मुख्यमंत्री बोले- ऐसी एक दो घटनाएं हो जाती हैं। जहां स्वाइन फ्लू से मौत हो गई तो बोलते हैं कि आबादी होगी, वहां बीमारियां होंगी ही और ऐसा होगा ही। यह कैजुअल अप्रोच है यानी मुझे क्या फर्क पड़ता है वाली बात है। कहते हैं न- जाके पैर न फटे बिवाई, ओ का जाने पीर पराई। जिसका अपना खोता है, दर्द उसी को होता है। भगवान करे, आपके साथ ऐसा कुछ न हो। मगर समझें कि आपके लिए मरने वालों की संख्या सिर्फ नंबर होगी। आप सोचते होंगे कि फ्लां जगह 2 मरे, 1 मरा, एक के साथ रेप, 2 की हत्या… मगर जिसका एक भी जाता है, उसके दर्द की तो कल्पना कीजिए। आप कुछ नहीं कर सकते तो कम से कम मुंह ही ताला लगा लें।

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मुख्यमंत्री कहते हैं कि हमारी पुलिस सीबीआई से भी अच्छा काम करती है। हो सकता है सामान्य मामलों में उसने अच्छा काम किया हो। मगर शिमला के युग कांड को जनता भूली नहीं है जिसमें किडनैपर पुलिस के साथ घूमता रहा और बच्चे का पता लगाना तो दूर, उसका कंकाल मिला पानी की टंकी से। पंडोह में एक लड़का और लड़की लापता हो जाते हैं, फिर मृत पाए जाते हैं और पुलिस जांच में सामने आता है कि दोनों ने खुदकुशी कर ली। आज भी स्थानीय लोग पुलिसपर शक करते हैं। राजधानी में कभी नाले में शव सड़ी हुई हालत में मिलता तो कभी कोई पार्षद को पीट जाता है। अगस्त 2016 में सिरमौरी ताल के पास युवक-युवती के शव नग्न हालत में मिलते हैं। उसे लेकर भी लोगों के मन में प्रश्न बरकरार हैं। पुलिस के पास उपलब्धियां कई होंगी मगर एक भी केस अगर गड़बड़ हो जाए तो उसकी सारी मेहनत बरकरार। मगर प्रदेश का मुखिया होने के नाते पुलिस को दुरुस्त रखने की जिम्मेदारी किसी और की नहीं, मुख्यमंत्री की है। इसलिए जबरन यह कहने के कि पुलिस बेस्ट है, जरूरी है कि पुलिस को वाकई बेस्ट बनाया जाए।

होशियार सिंह केस समेत कई घटनाएं चीख-चीखकर बताती है कि हमारी पुलिस काबिल नहीं है। न तो एक्सपर्ट पुलिस ऑफिसर हैं और न ही मॉडर्न फरेंसिंक ट्रेनिंग पाए हुए एक्सपर्ट। मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी बनती है कि वह पुलिस को आधुनिक ट्रेनिंग देने का इंतजाम करे। और अगर ऐसी ट्रेनिंग की जरूरत नहीं है, अक्षमता की वजह से ऐसा नहीं हुआ है तो इसता मतलब है कि डिपार्टमेंट अयोग्य और लापरवाह लोगों की वजह से बदनाम हो रहा है। ऐसे में भ्रष्ट, अयोग्य और ढीले अफसरों पर कार्रवाई होनी चाहिए, उन्हें सस्पेंड किया जाना चाहिए। मगर ऐसा होता हुआ नजर नहीं आया।

यह हिमाचल का दुर्भाग्य है कि नैशनल मीडिया हिमाचल की खबरों को प्राथमिकता नहीं देता। वरना शिमला जैसे केस में मुख्यमंत्री को कार्रवाई करते हुए जिम्मेदार अधिकारियों को बर्खास्त करना ही पड़ता। ऐसे मामलों में किसी और राज्य का मुख्यमंत्री कोताही बरतता तो उसे इस्तीफा ही देना पड़ जाता है। खैर, इस्तीफा देना और सस्पेंड करना किसी के अपने जमीर का फैसला होता है। अगर कोई और न फैसला न ले तो फैसला जनता भी लेती है। खासकर वह जनता, जो ‘होशियार’ बन चुकी है। ठीक उस ‘होशियार’ की तरह, जिसे न्याय मिलना अभी बाकी है। रही बात सीबीआई जांच की, आपकी निजी खुन्नस हो सकती है, हम उसपर नहीं जा रहे। मगर यह आपका निजी मामला नहीं, प्रदेश की जनता की बात है। न जाने कितने ही मामलों में सीबीआई ने वक्त रहते खुलासा किया है। उदाहरण के लिए यूपी के बदायूं में दो बहनों के साथ रेप का मामला, जिसमें पुलिस जांच नहीं कर पाई थी तो तत्कालीन सीएम अखिलेश ने सीबीआई को मामला सौंपा था। ऐसे असंख्य उदाहरण हैं। पुलिस से ही जांच करवाना प्रतिष्ठा का विषय नहीं होना चाहिए। मामला न्याय का है और जो जितनी जल्दी मिले, उतना ही अच्छा।

(लेखक हिमाचल प्रदेश के शिमला से हैं और बैंगलोर में एक स्टार्टअप के साथ जुड़े हैं।)

DISCLAIMER: ये लेखक के निजी विचार हैं, इनके लिए वह स्वयं उत्तरदायी हैं।

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