दुआ करो कि हिमाचल के ‘ठेठ सराजी’ सीएम को गुस्सा आ जाए

Image courtesy: Express Photo/ Kamleshwar Singh

सुरेश चम्बयाल।। जयराम ठाकुर पर अक्सर फ़ैसले न ले पाने वाले ‘‘अक्षम’’ और कमज़ोर मुख्यमंत्री होने के आरोप लगते रहे हैं। हालांकि, उनके समर्थकों और प्रशंसकों के बीच जयराम की छवि एक नेकदिल और भद्र इंसान की है। प्रदेश की जनता… जयराम ठाकुर को इन्हीं दो छवियों के बीच तौलती रही है। मगर मंडी ज़िले के द्रंघ में जयराम ठाकुर ने जो कहा, उससे ये धारणा और पुख़्ता हो गई कि जयराम ठाकुर न सिर्फ एक ‘‘अक्षम’’ मुख्यमंत्री हैं बल्कि क़िस्मत से मिली इस पोस्ट के साथ वो न्याय नहीं कर पा रहे और न ही जनता के प्रति उन्हें अपनी कोई जवाबदेही लगती है।

भ्रष्टाचार मौजूदा दौर का सबसे बड़ा मुद्दा है। इतना बड़ा मुद्दा कि बीते दशक पर नजर दौड़ाएं तो केंद्र की यूपीए सरकार 10 वर्ष राज करने के बाद इस मुद्दे की ऐसी चपेट में आई कि कांग्रेस 44 सीटों तक सिमटकर रह गई। भ्रष्टाचार, खासकर राजनीतिक भ्रष्टाचार के मामलों में अधिकांश तौर पर कोई ख़ास कारवाई न होने और लंबे कानूनी केसों के बाद भी कुछ न निकलने से जनता परेशान हो चुकी थी। इसी से सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे के लोकपाल आंदोलन की नींव पड़ी थी। ऐसा आधार कि आम जनता भी इस मुद्दे पर सड़कों पर निकल आई। युवा वर्ग ने ख़ासतौर पर इसमें बढ़-चढ़कर भाग लिया। सत्ता परिवर्तन हुए और आम आदमी जैसी पार्टी का उदय हुआ।

इस आंदोलन और सिस्टम में इससे उपजे आक्रोश का सबसे अधिक फायदा अगर किसी को देश में हुआ तो वो राजनातिक रूप से भारतीय जनता पार्टी और प्रधानमंत्री मोदी को हुआ। भ्रष्टाचार पर नरम रहने के कारण कांग्रेस की छवि देश के गली मोहल्ले तक खराब हुई और भाजपा मजबूत होती चली गई।

देश की जनता बेसब्री से यह इंतज़ार करती रही कि बड़ी मछलियां पकड़ी जाएंगी और उनके कर्मो का भुगतान होगा। पर कुछ नहीं हुआ। क्या सबूत नहीं मिले? क्या जांच नहीं हुई? राष्ट्रीय स्तर पर इन प्रश्नों के जबाब तो नहीं मिल पाए परन्तु द्रंग की सभा मे कम से कम प्रदेश स्तर पर इसका जबाब मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने दे दिया। उन्होंने बड़े गर्व के साथ प्रदेश की जनता को भरे मंच से बताया-
हिमाचल में पिछली कांग्रेस सरकार में जमकर भ्रष्टाचार हुआ, कांग्रेस के नेता इसमें सम्मिलित रहे और उनके पास इसके पूरे सबूत भी है। जयराम ठाकुर ने यह भी कहा कि उन्हें गुस्सा न दिलाया जाए नहीं तो वो कार्रवाई करने पर विवश हो जाएंगे।

इस बयान के बाद जयराम ठाकुर को जनता किस अलंकार से सुशोभित करे? नेक भद्र पुरुष या ‘‘अक्षम’’ मुख्यमंत्री? नेक या भद्र इसलिए कि ये भ्रष्टाचारियों पर दया दिखा रहे हैं? यह कैसी भद्रता हुई कि ग़रीब हिमाचल के हितों पर डाका डाला गया, उसके सबूत भी हैं, मुख्यमंत्री को पता भी है कि किसके ख़िलाफ़ सबूत हैं लेकिन कहा जा रहा है कि ग़ुस्सा न दिलाओ, वरना कार्रवाई होगी।
अब आप सोचिए, जहां का मुख्यमंत्री ऐसा ‘‘अक्षम’’ होगा, जिसकी नीति भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों को लेकर इतनी नरम होगी, उस राज्य में कितनी लूट अभी भी चल रही होगी, ये बात कल्पनाओं से परे है।

जिस पार्टी की सरकार जनता के बीच एक चार्जशीट का पुलिंदा फैलाकर सत्ता में आई, उसपर साढ़े तीन वर्ष से एक कार्रवाई नहीं हुई। और उस पार्टी का मुख्यमंत्री भरी जनसभा में आक्रामक होकर कहता है-
मुझे गुस्सा न दिलाओ मेरे पास सारे सबूत हैं कि किसने प्रदेश को लूटा, किसने गरीबों के हक पर डाका डाला।
उस प्रदेश का वासी अपने आप को किस स्थिति में पा रहा होगा और सरकार को किस स्तर पर जवाबदेह पा रही होगा, यह चिंतनीय विषय है।

आखिर क्या मजबूरी है कि सबूत भी हैं पर कार्रवाई नहीं होगी? सिर्फ मंच से धमकियां दी जाएंगी?

इस तरह की धमकियां वास्तव में समझौते की भाषा है कि तुम्हारी करतूतों पर मैं चुप रहूंगा, तुम मेरे मामले में चुप रहना।

क्या भ्रष्टाचार और लूट सिर्फ कांग्रेस-भाजपा के बीच की बात है कि एक चुप हो जाए तो दूसरे को शह मिल जाती है गलत करने की?
क्या जनता का कोई रोल, कोई अहमियत नहीं?

क्या जनता के लिए यह जानना जरूरी नहीं कि आज तक हुए भ्रष्टाचार पर क्या कार्रवाइयां हुई हैं?

जनता आखिर कब तक मुख्यमंत्री के गुस्से का इंतज़ार करे कि कब उन्हें गुस्सा आए, सबूतों की पोटली खोलें और जांस एजेंसियों को जगाए और इस प्रदेश को लूटने वालों पर कार्रवाई होती दिखे?
फैसले लेने में ‘‘अक्षम’’ सिद्ध हो रहे मुख्यमंत्री को अपने कार्यकाल में चर्चाओं में आए कथित स्वास्थ्य घोटाले, कोरोना काल में खरीद में हुई कथित गड़बड़ियों और प्रदेश में हो रहे पक्षपातपूर्ण विकास पर तो गुस्सा आता ही नहीं होगा? या आने से रहा क्योंकि यहां तो कोई गुस्सा दिलवाने वाला भी नहीं।

प्रदेश में लूट हुई, ऐसा भी कहते हैं और इस बात का दंभ भी दिखाते हैं कि सबूतों की पोटली अपने पास रखकर कार्रवाई नहीं कर रहे।

प्रदेश का शीर्ष नेतृतव नेक, भद्र, ईमानदार या ‘‘अक्षम’’ है; यह फैसला जनता खुद करे। यह कैसी ईमानदारी कि अपनी मातृभूमि और उससे जुड़ी जनता के हितों पर डाके डले हैं और आपका खून नहीं खौलता, गुस्सा नहीं आता कि कार्रवाई की जरूरत महसूस हो।
प्रदेश का इससे बड़ा दुर्भाग्य क्या होगा?

वहां भ्रष्टाचार करने पर क्या डर होगा जिसका मुखिया भरी सभा मे ऐसी बातें कहकर अपने आप और अपनी महानता को जस्टिफाई करता हो।

(ये लेखक के निजी विचार हैं)

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